स्पेनिश कहानीकार आलिया ट्राबुको ज़ेरान की कहानी 'कड़वी गोली' हिन्दी अनुवाद - श्रीविलास सिंह
Alia Trabucco Zerán |
प्रख्यात कथाकार मार्कण्डेय कहा करते थे कि सूक्ष्म दृष्टि से अपने परिवेश, अपने आस पास के लोगों और घटनाओं पर नज़र रखने वाला व्यक्ति ही एक सक्षम कहानीकार बन सकता है। कहानीकार द्वारा व्यक्त छोटी से छोटी घटनाओं के बारीक ब्यौरे जीवन पर उसकी पकड़ और दखल के बारे में बताते हैं। इन ब्यौरों में इतनी ताकत होती है कि कथ्य की नामौजूदगी में भी ये एक समानांतर कथ्य रच देते हैं। स्पेनिश कहानीकार आलिया ट्राबुको ज़ेरान की कहानी 'कड़वी गोली' इस बिना पर एक महत्त्वपूर्ण कहानी है जिसका हस्तक्षेप व्यापक है। श्रीविलास सिंह एक बेहतरीन कवि हैं। इधर उनके उम्दा अनुवादों ने उस विश्व साहित्य से हमें परिचित कराने का काम किया है जिससे हम अभी तक परिचित नहीं थे। आलिया अपनी रचना Remainder के लिए खासी चर्चित रही हैं। आज पहली बार पर प्रस्तुत है स्पेनिश कहानीकार आलिया ट्राबुको ज़ेरान की कहानी 'कड़वी गोली'। इस कहानी का अंग्रेजी से हिन्दी अनुवाद किया है श्रीविलास सिंह ने।
कड़वी गोली
आलिया ट्राबुको ज़ेरॉन
(स्पेनिश से अंग्रेजी अनुवाद - सोफिया हफ)
हिंदी अनुवाद : श्रीविलास सिंह
न अच्छा न बुरा। न सुरुचिपूर्ण न कुरुचुपूर्ण। न संक्षिप्त न लम्बा। यह जीवन था। कपड़ा गन्दगी को पोछता है। झाड़ू कचरे को इकठ्ठा करती है। पानी साबुन को गीला कर देता है।
जैसा कि मैंने पहले ही कहा, श्रीमती जी, गृहस्वामिनी, मेरे साथ अच्छा व्यवहार करती थीं। यदि आप उनसे पूछते, वे कहतीं कि वे मुझे परिवार का हिस्सा समझती थीं। ठीक-ठीक कौन सा हिस्सा, मैं अब भी नहीं जानती।
मुझे उस घर में आए अधिक दिन नहीं हुए थे जब उन्होंने मुझे निर्देशित करने की ज़िम्मेदारी स्वयं संभाल ली, उस सीधी और व्यावहारिक रूप से गूंगी युवा वस्तु को सही रास्ते पर निर्देशित करने की ज़िम्मेदारी। वे कहतीं :
“टेरेसा, मेरी बच्ची, ध्यान दो।”
मैं उनकी ओर ताकती, बिना देखे ताकती जब कि मेरे मस्तिष्क में तीव्र विचार जग रहे होते; मुझे अपने बारे में उसकी बातें सुनने से रोकने के लिए कोई चीज, जैसे कि वह मुझे वास्तव में जानती हो। थोड़े समय बाद, उन्होंने दया करके मुझसे बात करना एकदम ही बंद कर दिया। अथवा हो सकता है यह पूरी तरह सच न हो। हो सकता है हम में अब भी वार्तालाप होता रहा हो, यदि आप उसे वार्तालाप कह सकें। श्रीमती जी शॉवर से प्रगट होतीं, बाथरूम का दरवाज़ा खोलतीं, चेक करतीं कि मैं अभी भी उनके कमरे में हूँ - उनकी बेडशीट्स ठीक कराती या कम्बल झाड़ती हुई - और फिर वे बात करने लगतीं। वे अपनी अंडर आर्म्स और अपनी जांघों की सिलवटें सुखाती हुई बात करती, अपना डिओडोरेंट लगाते हुए, अपनी कलाइयों पर इत्र रगड़ते हुए और अपनी त्वचा की मालिश करते हुए बात करतीं, पूरी त्वचा की ढेरों ढेर महँगी क्रीम लगा कर मालिश करती हुई। वे इस तरह बोलतीं जैसे वे पूरे कपडे पहने हुए हों अथवा जैसे कि मैं उन्हें वास्तव में देख नहीं सकती।
