हेमन्त शर्मा का आलेख 'रामलीला, जहॉं मन बार बार लौटता है'
'रामलीला, जहॉं मन बार बार लौटता है' हेमन्त शर्मा वर्षा विगत शरद ऋतु आई। लक्ष्मण देखहु परम सुहाई।। यह तुलसी ने लिखा था शरद के बखान पर. तुलसी ने सही लिखा- शरद में कुछ बात जरूर है। आते ही मन लउछियाने लगता है। वातावरण उत्सव और उल्लास के गंध से सुशोभित होने लगता है। कानों में रामलीला के संवाद प्रतिध्वनित होने लगते हैं। मन राममय होने लगता है। बचपन लौट आता है. स्मृतियों के कबाड़ पर बैठ जाता हूँ। रामलीलाओं की यादें सताने लगती हैं. रोज़ी रोटी की व्यस्तताओं के बीच अब रामलीला का मंचन देखने का वक्त तो नहीं मिल पाता है पर मन वहीं रमता है। मैंने बचपन से काशी की इस अनमोल परंपरा को जगह-जगह फलीभूत होते देखा है। रामलीलाओं की शक्ति अपरंपार है। कुछ भी हो, कैसा भी हो, कहीं भी हों पर रामलीलाएं पीछा नहीं छोड़ती हैं। तो रामलीलाएं मेरा पीछा क्यों नहीं छोड़ती. क्योंकि रामलीला के बीज-केंद्र अयोध्या और बनारस से अपना नाता रहा है। दोनों रामलीला की धरती हैं। त्रेता की अयोध्या में राम लीला के जीवित स्थान थे। तो बनारस में सोलहवीं शताब्दी में तुलसी दास ने रामकथा को जन जन तक पहुँचाने के लिए रामलीला शुरू कराई...