स्वप्निल श्रीवास्तव का यात्रा वृत्तान्त तानसेन गायक का नही एक शहर का भी नाम है

 




यात्रा केवल एक नई जगह जाना ही नहीं होता बल्कि कई नए दृश्यों, अनुभवों और जानकारियों गलियारे से गुजरना भी होता है। जब एक रचनाकार किसी यात्रा पर जाता है तो उस यात्रा को रचनात्मक बना देता है। पाठक इस वृतांत के जरिए ही उस जगह की रचनात्मक यात्रा कर लेता है। यह वृतांत महज उस जगह की रिपोर्टिंग नहीं होता, बल्कि उसका भौगोलिक, ऐतिहासिक, धार्मिक, प्राकृतिक एवम पर्यावरणीय आख्यान भी होता है। कवि स्वप्निल श्रीवास्तव ने हाल में ही नेपाल के तानसेन नामक जगह की यात्रा की और एक यात्रा वृत्तांत लिखा है। आइए आज पहली बार ब्लॉग पर हम पढ़ते हैं स्वप्निल श्रीवास्तव का यात्रा वृत्तान्त 'तानसेन गायक का नही एक शहर का भी नाम है।'



तानसेन गायक का नहीं एक शहर का भी नाम है।

     


स्वप्निल श्रीवास्तव 

     


जब मैंने पहली बार तानसेन का नाम सुना तो मुझे लगा कि इस शहर का संबंध जरूर शास्त्रीय गायक तानसेन से होगा। उनके कोई न कोई वंशज इस शहर में आए होंगे और उन्होंने इस शहर का नाम तानसेन रख दिया होगा। तानसेन 15 वीं शताब्दी में ग्वालियर में पैदा हुए थे, वहाँ उनके बारे में एक कहावत है – 'यहाँ बच्चे सुर में रोते हैं और पत्थर लुढ़कते हैं तो ताल में।' तानसेन शहर में पहाड़ी बच्चे लय में जरूर रोते  है लेकिन पत्थर ताल में नही लुढ़कते। बारिश के दिनों में चट्टानें खिसक जाती हैं, पहाड़ी रास्ते  बंद हो जाते हैं। लोगों की आवाजाही कम हो जाती है। पहाड़ी नदियों में उफान भी खूब आते हैं, वे डरावनी लगने लगती हैं।

   


यह तो हुई दिल्लगी की बात, लेकिन इस नाम को ले कर मैं परेशान था। तानसेन का दूसरा प्रचलित नाम पाल्पा है लेकिन इसे तानसेन कहना अच्छा लगता है। तानसेन में  जो संगीत है, वह पाल्पा में नहीं है। इतिहास में छानबीन से पता लगा कि तानसेन मगर भाषा का शब्द है जिसका अर्थ होता है उत्तरी बस्ती। शाह साम्राज्य के पूर्व मगर साम्राज्य का शासन था मुकुंद सेन पाल्पा के राजा थे, उसने अपने सीमा का विस्तार काठमांडू तक किया। 18वीं शताब्दी के राजा  पृथ्वी नारायण शाह मगर सम्राट थे, जिन्होंने नेपाल को एकीकृत किया, उसमें नरसंहार भी कम नहीं हुए। शाह ने अपने देश के पूर्व नाम  गोरखा को नेपाल नाम दिया। मगर जाति  नेपाल की सबसे प्राचीन जनजाति है इस जाति के लोग  लड़ाकू होते हैं, मगर भाषा तिब्बती भाषा परिवार की भाषा है।  मगर साम्राज्य के उद्भव की अनेक लोक प्रचलित कथाएं हैं। अन्य देशों की तरह नेपाल में सत्ता-संघर्ष कम नही था, राणा और शाह वंश के बीच यह संघर्ष होता रहा जिसका  सबसे ज्यादा खामियाजा वहाँ की जनता को उठाना पड़ा। नेपाल में राजतन्त्र टूट चुका है, उसकी जगह प्रजातन्त्र है लेकिन उसमें भी राजनीतिक पार्टियों का सत्ता मोह कम नहीं हुआ है। दुनिया में भले ही अधिकांश देशों में जनतान्त्रिक व्यवस्थाएं हो लेकिन उनके भीतर किसी न किसी रूप में तानाशाही प्रवृतियाँ मौजूद रहती हैं।

