डोगरी कवि ध्यान सिंह की कविताएं, हिंदी अनुवाद- कमल जीत चौधरी


 

ध्यान सिंह

 

ध्यान सिंह जी का जन्म 2 मार्च, 1939 ई को जम्मू के घरोटा नामक गाँव में हुआ।वे डोगरी के वरिष्ठ कवि लेखक हैं। विभिन्न विधाओं में इनकी 43 किताबें प्रकाशित हैं। राजनीतिक व सामाजिक चेतना से लैस इनके स्वर में एकजनपक्षधरता देखी जा सकती है। इनके लेखन में प्रकृति और मानव अभिन्न हो कर एक भिन्न संसार रचते हैं। वे आज भी गाँव में रहते हैं, और सक्रिय हैं। 

इन्होंने संस्कृति-संरक्षण हेतु काफी कार्य किया है, इन्होंने साहित्यिक कार्यक्रमों के अलावा खेलकूद के आयोजन भी करवाएँ हैं। 2015 में इन्हें 'परछावें दी लो' शीर्षक कविता संग्रह पर 'साहित्य अकादमी' और 2014 में 'बाल साहित्य' पुरस्कार मिला। 'कल्हण' का डोगरी अनुवाद भी इनकी एक उपलब्धि है। आज पहली बार पर प्रस्तुत है डोगरी के कवि ध्यान सिंह की कविताएं मूल डोगरी से हिंदी अनुवाद किया है हिंदी के चर्चित युवा कवि कमल जीत चौधरी ने।



डोगरी कवि ध्यान सिंह की कविताएं

 

हिंदी अनुवाद - कमल जीत चौधरी

 

 

 

लौ की आस                     

 

 

एक पक्षी बोले स्याह अँधेरे में

लौ कब होगी

बार बार पूछे

लौ कब होगी

लौ होगी तो दाना मिलेगा

 

एक पशु बोले स्याह अँधेरे में

लौ कब होगी

बार बार पूछे 

लौ कब होगी

लौ होगी तो घास मिलेगा

 

एक पेड़ बोले स्याह अँधेरे में

लौ कब होगी

बार बार पूछे

लौ कब होगी

लौ होगी तो सांस मिलेगी

 

एक आदमी बोले स्याह अँधेरे में

लौ कब होगी

बार बार पूछे

लौ कब होगी

लौ होगी तो रास्ता मिलेगा:

 

यह 'होने' और 'मिलने' की बात है

यह बात बड़ी निराली है

अति ज़रूरी

बड़ी प्यारी-

 

यह होगी तो कुछ 'मिलेगा'

कुछ मिलेगा तो यह 'होगी'

 


 

 

सूत्र

 

 

खूंखार जानवर को

मारने से पहले

किसी मचान

किसी टीले पर छुप कर

अँधेरे में

आँखें खोल कर

एकटक देखते

कहीं कंधा सटा कर 

कहीं घुटना लगा कर

या

किसी साथी शिकारी 

के भरोसे पर 

एक भय के साये में रह कर

चोरी ही 

घात लगानी पड़ती है

...

खूंखार जानवर को ख़त्म करने के लिए। 

 

 

मशालची

 

 

पैरों में उसके अँधेरा ही रहता

पर वह सतत अँधेरे को मथता

बलती* आग उठा कर

आगे आगे चलता 

अँधेरे में 

रोशनी करता

उबड़ खाबड़ में

मार्ग प्रशस्त करता

भेद बताता

अनुगामियों से संधान करवाता

जो साथी गिरे तो कहर बरपाता

ज़रूरत पड़ने पर

आग बरसाता

दुश्मन को मार गिराता

 

भले सिर पर अपने धुआं उठाता

मगर लौ ही तलाशता

लौ ही चाहता...

 

 

बलती*- जलती

 

 


 

मेरी अभिव्यक्ति  (कवितांश)

  

सोच की सब करनी थी

चिंता की सब भरनी थी :

 

यह दुःख-संताप...

धुएँ से भरा एक आला थी।

 

 


मन-मैला

 

कभी कभी ही,

कभी अक्सर

किसी से मिलने का मन करता है

 

मन खुश होता है

...

निशांत के सपने बाँटते

चढ़ते सूरज की परछाइयाँ देखते

चिड़िया का नन्ही चोंच को दाना खिलाते देख कर

फूलों पर भँवरे मंडराते देख कर 

बछिया को भरे थनों से दुग्धपान करते देख कर

खेत की बुआई करते देख कर

कंगरेलों* की आवाज़ सुन कर

मन खुश होता है।

 

बच्चों को अंक में भर कर 

किसी माँ को तेज़ रौ में दिहाड़ी जाते देख कर

सोचता हूँ

काश! यह भी दिहाड़ी की शुरुआत करते

...

