ज्योर्ज लुई बोर्खेज की कहानी, हिन्दी अनुवाद - विनोद दास

ज्योर्ज लुई बोर्खेस




परिचय

ज्योर्ज लुई बोर्खेज 

अर्जेंटीनी पत्रकार लेखक और कवि ज्योर्ज लुई बोर्खेज का जन्म  24 अगस्त 1899 को अर्जेटीना स्थित बूएनोस आइरेस में हुआ। तीन महत्त्वपूर्ण पत्रिकाओं के संस्थापक बोर्खेस के कई कविता संग्रह, कथा संग्रह और लेखों के संग्रह के संग्रह उपलब्ध हैं। इनके पूर्वज ब्रिटिश थे। स्पानी बोलने के पहले वह अंग्रेज़ी सीख चुके थे। बचपन से ही अपने पिता के पुस्तकालय से किताबों के पढ़ने से साहित्य के प्रति उनका लगाव बढ़ गया। सन 1914 में उन्होंने जिनेवा जा कर बी. ए. की डिग्री प्राप्त की। 1921 में बूएनोस आइरेस लौटने के बाद अपने शहर की सुन्दरता पर अनेक कविताएँ लिखीं और उनका पहला कविता संग्रह 1923 में प्रकाशित हुआ। 1935 में उनका पहला कथा संग्रह प्रकाशित हुआ। बूएनोस आइरेस के पुस्तकालय में उन्होंने 9 वर्षों तक काम किया। दूसरे विश्व युद्ध में सहयोगियों देशों के समर्थन करने के कारण उन्हें पुस्तकालय की नौकरी से हटा दिया गया। 1955 तक फिर उन्होंने व्याख्यान दे कर, लेखन और सम्पादन कर के अपना जीवन यापन किया। फिर सत्ता बदलने पर उन्हें उसी पुस्तकालय का निदेशक बनाया गया। 1938 में सिर की चोट के कारण उनके बोलने की क्षमता पर असर पड़ा। मृत्यु से आठ वर्षों के पहले उन्होंने सबसे अधिक लेखन कार्य किया। उन्होंने एक और लेखक के साथ मिल कर कुछ जासूसी कहानियाँ छद्म नाम से लिखीं। उन्हें बूएनोस आइरेस विश्वविद्यालय में अंग्रेज़ी और अमेरिकी साहित्य का प्रोफेसर नियुक्त किया गया। एक समय ऐसा था जब उनकी आँखों की ज्योति चली गयी और वह अपनी माँ, सचिवों और मित्रों को बोल कर लेखन कार्य करते रहे। उनकी मृत्यु जून 1986 में हुई।

 


ज्योर्ज लुई बोर्खेस लातिन अमरीका के अग्रणी कवियों में से हैं। बोर्खेस की रचनाएं न तो यथार्थ से आक्रान्त हैं न ही यथार्थ-निरपेक्ष। वे यथार्थ को सीधा और सपाट न मान कर उसे व्यूहात्मक और पेचीदा मानते हैं- गोरखधंधे या भूलभुलैया की तरह का- और उसमें भटकने-भटकाने को कभी कौतूहल, कभी कल्पना की उड़ानों, कभी रहस्य-कथाओं, कभी गणित- बुझौव्वल, कभी दार्शनिक ऊहापोह की विचित्र भाषाओं में व्यक्त करते हैं।


बोर्खेस के जीवन के अंतिम दशक में उनकी दृष्टि जाती रही। दृष्टि की लाचारी के कारण उनका अनुभव जगत बहुत विस्तृत नहीं, लेकिन बहुत गझिन और गहरा है। आइए आज पहली बार पर पढ़ते हैं ज्योर्ज लुई बोर्खेस की कहानी 'एक थके आदमी का यूटोपिया'। कहानी का हिन्दी अनुवाद किया है सुपरिचित कवि आलोचक विनोद दास ने।

 


एक थके आदमी का यूटोपिया 



ज्योर्ज लुई बोर्खेज    

हिन्दी अनुवाद : विनोद दास



वह उसे यूटोपिया कहता है - यह एक यूनानी शब्द है जिसका मतलब होता है कि ऐसी कोई जगह नहीं है।

