निज़ार कब्बानी की कविताएँ, अनुवाद : श्री विलास सिंह
निज़ार कब्बानी |
कविता वस्तुतः जीवन की परिभाषा होती है। जीवन जो संघर्षों से भरा होता है, जीवन जो प्रतिरोध के गीत रचता है, कविता उसे अपना स्वर प्रदान करती है। प्रेम के कवि निजार जब 15 वर्ष के थे, तभी घर पर घटी एक घटना ने उनके जीवन और काव्य कर्म को ही बदल कर रख दिया। दरअसल उनकी बहन की शादी जबरन काफी बड़ी उम्र के एक व्यक्ति के साथ की जाने लगी तो बहन ने विरोधस्वरुप आत्महत्या कर लिया। इस घटना से गहरे तौर पर प्रभावित निज़ार आजीवन स्त्री अनुभूतियों को आवाज देने की कोशिश करते रहे। अरबी समाज जहाँ महिलाओं को दोयम दर्जे का नागरिक समझा जाता है, पर टिप्पणी करते हुए निज़ार ने कहा 'अरबी समाज में प्रेम एक कैदी जैसा है और मैं इसको आजाद कर देना चाहता हूँ। मैं अपनी कविता के माध्यम से अरबी आत्मा, संवेदना और शरीर को मुक्ति की राह पर ले जाना चाहता हूँ।' निज़ार यह काम आजीवन करते रहे। उनकी कविताओं के मूल में प्रेम और प्रतिरोध है। श्रीविलास सिंह ने विश्व के महत्त्वपूर्ण कवियों की कविताओं का उम्दा अनुवाद किया है। पहली बार के लिए काफी पहले उन्होंने यह अनुवाद उपलब्ध कराया था, जिसे हम अपरिहार्य कारणों वश प्रस्तुत नहीं कर पा रहे थे। आज पहली बार पर प्रस्तुत है निज़ार कब्बानी की कविताएँ। अनुवाद श्री विलास सिंह का है।
निज़ार तौफीक कब्बानी का जन्म 21 मार्च 1923 को दमिश्क, सीरिया में हुआ था। वे सीरिया के नागरिक थे। वे अरब दुनिया के बीसवीं सदी के सर्वाधिक सम्मानित कवियों में से एक हैं। उनकी कविताएं स्त्री केंद्रित हैं और उनमें प्रेम की अभिव्यक्ति के साथ ही स्त्रियों की स्वतंत्रता का भाव प्रमुख होता है। उन्हें मूलतः प्रेम और अरब राष्ट्रवाद का कवि माना जाता है। उनकी कविताओं को सीरिया और लेबनान के लोकगायकों ने भी खूब गाया है। निज़ार कब्बानी की मृत्यु 30 अप्रैल 1998 को लंदन में हुई। उनकी प्रमुख रचनाएं हैं : Arabian Love Poems, Book of Love, The Lover's Dictionary, I Write the History of Woman Like So, Love Does Not Stop at Red Lights, Republic of Love.
- श्रीविलास सिंह
निज़ार क़ब्बानी
की
कवितायेँ
1. एक संक्षिप्त प्रेम पत्र
मेरे प्रिय, मुझे कहना है बहुत कुछ
मेरे अनमोल, मैं कहाँ से करूँ आरम्भ
जो कुछ भी है तुम में, है वैभवशाली
तुम मेरे शब्दों के अर्थ से रचते हो जो
रेशम के कोष
वे हैं मेरे गीत और वही मैं हूँ
इस छोटी सी किताब में हैं हम
कल जब मैं वापस पलटूंगा इसके पृष्ठ
एक दीपक करेगा विलाप
एक शैय्या गाएगी
इसकी लालसा के अक्षर हो जायेंगे हरे
इसके विराम चिन्ह होंगे उड़ने की कगार पर
कहो मत : क्यों यह यौवन
कहता है मुझसे हवादार सड़कों और धाराओं के बारे में
बादाम के वृक्ष और ट्यूलिप के बारे में
इसलिए कि यह संसार चलता है मेरे साथ साथ जहाँ जाता हूँ मैं ?
