दिनेश कर्नाटक की कविता

दिनेश कर्णाटक 

पुरातन काल से ही राजनीति अपने हित-साधन के लिए धर्म का उपयोग करती रही है. इस काम में शासकों का साथ दिया पुरोहितों ने. इन पुरोहितों ने एक ऐसी दुनिया परिकल्पित की जहाँ स्वर्ग-नर्क और बाद का परिकल्पित जीवन भी होता है. इसे न केवल परिकल्पित किया गया बल्कि मन-गढ़न्त कहानियों के सहारे रूढ़ बनाने का काम किया गया. इसे उन धर्म-ग्रंथों में शामिल किया गया, जिन्हें देव वाणियाँ कह कर तर्क के किसी भी झोंके से सुरक्षित करने का प्रयास किया गया. धर्म-ग्रंथों का मिथक जिसे दुनिया आँख बन्द कर लम्बे अरसे तक स्वीकार करती रही. वह तो भला हो कुछ खोजकर्ताओं और वैज्ञानिकों के जूनून का, जिन्होंने जान की बाजी लगा कर उस सत्य को उद्घाटित किया जो तथ्यपरक है और ढकोसलों के खिलाफ है. वैसे भी धर्म और विज्ञान में यही फर्क है कि जहाँ एक तर्क-वितर्क से हमेशा बचता रहा है वहीँ दूसरा तर्क को हमेशा प्रोत्साहित करता रहा है.  

हमारे यहाँ सत्ता एक बार फिर धर्म को औजार के तौर पर कुछ ज्यादा ही इस्तेमाल करने लगी है. धर्म जो एक बार दिमाग में रच-बस जाता है तो अपने आग्रहों-दुराग्रहों के साथ दिल-दिमाग में आजीवन अपनी जगह बनाए रखता है. अभी हाल में ही में राजस्थान के राजसमन्द जिले में शम्भू दयाल रैगर ने धर्म के उन्माद के नाम पर एक मुस्लिम मजदूर अफराजुल को पीट पीट कर मार डाला. यही नहीं अपने इस क्रूर-कृत्य की वीडियो भी बनायी और सोशल मीडिया पर डाल दिया. दुनिया का कोई भी दर्म कभी उन्माद नहीं सिखाता. लेकिन होता तो यही है कि अपनी कमीज के कालर जैसे ही अपना धर्म भी हमें ज्यादा ही सफ़ेद दिखाई पड़ने लगता है. शम्भु दयाल के इस कृत्य ने स्वभाविक तौर पर रचनाकारों का ध्यान आकृष्ट किया. दिनेश कर्नाटक एक बेहतर कहानीकार हैं. उन्होंने इस घटना पर पहली बार के लिए एक कविता लिख भेजी है. आज पहली बार पर प्रस्तुत है दिनेश कर्नाटक की कविता 'अपने दुश्मन को पहचानो शंभु दयाल!'  
           

अपने दुश्मन को पहचानो शंभु दयाल!


दिनेश कर्नाटक


सुनो शंभु दयाल!
कुछ कहना है तुमसे, सुनोगे!
तुम्हारी समस्या अफराजुल नहीं था
तुम्हारी समस्या धंधे में नाकामी, कर्ज, बेरोजगारी थी
तुम्हारी समस्या - तुम्हारी यौन कुंठाएं
और तुम्हारा बंजर जीवन था
किसने अफराजुल को तुम्हारा दुश्मन बना दिया
उन्हें पहचानो शंभु दयाल!


अफराजूल तुम्हारा दुश्मन नहीं था
ध्यान से सोचना कभी
तुम्हारा दुश्मन तो कोई और था
हो सकता है, अफराजूल औरतों की ओर देखता हो
उसने तुम्हारी बेटी-बीबी की ओर देखा हो!
औरतों की ओर तो तुम भी देखते थे शंभु दयाल
तुमने अपनी बेटी की उम्र की लड़की को
अपनी कुंठाओं का शिकार बनाया
और तुम "लव जिहाद" की बात कर रहे थे
इससे हास्यास्पद बात और क्या होगी?
औरतों की ओर देखने में क्या बुराई है शंभु दयाल?
औरतें प्रेम और सद्भाव से पुरुषों की ओर देखें
पुरुष सम्मान और अपनेपन से औरतों की ओर देखें
इसमें क्या समस्या है शंभु दयाल!


औरतों को सिर्फ "शर्म" और "इज्जत" का विषय मत समझो शंभुदयाल!
हो सकता है कभी अफराजूल की नीयत खराब हुई हो
मगर नीयत तो तुम्हारी भी घटिया थी शंभु दयाल!
नीयत तो कभी-कभी हम सब की खराब होती है शंभु दयाल!
तुम्हारी समस्या ही यही है शंभु दयाल
कि दूसरों की गड़बड़ को बहाना बना कर
तुम समझते हो कि तुम कुछ भी कर सकते हो शंभु दयाल!