कुएवेदो



कोई दो पहाड़ियाँ एक जैसी नहीं होती लेकिन पृथ्वी पर हर ज़गह मैदान एक सरीखे होते हैं। ऐसे मैदान में एक सड़क पर मैं सफ़र कर रहा था। बिना किसी उत्सुकता से मैं खुद से पूछ रहा था कि मैं ओकलाहोमा मैं हूँ या टेक्सास में या अर्जेंटीना की किसी जगह में जिसे साहित्यिक लोग पाम्पा कहते हैं। न तो उत्तर में और न ही दक्षिण में मुझे कोई बाड़ दिखायी दी। अन्य मौकों की तरह मैं हौले-हौले कवि एमिलिओ ओरिबे की इन पंक्तियों को दुहरा रहा था जो पढ़ने के साथ-साथ  निरंतर खुलती जा रही थीं।


चलता जा रहा हूँ आगे लगातार  

ब्राज़ील की सीमा के पास डरा रहे हैं अनंत मैदान।


सड़क गड्ढों भरी उबड़-खाबड़ थी। बारिश शुरू हो गयी थी। सड़क से कुछ दो-तीन सौ गज़ की दूरी पर आयताकार और दरख्तों से घिरे एक घर से हल्की रोशनी मुझे दिखायी दे रही थी। एक आदमी ने घर का  दरवाज़ा खोला। आदमी इतना लम्बा था कि उसने मुझे डरा सा ही दिया। वह स्लेटी लिबास में था। मुझे लगा कि वह किसी का इंतज़ार कर रहा है। दरवाज़े पर न तो सांकल थी और न ही ताला लगा था।



हम एक लम्बे कमरे में गये जिसकी दीवारें लकड़ी की बनी थीं, वहां एक मेज और कुर्सियां थीं। छत से लटके लैंप से पीली रोशनी आ रही थी। कुछ कारणों से मेज मुझे अज़ीब सी लग रही थी। इस पर एक रेत घड़ी रखी थी। ऐसी घड़ी पहले मैंने नहीं देखी थी जिसमें शब्दकोशों और विश्वकोशों को स्टील से उत्कीर्ण कर सुरक्षित रखा गया था।



वह आदमी मुझे एक कुर्सी के पास ले गया।



मैंने कई भाषाओं में उससे बात करने की कोशिश की लेकिन हम एक दूसरे को समझ नहीं पाये। आखिर में उसने लैटिन में कुछ कहा। उनसे बातचीत करने के लिए मैंने बहुत पहले स्कूली दिनों में पढ़े अपने लैटिन ज्ञान पर जमी धूल झाड़ कर अपने को तैयार किया।



“तुम्हारे कपड़ों से लगता है कि तुम किसी दूसरे समय से आये हो, जबानों की विविधता राष्ट्रों की विविधता को बढ़ावा देती है और यहाँ तक कि जंगों को बढ़ावा देती हैं। संसार को फिर लैटिन की तरफ़ लौटना पड़ा है। ऐसे भी लोग हैं जो समझते हैं कि लैटिन फ्रेंच, लिमोसी या पापियामेंटो भाषाओँ में मिल जायेगी लेकिन इसका खतरा फिलहाल तो नहीं दिखाई देता। हालाँकि मुझे न तो अतीत में और न ही भविष्य में ही कोई दिलचस्पी है” उसने कहा।



मैंने कुछ नहीं कहा। उसने फिर कहा, ”अगर किसी को खाते हुए देखना आपको बुरा न लगता हो  तो क्या आप मेरे साथ खाना खायेंगे?”



मेरी असहजता को वह भाँप रहा है, यह सोच कर मैंने हाँ कह दिया।



हम नीचे एक कॉरिडोर में गये जिसमें तमाम दरवाज़े खुलते थे। हम एक छोटी सी रसोईं में आये जहाँ की हर चीज़ धातु से बनी हुई थी। हम अपना रात का खाना ट्रे में ले कर पहले वाले कमरे में लौटे। ट्रे में एक कटोरे में कॉर्न फ्लेक्स, अंगूर का एक गुच्छा, एक अनजाना सा फल था जो मुझे अंजीर के स्वाद की याद दिला रहा था। साथ में हम पानी का घड़ा भी लाये। अगर मुझे सही-सही याद है तो रोटी नहीं थी। मेरे मेज़बान के नैन-नक्श तीखे थे। उसकी आँखें कुछ अलग सी थीं। मैं उसका जर्द और सख्त चेहरा कभी नहीं भूल सकता जिसे मैं दुबारा कभी नहीं देखूंगा। बोलते समय उसके हाथ नहीं हिलते थे।



