कैटलीना इनफ़ैंट बोविक की कहानी 'फर्न्स'

 

Catalina infante Beovic



कोरोना महामारी ने न केवल इस दुनिया को बल्कि व्यक्ति के जीवन को बदल कर रख दिया। यह एक ऐसे वायरस के चलते था जिसे देखा और छुआ तक नहीं जा सकता था। यह वायरस कैसे हमारी देह में प्रविष्ट करता, यह हम जान तक नहीं पाते और अन्ततः यह हमारी जान लेने के लिए उतारू हो जाता। सरकार ने इस वायरस से जहां तक संभव हो, बचने की ताकीद की। यहां तक कि घर में साथ रहने वाले परिजन भी एक दूसरे से बचने की कोशिश करते नजर आए। सरकारों ने अपने यहां लॉक डाउन घोषित कर दिया और लोगों से अपेक्षा की गई कि वे घर से बाहर न निकलें। जिस सामाजिकता की वजह से मनुष्य अलग से जान पहचाना जाता था वह अब दो गज की जरूरी दूरी में बदल गया। यह सब लगभग दो साल तक चलता रहा। इसी घटना को केन्द्र में रख कर चिले की कहानीकार कैटलीना इनफ़ैंट बोविक ने मनुष्य की इस समय की मनो संरचना पर एक शानदार कहानी लिखी है। कैटलीना इंफेंट बोविक 1984 में जन्मी चिले की लेखिका है। चिले के लोगों और उनके जीवन के बारे में उनकी कहानियों के तीन संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं।

इस कहानी में एक बेनाम वायरस के कारण लॉक डाउन के कारण एक महिला चोरी से पहाड़ों पर फर्न्स इकट्ठा करने जाती है ढेरों फर्न्स। एक साथ चिले के पहले के राजनैतिक दमन और हाल के वर्षों के कोविड-19 के कारण हुए लॉक डाउन के दौरान जीवन की स्थितियों को एक साथ दर्शाया गया है। कहानी का स्पेनिश से अंग्रेजी अनुवाद किया है मिशेल मीराबेना ने, जिसका बेहतरीन हिन्दी अनुवाद श्रीविलास सिंह ने किया है। तो आइए आज पहली बार पर हम पढ़ते हैं कैटलीना इनफ़ैंट बोविक की कहानी 'फर्न्स'।



'फर्न्स'


कैटलीना इनफ़ैंट बोविक



(मिशेल मीराबेला का स्पैनिश से अंग्रेज़ी अनुवाद)


हिन्दी अनुवाद : श्रीविलास सिंह



लंबे फर्न्स को सोने दो,

एक गुप्त रहस्य की भाँति मौन,

उन्हें सोते हुए कम्पित होने दो,

इसी भाँति, मौन और कम्पित।

— गैब्रियेला मिस्ट्रॉल

(नोबेल पुरस्कार प्राप्त कवयित्री)


I

बेटा रसोईघर से चिल्लाता है, संभवतः बोरियत से, क्योंकि मेरे पति अपने फ़ोन को देखने में व्यस्त है। तभी से जब से जीवन परिवर्तित हुआ, हमने अपना फ़ोन देखना बंद नहीं किया, परेशान कर देने वाले वीडिओ जिन्हें देख कर हम रास्ते में रुकने को मजबूर हो जाते और मीम्स जिन्हें देख हम उसी समय हँसने लग जाते। मैं कल्पना करती हूँ कि बेटे को हमारे चेहरों पर चलते नाटक को देख कर डर जाना चाहिए।  मैं और मेरे पति उस समय भी फ़ोन से चिपके रहते जब टेलीविजन चालू होता अथवा जब हम रेडियो पर समाचार सुनते होते। सूचना का आधिक्य हमें चिंतित कर देता, किंतु इस बात को न जानना और भी चिंतित कर देता कि क्या चल रहा है, क्योंकि हर चीज एक क्षण में परिवर्तित हो सकती है और हमें सावधान रहना है। विरोध प्रदर्शन, जिनमें राजमार्गों को रोक दिया जाता है और शहरों को बंद करा दिया जाता है,  चीजों की कमी का और बम धमाकों का डर होता है। राजनेता जो बड़े पैमाने पर त्यागपत्र दे देते हैं और सत्ता का विरोध करने के कारण जेल भेज दिए जाते हैं। दंगे होने लगते हैं और चीजें हिंसक हो जाती हैं, और हमें अपनी बिल्डिंग को एक अतिरिक्त फाटक द्वारा सुरक्षित करना पड़ता है ताकि हमको ख़तरा न रहे। जब तक नये मंत्री, जो “आंदोलनकारियों” — जैसा कि वे स्वयं को कहते हैं — को नियंत्रित करते हैं, अन्य चीजें शांत हो जाती हैं। सदैव ऐसा ही होता है। अभी, जाड़े में, राजनैतिक हिंसा अस्थायी रूप से महामारी के कारण रुकी हुई है। इस तरह का माहौल पिछले चार वर्षों से है; हम साल के पाँच महीने घर में वायरस के प्रभावहीन होने की प्रतीक्षा में बंद रह कर बिताते हैं। वे कहते हैं कि यही एकमात्र तरीक़ा है, इसलिए हम उनकी आज्ञा का पालन करते हैं।


