अभिनव राज त्रिपाठी की कविताएं

 

अभिनव राज त्रिपाठी

 

परिचय

 

अभिनव राज त्रिपाठी 'पथिक'

पता -  मऊ, चित्रकूट, उत्तर प्रदेश

योग्यता : पोस्ट ग्रेजुएशन प्रथम वर्ष

पेशा -  पत्रकारिता

विशेष : प्रतियोगी छात्र के तौर पर प्रयागराज में अस्थायी निवास एवं विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में लेख, कविताएं, कहानियां एवं विभिन्न सामाजिक मुद्दों से जुड़े हुए लेख प्रकाशित।

 

 

 

कवि का पहला कदम तमाम तरह की सम्भावनाएं लिए होता है। कविता को सम्भालने के क्रम में नवहा कवि तुक, लय, छंद की बारीकियों से भी जूझता है। कविता में कथ्य को साधने की कोशिश करता है। और इस तरह कविता की दुनिया में उन लडखडाते कदमों के साथ प्रवेश करता है जो एक नवागत की पहचान होती है। हालांकि अभिनव अपने ब्लाग पर कविताएं लिखते रहे हैं लेकिन हिंदी साहित्य की चर्चित पत्र-पत्रिकाओं में अभी तक प्रकाशित नहीं हो पाए हैं। एक तरह से हिंदी साहित्य की धीर-गम्भीर दुनिया में उनका यह पहला प्रकाशन है। अभिनव की एक उम्दा कविता है आशा। इस छोटी सी कविता में वे अत्यंत महत्त्वपूर्ण बात करते हैं :  हम दौड़ रहे हैं सूरज से भी तेज/ घूम रहे हैं पृथ्वी से भी तेज/ फिर ये रात बड़ी क्यों हो रही है?’ विकास के तमाम दावों-प्रतिदावों के बावजूद एक बडी आबादी ऐसी भी है जिसे दूसरे समय की रोटी नसीब नहीं होती। जिन बच्चों को स्कूल जाना चाहिए वे ढाबों पर कप प्लेट धोने के लिए अभिशप्त हैं। आखिरकार रात बडी क्यों होती जा रही है? यह सहज-स्वाभाविक सवाल कवि को परेशान करता है। जटिलताएं दिन-ब-दिन बढती जा रही हैं। कवि को सजग दृष्टि रखते हुए इन जटिलताओं को अपनी कविताओं में बरतना है। यह कवि अभी एम. ए. का छात्र है और इस बात में कोई दो राय नहीं कि इसमें काफी सम्भावनाएं हैं। अभिनव राज त्रिपाठी का स्वागत करते हुए आज पहली बार पर हम प्रस्तुत कर रहे हैं इस नवागत कवि की कविताएं।    

   

      

 

अभिनव राज त्रिपाठी की कविताएं

       

 

 

निश्चय ही तुमसे मिल सकूं

 

 

लुटे हुए मन में , शांत बैठे तन में एक गांठ मैं दे सकूँ

हृदय के शूल को , कदमों के भूल को मैं भूल सकूँ

तो सत्य कहता हूं प्रिये निश्चित ही तुम्हारे संग बैठ कर

दिल की बात मैं कह सकूँ.....

 

 

विक्षोभ मन का सह सकूँ, एक बात तुमसे कह सकूँ

काश तुमसे मिल सकूँ......

 

 

अभावों के विद्वेष से, मन के मलिन क्लेश से

यदि मैं स्वयं को मुक्त कर सकूं,

तो निश्चय ही तुमसे मिल सकूँ।

 

 

लुटे हुए पथिक प्रेम में, शांत बैठे मन के श्लेष में

अश्रु विंदु को मोती कर सकूं

तो निश्चय ही तुमसे मिल सकूँ

 

 

हृदय की संस्तुति में , प्रणय पावन स्मृति में 

वेदना को संगीत दे सकूँ 

तो निश्चय ही तुमसे मिल सकूँ

 

 

मृत्यु के यश गान को , स्वयं के विचलित प्राण को

अमृत कलश मैं दे सकूँ 

तो निश्चय ही तुमसे मिल सकूँ।

 


 

 

सूनापन

 

 

एक दरख़्त का सूनापन

है इस अन्तःस्थ में

इस सूनेपन को कोई भर सके

ऐसी रिक्तता नहीं है इस मन में ......

 

 

इस सूनेपन की जो त्रिज्या है 

युगों का यादृच्छिक मौन है ....

उस मौन को कोई तोड़ सके 

ऐसा कोई नहीं इस जग में

 

 

कई वसंत देखे , कई बदलाव देखे 

सब में एक ही था यह सूनापन

 

 

सूनापन शिशु में शांत था ,

युवा में बेचैन है .........

प्रौढ़ता का भय नहीं 

अनुभव का मैल है......

 

 

ठीक इसी दरख़्त की तरह यह सूनापन

आदमी की जमीं पर वर्षों से टिका है,

यही सूनापन इंसानियत बनाये है ,

नहीं तो यह आदमी हर घड़ी बिका है।

 

 

 

मेरी अभिलाषा

 

 

कंचन  कलश  की  स्वर्णिम  आभा  का    बनूँ  मैं  साज प्रिये।

  बनूँ  राजप्रासाद के  शिखरों  का  ध्वजदंड   अभिमान प्रिये।

दिव्य  मूर्ति  मस्तक  का  नही बनना पुण्य प्रसून सा, मान प्रिये।

प्रेमी  प्रेयसी के प्रिय  प्रणय  का  नही  बनना अनुपम हार प्रिये।

मेरी  अभिलाषा  पूर्ण  करो  और  बना  दो  वह   रज हे ! प्रभुवर,

जिस  पथ  पर  मातृ  रक्षा  को  वीर  जाते हों पवित्र भाव रसधार लिए।।

 


 

 

आशा

 

 

संवेदना सूख चुकी है

मर रहे हैं शब्द

 

 

पथराई आंखे खो चुकी है

ढूंढ रही है आशा की किरण

 

 

हम दौड़ रहे हैं सूरज से भी तेज

घूम रहें हैं पृथ्वी से भी तेज

 

 

फिर ये रात बड़ी क्यों हो रही है?

 

 

मृत्यु

 

मृत्यु तुम !

स्निग्ध अहसास की छवि

या चिर निंद्रा की शांति

या भावी अटल का प्रयोजन

या कालचक्र की अविरल गति

 

 

तुमसे मुलाकात !

एक दिन अवश्य होगी 

किन्तु कैसी असहजयता 

की माया का सुंदर घेरा, और

हंसनी अपना घर छोड़ देगी 

 

 

हाँ मृत्यु तुम !

सत्य हो शाश्वत, का जयघोष है

तुम पुञ्ज अटल ज्योति की लौ

किन्तु भय का तम मेरे पास

और हृदय कहता राम राम सत्य है।

 

 

हाँ प्रिय मृत्यु तुम!

निर्वात सदृश शून्य हो 

सोSहम का सार तत्व सिद्धान्त हो

हे ! चिरनिद्रा के पावन हंस

क्या तुम मोक्ष के प्रथम सोपान हो।

 

 

(इस पोस्ट में प्रयुक्त पेंटिंग्स वरिष्ठ कवि विजेन्द्र जी की है)

 

 

सम्पर्क

मोबाईल -   9415114099

 

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