लड़की, उनकी प्यारी नन्ही लड़की भी वहीँ रहती। बेड के पायताने बैठी हुई बाथरूम के दरवाज़े की ओर देखती हुई। वह अपनी माँ के हर काम को पसंद करती थी। आईलाइनर का कैसे प्रयोग करना है। अपने होठों को कैसे रंगना है। बालों में कैसे ब्रश करना है। मैं केवल सुनती थी, भद्र जनों। और यदा कदा सीधी सादी अच्छी लड़की की भांति अपना सिर हिला दिया करती थी जैसा कि मुझसे अपेक्षित था। मैं तकिये झाड़ती, और फर्श पर से पसीने से भीगी कमीजें, गंधाते हुए मोज़े और वीर्य के दाग लगे अंडरवियर उठाती रहती।
आप कल्पना नहीं करेंगे कि कितनी हताशा मैं वे सारे शब्द उसके मुंह में वापस ठूंस देना चाहती थी। मैं बहरी हो जाने के लिए किस प्रकार उत्कंठित थी।
स्त्री। निचले तबके की। सामान्य रूप से विकसित और अपने जीवन की परिस्थितियोंवश अपने वातावरण में पर्याप्त तेजी से घुल मिल चुकी।
मुझे भी वही दर्द रहने लगा था जिसकी मेरी माँ हमेशा शिकायत किया करती थी। मेरी कमर के आसपास एक गहरी और धीमी पीड़ा की लहर जो मुझे काम करने से रोक देती थी। मुझे अपने सारे काम समय से निपटने के लिए सुबह जल्दी उठना पड़ता था। लड़की को जगाना, उसकी चादरें ठीक करना, उसका दूध बनाना, पोछा लगाना और धूल झाड़ना और उसे कूड़ेदान में फेकना। हवा, धूल, पालिश, मोड़। दर्द मुझे हर दो तीन घंटे में रुकने को मजबूर कर देता। मुझे लगता है डाक्टर ने ऐसे ही किसी अंतराल में मुझे देख लिया था अथवा हो सकता है उसने लॉन्ड्री की टोकरी उठाते समय मेरी कराह सुन ली हो। वे यह जानना चाहते थे कि एक से दस के स्केल पर मेरा दर्द कितना है। मैंने जवाब नहीं दिया। दर्द से मेरे पैर सुन्न हो जाते थे और मेरी पीठ तख्ते की भांति अकड़ जाती थी। किसी तरीके से इसे अंकों में नहीं गिना जा सकता था। डाक्टर ने कहा :
“ये गोलियां ले लेना, टेरेसा।”
मुझे उसके मुंह से अपना नाम सुनने में हमेशा से घृणा थी। एक कॉफी टेरेसा, ब्रेड के दो स्लाइस, मक्खन के साथ, मेरे काले जूते, एक गिलास ठंडा पानी, टेरेसा, मेरी सफ़ेद कमीज़ कहाँ है, मेरा ऊनी स्वेटर, टेरेसा, मेरे साफ मोज़े, जल्दी ले आओ, मुझे देर हो रही है। जब भी वह मेरा नाम पुकारता ‘स’ को तब तक खींचता जब तक उसका अधिकतम उपयोग न हो जाता। फिर उसे हवा में लटकता छोड़ देता, प्रभाव-स्वरूप अपने मौन द्वारा एक दीवार सी निर्मित करता हुआ।