अल सुबह किसी के मनहूस मुँह को देखता हूँ

जो सपनों के मार्ग को कंटीली झाड़ी से अवरुद्ध करता है

मज़बूत सोच में अड़चन डालता है

तो मन मैला हो जाता है अक्सर

या रहता है

मैला अक्सर।

 

 

कंगरेल- बैलों के गले में घुंघुरुओं का बंधा पट्टा


 


 

 

युवाओं के लिए

  

अलादीन के चिरागी भूतो,

सबकुछ मान कर चलो

गंगा चाहे प्रदूषित है

पर बहती है 

हाथ इसमें धोते चलो

गंगा तो गंगा है

मानने में क्या हर्ज है

 

जीवन-दृष्टि कब थी अपनी

मानोगे नहीं तो

मानना ही पड़ेगा 

मानोगे तो भला होगा

 

अपनी मौत मरना आसान नहीं आजकल

वैसे ज़िंदा रहना भी काफी कठिन है आजकल-

 

अलादीन के चिरागी भूतो,

आपका भला तब होगा

जब कुछ मंदा* मान कर; चंगे की शुरूआत करोगे। 

 

मंदा- बुरा


 

 (इस पोस्ट में प्रयुक्त पेंटिंग्स स्व. विजेंद्र जी की हैं।)  

 

 


ध्यान सिंह जी का सम्पर्क:

गाँव डाक- बटैहड़ा 

तहसील ज़िला- जम्मू, पिन कोड- 181206

जम्मू-कश्मीर

फोन नम्बर-  9419259879

 

 

कमल जीत चौधरी

 

अनुवादक का परिचय :

 

कमल जीत चौधरी : 

 

2007-08 में लिखना शुरू किया। 

वागर्थ, नया ज्ञानोदय, पाखी, बनास जन, अनहद, कथन, दोआबा, हंस, सदानीरा, मंतव्य, युद्धरत आम आदमी, अभिव्यक्ति, बया, गाथान्तर, अक्षर पर्व, समावर्तन, यात्रा, अभियान, दुनिया इन दिनों, जनपथ, दस्तक, सृजन सन्दर्भ, परस्पर, उत्तर प्रदेश पत्रिका, हिमाचल मित्र, शब्दयोग, लोक गंगा, शीराज़ा, साहित्य विमर्श जैसी पत्रिकाओं के अलावा अनेक समाचार पत्रों और हिन्दवी, अनुनाद, जानकीपुल, सिताब दियारा, बिजूका, पहली बार, तत्सम, आओ हाथ उठाएँ हम भी, कविता कोश जैसी वेबसाइटस और ब्लॉगस में कविताएँ, आलेख समीक्षाएँ प्रकाशित हैं

 

कविता संग्रह - हिन्दी का नमक (2016 में दखल से प्रकाशित) 

 

संपादन- 2018 में रश्मि प्रकाशन से प्रकाशित जम्मू-कश्मीर के समकालीन चुनिंदा कवियों की कविताओं के संग्रह 'मुझे आई०डी०कार्ड दिलाओ' का संपादन किया है।

 

'कँटीले तार की तरह' (.संजय कुंदन), आठवां द्वादश (. निरंजन श्रोत्रिय), 'स्वर एकादश' (. राज्यबर्धन), 'बच्चों से अदब से बात करो' (. अजय कुमार पाण्डेय), 'तिमिर में ज्योति जैसे' (. अरुण होता), 'तवी जहां से गुजरती है' (. अशोक कुमार), शतदल (. विजेंद्र) जैसे महत्वपूर्ण संकलनों में कविताएँ संकलित हुई हैं। 

 

सम्मान: 'अनुनाद सम्मान' और 'पाखी: शब्द साधक शिखर सम्मान'

 

अनुवाद - कुछ कविताओं का मराठी, उड़िया, अंग्रेज़ी और बांग्ला भाषा में अनुवाद और प्रकाशन हुआ है।

 

 

 

सम्पर्क:

गाँव डाक- काली बड़ी

तहसील जिला- साम्बा, पिन कोड- 184121

फोन नम्बर: 9419274403

मेल आई डी- kamal.j.choudhary@gmail.com

 

टिप्पणियाँ

  1. वाह। सुन्दर प्रस्तुति। इन कविताओं को इस प्रतिष्ठित मंच पर जगह देने के लिए आभार। प्रिय अग्रज संतोष जी, आपको खूब शुभकामनाएँ।
    प्रिय पाठको, हार्दिक धन्यवाद।

    :कमल जीत चौधरी

    जवाब देंहटाएं
  2. मता शैल अनुवाद।कमल जीत गी मतियाँ मतियाँ मुबारखां 👍🎉

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

      हटाएं
    2. तुस जो भी ओ, ए निग्घा स्नेह देने ली तुन्दा मता मता शुक्रिया जी।

      हटाएं
  3. बहुत बेहतरीन भाई जी ��

    जवाब देंहटाएं

एक टिप्पणी भेजें

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

मार्कण्डेय की कहानी 'दूध और दवा'

प्रगतिशील लेखक संघ के पहले अधिवेशन (1936) में प्रेमचंद द्वारा दिया गया अध्यक्षीय भाषण

हर्षिता त्रिपाठी की कविताएं