ताईवानी कवि ली मिन युंग की पाँच कविताएँ, अनुवाद - देवेश पथसारिया, जितेन्द्र श्रीवास्तव की भूमिका 'अनुवाद का सौंदर्य और ली मिन युंग का काव्य संसार'।
कवि विश्व का सार्वभौमिक नागरिक होता है। वह परिधियों से उबरने की कोशिश करते हुए बड़ा दायरा गढ़ने की कोशिश करता है। ताईवानी कवि ली मिन-युंग की कविताएं पढ़ते हुए हम इसे महसूस कर सकते हैं। ताईवान का लोकेल अपने यहाँ आसानी से गढ़ सकते हैं।
अनुवाद एक जादू की तरह होता है जो हमें दूसरी भाषा और संस्कृति से न केवल परिचित कराता है बल्कि उस दुनिया को महसूसने का अवसर भी प्रदान करता है। युवा कवि देवेश पथ सारिया एक बेहतर अनुवादक हैं। वे इस समय शोध के सिलसिले में ताईवान में ही हैं। उन्होंने हाल ही में ताईवानी कवि ली मिन युंग की कविताओं का अनुवाद किया है। देवेश का यह काम 'हकीकत के बीच दरार' नाम से प्रकाशित हो चुका है। इस संग्रह की एक भूमिका लिखी है हिन्दी के प्रतिष्ठित कवि जितेन्द्र श्रीवास्तव ने। आज पहली बार पर हम प्रस्तुत कर रहे हैं जितेन्द्र श्रीवास्तव की भूमिका 'अनुवाद का सौंदर्य और ली मिन युंग का काव्य संसार। साथ ही हम पढ़ेंगे ताईवानी कवि ली मिन युंग की पाँच कविताएँ, जिनका खूबसूरत हिन्दी अनुवाद किया है देवेश पथसारिया ने।
अनुवाद का सौंदर्य और ली मिन-युंग का काव्य-संसार
जितेन्द्र श्रीवास्तव
भारत के स्वाधीनता वर्ष में पैदा हुए ताइवानी कवि ली मिन-युंग की कविताओं में एक अपनापन है। यह अपनापन उनकी गहरी लोक संपृक्ति से आविर्भूत हुआ है। इस प्रकार का अपनापन प्रत्येक उस कवि की कविता में मिलता है जिसकी जड़ें अपनी मिट्टी में होती हैं। वायवीयता का विश्व रचने वाले कवि अंततः वायवीय ही रह जाते हैं। कविता पृथ्वी के किसी भी हिस्से की हो, यदि उसमें मानुष राग है तो वह भौगोलिक और भाषिक परिधि को लाँघ जाती है। अपरिचित-सा कवि नाम सहोदर-सा लगने लगता है। यह सरोकारों का डी. एन. ए. है, जिसकी जाँच के लिए किसी प्रयोगशाला में जाने की जरूरत नहीं होती। कविता और समस्त कलाओं का अपना एक भिन्न वायुमंडल होता है। राजनीति का कार्बन डाइऑक्साइड उसे विषाक्त बनाने की अनवरत कोशिश करता रहता है लेकिन सदियाँ बीत गईं, उस वायुमंडल का आक्सीजन चिरंजीवी है। यह अकारण नहीं है कि युवा कवि देवेश पथ सारिया के प्राणवान अनुवाद में जब ली मिन युंग की कविताएँ मुझे मिलीं तो मैं अभिभूत होकर इन्हें कई बार पढ़ गया। लगा जैसे अपनी ही भाषा के किसी ऐसे समर्थ कवि को पढ़ रहा हूँ जो मेरे ही देश के किसी अन्य भौगोलिक क्षेत्र में रहता है। इन कविताओं ने वसुधैव कुटुम्बकम की अवधारणा को पुनः परिपुष्ट किया। वैसे भी अनुवाद साहित्य का एक वैश्विक कुटुंब सृजित करता है। इस संग्रह की पहली कविता 'शताब्दियों के मिलन बिंदु पर प्रार्थना' अपने तीन हिस्सों में तीन बिम्बों का सृजन करती है। पहला बिम्ब देखें-
