निकानोर पार्रा की कविताएँ, अनुवाद: देवेश पथ सारिया
निकानोर पार्रा |
इस दुनिया की खूबसूरती है कि यह जानते हुए भी कि एक दिन सब कुछ नष्ट हो जाना है लोग अमर रहने के लिए तरकीबें लगातार खोजते रहते हैं। इसी क्रम में मुख्य रूप से शासक वर्ग अपने को अनंत काल तक स्मृति में बनाए रखने उम्मीद में अपनी मूर्तियां लगवाता रहता है और इसी तरह के अन्य बचकाने प्रयास करता रहता है। शासक वर्ग के समर्थक भी अपने आकाओं को खुश रखने के लिए प्रायः उनकी मूर्तियां प्रायः लगाते रहते हैं। लेकिन हकीकत तो यहीं है की अंततः एक दिन सब कुछ खत्म हो जाता है। निकानोर पार्रा की एक छोटी सी कविता ‘राष्ट्रपति की मूर्ति नहीं बचेगी नहीं’ इसकी उम्दा तरीके से तस्दीक करती है।
निकानोर पार्रा की कविताएँ
अनुवाद: देवेश पथ सारिया
मैं अपना कहा सब कुछ वापस लेता हूं
मृत्यु से पहले
इस अंतिम इच्छा का अधिकारी तो हूं मैं-
मेरे कृपालु पाठक
इस किताब को जला देना
यह वह सब कुछ नहीं जो मैं कहना चाहता था
हालांकि इसे लिखा गया था ख़ून से
तब भी यह मेरा सटीक मंतव्य नहीं
मुझे ही अफ़सोस है सबसे ज़्यादा
हार गया हूं मैं अपनी परछाई से
मेरे ही शब्दों ने प्रतिशोध लिया मुझसे
मुझे माफ करना पाठक, मेरे अच्छे पाठक
मैं तुम्हें नहीं छोड़ सकता
एक गर्माहट भरे आलिंगन के साथ
मैं तुम्हें छोड़ रहा हूं
जबरन लाई गई उदास मुस्कुराहट के साथ
शायद यही है मेरा वास्तव
सुनो मेरे अंतिम शब्द-
जो कुछ मैंने कहा, मैं सब वापस लेता हूं
दुनिया भर की तमाम कड़वाहट के साथ
मैं वापस लेता हूं सब कुछ जो मैंने कहा
(अंग्रेजी अनुवाद : मिलर विलियम्स)
चेतावनियां
आग लगने पर
लिफ्ट का इस्तेमाल मत करो
सीढ़ियां लो
जब तक कुछ और ना कहा जाए
सिगरेट मत पियो
कचरा मत फैलाओ
यहां-वहां शौच मत करो
रेडियो मत बजाओ
जब तक कुछ और ना कहा जाए
हर बार इस्तेमाल के बाद
शौचालय में फ्लश करो
सिर्फ़ तब नहीं
जब ट्रेन स्टेशन पर खड़ी हो
अगले मुसाफ़िर का ध्यान रखो
आगे बढ़ो ईसाई सैनिकों
दुनिया भर के कारिंदो इकट्ठे हो जाओ
खोने के लिए कुछ नहीं है
सिवाय हमारी ज़िंदगी के
और इक़बाल बुलंद करो
परमपिता का
और उसके पुत्र का
और पवित्र भूत का
जब तक और कुछ ना कहा जाए
वैसे, यह भी स्पष्ट सत्य है
कि उस रचयिता के द्वारा ही
बनाया गया है सब मनुष्यों को
और अनुकंपास्वरूप दिए गए हैं
कुछ अभिन्न अधिकार
जिनमें शामिल हैं :
जीवन, स्वतंत्रता और ख़ुश रहने की कोशिश
और अंत में-
दो और दो होते हैं चार
जब तक कुछ और ना कहा जाए।
आखिरी प्याला
इस बात को पसंद करो या मत करो
हमारे पास गिनती के तीन विकल्प होते हैं:
भूतकाल, वर्तमान और भविष्य
और दरअसल तीन भी नहीं
क्योंकि दार्शनिक कहते हैं
गुज़र चुका है भूतकाल
वह केवल स्मृति में है:
एक नोंचे हुए गुलाब से
एक और पंखुड़ी नहीं खींची जा सकती
हमारी गड्डी में सिर्फ दो पत्ते बचे :
वर्तमान और भविष्य
और दो भी नहीं
क्योंकि हर कोई जानता है
कि वर्तमान का तो कोई अस्तित्व ही नहीं
वह भी एक तरह से भूतकाल बन जाता है
गुज़रा हुआ वक़्त
जैसे जवानी
संक्षेप में
हमारे पास बचा सिर्फ भविष्य :
मैं शराब का एक प्याला बनाता हूं
उस दिन के लिए जो कभी नहीं आता
पर सिर्फ़ वही है
जिस पर हमारा बस है।
(अंग्रेजी अनुवाद: डेविड अंगर)
मदद!