लैटिन बोलने में मेरी जबान कुछ लरज रही थी लेकिन आख़िरकार मैंने पूछ ही लिया, ”अचानक मेरे आने से आपको हैरानी नहीं हुई?“



“नहीं। सदी-दर-सदी से हम ऐसे लोगों से मिलते रहे हैं। वे अधिक समय तक नहीं रुकते। आप भी ज़ल्दी से जल्दी कल तक अपने घर लौट जायेंगे” उसने कहा।





उसकी आवाज़ की पुख्तगी से मुझे राहत मिली। मैंने सोचा कि अपना परिचय देना सही होगा। ”मैं यूदोरो असवेदो हूँ। मेरा जन्म 1897 में बूएनोस आइरेस शहर में हुआ था। मेरी उम्र सत्तर साल है। मैं अंग्रेज़ी और अमेरिकी साहित्य का प्रोफेसर हूँ और काल्पनिक कहानियाँ लिखता हूँ।” 



उसने कहा, “मुझे याद आ रहा है कि मैंने दो काल्पनिक कहानियाँ पढ़ी है जिन्हें पढ़ कर नाराज नहीं हुआ। कप्तान लुमुएल गुल्लिवर का सफ़रनामा जिसे बहुत लोग सच मानते हैं और सुम्मा थीयोलोजिस। लेकिन हम तथ्य के बारे में बात न करें। तथ्य अब किसी के लिए कोई मायने नहीं रखते। खोज और विचार के लिए तथ्य मात्र प्रस्थान बिंदु होते हैं। हमारे स्कूलों में संशय करना और भूलने की कला सिखायी जाती है - खासतौर से उस चीज़ को वहाँ भूलना सिखाते हैं जो निजी और स्थानीय हो। हम उस समय में रहते हैं जो क्रमिक होता है लेकिन हम शाश्वत समय में रहने की कोशिश करते हैं। अतीत के उन कुछ नामों को हम बचा रखते हैं जबकि भाषा उन्हें भूलने की कोशिश करती है। निराधार ब्यौरों से हम बचते हैं। न तो हमारे पास तारीखें हैं और न ही तवारीख़ है। हमारे पास आंकड़े भी नहीं हैं। आपने अपना नाम यूदोरो बताया, मैं आपको अपना नाम नहीं बता सकता चूंकि मुझे महज़ “कोई व्यक्ति” कह कर पुकारा जाता है।”



“आपके पिता का क्या नाम है?”


“उनका कोई नाम नहीं?”


एक दीवाल पर मैंने एक शेल्फ देखी। यूँ ही बिना सोचे समझे मैंने एक किताब खोली। अक्षर साफ़ लेकिन पढ़े नहीं जा रहे थे। उन्हें हाथ से लिखा गया था। उनकी तिरछी रेखाएं रुण वर्णमाला (लैटिन के पहले की भाषा) की याद दिलाती थीं जो केवल उत्कीर्ण लेखन के काम में आती थी। मेरे मन में ख्याल आया कि ये भविष्य में लोग न सिर्फ़ लंबे ही होंगे बल्कि अधिक कुशल भी होंगे। सहज रूप से मैंने उस आदमी की लम्बी और सुंदर अँगुलियां देखीं।



“अब तुम वह कुछ देखने जा रहे हो जिसे पहले तुमने कभी नहीं देखा होगा।” उसने कहा।



उसने मुझे थॉमस मोर का 1518 में बासेल में छपी “यूटोपिया” की प्रति मुझे सौंपी जिसके कुछ पृष्ठ और चित्र गायब थे।



कुछ हद तक मैंने मूर्खतापूर्ण उत्तर दिया, “यह छपी हुई किताब है। मेरे घर में दो हजार से अधिक छपी किताबें हैं हालाँकि न तो वे इतनी पुरानी हैं और न ही इतनी मूल्यवान।”

मैंने उस किताब का शीर्षक बुलंद आवाज़ में पढ़ा।



वह आदमी हँसा, ”कोई भी दो हज़ार किताबें नहीं पढ़ सकता। चार सदी से मैं रह रहा हूँ, लेकिन मैने आधे दर्जन से ज्यादा किताबें नहीं पढ़ीं। हालाँकि पढ़ना उतना मायने नहीं रखता जितना फिर से पढ़ना। मुद्रण कार्य मनुष्यता के लिए सबसे निकृष्टतम पाप है जिसका अब निषेध है क्योंकि यह फ़ालतू विषयों को छाप कर इस हद तक बढ़ा देता है कि आदमी का दिमाग चकरा जाय।”