युद्ध सुपुर्द है इतिहास को
विध्वंस याद को
बूंदाबांदी में घुल गए हैं
प्राकृतिक आपदा से मिले
घाव और आँसू
इस बिम्ब को व्याख्यायित करने की आवश्यकता नहीं है। इसे महसूस किया जाना चाहिए। इस कविता का दूसरा बिम्ब देखें-
शताब्दियों के मध्य पुल की भाँति
एक इंद्रधनुष खिलता है
समय के समाप्ति बिंदु और आरम्भ पर
बाँटता हुआ भूतकाल भविष्य को
अब शताब्दी की सांध्य बेला है
रात घिरने के बाद
तारे अंधकार में रास्ता दिखाएंगे
इस बिम्ब में एक निरन्तर प्रवहमान ऐतिहासिक चेतना है। यह कवि अपने राष्ट्र को वर्णनातीत प्रेम करता है, इसलिए तीसरा बिम्ब मातृभूमि का अपूर्व सुन्दर सहेजे हुए है-
उगते हुए सूरज की रोशनी
क्षितिज पर चमकती है
सपने बुनता फॉरमोसा
समुद्र के आलिंगन में रहता है
क्षितिज के ऊपर
उसके वासी, एक सुर में पुकारते हैं
ताइवान।
निश्चय ही देवेश ने इस हिस्से में फॉरमोसा की जगह आर्यावर्त और ताइवान की जगह भारत लिख कर पढ़ा होगा। यह कविता का वह वैश्विक लोकतंत्र है जो अपने पाठक को उसकी जड़ों की याद दिलाता रहता है। नहीं भूलना चाहिए कि प्रत्येक मनुष्य के मन का भी एक 'लोकेल' होता है और उस पर कभी धूल नहीं जमती। ली मिन-युंग की यह साधारण-सी दिखती कविता अपनी अर्थव्याप्ति में असाधारण है। अपनी मातृभूमि को नमन करने वाला यह कवि वैश्विक कुटुम्ब का स्वप्न इस प्रकार व्यक्त करता है-
ऐसी चेतना किसी कवि-कलाकार के मन में ही हो सकती है। इंच-इंच पर अपना दावा करने वाले मुक्त-मन के इस सौंदर्य को कभी नहीं समझ पाएंगे। अपनी एक कविता 'औरतें' में युंग ने स्त्री जीवन के दो रूपों को जिस ढंग से रखा है, वह इस कवि की क्षमता का पता देने के लिए पर्याप्त है। पहला रूप-
कानों में सीपियाँ पहनी हुई
ये औरतें
समुद्र की याद दिलाती हैं
इनकी आँखों में उमगती लहरें हैं
दुनिया भर को खुद में
समा लेने को तैयार।
और दूसरा रूप-
कुछ दूसरी औरतें हैं
जिनकी छाती पर
सलीब लटकी है
जो बताती है
कि वे रहना चाहेंगी
पवित्र अक्षत योनि।
इस कवि की कविताएं बताती हैं कि इस कवि के वहाँ स्त्री जीवन को समझने की एक निरंतर कोशिश है।