  

तानसेन नाम में एक ध्वनि  है। कहा जाता है  कि जब तानसेन दीपक राग गाते थे तो दीपक जल जाते थे, जब मेघ-मल्हार की तान छेड़ते थे तो बादल बरसने लगते थे। तानसेन शहर में प्रकृति गायक की भूमिका निभाती हैं सुबह-सुबह पक्षियों के कलरव सुनाई पड़ते हैं। शहर की हलचल तेज हो जाती है, चारों तरफ आवाजें बिखरने लगती हैं। पहाड़ियों पर सूरज का प्रकाश फैलने लगता है। लोग अपने काम पर जाते हुए कोई न कोई पहाड़ी गीत गुनगुनाते रहते हैं। बसों में नेपाली गीत बजते हैं जिन्हें समझना मुश्किल नही होता है। इन गीतों में अद्भुत मिठास होती है, गीतों के साथ जो वाद्ययंत्र बजते हैं, वे दिल को छू जाते हैं।


पहाड़ न होते तो राग-पहाड़ी की उत्पत्ति कैसे होती, पहाड़ी राग सबसे सुमधुर राग है। फिल्मों में पहाड़ी राग के गीत इन्ही वादियों में गाए जाते हैं। आप कभी शिव कुमार शर्मा के संतूर या चौरसिया की बाँसुरी सुने तो आपके सामने  पहाड़ और घाटियां जीवंत होने लगती हैं। फिल्मों में इस राग का खूब प्रयोग किया गया है। इस राग के गीत - वह कौन थी, ज्वेल थीफ, हमराज, आराधना, सिलसिला फिल्मों में सुने जा सकते हैं।    

    


किसी पहाड़ी शहर के संगीत को मूढ़मति के लोग नही समझ सकते, इसके लिए सौन्दर्य दृष्टि  और कवि-हृदय का होना जरूरी हैं। इसी  वेबलेंथ पर प्रकृति के चमत्कारों को अनुभव किया जा सकता है। हृदयहीन और नकारात्मक लोग खूबसूरती में कोई न कोई खराबी ढूंढ ही लेते हैं। उनका सबसे अच्छा राग पूंजी-राग है।भूमाफ़िया और पूंजी के शैतान-बहादुर लोग पहाड़ों को तहस-नहस कर के बिल्डिंग और प्रतिष्ठान बनाते हैं और शहर की संस्कृति और स्थानीयता को नष्ट करते रहते हैं। महानगरों में रहने वाले धनिक लोग यहाँ अपने लिए होटल और ऐशगाह बनाते रहते हैं। कुछ साल पहले जब मैं इस शहर में आया था तो मैंने इन लुटेरों के आने का आहट सुनी थी, इस बार उनके कारनामें देख रहा हूँ। वे पहाड़ों के हत्यारे हैं, उनके इस गुनाह में सरकार भी शामिल है। ये इमारते पहाड़ों पर बदनुमा धब्बे की तरह दिखती हैं और पहाड़ों की सुंदरता नष्ट होती रहती हैं। 

    




बुटवल से तानसेन की यात्रा करते हुए यह अनुभव हुआ कि जहां-जहां इन लोगों के खूनी-पाँव पहुंचेगे, वहाँ विकास के नाम पर विनाश ही होगा। बुलडोजर की संस्कृति हर जगह पहुँच रही है, आदिम संस्कृति को ध्वस्त कर के जिस अत्याधुनिक संस्कृति का निर्माण किया जा रहा, उससे स्थानीयता नष्ट हो रही है, धरोहर गायब हो रहे हैं। शहरों में बाहरी लोग बढ़ रहे हैं, मूल नागरिक बेघर हो रहे हैं। अपने देश के नार्थ-ईस्ट के क्षेत्रों में हम यह देख चुके हैं। आज की राजनीति संवेदनशील नही रह गयी है, उसका एकमात्र उद्देश्य सत्ता में बने रहना है इसलिए वह कारपोरेट को संतुष्ट करती रहती हैं ताकि चुनाव के समय उनसे इमदाद मिल सके। नेपाल इसका अपवाद नही है। छोटे-छोटे विकासशील देश बहुराष्ट्रीय कंपनियों के  हब बन चुके हैं।