पहले साल जब वायरस का आक्रमण हुआ, देश बर्बाद हो गया, लगभग दस लाख से अधिक लोग मर गए। कुछ भी फिर से पहले जैसा नहीं हो सका। हमने इसके साथ सामंजस्य बिठा लिया। हम ने जीवन को नए तरीक़े से जीना जारी रखा, जो अब बिलकुल नया नहीं रहा है, किंतु यह जीवन ज़रूर नया है। वह जीवन जो हमने, मेरे पति और मैंने तीस वर्षों तक जिया था, अब नहीं रहा, वह बुझ चुका है। दोस्तों के साथ बियर पीने की शामें, बोरियत भरे समाचार सुनते हुए सो जाना, काम पर देर से जाना, छुट्टियों पर जाने की योजना बनाना और दुनिया भर की चीजों के बारे में बात करना। बेटा उस जीवन के बारे में नहीं जानता है; उसने इस जीवन को मात्र कुछ महीनों जिया था, फिर उसका पहला जन्मदिन लॉक डाउन के दौरान आया। हम तीनों ने अकेले इसे एक सफ़ेद मोमबत्ती, जो हम बिजली जाने पर जलाया करते थे, के साथ मनाया, जो मेरे बनाये कामचलाऊ से स्वाद वाली लेमन केक पर लगी हुई थी क्योंकि सुपर मार्केट में अब केक नहीं मिलते थे। हम बस इतना कह सकते हैं कि अब ये ज़रूरी नहीं मानी जाती। मैंने मोमबत्ती के सामने गाते समय स्वयं को रोने से रोकने का प्रयत्न किया किंतु फिर भी आप तस्वीरें देख कर कह सकते हैं कि मैं अपने आँसू रोक रही थी।


इस तरह चार वर्ष हो चुके हैं, और हर दिन कमोबेस एक जैसा रहा है। मेरे पति और मैं तब उठते हैं जब बेटा जागता है, जो कि सदैव भोर के समय होता है क्योंकि वह प्रकाश के प्रति संवेदनशील है। पूर्णतः थक कर चूर, हम बाहर क्या हो रहा है यह जानने को रेडियो और टेलीविजन चालू करते हैं। बेटा जब हमारे साथ नाश्ता करता है हमेशा उन्ही पुराने खिलौनों से खेलता है। सुपर मार्केट में खिलौने भी ज़रूरी चीज नहीं माने जाते; बीच बीच में हम पड़ोसियों के साथ, जिनके छोटे बच्चे हैं, खिलौने बदल लेते हैं, लेकिन अंत में घूम फिर कर खिलौने सदैव वही रहते हैं। फिर हम दो दो घंटों की शिफ्ट में टेलीवर्किंग के माध्यम से अपने कार्यालयों का काम करते हैं, क्योंकि, यदि ईमानदारी से कहूँ तो, इतने समय तक ही हम बिना ब्रेक लिए काम पर एकाग्र हो सकते हैं। हम एक सरकारी स्वामित्व वाले व्यावसायिक संस्थान में काम करते हैं, इस कारण हमारा रोज़गार अपेक्षाकृत सुरक्षित है। जब मेरे पति कॉल ले रहे होते हैं, मैं बेटे को कुछ न कुछ सिखाती रहती हूँ। मंत्रालय हम अभिभावकों को शिक्षित करने हेतु कि शिशुओं को शिक्षा कैसे दें, ट्यूटोरियल जारी करता रहता है, जब तक कि बच्चे दूरस्थ शिक्षा प्रारंभ करने हेतु पर्याप्त बड़े न हो जायें। किंतु मैं शिक्षक नहीं हूँ, मैं माँ हूँ, इसलिए मैं इन ट्यूटोरियल्स का अनुपालन नहीं करती। मैं बेटे को बस वह सिखाती हूँ जो मैं चाहती हूँ; चीजें जिनके बारे में मैं सोचती हूँ कि वे उसके लिए उपयोगी होंगी, जैसे कि पहाड़ों की तरफ़ की खिड़की से बाहर आकाश में यदि संभव हो तो चिड़ियों को देखना ताकि वह उनके नाम सीख सके। मैना, तोते, कबूतर, हमिंग बर्ड, कोयल इत्यादि। मैं उसे पौधों की देखभाल के संबंध में भी सिखाती हूँ। हम उन्हें पानी देते हैं, उनकी पत्तियाँ साफ़ करते हैं, आसपास की धूल हटाते हैं, उन्हें रोज़ धूप में रखते हैं। फिर मैं काम करती हूँ और मेरे पति बेटे के साथ वे खेल खेलते हैं जो मैं नहीं खेल पाती, जैसे कि बिस्तर से नीचे कूदना, दौड़ना, चिल्लाना। मैं वैसी माँ नहीं हूँ जो खेलती हो, ठीक है, लेकिन मैं वह करती हूँ जो मैं कर सकती हूँ। फिर हम व्यायाम करते हैं, दोपहर का भोजन करते हैं, और वापस अपने काम में लग जाते हैं। दिन के अंत में हम समाचार देखते हुए रात्रि का भोजन करते है और उसके बाद हम जल्दी सोने का प्रयत्न करते हैं क्योंकि एक बार फिर भोर में हम थके हुए होंगे, यह जानने को रेडियो चालू करते हुए कि क्या दुनिया फिर से परिवर्तित हुई है।


और इस तरह दिन गुजर रहे हैं, एक के बाद एक, और उनमें अंतर कर पाना लगभग कठिन है, किंतु मैं समय के गुजर जाने का लेखा जोखा रखती हूँ। मेरी आँखों के कोनों की महीन रेखाओं में, जो मेरे विचार से थकान के कारण थी, पर वे दूर नहीं हुई। अपनी देह में जिसका लचीलापन कम हो रहा है, और देह की ही भाँति अपने मूड में,  जिसकी चमक मद्धम होती  जा रही है। और बेटे के पैरों और हाथों में जो एक एक सेंटीमीटर कर बढ़ रहे हैं, बिना महसूस हुए किंतु तेज़ी से। उसकी ऊर्जा बढ़ रही है, उसके कपड़े छोटे होते जा रहे हैं, और पड़ोसी हमें ऐसे बड़े पौधे देते रहते हैं जो थोड़े दिन पूर्व तक काफ़ी छोटे थे।