क्यों गाता था वह ये सारे गीत ?
नहीं है अब कहीं कोई सितारा
जो न हो सुगन्धित मेरी महक से
कल को लोग मुझे देखेंगे उसकी कविता की पँक्तियों में
होंठ जिनमें है मदिरा का स्वाद, काले घने केश
भूल जाओ कि कहेंगे क्या लोग
तुम होगे महान केवल मेरे महान प्रेम से ही
क्या रही होती दुनिया यदि होते न हम
यदि होती न तुम्हारी ये आँखें, क्या रहा होता यह संसार?
2. चित्रकला का एक पाठ
मेरा बेटा रख देता है अपना पेंट बॉक्स मेरे सामने
और कहता है मुझे बनाने को एक चिड़िया का चित्र उसके लिए
मैं डुबोता हूँ ब्रश भूरे रंग में
मैं बनाता हूँ एक चतुर्भुज जिसमें हैं सलाखें और ताले
विस्मय से भर जाती हैं उसकी आँखें
'किंतु वह तो जेल है, पापा
क्या नहीं जानते आप कैसे बनानी होती है चिड़िया ?'
और मैं कहता हूँ उससे बेटा क्षमा करना मुझे
मैं भूल चुका हूँ चिड़ियों का आकार।
मेरा बेटा रख देता है मेरे सामने चित्रकला की किताब
और कहता है मुझसे बनाने को गेहूं की बालियाँ
मैं उठाता हूँ कलम और
बनाता हूँ चित्र बंदूक का
मेरा बेटा मेरी अज्ञानता का उडाता है मज़ाक
पूछता है
'पापा, तुम नहीं जानते अंतर बंदूक और गेहूं की बालियों का?'
कहा मैंने उससे ‘पुत्र’
एक समय मैं भी जानता था आकार गेहूं की बालियों का
आकार रोटियों का
आकार गुलाब का
किंतु इस कठोर हो गए समय में
जंगल के वृक्ष मिल गए हैं सैनिक लड़कों से
और गुलाब के मुखड़े पर है उदासी की थकान
हथियारबंद गेहूं की बालियों
हथियारबंद चिड़ियों
हथियारबंद संस्कृति
और हथियारबंद धर्म के इस समय में
तुम ख़रीद नहीं सकते रोटियाँ
बिना पाए एक बंदूक उनके भीतर
संभव नहीं तुम तोड़ पाओ एक गुलाब
बिना इस बात के कि वह काँटे न तान दे तुम्हारे सामने
ख़रीद नहीं सकते तुम एक ऐसी किताब
जिसमें हो न जाये विस्फोट तुम्हारी उंगलियों के मध्य।
मेरा बेटा बैठा है मेरे बिस्तर के किनारे
और कहता है मुझसे सुनाने को एक कविता
एक आँसू टपकता है मेरी आँख से तकिये पर
बेटा समेट लेता है उसे विस्मय से, कहता है
'किंतु यह तो एक आँसू है, पापा, कविता नहीं'
और मैं कहता हूँ उससे
जब तुम हो जाओगे बड़े, मेरे पुत्र
और पढोगे अरबी कविता के दीवान
तब तुम जान जाओगे कि होते है जुड़वाँ ‘शब्द’ और ‘आँसू’
और अरबी कविता नहीं है कुछ और
लिखती हुई उंगलियों की आँखों के आंसुओ के अतिरिक्त।
मेरा बेटा रख देता है अपनी कलमें नीचे, अपने क्रेयांश का बॉक्स मेरे सामने
और कहता है मुझसे बनाने को एक देश अपने लिए
ब्रश कांपता है मेरे हाथों में
और मैं टूट जाता हूँ, रोता हुआ।
3. बिलकीस
बिलकीस…...ओह राजकुमारी
तुम जल रही, कबीलाई युद्धों के बीच
क्या लिखूंगा मैं, अपनी रानी के प्रस्थान के बारे में?