   

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पिछली बार जब तानसेन आया था तो बस स्टेशन के पास होटल का कमरा लिया था और वहाँ से पैदल श्रीनगर का व्यू टावर देखने गया था। इस बार उम्र के घोड़े थोड़ा थक गये हैं, यह भी हसरत थी कि शहर की सबसे ऊंची चोटी से तानसेन को निहारा जाए। शुरू से ही आदत थी कि जब किसी पहाड़ी स्टेशन पर जाता था तो उस होटल का चुनाव करता था जिसकी खिड़की नदी या पहाड़ के सामने खुले ताकि बाहर का नजारा देखने को मिले। ऐसी जगहों पर नदियां कहां सोने देती हैं और कौन कमबख्त ऐसे शहरों में सोने आता है। होटल एकांत में था, उसके थोड़ी दूर पर गाँव और जंगल थे। चीड़ के बन और घाटियों के बीच यह होटल स्थित था।| जंगल से हवाओं के साथ खुशबू के झोंकें भी आते थे और हल्की सी  सिहरन पैदा हो जाती थी। बुटवल की फिजा में इतनी नमी नहीं थी लेकिन यहाँ पर गुदगुदाने वाली ठंडक थी। पहाड़ों की शाम बहुत खुशगवार होती है, शोर थम जाते हैं, ऐसी शामों में थोड़ा नशा मिला दिया जाए तो तबीयत मुकम्मल हो जाती है। अपने साथ आए दो जासूसों से आँख बचा कर यह काम करने की हिकमत मैं सीख चुका था। ऐसे लम्हों में मुझे गीतकार नीरज का लिखा गीत याद आने लगता है  


शोखियों में घोला जाए फूलों का शबाब 

उसमें फिर मिलायी जाए थोड़ी सी शराब  

होगा यूं नशा जो तैयार  

--वह प्यार है 


शायर/कवि कम शैतान नही होते, अंगूर की बेटी से उनका इश्क सर्वविदित है। वे ऐसे मौकों के लिए कोई न कोई फार्मूला तैयार करते रहते हैं और हमारी दुनिया थोड़ी देर लिए बदल जाती हैं। फैज जैसे मकबूल शायर का यह शेर देखिए  – 


आए कुछ अब्र  कुछ शराब आए 

इसके  बाद आए  जो अजाब आयें -

बाम-ए-मीना से माहताब आए 

दस्त-ए-साकी में आफताब आए।


   

फैज बगावत के नहीं जीवन की मस्ती के शायर थे – वे हुकूमत के खिलाफ नहीं, वर्जनाओं की जमकर धज्जियां उड़ाई हैं। उनकी शायरी में ग़जब की रोमानियत है। किसी कवि या शायर के जीवन में रोमान आवश्यक तत्व है। हम किसी शायर की शायरी नहीं सीखते उनकी आदतें भी कुबूल करते हैं।





     

होटल के कमरे की खिड़की पहाड़ की तरफ खुलती थी। घाटियों में बादल उड़ रहे थे, वादियों में भेड़ों के रेवड़ थे। चरवाहों की पगड़ियाँ उनके सिर से बड़ी थी, उनका रंग सांवला था लेकिन भेड़े उजली थी। होटल का स्टाफ का व्यवहार आत्मीय था, वह हमारा खूब ध्यान रखता था। उनसे हमें नेपाल के इतिहास और लोकजीवन की जानकारी मिली, पहाड़ी लोकगीत सुनने को मिले।

   

होटल के कमरे में दिल नहीं लगता था इसलिए हम ज्यादातर होटल की टेरस और छत से पहाड़ियों को निहारते रहते थे। ऐसे दृश्यों को देखने के लिए कई आँखों की जरूरत होती हैं।मेरा अनुभव है कि इन पहाड़ी फिजाओं को देखते हुए मन का अवसाद दूर हो जाता है, फेफड़ों में ताजी हवा भर जाती है। आदमी को पहाड़ जरूर घूमना चाहिए ताकि उसे हर मौसम में अविचल खड़ा रहने  का सबक मिल सके। 

 

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पहाड़ी लोगों का कहना है कि खंजर के लिए