II

पहले साल हम मूर्ख थे। आप कभी नहीं सोचते कि ऐसी कोई बात आपके साथ घटित हो सकती है। आपके जीने के तरीक़े में बीमारियों के लिए कोई स्थान नहीं था, हम अमर थे। वृद्धावस्था एकमात्र गंभीर और लाईलाज बीमारी थी, जिसके संबंध में हम अन्यथा सोचते थे कि हम उसे भी मिटाने की कगार पर थे। हम विशाल थे, राजा थे, इन सब से परे, सब चीजों के स्वामी, सर्वशक्तिमान थे। जब तक कि अकस्मात् आधी दुनिया बीमार नहीं पड़ गई। पहले एशिया में, फिर कुछ ही महीनों में वायरस पश्चिम में भी पहुँच गया। अधिक समय नहीं लगा जब यह सब तरफ़ फैल गया और प्रतिदिन सैकड़ों जानें लेने लगा। लोग गलियों में, सड़कों पर, अस्पतालों में बिस्तरों की प्रतीक्षा करते हुए मर गए। पहले दो महीने ख़राब फ्लू के दिनों की भाँति थे। इस अवधि में वृद्ध और पहले से ही बीमारियों की चपेट में आए लोग मरे, इसलिए लोगों को उतनी चिंता नहीं हुई। युवा लोग, ब्रह्मांड के केंद्र बिंदु, वृद्ध लोगों की मृत्यु से परेशान नहीं थे, उन्होंने सोचा उन्हें तो किसी न किसी बात से मरना ही था। फिर इन्ही युवा लोगों की प्रतिक्रिया इसके प्रति बुरी होने लगी, क्यों कि यह म्यूटेट होता है, यह कभी एक जैसा नहीं रहता, यह पहले से अधिक शक्तिशाली हो गया। आप वायरस पर विश्वास नहीं कर सकते क्योंकि आप नहीं जानते कि यह आप के साथ कैसा व्यवहार करने जा रहा है। पहले सप्ताह आप कोई लक्षण नहीं देखते। यह चारो ओर आपके साथ यात्रा करता रहता है, बिना आपके संज्ञान में आए; यह फ़र्श पर चिपक जाता है, हत्थों पर, प्लाजा की बेंच पर, आपके बैग पर जिसे आप अपने हाथों में लिए चलते हैं। बस कुछ ही दिन में हर बात बदतर हो जाती है, और आप किसी अस्पताल के कक्ष में मृत्यु से संक्रमित पड़े हुए होते हैं। और यह तब होगा, जब आप इतने भाग्यशाली हों कि आपको अस्पताल में बिस्तर मिल जाए। पहले वर्ष इसने फेफड़ों पर आक्रमण किया, फिर इसका म्यूटेशन हो गया और इसका आक्रमण मस्तिष्क पर भी होने लगा, फिर हृदय, जिस मौसम के लिए जैसा भी इसका मन हुआ। कुछ लोगों में कोई लक्षण नहीं उभरे, और वायरस ने उन पर बिलकुल प्रभाव नहीं डाला, लेकिन अब यह सदैव के लिए उनके साथ रहेगा। वे अपना जीवन स्वस्थ रह कर बितायेंगे, बस अन्य सभी को संक्रमित करते हुए। उन्हें निष्क्रिय संवाहक कहा जाता है, किंतु वे हमारे साथ नहीं रहते, वे ऐसी जगहों पर रहते हैं कहाँ हम कभी नहीं रहे।


सरकार हमें हर शरद और शीत ऋतु में, जब वायरस का आक्रमण अपने चरम पर होता है, अपने घरों में अलग रहने का आदेश देती है। हमें मात्र भोजन सामग्री और सफ़ाई के सामान लाने हेतु बाहर जाने के आदेश होते हैं, हप्ते में एक बार, मास्क, हैट, दस्ताने जो कुछ भी मिले उससे स्वयं को ढक कर। जाड़े में जब संक्रमण की तीव्रता उच्चतम बिंदु पर होती है, वायरस कहीं से भी आक्रमण कर देता है, यह सभी चीजों पर होता है और बस थोड़ी सी लापरवाही संक्रमित होने के लिए पर्याप्त होती है। हम में से अधिकांश वायरस की चपेट में आ चुके हैं, किंतु इससे हमारी कोई सुरक्षा नहीं है क्योंकि कोई प्रतिरोधक क्षमता नहीं है। आप बस एक ही काम कर सकते हैं कि अपने जीवित बचे रहने हेतु अपनी प्रतिरक्षा को धन्यवाद कीजिए और अगली बार के लिए और बेहतर भाग्य की कामना कीजिए। 


पहले साल हम लोग दो महीनों के लिए घर में बंद रहे जब तक सरकार संक्रमण के उभार को नियंत्रित करने में, अथवा कम से कम जैसा कि उन्होंने दावा किया था, में सफल नहीं हो गई। बाद में हमने पाया कि उन्होंने किसी चीज पर नियंत्रण नहीं किया था, और वह और भी अधिक मज़बूत हो कर वापस आया। हम लोग फिर से कभी भी पहले जैसे नहीं हो सके। जब कोई चीज प्रगट हो कर अव्यवस्था का कारण बनती है, आप हर चीज को स्वीकार कर लेते हैं। आप खाद्य पदार्थों की राशनिंग को स्वीकार कर कर लेते हैं क्योंकि आप समझते हैं कि सभी के लिए पर्याप्त उपलब्धता नहीं है। आप उनके द्वारा नियंत्रण रखने हेतु अपने संचार उपकरणों की ट्रैकिंग को स्वीकार कर लेते हैं  और वे आपके कंप्यूटर के कैमरे के माध्यम से देख सकते हैं – यह जानने को कि आप अपने घर पर हैं। आप स्वीकार कर लेते हैं कि वे आपकी बातचीत सुन सकते हैं क्योंकि “आंदोलनकारी” हैं — जिन्हें अब वे “इन्कारवादी” कहते हैं — जो बाहर निकल कर दमन के विरुद्ध प्रतिरोध करते हैं, और उन्हें रोके जाने की आवश्यकता है। आप इस ख़तरे को स्वीकार कर लेते हैं कि यदि आप अपने घर से बाहर ऐसे समय निकले जब ऐसा करने की अनुमति नहीं है तो वे आपको गोली भी मार सकते हैं, क्योंकि क़ानून तब अन्यायपूर्ण नहीं होता जब वह सभी पर समान रूप से लागू किया जाता है। आप लंबी पंक्तियों में वह ख़रीद लेने को खड़े होना स्वीकार कर लेते हैं जिसे वे ख़रीदने को कहते हैं। और आप सुपरमार्केट के बाहर होने, किसी के पंक्ति तोड़ने अथवा भोजन चुरा लेने पर होने वाली उन लड़ाइयों को भी सामान्य स्वीकार कर लेते हैं। आप इस बात को सामान्य मान लेते हैं कि लोग उन पर पत्थर फेंकते है, और आप सदैव अपने को सब बातों से दूर रखते हुए कुछ नहीं करते। आप अपने झोले में पत्थरों को सुपरमार्केट ले जाने को सामान्य मान लेते हैं।