टेरेसा। उसके पहले उसके पिता मेरी माँ का नाम इसी तरह पुकारा करते थे। और मेरी माँ हमेशा मेरी तरह ‘जी श्रीमान’ ‘नहीं श्रीमान’ कह कर जवाब दिया करती। हमारे लिए वे कभी भी इससे अधिक नहीं थे : श्रीमान, परिवार। उनके नाम इस मामले में अप्रासंगिक हैं।
संदिग्ध अपने बारे में और अपनी अवस्था के बारे में सचेत है, स्पष्ट, उसमे पर्याप्त आत्मनियंत्रण है और उसकी तर्क शक्ति सामान्य है।
डाक्टर ने गोलियां मुझे दी और कहा कि मैं उन्हें दिन में चार बार लिया करूँ। हर छः घंटे के बाद, उसने जोड़ा। मानों मैं स्वयं दिन को चार हिस्सों में बाँट पाने में सक्षम नहीं थी; काम से भरी हुई चार खिड़कियां - काम, काम, काम करने के लिए। मुझे एक गोली नाश्ते के साथ लेनी चाहिए, लंच और डिनर के साथ और आखिर में एक गोली रात्रि के मध्य में।
मुझे अलार्म लगाने की आवश्यकता नहीं थी। पीड़ा हर समय यह स्मरण कराने हेतु उपस्थित थी कि यह जगाने का समय है। इसलिए आधे सोये होने पर भी, बल्ब जलाने की जहमत उठाये बिना भी, मैं अंधों की तरह गोलियों की शीशी के लिए टेबुल तक पहुँच जाती और एक गोली बिलकुल अपनी जीभ के मध्य रख लेती। मैं उसे कभी निगल नहीं सकी। मुझे पूरा कर लेने दीजिए, भद्र जन। मैं चाहती हूँ कि अब आप मेरी बात सुनें। मेरी देह दर्द और थकन से अकड़ी हुई थी। मैं वहां पड़ी रहती, मेरी आँखें खुली या बंद रहती, सारी गोलियां मेरी जीभ पर घुलती रहती और एक इनकार भरा विचार मेरा ध्यान भटकाए रहता : कि यह असंभव था, एकदम अचिंतनीय, यह सोचना कि मैं उसका, मेरे अंतर्मन का, इलाज कर सकती थी, किसी ऐसी चीज से जिसे मैं खा सकती थी।
वह पागल नहीं है और न ही पहले कभी उसे पागलपन अथवा डिमेंशिया के दौरे पड़े हैं।
अपनी छुट्टी के दिन मैं पीछे के कमरे में सारा समय बिताया करती थी; वही कमरा, जिसे आप भद्र जन मेरा कमरा कहने पर जोर देते हैं। मैं बाहर नहीं निकलती थी। मैं बिलकुल हिलना नहीं चाहती थी। मैं भीतर ही पड़ी रहती, अपनी पीठ के बल एकदम स्थिर लेटी हुई, अपनी जांघों पर अपने हाथ टिकाए और टेलीविजन चालू कर के। वहां, आखिरकार देह को आराम मिल जाने के बाद, मैं हर चीज देखती, सबेरे की प्रार्थना, प्रायोजित कार्यक्रम, बच्चों के शो, एक बजे के समाचार, और फिर प्रायोजित कार्यक्रम। और मैं इस शांति का आनंद उठाती, पूरी विश्रांति और आराम, जब तक कि घंटों घंटों की प्रतीक्षा के पश्चात् मेरे भीतर फिर से कुछ न टूट जाता। फिर वही अलमारियों की दराजें, नाइट स्टैंड, लैम्प, दीवारें, छत, टेलीविजन; कमरे की हर एक चीज फिर से एकाएक मेरी