शुन्तारो तानिकावा की कविताएँ
शुन्तारो तानिकावा की कविताएँ
(अंग्रेजी अनुवाद- तकाको यू. लेंटो)
कवि और अनुवादक शुन्तारो तानिकावा का जन्म टोक्यो में 15 दिसंबर, 1931 को हुआ था। दार्शनिक टेत्सुज़ो तानिकावा उनके पिता और मशहूर लेखिका और चित्रांकनकर्ता योको सानो उनकी पत्नी थी। वे द्वितीय विश्व युद्ध के बाद के वर्षों के जापान के महत्वपूर्ण कवि हैं। उन्होंने एक बार युद्ध के बाद के जापानी बुद्धिजीवियों को और रचनात्मक संस्कृति को अंधकारमय और अस्तित्ववादी कहा था जब कवि कविता के पारंपरिक सिद्धांतों से दूर जा रहे थे। उनके शब्दों में “यह समय हमारे लिए एक प्रकार के शून्य का समय था।”
तानिकावा की कविताएँ एक प्रकार के पराभौतिक और दार्शनिक अनुभव को दर्शाती हैं। वे साधारण और सरल शब्दों में गहन विचारों और भावनात्मक सत्यों का निरूपण करते हैं। उनकी पहली पुस्तक Two Billion Light Years of Solitude (1952) थी। यह एक बेस्ट सेलर थी और अब भी जापान में कविता की सबसे प्रसिद्ध पुस्तकों में एक है। अब तक उनकी कविताओं के साठ से अधिक संग्रह प्रकाशित हुए हैं और वे जापान के सबसे महत्वपूर्ण कवियों में एक हैं। तानिकावा बड़ों के साथ ही बच्चों के लिए भी लिखते हैं। उन्होंने अनुवाद भी किए हैं जिनमें बच्चों के लिए साहित्य भी सम्मिलित है। उनकी कविताएँ चाइनीज, कोरियन, मंगोलियन और बहुत सी यूरोपीय भाषाओं में अनूदित हुई हैं।
जापानी कवि शुन्तारो तानिकावा की कविताएँ इस मायने में अलहदा हैं कि उनकी कविताओं में दर्शन है। हम अपना पूरा जीवन जी लेते हैं और अपने मैं को नहीं जान पाते। वास्तव में अपने मैं को जानना सब कुछ को जान जाना होता है। लेकिन हम अपने आत्म-साक्षात्कार से बचने की हमेशा कोशिश करते हैं। वैसे भी हम अपना चेहरा खुद कहाँ देख पाते हैं। मात्र शीशे में अपना चेहरा देखना ही अपने को जानना नहीं होता। वह तो सब देख लेते हैं। वस्तुतः दूसरों का जीवन और चरित्र ही हमारे सामने होता है। उसके बारे में टिप्पणी करना आसान होता है। इस अर्थ में ‘मैं से मिलने को’ शुन्तारो तानिकावा की एक उम्दा कविता है। उनकी अन्य कविताओं में भी यह दर्शन सहजता से दिख जाता है।
कवि श्रीविलास सिंह अपने उम्दा अनुवाद के लिए जाने जाते हैं। कविताओं का सहज एवम सरल भाषा में अनुवाद वे कुछ इस तरह करते हैं कि एकबारगी ऐसा लगता ही नहीं कि हम किसी और भाषा की कविताएँ हिंदी में पढ रहे हैं। आइए आज पहली बार पर पढते हैं जापानी कवि शुन्तारो तानिकावा की कविताएँ, जिनका हिन्दी अनुवाद श्रीविलास सिंह ने किया है।
शुन्तारो तानिकावा की कविताएँ
(हिन्दी अनुवाद : श्रीविलास सिंह)
“मैं” से मिलने को
राजमार्ग से मुड़ कर प्रांतीय सड़क पर
बाएँ मुड़ो पुनः एक गाँव की ओर और अंतिम छोर पर पहुंचो
“मैं” रहता है वहीँ
यह “मैं” है जो मैं स्वयं नहीं हूँ।
यह है एक साधारण मकान
एक कुत्ता भौंकता है मुझ पर
कुछ सब्ज़ियाँ बोई गयी हैं लॉन में
चूँकि मैं हमेशा बैठता हूँ मकान के बाहरी हिस्से में
मुझे पेश किया गया चाय का एक कप
नहीं किया गया कोई अभिवादन
मुझे जन्म दिया गया था मेरी माँ द्वारा
“मैं” को जन्म दिया है मेरे शब्दों ने
कौन है सच्चा ‘मैं’ ?