III

उन अवधियों के दौरान जब हम लॉक डाउन में नहीं थे और कुछ राजनैतिक स्थायित्व था, मैं जंगल में टहलने और फर्न तलाशने गई थी। ऐसा वर्ष में एक अथवा दो बार, वसंत और ग्रीष्म में, से अधिक जाना नहीं हुआ होगा। आप सोचेंगे कि लोग उस अपेक्षाकृत स्वतंत्र और शांत समय में झुंड में बाहर जाते होंगे, किंतु सच्चाई यह है कि वे बाहर नहीं निकले। लोगों ने ऐसा पहले साल किया क्योंकि हमें कुछ पता नहीं था कि वायरस कैसे काम करता था। हम अभी भी इसके बारे में बहुत नहीं जानते किंतु तब हम कुछ भी नहीं जानते थे। हमने सोचा था कि यह एक अल्पकालिक चीज होगी, वे एक वैक्सीन तलाश लेंगे, और यह उन बीमारियों का एक हिस्सा बन जाएगी जिनकी समस्या का मनुष्यों ने समाधान कर लिया है। सरकार, सामान्य स्थिति लौटने को ले कर चिंतित और अवश्यंभावी मंदी के आने को ले कर परेशान, ने हमसे कहा कि वायरस नियंत्रण में था, कि हम धीरे धीरे अपने कामों की ओर लौटने लगेंगे, कि बच्चे डे केयर और स्कूल जाने लगेंगे, और विद्यार्थी विश्वविद्यालय; और फिर उन्होंने माल खोल दिए और लॉक डाउन भी हटा दिया ताकि हम अंततः अपनी छुट्टियाँ ले सकें। इसलिए हम अपना जीवन पुनः शुरू करने के लिए दौड़ पड़े, मेट्रो के लिए, रेस्तराँ के लिए, जन्मदिन के उत्सव के लिए, किंतु इन सब ने स्थितियों को और खराब ही किया। वायरस ने रूप बदल लिया, वह और मज़बूत हो गया, उसने हजारों और जानें ले ली। इस बिंदु से अर्थव्यवस्था मुँह के बल गिर पड़ी और हिंसा का विस्फोट हो गया। इसलिए, हमने   स्वीकार कर लिया कि जीवन और सामाजिक संबंधों, जैसा कि हम उन्हें जानते थे, का अस्तित्व अब नहीं रहा और धीरे धीरे, भय के कारण, हमने स्वयं को सबसे अलग रखना शुरू कर दिया।


जब आप लगभग आधा साल निरुद्ध रहते हों, एकांत आपको पसंद आने लगता है। अकस्मात्, किसी व्यक्ति को अपने समक्ष खड़ा देखना आपको परेशान कर देता है; यह उतना सुविधाजनक नहीं होता जितना कि एक विडियो कॉल, जहाँ अजीब चुप्पियों को इंटरनेट की समस्या कह कर टाला जा सकता है। और यदि हमें मिलने जुलने की स्वतंत्रता भी हो तो सदैव दो मीटर की दूरी से और अपने चेहरे ढँके हुए, हम ऐसा बहुत बार न करते, अथवा इसे कम करते जाते, इस डर से कि वायरस हमें पुनः दंडित कर देगा। ख़तरा बहुत अधिक है, जैसा कि वे कहते हैं। इसके अतिरिक्त, यदि हम गले नहीं लग सकते, आपस में ऐसी बातचीत के लिए, जो आगे ही न बढ़ पाती, तो दूर से एक दूसरे पर चिल्लाने का क्या मतलब है। सब कुछ के पश्चात, आपका परिवार और मित्र ही वे लोग हैं जिनके साथ आप जीते हैं। स्कूल के समय के मित्र, काम के समय के पुराने सहकर्मी, सगे और चचेरे भाई-बहन, माता-पिता (यदि वे अभी भी जीवित हैं), इत्यादि वे प्राणी हैं जिनके साथ आपकी समानता शनैः शनैः कम होती जाती है। और उन के लिए जो एकाकी रहते हैं …. वे तो स्वयं अपने स्नेहभाजन होते हैं।