निश्चय ही मेरे शब्द हैं शिगूफे….
यहाँ हम तलाशते हैं युद्ध के शिकारों के ढेर में से
एक टूटे हुए तारे को, दर्पण की भाँति चूर चूर हो गयी एक देह को,
ओह मेरी प्रिये, यहाँ हम पूछते हैं
क्या यह तुम्हारी कब्र थी
अथवा कब्र अरब राष्ट्रवाद की?
मैं नहीं पढ़ूँगा इतिहास आज के बाद,
जल गईं हैं मेरी उंगलियाँ, मेरे वस्त्र सजे हैं रक्त से
यहाँ हम प्रवेश कर रहे हैं पाषाण युग में….
क्या कहती है कविता इस युग में, बिलकीस?
क्या कहती है कविता कायरता के युग में…..?
कुचल दिया गया है अरब संसार, दमित, काट दी गयी है इसकी जुबान….
हम हैं साक्षात मूर्तिमान अपराध….
बिलकीस…
मैं तुमसे क्षमा की भीख माँगता हूँ।
संभवतः तुम्हारा जीवन था फिरौती मेरे स्वयं के जीवन हेतु,
निश्चय ही मैं जानता हूँ अच्छी तरह
कि जो लोग लिप्त थे हत्या में उनका उद्देश्य था मेरे शब्दों को मारना!
ईश्वर की शरण में रहो, सौंदर्यशालिनी,
असंभव है कविता, अब तुम्हारे बाद…..
4. बेरूत, दुनिया भर की रखैल
बेरूत, दुनिया भर की रखैल
हम स्वीकार करते हैं महान ईश्वर के समक्ष
कि हमें ईर्ष्या है तुमसे
चोट पहुँचाती है हमें तुम्हारी सुंदरता
हम स्वीकारते हैं अब
कि हमने किया बुरा व्यवहार और गलत समझा तुम्हें
और नहीं थी हम में दया और हमने नहीं बख्शा तुम्हें
और हमने दी तुम्हें कटार फूलों की जगह
हम स्वीकार करते हैं न्यायी ईश्वर के समक्ष
हम ने तुम्हें चोट पहुँचायी, तुम्हें कष्ट दिया,
हम ने तुम्हें बदनाम किया और रुलाया तुम्हें
और हमने तुम पर लाद दिए अपने विद्रोह
ओ बेरूत
तुम्हारे बिना संसार नहीं होगा पर्याप्त हमारे लिए
अब हम जान गए हैं कि तुम्हारी जड़ें हैं गहरी हमारे भीतर
अब हम जान गए हैं कि क्या अपराध किये हैं हम ने
उठो, पत्थरों के ढेर के नीचे से
अप्रैल में बादाम के फूल की भाँति
ऊपर उठो अपने दुखों से
क्यों कि क्रांति उपजती है शोक के घावों से
उठो, सम्मान में वनों के,
उठो, सम्मान में नदियों के,
उठो, सम्मान में मानवता के
उठो, ओ बेरूत!