कभी- कभी सोचता हूँ कि यदि अनुवाद की सुविधा न होती तो संसार कितना निर्धन लगता! वह अनुवाद ही है जिसने भूमण्डलीकृत विश्व ग्राम के समानांतर एक सांस्कृतिक विश्व ग्राम की रचना की है। भाषा और साहित्य का एक वैश्विक परिवार निर्मित किया है। आप किसी देश गए हों या नहीं, अनुवाद के जरिए वहाँ का साहित्य आपकी अपनी भाषा में छप कर आपके सिरहाने आ जाता है। कह सकते हैं कि इस प्रक्रिया में उस देश और समाज से आपकी वास्तविक मुलाकात हो जाती है। भारत के संदर्भ में अनुवाद ने राष्ट्रीय एकता को सुदृढ़ करने में बड़ी भूमिका निभाई है। यदि अनुवाद न होता तो इन पंक्तियों का लेखक दक्षिण या पूर्वोत्तर के भक्त कवियों और उनके दूसरे साहित्य को कभी भी नहीं पढ़ पाता। बांग्ला, ओड़िया, गुजराती, मराठी, पंजाबी आदि के साहित्य को कैसे पढ़ता! यह याद रखना चाहिए कि अनुवाद कोई सीमा नहीं मानता। कबीर याद आते हैं-
हद चले सो मानवा बेहद चले सो साधु
हद बेहद दोनों तजे ताकर मता अगाध।
इस दोहे के मर्म को अनुवाद के संदर्भ में देखने पर नया अर्थ खुलता है। अनुवाद हद और बेहद-दोनों को तज कर आत्मीयता का विस्तार करता है। जिस प्रकार सनातन धर्म में आत्मा और शरीर की अवधारणा है, उसी प्रकार यदि गौर करें तो अनुवाद में शरीर बदल जाता है लेकिन आत्मा चिरंजीवी रहती है। कहने की आवश्यकता नहीं कि अनुवाद में साहित्य को नवजीवन मिलता है। वह अनुवाद ही है जिसके कारण विश्व के महान दार्शनिकों के विचार हम तक पहुँच पाए अन्यथा वे उन दार्शनिकों की मातृभाषाओं में ही रह जाते। हरिवंश राय बच्चन ने जब खैयाम की रुबाइयों का अनुवाद किया तो वे रुबाइयाँ भारत की आत्मा में रच बस गईं। कोई अपरिचय नहीं रह गया। भाषा की दीवारें गिर गईं। मैं कभी ताइवान नहीं गया लेकिन देवेश के अनुवाद ने सिर्फ एक कवि की कुछ कविताओं के माध्यम से ही मुझे ताइवान से मिलवा दिया। इस कवि के पास एक नितांत समकालीन चित्त है। यदि ऐसा नहीं होता तो वह 'रविवार का संगीत' शीर्षक कविता में इन पंक्तियों को नहीं लिख पाता-
फरिश्ते विलीन हो चुके हैं
वे मनुष्यों ने गढ़े थे
वे प्रवेश कर रहे हैं
चियान्ति नाम के एक कॉफी शॉप में
इटालियन कॉफी का एक कप पीने को
वहाँ विवाल्डी के फोर सीजन्स का
'समर' बज रहा है।
इस कवि के काव्य-संसार में हृदय और मस्तिष्क-दोनों को एक साथ प्रभावित करने वाले बिम्बों की भरमार है। मन बार-बार रुकता है और मस्तिष्क आश्चर्य से भर उठता है। अपनी एक कविता में वह कहता है-
रेलमार्ग बनाने की ख़ातिर
हमने पेड़ काट दिए एक महफूज़ द्वीप के।
ये पंक्तियां विकास और विनाश के द्वंद्व को मार्मिक ढंग से सामने रखती हैं। नया मिल रहा है, यह सुखद है लेकिन उसके लिए जो खो रहा है उसकी चिंता कौन करेगा! कवियों की 'सीकरी' से पटरी इसीलिए नहीं बैठती क्योंकि वे विनाश पर पर्दा नहीं डालते। यह कवि एक अन्य कविता में कहता है-
यदि तुम पूछो
कैसा दिखता है वर्तमान ताइवान द्वीप का
मैं तुम्हें बताऊँगा
ताइवान की आत्मा को
गला रहा है