हथियारबंद सैनिक हमेशा गलियों में मौजूद होते। जब आप लॉक डाउन के समय में नहीं होते, आप अपने इलाक़े में, ढँके हुए और दूरी बनाए हुए, घूमने को “स्वतंत्र” होते। किंतु आप को ऐसा करते हुए अपराध-बोध होता। आप को किस बात का अपराध-बोध होता है, आप समझ नहीं पाते, जैसे कि ऐसी व्यवस्था को तोड़ना जिसे स्थापित करने की क़ीमत कुछ लोगों द्वारा जान दे कर चुकाई गई है, और यह ग़ैरज़िम्मेदारी का भाव गली में होने के आनंद को, हर चीज के आनंद को अवशोषित कर लेता। और मैं पर्वत पर भाग जाने का प्रयत्न करती, जहाँ कोई भी न हो। उन कुछ यात्राओं ने इन वर्षों को अर्थ दिया है; अब भी यह कुछ ऐसा है जिसके संबंध में मैं अपने पति और बेटे से बहुत बात नहीं करती क्योंकि वे नहीं समझेंगे। इसलिए मैं अकेले जाती हूँ। किंतु यह बात सदैव पति से लड़ाई का कारण तथा बेटे के अनियंत्रित सिसकने का कारण बनती है, जो हम दोनों में से किसी से भी अलग रहने के विचार को नहीं समझता है, क्योंकि वह इसी तरीक़े से बड़ा हुआ है — अपने माता-पिता की एक शाखा जैसा। क्या वह स्वस्थ है? यह कुछ ऐसी बात थी जिस के संबंध में आजकल कोई माँ-बाप प्रश्न नहीं करते हैं। नये समय में जन्मे बच्चे ऐसे ही हैं, जुड़े हुए, आश्रित। और इससे क्या होता है? वह हमारे अतिरिक्त और किसी से नहीं मिलता-जुलता और हम बहुत आशान्वित नहीं हैं कि चीजें बदलने वाली हैं। हम इस धारणा में विश्वास के साथ पाले गए थे कि स्वतंत्रता और वैयक्तिकता मनुष्य मात्र के लिए आवश्यक मूल्य हैं। उस धारणा ने हमारे लिए क्या किया? कुछ भी नहीं। यदि इस वायरस ने हमारे समक्ष कुछ उद्घाटित किया है तो यह कि आपसी निर्भरता जीवित रहने का एकमात्र रास्ता है। इसी कारण उनके लिए, मेरे पति और बेटे के लिए, मेरी पहाड़ की यात्राओं को क्षमा कर पाना कठिन है; नित्य के क्रम में व्यवधान उन्हें चिंतित कर देता है। वे मेरे साथ कुछ घटित हो जाने से डरते हैं, और उनका डर ठीक भी है, क्योंकि ऐसा करना ख़तरनाक है। वे अपना सिर दूसरी ओर नहीं मोड़ सकते — और न ही मैं कर सकती हूँ — जब हम में से एक दूर जा रहा हो, टूट कर अलग होता हुआ। क्योंकि हम एक देह हैं, साठ वर्गमीटर के गमले में उगे हुए पौधों की भाँति।


IV

वायरस ने हमारी आने-जाने की क्षमता सीमित कर दी है। हवाई यात्रायें न्यूनतम हो गई हैं, हम इलाक़े से बाहर की यात्रा नहीं करते, हम आजकल मुश्किल से ही कार का प्रयोग करते है, टूरिज़्म का अस्तित्व तक नहीं रह गया है। और हमारे लगातार घूमने-फिरने में आए इस विराम ने संपूर्ण पर्यावरण में शांति ला दी है जिसने न केवल जंगलों और नदियों को विकसित होने दिया बल्कि पक्षियों को भी फिर से दिखने का अवसर दिया है जो अब अपने इलाक़ों की सीमा से परे उड़ने में सक्षम हो गए हैं। प्रारंभ में हम  खूबसूरत पक्षियों के गलियों में उड़ने के वीडियो देख भावुक हो गए — ये पूरी दुनिया में वायरल हुए। यह जिज्ञासा की बात थी कि सामान्य स्थिति के अस्त व्यस्त होने की तमाम बातों के बीच हमें सुपर मार्केट जाते समय एक गिद्ध अथवा बाज़ के अनपेक्षित दर्शन से भी निपटना था। यद्यपि, शुरुआत में जिज्ञासा की बात होने के बाद भी, यह कुछ असामान्य सी बात थी जो लोगों को डरा देती है।


लंबी समयावधि तक छोटे फ़्लैट्स में, अपने कंप्यूटर के सामने, निरुद्ध रहने के पश्चात, हमारे भीतर प्रकृति के बारे में अतार्किक भय विकसित हो गया। हर उस चीज के संबंध में एक भय जो शहर, पर्दे, इंटरनेट, सुपरमार्केट और ऑनलाइन ख़रीद से भिन्न थी। आपके क्षेत्र से बाहर की हर चीज ख़तरनाक है और पहाड़ों पर तो और भी, जहाँ पौधे और पेड़ बहुत वृद्धि कर गए हैं। लोग पहाड़ से डरते हैं क्योंकि हम अभी भी वायरस की उत्पत्ति के संबंध में नहीं जान पाए हैं। एक सिद्धांत हैं कि इसका संचरण एक जंगली पौधे से हुआ है। किंतु ये अनुसंधान निर्णयात्मक नहीं हैं। इन सब बातों के बिना भी मैं लोगों के भय को समझती हूँ, क्योंकि यह सच है कि जंगल डराने वाला है। यह ऐसे  लगता है मानो हरा सन्नाटा आपको निगल लेगा और आपको अपना एक हिस्सा बना लेगा। मानों हर चीज, वह वायरस भी जिसे हम नहीं समझते, के सृजनकर्ता की आत्मा, जो पौधों में थी, वृक्षों की छाल में, और पत्थरों में थी, आपको देख रही है: इसकी आँखें हर चीज को देखती हैं। किंतु मेरे लिए यह गर्मजोशी भरा और बाँहों में भर लिए जाने जैसी अनुभूति है। 





V

जैसे ही वे निरुद्ध रहने का आदेश हटाते, मैं अपनी साइकिल ले पहाड़ पर चली जाती। साइकिल चलाना अच्छा माना जाता है। सरकार के अनुसार, शारीरिक क्रियाकलाप उन अनेक आवश्यक बातों में एक है जिसे नागरिकों को स्वस्थ रहने के लिए करना चाहिए। किंतु इसे आप बस अपने इलाक़े में ही कर सकते हैं और निश्चय ही तब जब निरुद्ध रहने का आदेश न हो। प्राकृतिक उद्यानों में जाना एक अपराध माना जाता है। मुझे नहीं पता मेरी सजा क्या होगी, लेकिन हर कोई जानता है कि यदि यह प्रतिबंधित है तो सजा कठोर होगी। सौभाग्य से, मैं जानती हूँ कि कौन सी राह पर जाना है और वे कभी मुझे नहीं पकड़ पाए।