5. हमारे मध्य
हमारे मध्य
बीस वर्ष की उम्र
तुम्हारे होठों और मेरे होठों के मध्य
जब वे मिलते हैं और मिले रहते हैं
लय हो जाते हैं वर्ष
बिखर जाता है टूट कर संपूर्ण जीवन का शीशा
जिस दिन मैं मिला तुमसे मैं ने फाड़ डाले
अपने सभी मानचित्र
और अपनी सारी भविष्यवाणियाँ
एक अरबी घोड़े की भांति मैंने पा ली गंध वर्षा की
तुम्हारी
इससे पहले कि यह भिगोती मुझे
मैंने सुनी तुम्हारी आवाज़ की धड़कन
तुम्हारे बोलने के पूर्व
बिखेर दिए तुम्हारे केश
तुम्हारे उन्हें बाँधने के पूर्व ही।
नहीं है कुछ जो मैं कर सकता हूँ
नहीं है कुछ जो तुम कर सकते हो
क्या कर सकता है घाव
जब आ रहा हो खंज़र उसकी ओर
तुम्हारी ऑंखें हैं बारिश की भाँति
जिसमें डूब रहे हैं जहाज़
और भुला दिया जो कुछ भी लिखा था मैंने
दर्पण में नहीं होतीं स्मृतियाँ
ईश्वर, यह क्या है कि हम कर देते हैं आत्मसमर्पण
प्रेम के समक्ष, सौंप देते चाबियाँ अपने शहर की
ले आते मोमबत्त्तियाँ और अगरु उस तक
गिरते हुए उसके पैरों में प्रार्थनारत
क्षमा हेतु
हम क्यों ढूँढते हैं इसे और सहते हैं
सब कुछ जो यह करता है हमारे साथ
सब कुछ जो यह करता है हमारे साथ ?
स्त्री जिसकी वाणी
घोल देती है चाँदनी और मदिरा
वर्षा में
तुम्हारी कुहनियों के दर्पण से
दिन प्रारम्भ करता है अपनी यात्रा
और जीवन मिलता है समुद्रों को
मैं जानता हूँ जब मैंने कहा
मैं तुम्हें करता हूँ प्रेम
कि मैं आविष्कार कर रहा था एक नयी भाषा का
एक शहर के लिए जहाँ पढ़ नहीं सकता था कोई
कि मैं सुना रहा था अपनी कवितायेँ
एक खाली रंगशाला में
और ढाल रहा था अपनी मदिरा
उनके लिए जो नहीं ले सकते
इसका स्वाद
जब ईश्वर ने दिया तुम्हें मुझ को
मैंने महसूस किया कि उसने भेज दी है
हर चीज मेरी ओर
अनकहा कर के अपनी सभी किताबों को
कौन हो तुम
स्त्री, मेरे जीवन में उतरती कटार की भाँति
खरगोश की आँखों सी कोमल
मुलायम बेरी की त्वचा की तरह
चमेली की माला सी पवित्र
किसी बच्चे की खिलखिलाहट सी मासूम
और उधेड़ती शब्दों की भाँति
तुम्हारे प्रेम ने उछाल दिया मुझे नीचे
आश्चर्य की भूमि में
उसका आक्रमण था लिफ्ट में प्रवेश करती
किसी स्त्री की सुगन्धि की भाँति
मैं रह गया आश्चर्यचकित इस बात से
एक कॉफी बार में बैठा
लिखता एक कविता
मैं भूल गया कविता को
मैं रह गया आश्चर्यचकित
पढ़ता हुआ अपनी हस्तरेखाएँ
मैं भूल गया अपनी हथेली
यह गिरा मुझ पर एक अंधे बहरे जंगली उल्लू की तरह
इसके पंख उलझ गए मेरे पंखों से
उसके विलाप में दुःख था मेरे विलाप का
मैं रह गया आश्चर्यचकित
बैठे हुए अपने सूटकेस पर
प्रतीक्षारत दिनों की ट्रेन के लिए
मुझे भूल गए दिन
मैंने यात्रा की तुम्हारे साथ
आश्चर्य की भूमि की
तुम्हारी छवि अंकित है
मेरी घड़ी के शीशे पर
यह अंकित है उसकी प्रत्येक सुई पर
यह खुदी है हफ़्तों पर
महीनों और वर्षों पर
मेरा समय अब नहीं रहा मेरा
अब हो केवल तुम।
6. रोटी, हशीश और चाँद
जब पूरब में पैदा हुआ चाँद
और सफ़ेद छतें जाने लगीं नींद की गोद में
ढेर सारी रोशनी के नीचे
लोग छोड़ कर अपनी दुकानें चलने लगे समूह में
मिलने को चाँद से
पहाड़ की छोटी की ओर लिए हुए रोटियाँ और एक रेडियो
और अपनी अपनी नशा-पत्ती
वहां वे खरीदते और बेचते हैं अपनी फंतासियाँ
और छवियाँ
और मर जाते हैं - जैसे ही जीवित होता है चाँद
क्या करती है वह चमकती तश्तरी
मेरे देश के लिए- जो है
भूमि देवदूतों की
भूमि सरल लोगों की
तम्बाकू चबाने वाले, नशीली दवाइयाँ बेचने वाले ?