सबसे ज्यादा भरोसे की जगह म्यान है 

आग के लिए चूल्हा और मर्द के लिए -घर 

लेकिन अगर आग चूल्हे से बाहर आ कर 

पहाड़ों की चोटियों पर भड़कने लगती हैं

तो म्यान में चैन से पड़ा रहने वाला खंजर नहीं

और घर के चूल्हे के करीब बैठा रहने वाला 

मर्द मर्द  

   

- मेरा दागिस्तान 

   

पहाड़ी जगहों की सैर करने के पहले हमजातोव की किताब 'मेरा दागिस्तान' जरूर पढ़ना चाहिए। इससे पहाड़ों के जर्रे-जर्रे में खूबसूरती नजर आने लगेगी। छोटी-छोटी पहाड़ियां, उनसे गिरते हुए झरने, पहाड़ी घुमावदार रास्ते, भेड़ों के रेवड़ दिलचस्प लगने लगेंगे। जो लोग भव्य पहाड़ी शहरों की रंगीनियों के चिर-प्रेमी हैं, उन्हें पहाड़ों की सुंदरता नही दिखाई देगी। तानसेन की यात्रा करते हुए खूब झरने दिखे, जगह-जगह पानी के पाइप लाइंस बिछे हुए थे वहाँ लोग सुबह-सुबह नहा रहे होते हैं और औरते अपने रसोई घर के लिए पानी भर रही होती हैं।

 

इसे देख कर दागिस्तान का एक प्रसंग याद आया। जब दागिस्तान में पानी की पाइप लाइन आयी तो पानी का पहला घड़ा भरने के लिए सौ वर्ष की एक बुढ़िया का चुनाव किया गया और उसमें से पानी का पहला मग भर कर रसूल के पिता को पेश किया गया। तमगों और पदको से सम्मानित पिता ने कहा कि इतना कीमती पुरस्कार उन्हें पहले कभी नहीं मिला। पहाड़ों में घूमते हुए मैंने देखा कि लोग मग से नहीं आजुरी से पानी पीते हैं। इसी तरह का प्रकरण दगिस्तान में आता है जब एक राहगीर चश्मे से अपने चुल्लू से पानी पी रहा था। पानी पीते हुए देख, उसे मग दे कर पानी पीने को कहा गया। उसका जबाब था कि मैं दस्ताने पहन कर खाना नही खाता।

   

तानसेन में संतरे के बहुत से पेड़ थे जो फलों से लदे हुए थे, ऐसे एक दो पेड़ होटल के कमरे के पास थे। ईशिता पहली बार संतरे के पेड़ देखे थे, वह उसका फ़ोटो खींच रही थी। उसने मुझसे कहा – पापा हम यहा से संतरे के पेड़ ले जाएंगे। मैंने उससे कहा कि हर फल अलग-अलग जलवायु में पुष्पित-पल्लवित होते हैं। संतरे और सेब ठंडी जलवायु में होते हैं। यह सुन कर वह उदास हो गयी। तानसेन और बुटवल में संतरे ऐसे बिकते हैं जैसे हमारे यहाँ आलू बिकते हैं। संतरे रंग बिरंगी  टोकरियों में सजे रहते हैं। उन्हें खरीदने नहीं देखने का मन करता था, यही संतरे के  फल की अबोधता थी।

   

संतरा मेरा प्रिय फल है, जब उसे हाथ में लेता हूँ तो रोमांच से भर जाता हूँ। संतरे की खुशबू बहुत मादक होती हैं, उससे कई सुडौल चीजों की कल्पना होती है। संतरे का स्वाद मीठा और खट्टे से मिला-जुला होता है। यानी दोनों स्वाद एक साथ मिलते हैं। संतरे बेचने वाली स्त्रियों की देह से संतरे की खुशबू आती है। लेकिन जो लोग आलू बेचते हैं, उनकी गंध मटमैली होती है। दो-तीन दिन के तानसेन प्रवास में हमने  खूब संतरे खाये। एक फांक मुंह में डालो तो मुंह रस से भर जाता है। संतरे के पेड़ देखते हुए मुझे स्पेन के कवि फेडेरिको गार्सिया लोरका की कविता 'संतरे के पेड़' की यह पंक्तियाँ याद  आयी –

  

लकड़हारे 

मेरी छाया काट 

मुझे  खुद को फलहीन 

देखने की यंत्रणा से 

-मुक्त कर  

  