VI

दो दीवारें जो मेरी छोटी सी बालकनी को घेरे हुए हैं सब्ज़ियों और पत्तों की हरियाली से ढँकी हुई हैं। मंदी आने के कारण, सरकार ने घर पर फसलें उगाने के अभियान की शुरुआत की, जिसके दौरान हमें अपने छोटे फ़्लैट्स के लिए लंबवत् बाग़वानी के अनिवार्य पाठ्यक्रमों का प्रशिक्षण दिया गया ताकि हम अपनी आवश्यकता की चीजें स्वयं उगा सकें और कमी बढ़ाने में योगदान न करें। हमारे घरों में केवल सरकार द्वारा बताए गए पौधे उगाने की अनुमति थी, केवल “उपयोगी” पौधे जो भोजन प्रदान करते थे। वे मिली मीटर के हिसाब से व्यवस्थित किए गए थे और उनके मध्य बीस सेंटीमीटर की रिक्ति होनी थी। जो बीज दिए गए वे वे प्रयोगशाला में निर्मित थे; पौधे अपने भीतर अनुवांशिक बुद्धिमत्ता लिए हुए थे जिससे उनका उगाना एकदम सही और आसान था। वे कहते हैं कि ये पौधे सुरक्षित और वायरस मुक्त हैं। “जंगली” पौधे नियंत्रण मुक्त प्राकृतिक और बुरी तरह उर्वर होते हैं जिन पर सरकार भरोसा नहीं करती है। अभी के लिए वे प्रतिबंधित हैं, जब तक वे वायरस की उत्पत्ति का पता नहीं लगा लेते,  और उन्हें देख कर पड़ोसी बहुत नाक भौं सिकोड़ना  बंद नहीं करते हैं। हमने फ़्लैट के भीतर अभी भी कुछ ऐसे पौधे छिपा का रखे हुए हैं। मैंने उनसे छुटकारा पाने से मना कर दिया था जैसा कि ‘घर पर उगाओ’ आंदोलन द्वारा “सुझाया” गया था। इन पौधों ने और तीव्रता से  वृद्धि करना शुरू कर दिया, उनकी हवाई जड़ें विचित्र आकार बनाने लगीं, लंबी और मोटी होती सी लगती हुई। हमने उन्हें नियंत्रित करने के लिए उनकी लगभग हर हफ़्ते कटाई छटाई शुरू कर दी थी। अपने पहले फ़र्न,  जिसे मैं पहाड़ पर से चोरी से ले आयी थी, के बाद हमने उनका प्रजनन शुरू कर दिया। पौधों की देखभाल करने के आनंद ने हमें अपनी गिरफ़्त में ले लिया। बेटा और मैं उन्हें उस समय बालकनी में ले जाते जिस समय अधिकांश लोग कार्यालय के काम में लगे होते। अपने नन्हे हाथों से वह मुझे गमलों को इधर उधर करने में मदद करता, और हम आकाश की ओर देखते हुए उनकी बग़ल में बैठा करते, इस बात पर आश्चर्य करते हुए कि क्या हम पक्षियों को और वे हमें देखेंगे। यह कर्मकांड अपना स्वयं का ध्यान हटाने और बेटे का स्क्रीन टाइम घटाने के लिए शुरू हुआ था किंतु बाद में यह एक ऐसा काम हो गया जिसे हम नहीं छोड़ सके…. मेरे पति को सुपरमार्केट से मिट्टी लानी पड़ती थी ताकि हम उन्हें और बड़े गमलों में स्थानांतरित कर सकें क्योंकि कटाई-छटाई उन में से कुछ के संबंध में काम नहीं आ रही थी। मिट्टी से वास्तव में उतना डरने की बात नहीं थी; इसे ख़रीदना सम्मान से देखा जाता था, क्योंकि इसका अर्थ था कि आप अपने समुदाय के भोजन के लिए योगदान कर रहे हैं। किंतु हम उसे असली पौधों के लिए प्रयोग करते जिन्हें हम बेटे के दूध के कार्टन अथवा प्लास्टिक के डिब्बों या पड़ोसी के कचरे में से मिले डिब्बों में से बड़े गमलों में रोपते थे। हम तब गमले बदलते जब जड़ें डिब्बों को तोड़ने लगतीं। जब हमारे पास पर्याप्त बड़े डिब्बे नहीं रह जाते, पति पौधे को कचरे में फ़ेंक देते हैं। हम लड़ते हैं, हम चिल्लाते हैं, मैं रोती हूँ, मैं स्वयं को पौधे के साथ बाथरूम में बंद कर लेती हूँ, फिर वे मुझे तार्किक ढंग से सोचने हेतु समझाते हैं। भोजन कक्ष की मेज़ इक्कीस फर्न्स के लिए आरक्षित है। इसलिए हम खाना रसोईघर में खाते हैं। नाइट स्टैंड पर लैंप की बजाय फ़र्न हैं। कुछ थोड़े, मात्र सात बाथरूम में सोते हैं। 


पौधों की कटाई-छटाई अत्यधिक सावधानी से करनी चाहिए। ख़राब छटाई से पौधे मर सकते हैं। हालांकि ठीक से की गयी  कटाई-छटाई से उन्हें शक्ति और जीवंतता मिलती है। पौधा शाख़ों का इस तरह फैलाव चाहता है ताकि सूरज की रोशनी उसके भीतर तक पहुँच सके। सबसे मज़बूत शाखाओं को काट देना चाहिए, और कटाव से वे फटनी नहीं चाहिए। मैं कल्पना करती हूँ कि इससे उन्हें पीड़ा होती है साथ ही बीमारी वाले तत्व छोटे घावों से हो कर उनमें प्रवेश कर सकते हैं : जैसे कि वायरस। इन सब की परवाह के बिना पौधे मज़बूत हैं, वे अजेय से लगते हैं, हर चीज से प्रतिरक्षित। पहले हम उन्हें बालकनी में ले जाने से परहेज़ करते थे, ताकि उन पर पड़ोसियों की नज़र न पड़ जाए, किंतु उन सब को भीतर ही रख पाना असंभव हो गया। भोजन कक्ष की मेज़ इक्कीस फर्न रखने हेतु आरक्षित थी। इस कारण हम रसोईघर में खाना खाते हैं। नाइट स्टैंड पर लैंप की बजाय फर्न हैं। कहते हैं कि यह आपके लिए अच्छा नहीं है कि पौधे रात को आपकी आक्सीजन चुरा लेते हैं, किंतु मुझे इसके विपरीत महसूस होता है। कुछ, मात्र सात बाथरूम में सोते हैं। रसोईघर में लगभग दस शेल्फ में हैं, पास्ता, चावल, और दालों के बीच। सात और बुकशेल्फ़ पर हैं, किताबों के मध्य। शेष फ़र्श पर हैं। वे सब उन पौधों की संतति हैं जो मैं पहाड़ से लौटते समय लाती थी। फर्न की अस्सी से अधिक प्रजातियाँ हमारे जंगल में हैं, एक दिन मैं उन सब को ले आऊँगी। किंतु मेरे पति ने सख़्ती से न केवल पहाड़ पर जाने से मना किया है — जो कि हर हाल में घटित होगा — बल्कि फ़र्न लाना जारी रखने से भी। “ये आविष्ट से लगते हैं,” मेरे पति मुझ से कहते हैं, “वे किस तरह तेज़ी से और प्रसन्नता से बढ़ते हैं।” 