प्रतीक्षा में खुल जाती। वे मुझे अपने में से एक के रूप में स्वीकार कर लेती और मेरे लिए भी, अपने से पलायन हेतु, एक और मौन खालीपन में प्रवेश संभव हो जाता। चीजों के विशाल परिवार में। मैं उन हाथों की ओर पहली बार नजर डालती : मुड़ी हुई उंगलियां, घिसे हुए नाख़ून, पोर पोर बदरंग। एक मर रहे शरीर से जुडी दो विचित्र बांहें; धीरे धीरे बनावटीपन से मरती हुई एक देह।
दी हुई रिपोर्टों से विवरणों और घटनाओं को याद रखने में कठिनाई (पहली रिपोर्ट) और कमजोर भाषा सम्बन्धी ज्ञान (दूसरी रिपोर्ट) का संकेत मिलता है।
लेकिन आपने मुझे यहाँ चीजों के बारे में अथवा किस प्रकार मैं अपनी टांगों पर अपनी उँगलियों के स्पर्श से चौकन्नी हो गयी इस बारे में बात करने के लिए नहीं बंद कर रखा है। आप मुझसे लड़की के बारे में बात करने की अपेक्षा रखते हैं, आप को यह बताने की कि वास्तव में क्या हुआ था।
कपडे प्रेस करने का बोर्ड फ्रिज की साइड में नीचे रखा हुआ था। मेरी तरफ ऐसे मत देखो, भद्र जनों। कहानी इसी प्रकार शुरू हुई। यह कपडे प्रेस करने का एक पुराना बोर्ड था जिसके पाए धातु के थे और जिसके ऊपर घिसा हुआ कपड़े का कवर चढ़ा था। मैं केवल उसे खोलती थी और उसके पायों के फर्श पर घिसटने की तीखी आवाज़ आती थी। डेजी को आने में कभी अधिक समय नहीं लगता था। अपने सामान्य उदास लहजे में वह लांड्री रूम के द्वार पर प्रगट हो जाती, उसे धीरे से अपने थूथन से धकेलती और जैसे उसे कोई देख ही न सकता हो, जैसे वह अदृश्य हो, दरवाज़े के बीच में लेट जाती थी। वहीँ से सिमटी हुई वह मुझे देखा करती थी। अपनी विद्रूप, हलकी नीली आँखों से वह सीधे मुझे ताकती रहती जैसे मुझे सचमुच देख रही हो। डेजी, वह अंधी थी। संभवतः इसीलिए उसने सोचा होगा कि जब वह धीरे से घर में आती है उसे कोई देख नहीं पाता। वह हमारी नहीं थी। किसे मैं ‘हमारा’ कह रही हूँ? जो कुछ हो चुका उसके पश्चात्। मेरा मतलब है कि डेजी का सम्बन्ध ‘परिवार’ से नहीं था। उसका किसी से सम्बन्ध नहीं था, और चूकि वह छोटी कुतिया अकेली और आवारा थी, वह मेरी थी।
वह परिवार की इकाई का हिस्सा थी।
वह अपने अविश्वास से ऊपर कभी न उठ पायी। अपना आधा शरीर बाहर और आधा दरवाज़े के अंदर किये वह हड्डी के एक टुकड़े, जरा से दूध या ब्रेड के एक कौर के लिए प्रतीक्षा करती रहती। बस इतना ही। जो कुछ भी उसे मैं देती वह उसे चट कर के आभारस्वरूप मेरी हथेली चाटती। यदि वह भूखी होती तब भी वह अधिक नहीं मांगती थी। वह बस अपने पैरों के बीच में अपना सिर कर के अपनी आँखें बंद कर सो जाती। किसी और समय वह फर्श पर अपनी पूंछ हिलाती रहती मानों गिन रही हो - एक, दो, तीन, चार। और यदि मैं कोई आवाज़ करती, यदि मैं खांसती, कोई धुन गुनगुनाती, वह अपना हल्का भूरा सिर और चित्तीदार थूथन उठाती और हवा में सूंघने लगती जैसे चेक कर रही हो कि मैं अभी भी वहां हूँ, उसके साथ।