मेरा उत्तर था, ”मेरा जो विचित्र अतीत है, वहाँ अंधविश्वास का राज ऐसा है कि किसी शाम से ले कर सुबह के बीच ऐसी घटनाएँ घटती हैं जिसके बारे में न पता होना शर्मनाक है। यह ग्रह सामूहिक प्रेतों- कनाडा, ब्राज़ील, स्विस कांगो और कॉमन मार्केट से आबाद है। अभौतिक पदार्थों से पूर्व  के इतिहास के बारे शायद कोई एक भी आदमी नहीं जानता हो लेकिन शिक्षाशास्त्रियों के हाल में हुए अधिवेशन या उनकी कूटनीतिक रिश्तों की सम्भावित विफलताओं या राष्ट्रपति के जारी बयान की हर नई से नई तुच्छ जानकारी उन्हें पता होती है जिसे एक सचिव दूसरे सचिव के लिए उस विधा के अनुरूप लिखता है जिसके लिए अस्पष्टता सबसे माकूल मानी जाती है।



“ऐसी चीज़ें जितनी जल्दी पढ़ी जाती हैं, उतनी ही जल्दी भुला दी जाती हैं। चूंकि कुछ ही घंटों के बाद दूसरी तुच्छ बातें उन्हें गायब कर देती हैं। सभी कार्यों में से राजनेताओं के कार्य बेशक सबसे अधिक सार्वजनिक होते हैं। एक राजदूत या एक कैबिनेट मंत्री एक तरह से अपाहिज़ होता है जिसे हर जगह ढोने के लिए मोटर सायकिल चालकों और फ़ौजी सुरक्षा प्रहरियों से गोलबंद लंबी शोर मचाती गाड़ियाँ होनी जरूरी है जिसका फोटोग्राफर बेसब्री से इन्तज़ार करते हों। मेरी माँ कहती थी कि ऐसा लगता है कि उनके पाँव काट दिए गये हों। चीज़ों से अधिक छवियाँ और छपे शब्द हकीकत लगते हैं। लोग उसी पर यकीन करते हैं जिसे वे मुद्रित पन्ने पर पढ़ते हैं। सिद्धांत, साधन और दुनिया के अंत के बारे में विशिष्ट अवधारणा को रेखांकित किया जाता था। मैं जिस समय में पहले रहता था, उस समय लोग भोले होते थे। वे इस पर यकीन कर लेते थे कि बिक्री का सामान अच्छा है क्योंकि उसको बनाने वाले उसे अच्छा बताते थे। चोरियां भी अक्सर होती थीं जबकि हर कोई जानता था कि धन जोड़ने से बहुत ज़्यादा खुशी और मन की शान्ति नहीं मिलती है।” मैंने कहा।



“धन? उस आदमी की आवाज़ गूँजी।” अब कोई भी ऐसी गरीबी से त्रस्त नहीं है जो सही न जा सके और संपत्ति अश्लीलता का सबसे परेशानी भरा रूप रहा है। हर एक के पास रोज़गार है।”



“जैसे कि राबी (यहूदी धर्म प्रचारक) के पास” मैंने कहा।



उसने ऐसा भाव दिखाया गोया कुछ नहीं समझा और अपनी बात जारी रखी।” अब शहर भी नहीं बचे हैं। बहिया ब्लांका के जिन खंडहरों के प्रति उत्सुक हो कर मैंने उसकी खोज की थी, अब ऐसे खंडहरों को जाँचना कोई बड़ा घाटा नहीं है। चूंकि अब निजी संपत्ति नहीं है तो विरासत भी नहीं है। सौ साल की उम्र पर जब आदमी पहुँचता है तो वह खुद का और अपने अकेलेपन का सामना करने के लिए तैयार रहता है। लेकिन उसे एक सन्तान को खतरे में डालना होगा।”



“एक सन्तान?” मैंने पूछा।

“हाँ, सिर्फ़ एक सन्तान। मानव जाति की संख्या बहुत अधिक बढ़ाना उचित नहीं है। कुछ लोग समझते हैं कि सृष्टि के बारे में ज्ञान की जानकारी ईश्वर से मिलती है लेकिन कोई पक्के तौर से नहीं जानता कि ऐसा कोई ईश्वर है भी या नहीं। मैं मानता हूँ कि पृथ्वी पर हर मनुष्य द्वारा क्रमिक रूप से अथवा एक साथ आत्महत्या करने से होने वाले लाभों और हानियों के बारे में अब विचार-विमर्श चल रहा है। लेकिन मैं उसी बात पर लौटता हूँ जो हम कर रहे थे।”