पहाड़ों के घुमावदार रास्तों में भटकते हुए शाम का वक्त आने वाला था, इसकी सूचना हमें पक्षियों से मिल जाती है, जब वे अपने घोंसलों की तरफ लौटते हैं, शाम का आगाज होने लगता है। पहाड़ों में भटकने का अद्भुत सुख मिलता है। पहाड़ों के रास्ते सीधे-साधे नहीं होते।सीधी-साधी तो यह जिंदगी भी नहीं होती, जो भटकते हैं, उन्हें नये अनुभव मिलते हैं और जो भटकने का खतरा नहीं उठाते, वे ठहर जाते हैं।




     

*** 

 

पहाड़ दिखने में खूबसूरत लगते हैं, प्रकृति उन्हें तराश कर नयी शक्ल दे देती है। वे घाम-बतास में अविचल खड़े रहते हैं। बारिश और धूप से बचने के लिए उन्हें कोई छाता नही देता। वे तपस्वी की तरह अपनी साधना में लीन रहते हैं। कोई उन्हें तोड़ता है तो वे ऊफ नहीं करते, पहाड़ को तोड़ने वाले पहाड़ को शुक्रिया भी अदा नहीं करते। यह मनुष्य जाति कितनी कृतघ्न है। बहुत साल पहले पहाड़ों में घूमते हुए मैनें एक कविता लिखी थी...।

   

उन्होंने मेरे सामने रख दिया पहाड़ 

और कहा – लड़ो 

मैं पहाड़ से लड़ता रहा 

जब तक कि नहीं हो गया था पहाड़ 

पहाड़ को काट कर उन्होंने पनाहगाह बनाए 

पहाड़ को काट कर उन्होंने बनायी सड़के 

पहाड़ से उन्होंने दुहे प्रपात 

और भूल गये कि कौन है पहाड़...

  


पहाड़ को ले कर बहुत से मुहावरे विकसित हुए हैं – जैसे जिंदगी पहाड़ हो गयी है या पहाड़ की तरह है दुःख। लेकिन जब हम पहाड़ को देखते हैं, ये सारे मुहावरे भूल जाते हैं। हर खूबसूरती के पीछे कोई न कोई दुःख छिपा रहता है। जो दिखाई देता है उसके नेपथ्य में अनगिनत कहानियाँ छिपी रहती हैं। बताया जाता है कि हिमालय पर्वत बहुत पहले टेथीज महासागर था, वह भौगोलिक परिवर्तन के बाद हिमालय पर्वत में रूपांतरित  हुआ।

  

बाजार की सैर में कुछ नया नहीं था, वहाँ छोटे-छोटे मकान थे जिनकी छतें नीची थीं। पहाड़ पर घर बनाना आसान काम नहीं होता, बिल्डिंग बनाने के सामान महंगे होते हैं।औसत आदमी के लिए यह लगभग कठिन काम होता है। बाजार में जरूर विशाल भव्य इमारत थी जिसे तानसेन दरबार के नाम से जाना जाता है। यह ऐतिहासिक महल और म्यूजियम है, जहां राजसी चीजें सुरक्षित की गयी हैं। राजा-महराजा अपने जीवन की तलछट ऐसी जगहों पर छोड़ कर चले जाते हैं ताकि वे मृत्यु के बाद भी अमर हो सकें। हम उन्हें देख कर खुश रहते हैं जैसे हम किसी न किसी तरह से उन चीजों से जुड़े हुए हैं। कुछ लोग इसे अतीत के गौरव मानते हैं, इस तरह अतीत वर्तमान से बड़ा होने लगता है।

 

इस इमारत का निर्माण 1927 राणा शमशेर जंग बहादुर राणा ने बनवाया था जो उन दिनों नेपाल के राजा थे। यह गवर्नर के बैठने की जगह थी।माओवादी आंदोलन में इस बिल्डिंग का कुछ हिस्सा क्षतिग्रस्त हो गया था, अब इसे पुनर्निर्मित करवा दिया गया था। न जाने मुझे ऐसी इमारते डरावनी लगती हैं।

  