मुकदमें की सुनवाई के दौरान ऐसा नहीं लगा कि उसे किसी बात का बुरा लगा है।
मैंने नहीं सोचा था कि श्रीमती जी गंभीर थी। मैं उन्हें इसके लिए क्षमतावान नहीं समझती थी।
दरवाज़े के सामने मैं प्रेस करने के बोर्ड पर कपडे प्रेस कर रही थी ; लड़की के टी शर्ट, डिश टॉवेल्स, मेरी एप्रन। मुझे कपडे प्रेस करने में कोई दिक्कत नहीं थी। दुनिया को इस तरह मोड़ कर छोटा कर देना। कुछ कपडे प्रतिरोध करते थे। जिसका मतलब था उन्हें धीरे-धीरे प्रेस करना, और गरम करना, उन्हें सबसे छोटे संभव नाप का बनाने हेतु। विशाल सफ़ेद चादरें छोटे से चौखाने में परिवर्तित।
कभी-कभी लड़की मुझे प्रेस करते देखा करती। और कभी-कभी वह किचन टेबल पर बैठी चुपचाप अल्पाहार किया करती और मैं उसे हर कौर को बिना मुंह खोले चबाते हुए देखा करती, उसकी गर्दन बिलकुल सीधी रहती थी और उसकी कुहनियां कभी भी टेबल पर नहीं रहती थी। और इस पूरे समय के दौरान मैं प्रेस करती रहती : आराम-कुर्सी, बिस्तर, टाइल्स, कुर्सियां, बर्तन, पतीले और पेड़। मैं अपने हाथों तक को प्रेस कर चुकी होती यदि प्रेस करने के लिए उनकी जरुरत न रही होती।
वह एक विश्वसनीय सेविका थी।
श्रीमती जी उसका घर में मेरे पास आना नहीं पसंद करती थी। वे उस बात से भयभीत थीं जो वह जीव उनके साथ, उनके पति के साथ, उनके बच्चों के साथ, उनके बच्चों के बच्चों के साथ बुरा कर सकती थी। वे भयभीत थी कि वह उन्हें रैबीज की छूत लगा सकती थी। जबकि दूसरी और, लड़की डेजी से परेशान नहीं थी। एक बार उसने उसे थपकी भी दी थी। वह सावधानी से उसके पास गयी थी, झुकी थी और डेजी की बंद आँखों पर अपनी हथेलियां फेरी थी। मानों वह भी उसे प्रेम करती हो।
जीवन और मृत्यु के बीच, भद्र जनों, बहुत थोड़ा अंतर होता है। इलाज करना और मार डालना, ठीक करना और घायल करना, दोनों एक ही सिक्के के पहलू हैं। डाक्टर से पूछिए। वही थे जो घर में गोलियों की छोटी शीशी लाये थे। मैं जान भी न पाती कि उसे क्या कहते हैं, वह कहाँ मिलती हैं, उनका क्या करना है। जैसा मैंने कहा, वह एक सफ़ेद बोतल थी, बिलकुल उसी की तरह जो उन्होंने पीठ के दर्द के लिए मुझे दी थी। इस पर केवल एक अलग लेबल लगा था, जिस पर नीले अक्षरों में लिखा था - ‘विष’।
मैं पढ़ना जानती हूँ। मैं लिखना जानती हूँ। मैं ‘विष’ शब्द का रहस्य जानती हूँ।
स्ट्राइचनाइन सबसे सामान्य एल्कलॉइड होता है। इसका रासायनिक फार्मूला है- C21 H22 N2 O2 .