शक्ति संपन्नों का भ्रष्टाचार।
सच्चा कवि वही होता है जो अपने समय को बिना किसी विशेषण के पूरी तीक्ष्णता से दर्ज करता है। नहीं भूलना चाहिए कि अधिकतर मामलों में विशेषण सत्य की धार को कुंद कर देते हैं। अभिधा को उत्तम काव्य इसीलिए माना गया है।
जितेन्द्र श्रीवास्तव
पिछले कुछ दशकों से पूरी दुनिया में मनुष्यता संकट का सामना कर रही है। इस कोरोना-काल में स्थिति चरम पर पहुँच गई है। ये पंक्तियां ली मिन-युंग के देश और शहर का ही सत्य नहीं बताती हैं बल्कि यह एक वैश्विक सत्य है-
इस शहर में
सहानुभूति का अभाव गहराता जा रहा है
अलगाव बढ़ता जाता है।
इतना ही नहीं, यह विडम्बना भी लगभग वैश्विक है-
हम अधिशासी पार्टी के आदेश पर सिर हिलाते हैं
सोच-विचार की सामर्थ्य त्याग
हम सोते हैं बुरे सपनों के बीच, निश्चिंत।
सपनों के बिना कोई कवि और कविता सम्भव नहीं है। स्वप्न का घनत्व ही किसी कवि को विशेष बनाता है। कवि का काम सत्ताधीशों द्वारा देखे गए सपनों के मूल्यांकन के साथ ही मनुष्यधर्मी सपनों का सृजन भी है और कविता का एक काम स्वप्न देखने की तमीज़ पैदा करना भी है। इस कवि का स्वप्न देखिए-
मुझे पूछो तो
बेहतर दृश्य यह होगा
कि सूरज चढ़ने से पहले
एक नवजात को हौले से
झूला झुलाती हो कोई नर्स।
यह कवि प्रेम डगर की दूरी नापने के हौसला रखता है लेकिन 'यातायात चिन्ह' जैसी यथार्थवादी कविता भी लिखता है। यह कविता इस समय पूरी दुनिया के लिए अचानक प्रासंगिक हो गई है। इसकी कुछ पंक्तियाँ देखें-
जीवितों को लगता है
की लंबी सड़क पर
कोई उनका पीछा कर रहा है
मेरे पांवों से खून रिस रहा है
छोड़ता हुआ
एक लम्बी राह पर निशान
आगे खड़ी है मृत्यु
वहाँ न प्रार्थना काम आएगी
न बचा पायेगा उससे कोई।
वैसे इस कवि का मूल स्वर प्रेम और साहचर्य का है। वह मुहब्बत का आकांक्षी है। नाउम्मीदी के बीच उम्मीद के सूत तलाशने की कोशिश करता रहता है। ताइवान के लोगों का मुक्ति-संघर्ष उसकी कविता की आत्मा है। यह अकारण नहीं है कि इस कवि की कविताओं में घावों के अनगिनत निशान हैं और साथ में गहरी जिजीविषा भी। यह कवि घायल दिलों के उपचार की बात करता है। वह साम्राज्यवादियों को संबोधित करते हुए कहता है-
तुम नहीं जकड़ सके
मेरे हाथ में खिंची
प्यार की लकीर को।
कहने की आवश्यकता नहीं कि प्यार पर अटूट विश्वास रखने वाले इस कवि का हिंदी संसार में भरपूर स्वागत होगा। आज दुनिया को अनुवादों की बहुत जरूरत है। जिस प्रकार जल के बिना जीवन की कल्पना नहीं होती उसी प्रकार अनुवाद के बिना सामासिक सांस्कृतिक जीवन की कल्पना सम्भव नहीं है। इस सुंदर अनुवाद के लिए युवा कवि देवेश पथ सारिया को भी बधाई!
