यादवेंद्र की टिप्पणी 'संविधान वाली लड़की : ओल्गा मिसिक’

 

 

ओल्गा मिसिक

 

लोकतंत्र सत्ता का दरअसल वह माध्यम है जिसमें जनता यानी कि लोक सर्वोपरि को सर्वोपरि माना जाता है। लेकिन लोकतंत्र में जनता की यह सर्वोपरकता दुर्भाग्यवश चुनाव में वोट देने तक सिमटती जा रही है। इस तंत्र में भी तमाम दोष हैं जिनका फायदा राजनीतिज्ञ हर देश-काल में उठाते रहे हैं। इस तंत्र का प्रधान भी सत्ता के अहमकपने का शिकार हो जाता है। इस अर्थ में तुलसी की यह पंक्ति सच लगने लगती है प्रभुता पाई काहिं मद नाहीं। जिस उम्मीद को ले कर लोकतंत्र की परिकल्पना की गयी थी, वह परिकल्पना सच कहें तो आज तक पूरी नहीं हो पाई है। लोकतंत्र में विरोधी अत्यंत महत्त्वपूर्ण माने गये। विरोधियों का काम सरकार की सकारात्मक आलोचना करना और उसे निरंकुश होने से रोकना था। लेकिन अब वस्तु-स्थिति यह है कि सत्ताधारियों द्वारा विपक्षियों को विरोधी या दुश्मन या फिर राष्ट्रद्रोही घोषित कर दिया जाता है। रुस में पुतिन भी लोकतंत्र का वह चेहरा हैं जिन्हें विरोध का तक बर्दाश्त नहीं। पहली बार 1999 में रुस के प्रधानमंत्री बने पुतिन की यह सत्ता के प्रति अनुरक्ति ही है कि वे आज तक (प्रधान मंत्री या राष्ट्रपति) किसी न किसी रुप में रुसी सत्ता के शीर्ष  पर आज भी विराजमान हैं। पुतिन की यह उपलब्धि है कि उन्होंने आज तक अपने किसी  भी प्रतिद्वंदी को उभरने नहीं दिया। ऐसे शासक निरंकुश लोकतंत्री के रुप में देखे जा सकते हैं। रुस तो एक नमूना भर है इसकी प्रतिच्छाया हर जगह देखी जा सकती है। दो साल पहले रूस में हुए म्युनिसिपल चुनावों में पुतिन का विरोध करने वाली ओल्गा मिसिक पर मुकदमा चलाया गया जिसकी सजा कैद भी हो सकती है। पर इस युवा छात्र का यह जज्बा ही है कि वे हार नहीं मानी हैं और अपना प्रतिरोध जारी रखे हुए हैं। यादवेन्द्र ने ओल्गा मिसिक पर यह महत्त्वपूर्ण टिप्पणी पहली बार के लिए भेजी है। आज पहली बार पर प्रस्तुत है यादवेंद्र की टिप्पणी  'संविधान वाली लड़की : ओल्गा मिसिक  

 

 

 

'संविधान वाली लड़की : ओल्गा मिसिक

 

 

 

यादवेन्द्र

 

 

 

दो साल पहले रूस में म्युनिसिपल चुनावों को लेकर गर्मा-गर्मी बनी हुई थी - पुतिन अपने विरोधियों को चुनाव से बाहर रखने के तमाम हथकंडे अपना रहे थे पर लोकतांत्रिक प्रक्रिया में विश्वास रखने वाले बड़े बड़े प्रदर्शन भी हो रहे थे।


 

इसी क्रम में ऐसे ही एक प्रदर्शन में 17 वर्ष की छात्र ओल्गा मिसिक शांतिपूर्ण प्रतिरोध का प्रतीक बन गईं जब उन्होंने हथियारबंद पुलिस के सामने जमीन पर बैठ कर रूसी संविधान के उन अंशों को पढ़ना शुरू कर दिया जिसमें जनता के लोकतांत्रिक अधिकारों (शांतिपूर्ण विरोध करना उसमें शामिल है) की गारंटी की बात कही गयी है।

 

 

"मैं उन्हें सिर्फ़ यह याद दिलाना चाहती थी कि हम वहाँ शांतिपूर्ण ढंग से अपनी बात रखने आये थे - हमारे हाथों में कुछ भी नहीं था जबकि उनके हाथ हथियार थामे हुए थे.... मैं वहीं जमीन पर बैठ गयी और संविधान के उन हिस्सों को पढ़ने लगी जिसमें हमारे विरोध करने के अधिकारों की गारंटी दी गयी है। मैं उन्हें बताना चाहती थी कि अहिंसक प्रदर्शनकारियों को गिरफ्तार कर वे संविधान का उल्लंघन कर रहे हैं।"