मैंने हामी भरी।



“सौ साल की उम्र तक पहुंचने के बाद किसी व्यक्ति को प्रेम या दोस्ती की जरूरत नहीं रह जाती। बीमारी या आकस्मिक मौत का कोई भय उन्हें नहीं रह जाता। वह किसी एक कला अथवा दर्शन, गणित का अभ्यास करता है अथवा अकेले ही शतरंज की बाजी खेलता है। जब वह चाहता है, अपने को मार डालता है। जब मनुष्य अपनी ज़िन्दगी का मालिक होता है। वह अपनी मौत का भी मालिक होता है।”



“क्या यह कोई उद्धरण है?” मैंने सवाल किया।



“हाँ बिलकुल, अब उद्धरण के अलावा हमारे लिए बचा ही क्या है। हमारी भाषा उद्धरणों की एक प्रणाली है।”



“और हमारे समय की सबसे रोमांचक यात्रा-अन्तरिक्ष यात्रा के बारे में क्या ख्याल है? मैंने पूछा।



“सदियों हो गये जब हमने ऐसी कोई यात्रा की थी लेकिन निश्चित तौर पर इनकी सराहना की जानी चाहिए। लेकिन हम अभी इससे बच नहीं सकते। ”फिर मुस्काराते हुए उसने आगे कहा, ”दूसरे, सभी यात्राएँ आकाशीय हैं। एक ग्रह से दूसरे ग्रह जाना रास्ते की एक पट्टी को पार करते हुए जाना है। जब तुम इस कमरे में दाखिल होते हो तो अन्तरिक्ष के माध्यम से एक यात्रा कर रहे होते हो।”



“यह सही है, और लोग रासयनिक वस्तुओं और प्राणिशास्त्र संबंधी जानवरों के बारे में भी बहुत चर्चा करते है।“ मैंने कहा।



अब उस आदमी ने मेरी ओर अपनी पीठ कर ली और बाहर देखने लगा। खिड़की से मैदान खामोश बर्फ और चांदनी जैसा सफ़ेद दिख रहा था।





मैंने पूछने के लिए हिम्मत जुटायी, ”क्या अभी भी यहाँ संग्रहालय और पुस्तकालय हैं?”



“नहीं। शोक गीतों को लिखने को छोड़ कर, हम अतीत को भूलने की कोशिश करते हैं। अब मृतकों के लिए स्मृति उत्सव, वर्षगाँठ नहीं मनाये जाते और मूर्तियाँ नहीं लगायी जाती हैं। हममें से हर कोई उस कला और विज्ञान का निर्माण कर लेता है जिसकी उसे जरूरत होती है।”



“तब तो हर एक का अपना बर्नार्ड शॉ, अपना ईसामसीह और अपना आर्कमिडीज जरुर होगा।” 



बिना बोले उसने सिर हिला कर हामी भरी। 



“सरकारों का क्या हुआ?” मैंने पूछा।



“वे रफ्ता-रफ्ता चलन से बाहर हो गये।” उसने कहा। फिर आगे बात बढ़ायी। ”चुनाव कराये गये, जंगों का ऐलान हुआ, कर लगाये गये, भविष्य जब्त किये गये, गिरफ्तारियों के हुक्म जारी किये और सेंसरशिप थोपने की कोशिश की गयी, लेकिन इस ग्रह पर किसी ने इन पर ध्यान नहीं दिया। प्रेस ने उनके लेखों को छापना बंद कर दिया जिन्हें लेखक कहा जाता था। उनकी मौत की शोकांजलि भी छापना बन्द कर दी। राजनेताओं को ईमानदारी का काम खोजना पड़ा। उनमें से कुछ अच्छे कॉमेडियन बन गये और कुछ भूत-प्रेत भगाने के हकीम बन गये। बेशक हकीकत, इस सार-संक्षेप से कुछ अधिक ही जटिल थी।”



अपने बदले हुए लहजे के साथ वह बोलता रहा, ”मैंने अन्य लोगों की तरह यह घर बनाया। मैंने इन फर्नीचरों और घर के सामान को बनाया। मैंने खेतों में काम किया हालाँकि वे लोग जिनका मैंने चेहरा भी नहीं देखा है, इससे बेहतर काम करते। क्या मैं आपको कुछ और चीज़ें दिखा सकता हूँ?”