VII

गर्मी आए एक महीने हो गए पर उन्होंने अभी तक लॉक डाउन ख़त्म नहीं किया है। साल के इस समय तक, अब तक मैं पहाड़ तक दो बार का चुकी होती, क्योंकि सर्दी के मौसम के अंत तक, निरुद्ध रहने की स्थिति ढीली हो जाती है। सरकार के अनुसार यह सब से कठिन वर्ष रहा है — जब वायरस केंद्रीय तंत्रिका तंत्र पर आक्रमण कर रहा है और वैज्ञानिक कह रहे हैं कि यह हर आने वाले वर्ष में और बुरा होता जायेगा। कोई निश्चित निर्णय नहीं लिया गया है कि कब वे बाहर जाने की अनुमति जारी करेंगे। अथवा जैसा कि वे कहते हैं। जिन्हें वे “इंकारवादी” कहते हैं, वे अब गलियों में उतर गए हैं, अधिक हिंसक तरीक़े से मार्च करते हुए, बिना मास्क, बिना किसी सुरक्षा के। वे सशस्त्र हैं; वे संगठित हैं। वे यह संदेश देते हैं कि वायरस पर वर्षों पूर्व ही नियंत्रण किया जा चुका है और हमें सीधे सीधे तानाशाही के अधीन कर दिया गया है। “वायरस तानाशाही”, जैसा कि वे इसे कहते हैं। कुछ वर्षों पूर्व तक हम भी इस सिद्धांत में विश्वास करते थे। हम भी एक बार आंदोलन करने गए थे किंतु चीजें हिंसक हो गई। जैसे जैसे समय बीतता है और निरुद्ध रहने की अवधि बढ़ती जाती है, आपकी इच्छा शक्ति समाप्त होने लगती है, और आप स्वयं को इस तथ्य का विश्वास दिलाने लगते हैं कि यही जीवित रहने का एक मात्र तरीक़ा है। हो सकता है यह सच हो कि वायरस हमें धीरे धीरे समाप्त कर देने के प्रति दृढ़प्रतिज्ञ हो, बिना हमें इसका भान हुए, वर्ष दर वर्ष। सरकार यह विचार फैलाती हैं किंतु इस बात को ज़ोर से स्वीकार नहीं करती, और न ही हम करते हैं, क्योंकि वे सुन सकते हैं, और फिर भाग्यवाद के अति की अनुमति नहीं है। वे कहते हैं, हमें थोड़ी आशा जीवित रखनी चाहिए। हम एक ही बात कर सकते हैं कि इस जीवन के आदी हो जाएँ, बिना कोई प्रश्न उठाए, कि क्या यह पृथकीकरण, यह लॉक डाउन कारगर है अथवा नहीं, कि क्या यह दमन आवश्यक है। हम इसके संबंध में कुछ नहीं कर सकते, कम से कम मैं तो नहीं। मुझ में लड़ने हेतु न यौवन है और न ही ऊर्जा। मैं इस बात से भयग्रस्त हो जाती हूँ कि मेरे पति या बेटे को कुछ हो सकता है, क्योंकि “नकार” की सजा मौत है। जो वे हमसे कहते हैं उस पर विश्वास कर लेना अधिक सुरक्षित है। 


कभी-कभी मैं, बिना किसी को बताए सोचती हूँ कि यह बेहतर होता कि बाहर जा कर वायरस के समक्ष समर्पण कर दिया जाए, जो मरने को हैं उन्हें मर जाने दिया जाए, जो जीवित रहने वाले हैं, उन्हें जीने दिया जाए। मैं कल्पना करने का प्रयत्न करती हूँ कि उन निष्क्रिय संवाहकों का जीवन कैसा होगा, वे उस सुखद द्वीप पर लाखों सूक्ष्म विषाणुओं के साथ, जो उन पर कोई भी प्रभाव नहीं डालते, धूप-स्नान कर रहे होंगे। मैं उस विशेषाधिकार का, उस स्वतंत्रता का हिस्सा बनना चाहूँगी, किंतु हमारा निर्णय दूसरे के हाथ में था, और इस बात का सामना किया जाना था कि किए जा सकने को बहुत कुछ नहीं है। इस बात पर बहुत विचार करने का कोई मतलब नहीं है, मैं जानती हूँ। सामान्यतः मैं उस जीवन पर, जो हम अभी जी रहे हैं, कोई प्रश्न नहीं उठाया करती। मैं इसकी अभ्यस्त हो गई हूँ। मैं अब स्मरण नहीं करती कि यह पहले कैसा था…. मैं वह शांति अब घर में पति और बेटे के साथ, इन पौधों द्वारा दुनिया से संरक्षित और पहाड़ पर जाने के अवसर की निश्चितता में पाती हूँ, जहां से और अधिक पौधे आयेंगे। इससे हर चीज को एक अर्थ मिल जाता है, और यही कारण है कि प्रतीक्षा के ये महीने अत्यधिक कठिन रहे हैं। सरकार रोज़ भविष्यवाणी अद्यतन करती है, और हर बार वे इस निर्णय के प्रति सहमति के और क़रीब पहुँचते हैं कि हमें पूरा साल निरुद्ध रहते बिताना होगा। इसी कारण “इंकारवादियों” ने बहुत से क्षेत्रों पर कब्जा कर लिया है; सुपरमार्केट में कहा जाता है कि वे लोगों को “आज़ाद” कर रहे हैं। हर रात्रि, लॉक डाउन के कब्र जैसे सन्नाटे में, गोलियों की और गीत गाने की आवाज़ें सुनी जा सकती हैं। वे कहते हैं कि उनके पास दूसरे आँकड़े हैं, दूसरे वैज्ञानिक, दूसरे अध्ययन हैं और चीजें भिन्न हो सकती थी। मैं अब बिलकुल नहीं जानती कि क्या सोचना है।