सम्पर्क
मो – 09818913798
Lee-Min-yung
ली मिन-युंग की कविताएं
अनुवाद: देवेश पथ सारिया
यदि तुम पूछो
यदि तुम पूछो
कौन है ताइवान द्वीप का पिता
मैं तुम्हें कहूंगा
आकाश है ताइवान द्वीप का पिता
यदि तुम पूछो
कौन है ताइवान द्वीप की माँ
मैं तुम्हें कहूंगा
समुंदर जननी है ताइवान द्वीप की
यदि तुम पूछो
क्या था ताइवान द्वीप का बीता हुआ कल
मैं तुम्हें बताऊंगा
ताइवान के इतिहास की परतों में दबे
ख़ून और आँसुओं के बारे में
यदि तुम पूछो
कैसा दीखता है वर्तमान ताइवान द्वीप का
मैं तुम्हें बताऊंगा
ताइवान की आत्मा को
गला रहा है
शक्तिसम्पन्नों का भ्रष्टाचार
यदि तुम पूछो
कैसा होगा ताइवान द्वीप का भविष्य
मैं तुम्हीं से कहूंगा
अपने क़दमों पर खड़े हो जाने को
रास्ता भविष्य का
तुम्हारे लिए ख़ुला है।
(अंग्रेज़ी अनुवाद: जोयस हुआंग)
सरहदें
कोई सरहद नहीं होती
नीले सागर से घिरे
एक द्वीप की
कोई सरहद नहीं होती
चमकते आसमान के नीचे स्थित
एक द्वीप की
और वे होते कौन हैं
सरहदें तय करने वाले
लोहे के परकोटे बना कर
कँटीली बाड़
कस देती है लगाम
उत्कंठा पर
लम्बी यात्राओं की
घनी जालियां
लगा देती हैं विराम
उम्मीदों पर
मुक्त उड़ान की।
(अंग्रेज़ी अनुवाद: के. सी. तू )
पुकार की सीमा में
दूर की आवाज़ें
सुन सकता हूँ मैं
आती हुई
दुर्दांत अपराधियों के लिए बने फाँसीघरों से
या
अस्पताल के प्रसूति कक्ष से
रात के एकांत में
मैं कविता पढता हूँ
एक पराई ज़मीन से
कवि, भाषा की स्ट्रैचर पर
बचा लाता है
एक राजनीतिक बंदी को
फांसीघर से
और बैप्टाइज़ करता है उसे
मुझे पूछो तो
बेहतर दृश्य यह होगा
कि सूरज चढ़ने से पहले
एक नवजात को हौले से
झूला झुलाती हो कोई नर्स
गर्भाशय से अभी जन्मा
रोता हुआ बच्चा
सच में
स्त्रीत्व का आमोद है।
(अंग्रेज़ी अनुवाद: लिन माइल्स)
मेरा देश
मेरा देश
मेरे दिल में ज़ब्त
एक रहस्य है
वहाँ नहीं है कँटीली बाड़ तारों की
किसी फ़ौज की मौजूदगी नहीं
वहाँ का झंडा, पत्तियों से बना हुआ
लहरें वहाँ, हवा में हिलोरें मारती
पूरे द्वीप की धरती पर स्थित पेड़
मानो झंडे टाँगने के पोस्ट हैं
कलरव करता
पंछियों का एक झुण्ड
जंगल से उत्तर देता है
प्रकृति की संदेशवाहक
हवा की ताल का।
(अंग्रेज़ी अनुवाद: लिन माइल्स)
स्वप्न
रात गहराने के बाद
हक़ीक़त के बीच थी एक दरार
जिससे हो कर मैं बच निकला
हालाँकि
उम्रक़ैद पाए क़ैदी की तरह
जेल में रखा था मुझे
तुमने
छूट भागने के बाद
आज़ाद था मैं
तुम नहीं जकड़ सके
मेरे हाथ में खिंची
प्यार की लक़ीर को
तुम नहीं पकड़ सके
मेरे क़दमों से छूटे
नफ़रत के निशानों को।
(अंग्रेजी अनुवाद: विलियम मार )
देवेश पथ सारिया
मेरा ताइवान का पता :
देवेश पथ सारिया
पोस्ट डाक्टरल फेलो
रूम नं 522, जनरल बिल्डिंग-2
नेशनल चिंग हुआ यूनिवर्सिटी
नं 101, सेक्शन 2, ग्वांग-फु रोड
शिन्चू, ताइवान, 30013
सम्प्रति: ताइवान में खगोल शास्त्र में पोस्ट डाक्टरल शोधार्थी। मूल रूप से राजस्थान के राजगढ़ (अलवर) से सम्बन्ध।
फ़ोन: +886978064930
ईमेल: deveshpath@gmail.com
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 26-08-2021को चर्चा – 4,168 में दिया गया है।
जवाब देंहटाएंआपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी।
धन्यवाद सहित
दिलबागसिंह विर्क
बहुत सुन्दर प्रस्तुति, प्यारी रचनाएं, सुंदर भाव , अच्छा विश्लेषण भी, राधे राधे।
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