अच्छा तुम खुद को हिंदुओं का हितैषी समझते हो न शंभु दयाल!
तो उन हिंदुओं का क्या करोगे?
जो आज भी लड़कियों को जन्म लेने से ही पहले मार देते हैं,
उन्हें बेचते हैं, बलात्कार करते हैं
और खुद के लिए कौन सी सजा चुनोगे शंभु दयाल?
औरतों की फिक्र छोड़ दो शंभु दयाल
उन्हें खतरा विधर्मियों से नहीं
तुम्हारे जैसे अपनों से ज्यादा है


सुनो शंभु दयाल!
ये लव जेहाद, गाय, हिदुओं पर अत्याचार
हो सकता है, कुछ मुसलमान इस काम में लगे हों
लेकिन ये सभी मुस्लिमों का सच नहीं है
उसी तरह जिस तरह तुम्हारा यह पैशाचिक कृत्य
सभी हिंदुओं का सच नहीं है!
तुम गाय, मंदिर-मस्जिद, लव-जेहाद
पर अंतहीन बहसों को देखने के बजाय
कभी प्रेमचंद को पढ़ते
लता के गाने सुनते
आमिर खान की फिल्में देखते
तो अपनी रोजी-रोटी के लिए कोई न कोई रास्ता खोज लेते
तुम नुक्कड़ पर चाय बना लेते
मोमो की दुकान खोल लेते, सब्जी बेच लेते, मजदूरी कर लेते
कोई भी काम कर लेते, मगर कर्ज में नहीं जीते!


शंभु दयाल तुम मर चुके थे
मगर खुद को जीवित साबित दिखाना चाहते थे
मगर जीवित व्यक्ति किसी जीवित के साथ
मुर्दों के जैसा बर्ताव नहीं करता शंभुदयाल!


शंभु दयाल, तुम यह मत समझो
कि तुमने हिन्दू धर्म का नाम ऊंचा किया है
कि तुम सीधे स्वर्ग जाओगे
स्वर्ग-नरक, दोजख-जन्नत बहुत बड़ी चालाकी है शंभुदयाल!
तुम राम की नहीं रावण की तरफ के निकले
तुम आई.एस.आई.एस. के हत्यारों जैसे ही हो
वैसे ही घटिया, वैसे ही क्रूर


शंभु दयाल रैगर किसी निहत्थे व्यक्ति को बहला-फुसला कर
धोखे से मार देना
न तो दिलेरी है, न बड़ा काम
मार कर कोई किसी को दबा नहीं सकता
मार कर कोई किसी को डरा नहीं सकता
मार कर कोई किसी को खत्म नहीं कर सकता
तुम्हीं बतलाओ क्या हिटलर ने
सभी यहूदियों को खत्म कर दिया था


शंभु दयाल, मार कर कोई नहीं जीतता
हत्या, नफरत और शक का नया दौर शुरू हो जाता है
तुम क्या सोचते हो कि क्या ऐसे ही कोई अफराजुल
किसी शंभु दयाल को नहीं मार सकता!
बताओ, जब अफराजुल को कोई नहीं बचा पाया
तो तुम्हें कोई बचा लेगा
तुम्हें लव जिहाद समझाने वाले तुम्हें बचा लेंगे
नहीं शंभु दयाल !
तब वह गिरगिट की तरह रंग बदल कर
गांधी का चरखा चलाते हुए
अहिंसा का उपदेश देने लगेंगे!


सुनो शंभु दयाल!
अब यह साबित हो चुका है
कि इंसान और इंसान में फर्क नहीं होता
जात, धर्म, नस्ल के बंटवारे बनावटी हैं
सभी इंसानों का मांस, हड्डियां, नसें, खून 
और सीने में धड़कता हृदय एक जैसा होता है
और एक ही तरीके से काम करता है
खून अलग जरूर होता है
लेकिन वो एक परिवार में भी अलग हो सकता है
और जिसे तुम दुश्मन समझते थे
उससे मिल सकता है।


शंभु दयाल, जीवन की मुख्य समस्या भूख की है
धर्म की नहीं
भूख चाहे पेट की हो, चाहे शरीर की
भूख हिन्दू-मुसलमान नहीं देखती
अगर धर्म इतनी बड़ी चीज होती
तो बांग्लादेश क्यों बनता?
कुछ हिंदुओं, ईसाइयों, मुसलमानों के दुनिया के सबसे अमीर होने पर भी
करोड़ों, हिन्दू, मुसलमान और ईसाई गरीब क्यों होते?


सुनो शंभु दयाल !
दरअसल तुम्हारा शत्रु कोई और था
उसने बड़ी चालाकी से
अफराजुल को तुम्हारा शत्रु बना दिया
तुमने गलत व्यक्ति को अपना शत्रु समझ लिया
काश, तुम समझ पाते कि अफराजुल
और तुम्हारे कष्ट एक थे
वह तुम्हारा शत्रु नहीं, दोस्त था
और तुम दोनों को मिल कर
अपने असली शत्रु से लड़ना था
समय अभी बीता नहीं है
अपने शत्रु को पहचानो शंभु दयाल!!


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सम्पर्क-

दिनेश कर्नाटक
ग्राम व पो. आ.-रानीबाग
जिला-नैनीताल, 263126, उत्तराखंड।


(इस पोस्ट में प्रयुक्त पेंटिंग्स वरिष्ठ कवि विजेन्द्र जी की हैं.)


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