क्या करता है चाँद हमें
कि हम विस्मृत कर देते हैं अपना शौर्य
और जीते है बस स्वर्ग से भीख मांगने को ?
क्या है स्वर्ग के पास
काहिलों और कमज़ोरों के लिए ?
जब जीवित होता है चाँद, वे बदल जाते हैं शवों में
और हिलाते हैं अंगूठा संतों का
आशा करते मिल जाने की कुछ अन्न, कुछ बच्चे.....
वे बिछा देते हैं अपने कोमल और सुन्दर कम्बल
और सांत्वना देते हैं स्वयं को उस अफीम के साथ
जिसे हम कहते हैं
भाग्य और विधि लेख।
मेरी भूमि में जो है भूमि सरल लोगों की
कौन कमज़ोरी और क्षय
घेर लेता है हमें, जब प्रकाश बढ़ता है आगे !
कम्बल, हजारों टोकरियाँ,
चाय के गिलास और बच्चे
जिनकी कसमें खायी गयी पहाड़ियों पर।
मेरी भूमि में
जहाँ रोते हैं सरल लोग
और जीते हैं उस रोशनी में जिसे समझ नहीं पाते हैं वे ;
मेरी भूमि में
जहाँ लोग जीते हैं बिना आँखों के,
और प्रार्थना करते हैं
पुकारते हुए वृद्धिमान चाँद को
‘ओ वृद्धिमान चाँद!
ओ लटके हुए स्फटिक के देवता!
ओ अविश्वसनीय चीज !
तुम रहे हो हमेशा पूरब में, हमारे लिए
हीरों का एक समूह
उनके लिए जिनकी बुद्धि हो चुकी है संवेदनहीन।
उन पूर्वी रातों में
चाँद का जादू होता है पूरा
पूर्व के लोग त्याग देते है सारा सम्मान
और पौरुष।
लाखों जो जाते हैं नंगे पाँव
विश्वास करते हैं चार पत्नियों की व्यवस्था में
क़यामत के दिन में;
लाखों जिनका साक्षात्कार रोटी से
होता है बस सपनों में
जो बिताते हैं रातें घरों में
जो बने हैं खाँसियों से
जिन्होंने कभी देखी तक नहीं है दवाइयाँ
गिर जाते शवों की भाँति प्रकाश के नीचे।
मेरे देश में
जहाँ मूर्ख रोते हैं
और मर जाते हैं रोते हुए
जब भी दिखता है वृद्धिमान चाँद
और वृद्धि हो जाती है उनके आंसुओं में
जब भी कोई घृणित वीणा ले जाती है उन्हें..
अथवा ‘रात्रि का गीत’
मेरी भूमि में
सरल लोगों की भूमि में
जहाँ हम धीरे धीरे चबाते हैं अपने न समाप्त होने वाले गीत -
एक तरह का व्यसन जो बर्बाद कर रहा है पूरब को -
हमारा पूरब चबाता हुआ अपना इतिहास,
इसके आलसी सपने,
इसकी खोखली किवदंतियां
हमारा पूरब जो देखता है संपूर्ण नायकत्व
धूर्त अबू ज़ायद अल हिलाली में।
(इस पोस्ट में प्रयुक्त पेंटिंग्स वरिष्ठ कवि विजेंद्र जी की हैं।)
सम्पर्क
श्रीविलास सिंह
E- mail : sbsinghirs@gmail.com
Mobile : 8851054620
बहुत सुंदर
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