डेजी कभी भी सामने के दरवाज़े की ओर नहीं जाती थी। वह बेवकूफ़ नहीं थी। वह जब डॉक्टर या श्रीमती जी घर पर होते उस समय घर के आसपास भी नहीं फटकती थी। वह केवल पिछले दरवाज़े से आती थी और तभी ठहरती थी जब मैं वहां उसे बचाने के लिए होती थी। लेकिन यह सच है, वह भूखी थी। और भूख, भद्र जनों, एक कमज़ोरी है।
उस अपराह्न मैं किचन में थी, मैं बर्तन धो रही हो सकती थी अथवा प्याज काटती या आलू छीलती हुई। मुझे ठीक स्मरण नहीं। श्रीमती जी आयीं और सभी दराजें खोलने लगीं। डॉक्टर ने उसे कहीं ऊपर छिपा रखा था, आलमारी में, जहाँ लड़की न पहुँच पाती। वे सफ़ेद रंग की थी लेकिन उनके बीच में एक काला बिंदु था। आखिर में श्रीमती जी ने उसे खोज निकाला। उन्होंने एक गोली ली, उसे माँस के एक टुकड़े में लपेटा और तेजी से पिछवाड़े की ओर चली गयीं।
किचन की सभी दराज़ें आधी खुली हुई थीं।
कुछ मिलीग्राम एक खुराक तंत्रिका तंत्र के अंगों की संवेदनशीलता बढ़ा देता है। दस से बीस मिलीग्राम की खुराक कम्पन, डायरिया और दुश्चिंता उत्पन्न करती है।
काटना, छीलना अथवा जो कुछ भी मैं कर रही थी उसे बंद कर के, मैं जितनी तेजी से संभव था उतनी तेजी से सामने के दरवाज़े की ओर भागी। वहाँ, बाहर की ओर, प्रवेश-द्वार से कुछ कदम पर डेज़ी थी। पहले मैंने सोचा कि वह सो रही है और एक लम्बी गहरी साँस छोड़ी। लेकिन पास जाने पर मैंने उसकी आँखों को देखा। वे हलकी नीली आँखें खुली हुई थी। मानों पहली बार देख रहीं हों। उसका मुंह बंद था, हमेशा के लिए सील कर दिया गया। और रक्त की एक महीन लकीर उसके मुंह के पास से मेरे पैरों तक खिंची हुई थी। एक सन्देश जिसे मैं और केवल मैं ही समझ सकती थी।
डेज़ी की देह चुपचाप कांपती रही। वह कराही नहीं। वह भौंकी नहीं। बस अंत में एक बहुत हलकी सी गुर्राहट आयी, मानो कोई बहुत भारी दरवाज़ा बंद हो रहा हो।
मैं भी नहीं चिल्लाई, भद्र जनों, न तब न बाद में। मैं समझती थी कि यदि मैं चिल्लाई, यदि मैंने अपने विलाप को निसृत करने हेतु अपना मुंह खोला, वह कभी न रुक पायेगा। वह विलाप, प्रथम रुदन की भांति वास्तविक जीवन की शुरुआत का चिन्ह हो सकता था।
मालिक उनकी बगल में खड़े थे, बिलकुल सीधे हुए स्थिर। उन्होंने मेरी ओर देखा और मुझे यह सब ठीक करने का आदेश दिया।
उन्होंने कहा :
यह सब ठीक करो, टेरेसा।
उन्होंने कहा :
फर्श को अच्छी तरह साफ कर दो, टेरेसा।
टेरेसा टेरेसा टेरेसा टेरेसा
मुझे अपने मुंह में और आँखों के पीछे जलने की सी अनुभूति हो रही थी जैसे मैं आग में जल रही होऊं।
दवा का तंत्रिका तंत्र पर मुख्य प्रभाव तंत्रिकाओं की संचरण शक्ति में अभिवृद्धि होना होता था जिसके कारण, भय, कम्पन, और छाती में तीव्र खिचाव उत्पन्न होता था।
मुझे उसे कूड़े के एक काले बैग में रखना पड़ा।
मुझे फर्श को रगड़ना पड़ा लेकिन उससे दाग नहीं समाप्त हुए।