VIII

निरुद्ध रहने के नौ माह। मैंने पहाड़ पर जाने की आशा छोड़ दी। पौधे बहुत बड़े हो गए हैं। मैं इस छोटे से फ़्लैट में चहलक़दमी करती हुई चिंतित महसूस करती हूँ। मैंने सब्ज़ियों और पत्ती वाली हरियाली को मर जाने दिया। मेरे भीतर उनके लिए उत्साह नहीं है। बेटा मेरे पीछे पीछे यह समझने का प्रयत्न करते हुए टहलता है कि मेरे साथ क्या गड़बड़ है। वह मुझे ख़ुश करने का प्रयत्न करते हुए सबसे छोटे पौधों को उठा कर बालकनी तक ले जाता है। हम उसके पास खड़े एक दूसरे का आलिंगन करते हैं और वह परेशान मुझे सांस लेते हुए देखता है। कभी कभी मैं टूट कर रो पड़ती हूँ। पति मेरे इस तरह के व्यवहार पर नाराज़ होते हैं, जब वे चुपचाप ऐसे पौधों, जो अब कहीं नहीं रखे जा सकते,  की डालियों से भरे दो कचरे के बैग चुपके से नीचे ले जा रहे होते हैं। बहुत हो गया, अब मैं इसे और नहीं बर्दाश्त कर सकता, वे चिल्लाते हैं। फिर वे वापस आते हैं और मुझे कस कर आलिंगन में जकड़ लेते हैं। मेरे पति और हम तब मिले थे जब हम बहुत युवा थे। वे एकमात्र व्यक्ति हैं जिनके साथ मैं बिना पागल हुए इस तरह निरुद्ध रह कर समय बिता सकती हूँ। लेकिन हमारे भी अपने संकट रहे हैं। “पौधों के संकट”, मैं उनसे कहती हूँ। कभी कभी वे हँसते हैं, अन्य कई अवसरों पर नहीं। मैं जानती हूँ कि उन्होंने सभी पौधों को बाहर कूड़े में फेंक कर हमारे फ़्लैट और जीवन को व्यवस्थित करने के संबंध में सोचा है, लेकिन उनका एक अंश यह जानता है कि ऐसा करना मुझे मार डालेगा, और हमने इस फ़्लैट में जो समरसता प्राप्त की है, हम तीनों ने, बाहर क्या हो रहा है इस के बावजूद, उसका कुछ अंश तक श्रेय इन पौधों को है।


बाद में, रात को, मेरे पति मुझे चिंतित फ़्लैट में इधर उधर टहलते, हर फर्न के नीचे पानी की प्लेट्स रखते देखते हैं क्योंकि गर्मियों में उन्हें नम रखना होता है। उन्हें पानी देने की आवश्यकता नहीं होती; पानी वाष्पित होता है, और वह ऐसा वातावरण निर्मित करता है जो उन्हें आरामदायक महसूस होने हेतु आवश्यक है। यह एक जंगल में रहने जैसा है। छिपे हुए झींगुर इत्यादि कीड़े, जिन्हें हम नहीं देखते, हमारे मध्य गाते हैं। जब हम बालकनी का दरवाज़ा खुला छोड़ देते हैं तो कुछ पक्षी सोने के लिए आ जाते हैं; कभी कभार एक उल्लू भी आता है। मैं पौधों के बीच की संकरी पगडंडियों पर चलती हूँ और महसूस करती हूँ कि मैं पहाड़ पर हूँ। मैं आलिंगन में होने की अनुभूति पाना चाहती हूँ, जब वे बड़ी बड़ी आँखें मुझे निहार रही हों, किंतु मैं फिर भी उन्हें नहीं महसूस करती, उस गहनता से नहीं। मुझे और फर्न चाहिए, संभवतः पंद्रह या बीस, अन्य प्रजातिओं के। फिर मैं बैठक में किसी जगह लेट जाती हूँ, कहाँ अधिकांश फ़र्न सोते हैं। पति और बेटा? मैं नहीं जानती कि क्या वे इसे समझते है? किंतु वे इसे स्वीकार कर लेते हैं, क्योंकि वे मुझे प्यार करते हैं और मैं उन्हें। कुछ रातों को, जब कोई पड़ोसी रात्रि के मध्य में लाइट जला देता है, “आजादी की सेना” — जैसा कि अब लोग उन्हें कहते हैं — को मिटाने के लिए चलाई गई गोलियों की आवाज़ के बीच, बेटा डर कर जाग जाता है और पौधों के बीच मेरे फटेहाल विस्तर पर चला आता है। वह मुझे कस कर आलिंगनबद्ध कर लेता है। कुछ देर बाद मेरे पति भी हमारे पास आ जाते हैं, और हम तीनों सो जाते हैं, फ़र्न की विशाल शाखाओं से अच्छादित, जिन में से कुछ, एक तरह से हमें आलिंगन में ले लेना चाहती हैं। 


***


(World Literature Today से आभार सहित)



(इस पोस्ट में प्रयुक्त पेंटिंग्स कवि विजेन्द्र जी की हैं।)






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