तानसेन का मिशनरी हास्पिटल मुझे बहुत अच्छा लगा, इस अस्पताल की स्थापना 1959 ईसाई डाक्टरों के एक समूह ने की थी। यह जान कर खुशी हुई कि इस अस्पताल की परिकल्पना प्रसिद्ध पक्षी विज्ञानी डा राबर्ट फ्लेमिंग और उनकी पत्नी डा बेथेल ने की थी। 315 बेड वाले अस्पताल में लगभग 315 कर्मचारी हैं जिसमें विभिन्न रोगों का इलाज किया जाता है, उसके साथ यहाँ सर्जरी की भी सुविधा है। इस पिछड़े शहर में इस मिशन अस्पताल का महत्व है। यहाँ असाध्य रोगों का निदान किया जाता है।

     

***

 

तानसेन की दो मशहूर जगहें देखने को रह गयी थीं – पहला था काली गण्डकी नदी और उसके पास बना रानीमहल और दूसरा श्रीनगर के शिखर पर घने जंगल क्षेत्र में स्थित श्रीनगर डंडा। ये दोनों जगहें यादगार जगहें हैं। सबसे अद्भुत लगी साँवली काली गण्डकी नदी। यह नदी काली और त्रिशूली नदी का संगम है। यह नदी तिब्बत की सीमा पर स्थित नुबिन ग्लेशियर से निकलती है। इसके जल-पथ पर झीलें और ग्लेशियर मिलते हैं। यह नदी  बाल्मीकि नगर बिहार में नारायणी नाम से जानी जाती है। यह नदी  नेपाल  और  बिहार  की सीमा को विभाजित करती है।

  


तानसेन में इस नदी की सुंदरता देखते बनती है। मैंने अपने देश की तमाम बड़ी और प्रसिद्ध नदियां देखी हैं लेकिन इस नदी का जबाब नहीं। दूर पहाड़ों से उतरती हुई यह नदी हौले-हौले उतरती है जैसे जलराशि समेटे हुए कोई सुंदरी अवतरित हो रही हो। इस नदी पर दो पुल बनाया गया है, पहला पुल कंक्रीट से बना हुआ है और उसके ऊपर लोहे का पुल है, जिससे नदी के सौन्दर्य और  विस्तार को  देखा जा सकता है। इस नदी पर नेपाल के राष्ट्र कवि (23-9-1919 से 14-8-2020)-पसिद्ध कवि माधव प्रसाद घिमिरे ने अद्भुत कविता लिखी है जो मूल नेपाली में है इसे पढ़ना समझना कठिन नहीं होगा।

   

माछापुच्छ गिरिशिखर पारमा मुक्तिक्षेत्र 

बल्दइन बत्ती झलमलकूंचह  जहां 

भुल-भुले भिल्ल तिम्रो जन्मस्थल छः 

पहिलो ज्योति को दिव्यधाम 

कालीगंगा भनन कसरी कुंछ छयो शालिग्राम 

   

****

   

रानीमहल के निर्माता खड्ग समशेर राणा की कथा विचित्र है। उन्होंने बीर शमशेर जंग बहादुर को प्रधानमंत्री बनाने के लिए रणोंदीप शमशेर राणा की हत्या कर दी और खुद को नेपाल का मुख्य सेनापति बन बैठा। फिर उसने जंग बहादुर के खिलाफ सत्ता-पलट की साजिश की। इस षड्यन्त्र में उसे बर्खास्त कर दिया गया और गुल्मी जिले में उसे निर्वासित कर दिया गया। फिर उसे सीमित शक्ति दे कर बहाल कर दिया गया। उसकी सबसे छोटी रानी तेज कुमारी की मृत्यु 1892 को हो गयी। उनकी स्मृति में उसने रानी महल बनवाया जिसका शिल्प ब्रिटिश वास्तुकार की देख रेख में तैयार किया गया। यह महल पहाड़ पर स्थित है, इसे तोड़ने और निर्माण के लिए भारत से श्रमिक लाए गये। इसके निर्माण में चार साल का समय लगा। इस महल की तुलना ताजमहल से की जाती है, मुगल बादशाह ने ताजमहल को अपनी बेगम मुमताज की याद में बनवाया था। इन दोनों इमारतों के पीछे कारीगरों और मजदूरों के शोषण की अनेक कहानियाँ हैं जो इनकी खूबसूरती के पीछे छिपी हुई हैं।तरक्कीपसंद  शायर साहिर ने यूं ही नहीं लिखा था।