मैं उसे अपने कंधे पर ले कर उस सम्पत्ति की सीमाओं से दूर उसके साथ-साथ चली, उस देह के साथ जो कुछ देर पहले तक डेज़ी थी।
काफी दिनों से वर्षा न होने के कारण ज़मीन सूख गयी थी। बारिश नहीं हो रही थी और मैं जानती थी कि उस भूमि पर अब फिर कभी वर्षा नहीं होगी। लेकिन फर्श पर पड़ा काला बैग समुद्र की लहरों सी आवाज़ कर रहा था।
शुश
शुश
शुश
शुश
नीली स्याही से लिखा था शब्द ‘विष’।
श्रीमती जी ने कहा था :
लोग वही विश्वास करेंगे जो वे चाहते हैं।
मैं घर में वापस चली गयी। पिछले कमरे में छिप कर बिस्तर पर पड़ी रही। मैंने हलकी सी आँख खोली। मेरी पलकों के उठने गिरने से मेरी आँखें दे पाने में सक्षम हो गयीं। डेजी बाहर सड़क पर अकेली थी। वह गिद्धों द्वारा, कीड़े-मकोड़ों द्वारा और पता नहीं किन-किन किन जंगली जानवरों द्वारा खा डाली जाएगी। मैंने उसे बिना तकलीफ़ के मार दिया होता, भद्र जनों। मैंने उसकी पलकें बंद की होती। मैंने उसके नन्हें माथे का चुंबन लिया होता और उसके मुंह के बंद होने के पूर्व, उसे सील करने के पूर्व, मैंने उसकी जीभ पर ब्रेड का एक कौर रखा होता।
मैं नहीं जानती कितना समय बीत गया था। मैं इतना जानती हूँ कि अभी भी रात शेष थी। और तब, न जाने किस अंजानी शक्ति वश, किस इच्छा वश मैं उठ गयी।
मैं उठ गयी, भद्र जनों और सड़क पर वापस गयी।
ह्रदय सिकुड़ने और फ़ैलाने में कठिनाई महसूस कर रहा था।
मेरी सांसे अँधेरे में अपारदर्शी और खामोश थी और तब मैं डेज़ी को मकान में वापस ले आयी। मेरे दिमाग में एक विचार था, एक काँटों से आच्छादित विचार।
मैंने खोदने के लिए एक कुदाल की मदद ली। और खुद से ही पिछवाड़े की और एक गड्ढा खोदा, लॉन्ड्री रूम के सामने जहाँ से डेज़ी मुझे देखा करती थी।
मैंने उसे गड्ढे में डाला और मिट्टी से ढक दिया। मैंने ब्रेड का एक टुकड़ा उस ढेर के ऊपर रख दिया।
तब मैं वास्तव में जानती थी कि और कोई रास्ता नहीं था। इतनी बड़ी परछाईं से बच कर भाग जाने की कोई राह नहीं थी।
कानून सताए गए लोगों की रक्षा करना चाहता है। यह उन्हें घरों के भीतर शरण उपलब्ध कराने की आशा करता है।
मैंने अपना बिस्तर तैयार किया, अपना मुंह धोया, अपने बालों में कंघी की, और ठंडे पानी से स्नान किया। ब्रश किया, पानी गर्म होने के लिए रखा और बर्तन अलग रखे। काँटे काँटों के साथ। चम्मच चम्मचों के साथ। चाकू चाकुओं के साथ।
श्रीमती जी ने कहा :
पाँच लोगों के लिए टेबल लगाओ।
श्रीमान, श्रीमती जी, उनके दो मेहमान और लड़की।
परिवार के इतिहास में, कई पीढ़ियाँ पीछे तक, ऐसा कुछ नहीं था, कोई अनुवांशिक कमी जो इस प्रकार की दुर्लभ, तीव्र और आक्रामक मृत्यु को व्याख्यायित कर पाती।