मैं इस मुद्दे से थक और ऊब गया हूँ, किंतु
चूँकि “मैं” एकाएक करने लगा है क्रंदन
गले में अटक गयी है मेरी चाय
जराजीर्ण माँ की सूखी छातियां
जो हैं अंतिम छोर मेरे जन्मस्थान का,
कहता है “मैं” बुरी तरह सिसकता हुआ
पर जब मैं देखता हूँ दिन के समय, चाँद है मौन
यह मेरे मष्तिष्क में धीरे-धीरे होने लगता है स्थिर
कि आरम्भ और अंत जाते हैं इससे भी दूर तक
दिन हो चुका है समाप्त
सुनते हुए मेढकों की आवाज़ हम सो जाते हैं अगल बगल बिछे हुए गद्दों पर
“मैं” और मैं दोनों हैं अब “ब्रह्माण्ड की जगमगाती धूल”
चिथड़े
सूर्योदय से पूर्व
कविता
आयी मुझ तक
लुटी हुई
शब्दों के
चिथड़ों में
नहीं है कुछ मेरे पास
उसे देने को मैं बस
साभार स्वीकार करता हूँ उसके उपहार
उधड़ी हुई सिलाई
देती है अवसर मुझे उसके नग्न अस्तित्व के
क्षणिक दर्शन का
फिर भी एक बार पुनः
मैं मरम्मत करता हूँ
उसके चिथड़ों की
मैं बैठता हूँ
एक अपराह्न जब आकाश में छाये हैं हलके बादल
मैं बैठा हूँ एक सोफे पर
जैसे हो जड़ीभूत शांति
हैं बहुत से काम जो करने चाहिए मुझे
पर मैं कुछ नहीं करता
बस बैठा हूँ मंत्रमुग्ध
वे जो हैं सुन्दर, हैं सुन्दर
वे भी जो हैं कुरूप
लगते हैं किसी तरह सुन्दर
बस इस जगह होना ही है
आश्चर्यजनक
मैं हो जाता हूँ कुछ और, स्वयं से भिन्न
मैं खड़ा होता हूँ
पीने को एक घूँट जल
जल भी है आश्चर्यजनक
और तब
जब आ गयी है ग्रीष्म
फिर से
विलाप करते हैं झींगुर
फुलझड़ियां हैं
जम चुकी
मेरी स्मृतियों में
एक सुदूर देश है
धुंधला, किंतु
बह्मांड है बिलकुल मेरे सामने
क्या है ईश्वरीय कृपा -
एक मनुष्य
मर सकता है
पीछे छोड़ कर
बस एक संयोग :
और तब
गीत
कोई
गा रहा है
मेरे बारे में
बादलों की एक धुन में
सामंजस्य में
वृक्षों की
किसी दिन यह गायन
ताल मेरे ह्रदय का
थम जायेगा
लेकिन गीत रहेगा जारी
उत्सव मनाता
तुम्हारे बारे में
पानी का गीत
रहेगा प्रवाहमान
नदी के तल में
रात्रि का विराम
प्रतिध्वनित होगा
खंडहरों में
धूल
स्मृतियाँ हैं
गहन
साँझ की कालिमा में
एक बूढ़े होते मस्तिष्क के लिए
अफसोस भी है
प्रकाश का तीव्र स्रोत
बीज
तमाम फूलों के
जो अब नहीं खिलते
मैं अब भी बोता रहता हूँ उन्हें
ताकि गा सके
धूल
कवि की समाधि
किसी जगह रहता था एक युवा आदमी
जो जीता था कविता लिख कर
उसने लिखी एक कविता
उत्सव की जब हुआ किसी का विवाह
उसने लिखी एक कविता
उकेरी जाने को कब्र के पत्थर पर जब हुई किसी की मृत्यु
लोगों ने दी उसे बहुत सी चीजें आभारवश
कोई ले आया अण्डों से भरी टोकरी
किसी ने सिली एक कमीज़ उसके लिए
किसी ने कर दी सफाई ही उसके कमरे की
क्योंकि नहीं था कुछ उसके पास देने को
वह था प्रसन्न जो भी दिया जाता था उसी से
लोग उसे कहते थे कवि।
वे नहीं प्रयोग करते थे उसका नाम
उसे होता था पहले संकोच, पर
धीरे धीरे वह हो गया इसका आदी
उसकी प्रसिद्धि पहुंची दूर दूर और आए अनुरोध सुदूर स्थानों से
बिल्लियों के चाहने वालों ने कहा लिखने को कविता बिल्ली पर
भुक्खड़ों ने चाही भोजन पर कविता
प्रेमियों ने चाही कविता प्रेम के सम्बन्ध में
उसने मना नहीं किया किसी अनुरोध को चाहे रहा हो वह कितना भी कठिन
वह बैठता अपनी पुरानी आवाज़ करती टेबुल पर
ताकता रहता कुछ देर शून्य में