सटे हुए कमरे में उसके पीछे-पीछे मैं गया। पहले की ही तरह उसने एक लैम्प जलाया। लैम्प छत से लटका था। कोने में हार्प बाज़ा रखा था। इस हार्प में कुछ ही तार थे। दीवालों पर आयताकार चित्र लगे थे जिनमें पीला रंग छाया हुआ था। इन चित्रों को देख कर ऐसा नहीं लग रहा था, ये किसी एक आदमी द्वारा बनाये गये हैं।



“यही मेरा काम है।” उसने कहा।


मैंने चित्रों का मुआइना किया। फिर सबसे छोटे उस चित्र के सामने ठहर गया जिसमें सूर्यास्त चित्रित किया गया था या ऐसा लग रहा था हालाँकि उसमें कुछ अनंत का बोध भी हो रहा था।


“अगर आपको यह अच्छा लगा तो आप इसे भावी दोस्त की निशानी के तौर पर इसे रख सकते हैं।” उसने बिना भावुक हुए कहा।



मैंने उसे शुक्रिया अदा किया लेकिन कुछ ऐसे चित्र थे जिन्होंने मुझे बेचैन कर दिया था। मैं यह नहीं कहूँगा कि वे कोरे थे लेकिन लगभग कोरे जैसे थे।



“वे उन रंगों में रंगे गये हैं जिन्हें आपकी प्राचीन आँखें नहीं देख सकती हैं।” उसने कहा।



एक क्षण के बाद जब उसने अपने नाजुक हाथों से हार्प के तारों को छेड़ा, तो यदा-कदा मुझे उसमें कुछ सुर सुनायी दिए।



तभी मुझे दरवाज़े पर थप-थप सुनायी दी।



एक लम्बी महिला और तीन या चार आदमी घर में दाखिल हो गये। कोई कह सकता है कि वे भाई या बहन होंगे या उस समय वे एक जैसे लग रहे थे। मेरे मेज़बान ने पहले महिला से बात की।



“मैं जानता था कि आज रात तुम आने में कोई चूक नहीं करोगी, क्या तुम नील से मिलती हो?”



“कभी-कभार। वह हमेशा की तरह अपनी पेंटिंग बनाने में डूबा रहता है।”



“हमें उम्मीद है कि उसे अपने पिता से अधिक सफलता मिलेगी।”



तोड़-फोड़ शुरू हो गयी। पांडुलिपियाँ, तस्वीरें, फर्निशिंग, बर्तन- हमने घर में कुछ भी नहीं छोड़ा। मर्दों के तरह औरतों ने भी मेहनत से काम किया। मैं अपनी कमज़ोरी को ले कर शर्मिन्दा था। मैं उनके लिए  उतना काम न आ सका। किसी ने दरवाज़ा बन्द नहीं किया और हम सामान से लदे-फदे बाहर निकल आये। मैंने गौर किया कि उस घर में एक ऊँची छत भी है।



पन्द्रह मिनट पैदल चलने के बाद हम बाएँ मुड़ गये। कुछ दूर पर मुझे गुम्बज़ से सजी एक मीनार दिखायी दी।

“यह कब्रिस्तान है” किसी ने कहा।

“इसके भीतर प्राणघाती चैम्बर है। कहा जाता है कि इसका अविष्कार एक जनहितैषी ने किया था जिनका नाम मेरे ख्याल से अडोल्फ़ हिटलर था।”



उस केयरटेकर ने हमारे लिए दरवाज़ा खोला। उसकी कद-काठी से अब हम विस्मित नहीं थे। मेरे मेज़बान और उसके बीच कुछ बातचीत हुई। दीवार के भीतर जाने के पहले उसने हाथ हिला कर अलविदा कहा।


“अभी और बर्फ़ गिरेगी” उस महिला ने कहा।


बूएनोस आइरेस के मेक्सिको स्ट्रीट स्थित अपने अध्ययन कक्ष में मेरे पास एक कैनवस है जिसे अब से हजारों साल बाद सम्पूर्ण ग्रह में आज की बिखरी हुई वस्तुओं से कोई रंग भरेगा।

 

 

 

 

विनोद दास


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