खरगोश की खाल उतारो उसे काटो साफ करो और उसमें वाइन नमक, काली मिर्च और प्याज मिलाओ उसे ओवन में रखो। आलू साफ करो ओवन को देखो। आँखें हटाओ आँखें आँखें डेजी की आँखें छीलो और उन्हें टुकड़ों में काट कर उबालो और पालक साफ करो। पालक काटो और खाना परोसो और मरो और मरो और मरो और मरो।
गोलियों के मध्य में एक काली बिंदी थी।
उन्होंने ढेर सारा खाना खाया : खरगोश, आलू, प्याज, पालक।
उन सबने, बस लड़की को छोड़ कर।
लड़की ने, जो अपने पिता के सामने बैठी थी, अपनी प्लेट छुई तक नहीं। उसने निश्चय ही सामने के लॉन में कोई वास्तविक खरगोश देखा रहा होगा अथवा शायद अपने पीछे के आंगन में एक मरी हुई कुतिया।
श्रीमती जी ने कहा :
क्या तुम गर्म दूध पसंद करोगी, डार्लिंग।
वह उनके ह्रदय का टुकड़ा थी।
श्वासावरोध कई कारणों से हो सकता है।
मैं एक सफ़ेद गिलास लिए हुए डाइनिंग रूम में वापस आयी, एक सफेदी से भरा हुआ गिलास और लड़की ने कहा हाँ हाँ हाँ।
लड़की ने बिना एक भी शब्द बोले हाँ कहा।
पाउडर सफ़ेद था।
मैं किचन में प्रतीक्षा करती रही और मैंने अपने लिए एक चाय बनायीं। एक काली चाय और थोड़ी सी ब्रेड।
बार्बीटुरेट जैसे कि पेंटोथॉल, एमिटाल और नेमबूटाल इत्यादि स्ट्राइचनाइन के लिए विशिष्ट विषहारी औषधियां हैं।
जो कुछ मैंने सुना वह कुछ कराह जैसा था।
फिर हाहाकार, कुछ चीखें और फिर मौन, डेजी के मौन जैसा।
टेरेसा टेरेसा टेरेसा टेरेसा
इससे उसे एक सेविका के रूप में उसकी साधारण स्थिति के कारण निश्चय ही डर लगा होगा।
मुझे अभी भी बर्तनों को धो कर सुखाना था, फर्श पर पोछा लगाना था। पौधों को पानी देना था। काँटों को काँटों के साथ रखना था। चम्मचों को चम्मचों के साथ। चाकुओं को चाकुओं के साथ। मैंने अभी भी सारे काम नहीं किये थे, वे सारे काम, ढेर सारे काम जब श्रीमती जी किचन में आयीं।
चाय अभी भी गर्म थी।
काली चाय थोड़ी सी ब्रेड के साथ।
श्रीमती जी कुछ कदम चलीं, मानों जल्दी करना चाह रही हों, मानों अकस्मात् उनका शरीर उनका न रहा हो, मानों वे लड़खड़ाने और एक अस्तित्वहीन ऊँचे कगार से गिर जाने से डर रही हों।
एक रंगहीन, गंधहीन पदार्थ।
और उन्होंने मेरी आँखों में देखा, भद्रजनों। पहली बार और उन सारे वर्षों में एकमात्र बार, श्रीमती जी ने मेरी आँखों में देखा।
स्पष्ट मानसिक अशक्तता।
पुरानी विशेषता।
और जब उन्होंने उन्हें देखा, जब आखिर में उन्होंने मेरी आँखों में देखा, वे एकदम सफ़ेद पड़ गयी।
मैंने उन्हें देखा। वे सफ़ेद पड़ गयी थी।
मेरी आँखों के मध्य में भी एक काली बिंदी थी।
एकदम उनकी अपनी, अर्धविराम।
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सम्पर्क
श्रीविलास सिंह
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Mobile : 8851054620
वृतांत अच्छा लगा , बस आख़िर के गद्य कुछ अच्छे से अभिव्यक्त नहीं कर पाये कि हुआ क्या
जवाब देंहटाएंबेहतरीन 👌
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