फिर लिख ही डालता एक कविता किसी तरह
उसकी कविताओं को सम्मान प्राप्त था सभी का
कविताएं जो रुला दें तुम्हें जोर-जोर से
कविताएं जिनसे हँसते हुए दुखने लगे तुम्हारा पेट
कविताएं जो मजबूर कर दें तुम्हें गंभीर चिंतन को
लोग पूछा करते थे उससे विभिन्न सवाल
“कैसे लिख लेते हो तुम इतना अच्छा?”
“क्या पढ़ना चाहिए मुझे यदि मैं बनना चाहूँ एक कवि?”
“कहाँ से मिलते हैं तुम्हें इतने सुन्दर शब्द?”
किंतु उसने नहीं दिए कोई जवाब
वह दे नहीं सकता था यदि वह चाहता तो भी
केवल यही कह सका वह “मुझे भी नहीं पता”
लोग कहते थे वह है एक अच्छा आदमी
एक दिन आयी एक युवा स्त्री उसके पास
उसने पढ़ रखी थी उसकी कविताएं और चाहती थी मिलना उससे
वह पड़ गया उसके प्रेम में पहली ही नज़र में
बिना प्रयत्न के लिखी एक कविता और समर्पित की उसे।
जब पढ़ी स्त्री ने वह कविता उसने महसूस की ऐसी भावना जिसका कर नहीं सकती थी वह वर्णन
वह कह नहीं सकती थी कि वह है दुखी अथवा प्रसन्न
उसने महसूस किया तारों को नोचने जैसा रात्रि के आकाश में
उसने महसूस किया जाना अपने जन्म के पूर्व के समय में
यह नहीं थी एक मानवीय अनुभूति, उसने सोचा
यदि यह नहीं है दैवीय, तो यह हो सकती है शैतान से संबंधित
कवि ने चुंबन लिया उसका हवा के झोंके की भांति
वह नहीं थी निश्चित कि वह है प्रेम में उसके अथवा उसकी कविता के
उस दिन के पश्चात् स्त्री ने बिताया जीवन उसी के साथ
जब वह तैयार करती नाश्ता, वह लिखता था एक कविता नाश्ते के बारे में
जब वह तोड़ती जंगली बेरियां, वह लिखता कविता जंगली बेरियों के बारे में
जब वह उतारती अपने वस्त्र, वह लिखता कविता उसके सौंदर्य पर
वह करती थी गर्व कि वह था एक कवि
उसने सोचा- है कहीं अधिक प्रभावशाली कविता लिखना
खेत जोतने, मशीनें बनाने की बजाय
या फिर रत्न बेचने अथवा एक राजा होने की बजाय
पर कभी कभार वह अनुभव करती थी अकेलापन
जब उससे टूट जाती कोई कीमती प्लेट
वह नहीं होता था क्रोधित, बल्कि देता था सांत्वना
वह थी प्रसन्न पर करती थी अनुभव कि कुछ है जिसकी कमी है
जब स्त्री ने बताया अपनी उस दादी के बारे में जिसे वह छोड़ आयी थी पीछे
आँसू गिर पड़े कवि की आँखों से
पर अगले दिन उसने भुला दिया इस बात को
स्त्री ने सोचा कुछ था इसमें विचित्र
फिर भी वह थी प्रसन्न
वह चाहती थी रहना उसके संग लंबे समय तक
जब स्त्री ने कहा उससे ऐसा, उसने कस कर लगा लिया उसे अपने वक्ष से
उसकी आँखें देख रही थी शून्य में न कि स्त्री की ओर
उसने हमेशा लिखी कविताएं अकेले ही
उसका नहीं था कोई मित्र
जब वह नहीं लिख रहा होता था कविताएं
वह दिखता था अत्यधिक ऊबा हुआ
वह नहीं जानता था फूलों के नाम, एक का भी नहीं
फिर भी उसने लिखी थी ढेरों कविताएं फूलों के बारे में
उसे दिए गए बहुत से फूलों के बीज धन्यवाद में
जिन्हें वह उगाती थी लॉन में
एक साँझ वह थी दुखी पर जानती न थी कि क्यों
वह लिपट गयी उससे और रोती रही जोर जोर से
तुरंत ही उसने लिखी एक कविता प्रशंसा में बहते हुए आँसुओं की
स्त्री ने फाड़ डाली कविता और फेंक दिया उसे कचरे में
वह हो गया दुखी
उसके चहरे की ओर देखती, रोती हुई और जोर से, वह चिल्लाई
“कुछ और कहो मुझसे जो न हो कविता -
कुछ भी चलेगा, बस कहो वह मुझसे !”