 

ओल्गा मिसिक

 

 

ओल्गा को पुलिस ने पकड़ कर रात भर हिरासत में रखा और मुकदमा कर दिया जिसकी सजा कैद हो सकती है। पर इस युवा छात्र को अपने किये का कोई मलाल नहीं। वे आगे भी लोकतांत्रिक अधिकारों के हनन का विरोध करती रहेंगी।

 

 

इस अनूठे अहिंसक प्रतिरोध को तब पूरी दुनिया में लोगों ने देखा पढ़ा था। मैंने इस बारे में एक फेसबुक पोस्ट लिखी थी।

 

 

मैंने सोचा एक बार फिर से ओल्गा मिसिक के एक्टिविज्म की खोज खबर ली जाए - वे रूस में लोकतंत्र बहाली का प्रतीक बनी हुई हैं।

 

ओल्गा मिसिक

 

 

वर्तमान स्थिति यह है:

 

मास्को यूनिवर्सिटी में पत्रकारिता की पढ़ाई कर रही ओल्गा मिसिक को 'संविधान वाली लड़की ' भी कह कर पुकारा जाता है।

 

 

मिसिक और उसके दो युवा साथियों के ऊपर यह आरोप लगाया गया कि उन्होंने रूस में लोकतंत्र की मांग करने वाले आंदोलनकारियों को कैद करने का विरोध किया, उनकी मांगों का समर्थन किया और प्रॉसिक्यूटर जनरल के कार्यालय के बाहर पहरेदारों के एक बूथ पर लाल रंग उड़ेल दिया। रंग की जहां तक बात है मिसिक का कहना है कि वह पानी में आसानी से घुल जाने वाला रंग था पर जज ने इसे बड़ा नुकसान और तोड़-फोड़ की कारवाई बताते हुए भरपाई के तौर पर 3500 रूबल का जुर्माना लगाया।

 

 

इन कथित जुर्मों को स्वीकार करते हुए कोर्ट ने 10 मई 2021 को ओल्गा मिसिक की आज़ादी को दो साल दो महीने के लिए 'प्रतिबंधित' कर दिया - रात दस बजे से सुबह छः बजे तक घर से निकलने पर पाबंदी लगा दी।

 

 

 सज़ा की अवधि पूरी होने तक वे अपना घर नहीं बदल पाएंगी।

 

 

वे अपना शहर छोड़ कर कहीं नहीं जा सकते, ही किसी जुलूस या प्रदर्शन में भाग ले सकते हैं।

 

Vladimir_Putin

 

मुकदमे और अपनी प्रताड़ना के बारे में ओल्गा कहती हैं :

 

"पूरे घटनाक्रम में मुझे डर कभी नहीं लगा...

 

 

बल्कि मायूसी, नाउम्मीदी, हताशा, लाचारी, व्याकुलता, व्यग्रता और क्रोध के मिले-जुले भाव मेरे मन में उपजते और आते जाते रहे। यदि डर मेरे मन में समा जाता तो मैं राजनीति और एक्टिविज्म का रास्ता पकड़ने के बारे में सोचती पर ऐसा बिल्कुल नहीं हुआ।"

 

 

"मेरे बच्चे मुझसे पूछेंगे जब देश में यह सब हो रहा था तब मैं क्या करती रही, मेरे रहते यह सब होता कैसे रहा? इन्हें रोकने के लिए मैंने क्या किया? तब मेरे पास उन्हें बताने को क्या होगा? क्या बोलूंगी मैं?"

 

 

मिसिक ने सज़ा सुनाने वाली जज मारिया बुराया से पूछा कि आपको भी तो अपने बच्चों को जवाब देना होगा। वे आपसे भी सवाल करेंगे कि जब देश में यह सब हो रहा था तब आप कहां थीं? क्या कर रही थीं? क्या जवाब देंगी आप - कि मैं ओल्गा जैसे युवाओं को सज़ा के फैसले सुना रही थी?

(themoscowtimes.com और अन्य अखबारों में 11मई 2021 को छपा)

 

किसी भी सजग समाज को ऐसे प्रतिरोध जिंदा रखेंगे।

 

 

 

यादवेंद्र

 

 

सम्पर्क


मोबाइल  9411100294

 

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