इक शहंशाह ने बना कर हँसी ताजमहल 

हम गरीबों की मुहब्बत का उड़ाया है मजाक।

   

जो रानीमहल कभी गुलजार रहा करता था, वह खामोश खड़ा था, उसकी निर्जनता दर्शकों की आवाजाही से टूटती थी। काली गण्डकी के तट पर सैलानी अपना कैंप लगा कर रोमांच का अनुभव करते थे। मेरी भी इच्छा थी कि मैं वहाँ कैंप के नीचे रात बिताऊं और गण्डकी नदी का संगीत रात के सन्नाटे में सुनूं लेकिन परिवार मेरे साथ था इसलिए यह कल्पना फलीभूत नहीं हो सकती थी। आवारागर्दी हमख्याल दोस्तों के साथ ही की जा सकती है। मूढ़, आलसी और हिसाबी-किताबी दोस्तों के साथ नहीं, उनके साथ गणित के कठिन सवाल ही हल किये जा सकते हैं।

   

रानीमहल को देख कर मुझे कमाल अमरोही की फिल्म महल की याद आती है जिसमें मुख्य भूमिका अशोक कुमार और मधु बाला ने निभाई है, यह एक भुतहा हवेली की कहानी है, इस फिल्म का संगीत खेमचंद्र प्रकाश ने दिया था। यह अपने जमाने की मशहूर फिल्म थी।

    

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श्रीनगर डंडा तानसेन की सबसे खूबसूरत जगह थी। डंडा वहाँ का स्थानीय शब्द है जिसका अर्थ  है पहाड़ियाँ। यहाँ से हिमालय की पहाड़ियों के अनुपम सौन्दर्य को देखा जा सकता है। बादलों के खेल  और परिंदों के किलोल देखे जा सकते है। यहाँ तक पहुँचने के लिए थोड़ी सी ट्रेकिंग करनी पड़ती है, चीड़ के वनों से गुजरना पड़ता है।जंगल के बीच के घुमावदार रास्ते हजारों पैरों ने चल कर बनाए होंगे। ये रास्ते भूल-भुलैया की याद दिलाते है, अगर सावधानी के साथ न चला जाए तो आदमी वहीं लौट कर पहुँच जाएगा, जहां से वह चला था। श्रीनगर पर विऊ टावर (View tower) बना हुआ  था जिस पर चढ़ कर हिमालय की अपूर्व खूबसूरती को देखा जा सकता हैं। यह टावर कुतुबमीनार की याद दिलाता था। यह ऐसी जगह थी जहां पूरा दिन बिताया जा सकता है श्रीनगर में बहुत से जंगली फूल खिले हुए मिले, वनस्पतियों की खुशबू से मन बेचैन हो रहा था।

       

***

  

जब मैं बुटवल-पोखरा मार्ग के बीच में स्थित तानसेन की पहाड़ियों से उतर रहा था तो मेरे पास इस शहर की बहुत सी स्मृतियाँ थीं। जैसे-जैसे पहाड़ से अलग हो रहा था, उसे छोड़ने का दुख घना हो रहा था लेकिन जितने दिन तानसेन में रहा, उतने दिन मुझे लगा कि मैं किसी आश्चर्यलोक में रह रहा हूँ। मुझे  लुईस कैरोल के फंतासी उपन्यास 'ऐलिस इन वंडरलैंड' की लड़की ऐलिस की याद आयी जो खरगोश का पीछा करते हुए खरगोश की तिहाइश के होल में गिर जाती है और उसे नयी दुनिया देखने को मिलती है।  यह  कल्पना-लोक  मेरी यात्रा की उपलब्धि थी। अब जब मैं फैजाबाद पहुँचूंगा मुझे यह शेर जरूर याद आएगा –'फिर वही कूचे–कफ़स फिर  वही सैयाद  का घर'।

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सम्पर्क

510, अवधपुरी कालोनी – अमानीगंज 

फैजाबाद  224001 

मोबाइल – 9415332326


टिप्पणियाँ

  1. आप बहुत खूबसूरत लिखते हैं,,, बिल्कुल प्रकृति की तरह प्रकृतिक और सुकून देने वाला।

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  2. खूबसूरत यात्रा वृत्तान्त

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