वह रहा मौन, नीचे देखता हुआ
“कुछ भी नहीं कहना है तुम्हें, बताओ?”
तुम हो बस निर्वात
हर चीज बस गुज़र जाती है तुम में से हो कर”
“मैं जीता हूँ इस जगह बस वर्तमान में” कहा उसने
“मेरा नहीं कोई अतीत, न ही भविष्य
मैं स्वप्न देखता हूँ एक स्थान का जो है रिक्त हर चीज से
क्योंकि यह संसार है बहुत उदार और बहुत सुन्दर भी
स्त्री ने मारे उसे घूंसे
कई कई बार अपनी पूरी शक्ति के साथ
आदमी की देह हो गयी पारदर्शी
उसका ह्रदय, मस्तिष्क, अंतड़ियाँ सब हो गए अदृश्य हवा की भांति
उसके मध्य से उसे नजर आया एक शहर
उसने देखा बच्चों को खेलते हुए आँख मिचौली
उसने देखा प्रेमियों को गहन आलिंगनबद्ध
उसमें देखा एक माँ को कुछ चलाते हुए पकाने के बर्तन में
एक पियक्कड़ अधिकारी आया उसकी नजर में
एक बढ़ई रंदा लगाता लकड़ी के एक टुकड़े को
उसने देखा अपनी खाँसी से परेशान एक वृद्ध को
उसने देखा गिरने को तैयार एक कब्र के पत्थर को
वह लौट आयी और पाया स्वयं को खड़े हुए एकदम अकेले
कब्र के पत्थर के पास
नीला आकाश था उतना ही विशाल जितना उसने देखा था सदैव से
एक शब्द भी खुदा हुआ नहीं था कब्र के पत्थर पर।
कवि की समाधि हेतु मृत्यु लेख
“ मैं अनंत मौन, प्रदान करूँगा शब्द तुम्हें”
-जूल्स सुपरविले
जब मैंने जन्म लिया
मैं था नामहीन
जल के एक अणु की भांति
किंतु तुरंत ही मुझे पोषित किया गया स्वरों से एक मुंह से दूसरे मुंह में
व्यंजन टपके मेरे कानों में
मैं पुकारा गया और
खींच लिया गया ब्रह्माण्ड से
हिलते हुए वातावरण को
नक्काशी की मैंने मिट्टी की पट्टियों पर
लिखा बाँस पर
अभिलेखित किया रेत पर
शब्द है प्याज की परतें
यदि मैं छीलता ही रहूं
मुझे नहीं मिलेगा ब्रह्माण्ड
मैं पसंद करता था भूल जाना शब्दों को
हो जाना एक वृक्ष गाता हुआ हवा में
मैं पसंद करता था एक बादल होना लाखों वर्ष पूर्व का
मैं पसंद करता था होना एक ह्वेल का गीत
अब मैं जा रहा हूँ वापस होने को नामहीन
जब धूल होगी मेरी आँखों पर, मेरे कानों पर और मेरे मुंह पर
और मुझे रास्ता दिखा रहे होंगे सितारे मेरी उंगली पकड़ कर
(इस पोस्ट में प्रयुक्त चित्र गूगल इमेज से साभार लिए गए हैं।)
सम्पर्क
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