नहीं मालूम कि मैं कैसे यहां आ पहुंचा :
मैं ख़ुशी से दौड़ा जा रहा था
अपनी टोपी दाएं हाथ में पकड़े
एक चमकती तितली का पीछा करता
जिसने मुझे प्रसन्नता से पागल कर दिया था
और अचानक! मैं अटक कर गिर गया
मुझे नहीं मालूम कि बग़ीचे को क्या हुआ
बर्बाद हुआ पड़ा है यह
मेरी नाक और मुंह से ख़ून निकल रहा है
मुझे सच में नहीं मालूम कि क्या हो रहा है
मेरी मदद करो
या गोली मार दो मेरे सिर में।
(अंग्रेजी अनुवाद: मिलर विलियम्स)
युवा कवि
जैसा लिखते हो, लिखो
किसी भी शैली में
पुल के नीचे से बहुत ख़ून बह चुका है
इसी यक़ीन में
कि सिर्फ़ एक ही रास्ता सही है
कविता में हर बात की अनुमति है
और महज़ एक शर्त है,
ख़ाली काग़ज़ बेहतर हो उठे।
(अंग्रेजी अनुवाद: मिलर विलियम्स)
कुछ वैसा ही
पार्रा हंसता है जैसे
उसे नरक की सजा मिली हो
पर कवि कब नहीं हंसते थे?
कम-से-कम वह अपना हंसना स्वीकारता है
कवि वर्षों गुज़ार देते हैं
या कम-से-कम प्रतीत होते हैं गुज़ारते हुए
बिना किसी परिकल्पना के
जैसे सब कुछ घटित हो रहा अपने आप
अब पार्रा रोता है
भूल कर कि वह एक प्रतिकवि है
....
तनाव मत लो
कोई नहीं पढता आजकल कविताएँ
अच्छी या बुरी, कैसी भी
......
चार कमियों के लिए मेरी ओलिफिया मुझे कभी माफ़ नहीं करेगी
उम्रदराज़
तुच्छ
साम्यवादी
और साहित्य का राष्ट्रीय पुरस्कार
मेरा परिवार शायद तुम्हें माफ़ कर भी दे
पहली तीन कमियों के लिए
पर चौथी के लिए हरगिज़ नहीं
......
मेरी लाश और मेरी
परस्पर समझ बड़ी अद्भुत है
मेरी लाश पूछती है: क्या तुम ईश्वर में यकीन रखते हो?
और मैं दिल खोल कर मना करता हूं
मेरी लाश पूछती है: क्या तुम सरकार में यक़ीन रखते हो?
और मैं हथौड़ी और दरांत से जवाब देता हूं
मेरी लाश पूछती है: क्या तुम पुलिस में यक़ीन रखते हो?
और मैं उसके मुंह पर मुक्का जड़ देता हूं
तब वह ताबूत से उठ खड़ी होती है
और हम बाहों-में-बाहें डाल वेदी की तरफ जाते हैं
......
गृह कार्य
एक सानेट बनाओ
जो निम्नांकित पंचपदी पद्य से शुरू होती हो :
मैं तुमसे पहले मरना चाहता हूं
और जो समाप्त होती हो इस पर :
मैं चाहूंगा कि पहले तुम मर जाओ
......
तुम जानते हो क्या हुआ
जब मैं घुटनों पर था
सलीब के सामने
ईसा के घावों को देखता हुआ?
वह मुझे देख मुस्कुराया और आंख मारी उसने!
पहले मैं सोचता था कि वह कभी नहीं हंसता:
पर हां, अब मुझे यक़ीन हो गया है
......
एक घिसा हुआ बूढ़ा
फेंकता है लाल कारनेशन के फूल
अपनी प्यारी मां के ताबूत पर
तुम सुन क्या रहे हो, सज्जनों और देवियों:
एक बूढ़ा शराबी
लाल कारनेशन के रिबन
बम की तरह फेंक रहा है
अपनी मां के ताबूत पर
......
मैंने धर्म के लिए खेलों को छोड़ा
(मैं हर रविवार प्रार्थना सभा में जाता था)
मैंने धर्म को छोड़ा कला के लिए
कला को गणितीय विज्ञान के लिए
छोड़ता रहा
अंततः आलोक प्राप्ति तक
और अब मैं बस गुज़रता हुआ कोई हूं
जिसका संपूर्ण या अंशों में कोई विश्वास नहीं
किसी राष्ट्रपति की मूर्ति बचेगी नहीं
किसी राष्ट्रपति की मूर्ति बचेगी नहीं
उन सटीक कबूतरों से
क्लारा सैंडोवल हमसे कहती थी:
वे कबूतर जानते हैं कि वे क्या कर रहे हैं
(लिज़ वर्नर के अंग्रेजी अनुवाद पर आधारित)
(इस पोस्ट में प्रयुक्त सभी तस्वीरें गूगल इमेज से साभार ली गयीं हैं)
मेरा ताइवान का पता :
देवेश पथ सारिया
पोस्ट डाक्टरल फेलो
रूम नं 522, जनरल बिल्डिंग-2
नेशनल चिंग हुआ यूनिवर्सिटी
नं 101, सेक्शन 2, ग्वांग-फु रोड
शिन्चू, ताइवान, 30013
सम्प्रति: ताइवान में खगोल शास्त्र में पोस्ट डाक्टरल शोधार्थी। मूल रूप से राजस्थान के राजगढ़ (अलवर) से सम्बन्ध।
फ़ोन: +886978064930
ईमेल: deveshpath@gmail.com
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