पंखुरी सिन्हा द्वारा अनुदित कुछ विश्व के कुछ महत्वपूर्ण कवियों की कविताएँ

 

कविता का वितान व्यापक होता है। अलग-अलग देशों, स्थानीयताओं, बोलियों, भाषाओं के कवि अपनी-अपनी बोली भाषा में कविताएं लिखते हैं जिसमें उनका परिवेशउनके यहां की सामाजिक-राजनीतिक त्रासदी, विडंबना और समय का अंकन होता है। ऐसे में कविता के व्यापक परिप्रेक्ष्य को समझने के लिए हमें विश्व कविता की तरफ मुड़ना पड़ता है। सौभाग्य आज अनेक ऐसे कवि हैं जो स्वतंत्र रूप से कविता लिखने के साथ-साथ उम्दा अनुवाद भी कर रहे हैं। ऐसा ही एक नाम पंखुरी सिन्हा का है। पंखुरी एक चर्चित कवयित्री हैं। साथ साथ वे विश्व के विभिन्न देशों के उन कवियों की कविताएं भी अनुवादित करती रहती हैं जिनका नाम आमतौर पर हमारे सामने नहीं आता। यह काफी दुष्कर काम है। इसके बावजूद भी वे इसे अंजाम देती है। पंखुड़ी ने हाल में ही हंगरी के चर्चित कवि गाबोर ग्यूकिक्स, पोलिश कवयित्री अलेज्सा कुबेर्स्का, जर्मन इतालवी कवयित्री अन्त्जे स्तेहन और वेल्श के  चर्चित कवि डोमिनिक विलियम्स की कविताओं का अनुवाद किया है। पंखुरी सिन्हा ने यह अनुवाद पहली बार के लिए हमें उपलब्ध कराया है। हम आगे भी लगातार पंखुरी सिन्हा द्वारा अनूदित विश्व के कुछ महत्वपूर्ण कवियों को हिंदी में पढ़ते रहेंगे। आज पहली बार प्रस्तुत है पंखुरी सिन्हा द्वारा अनुदित कुछ विश्व के कुछ महत्वपूर्ण कवियों की कविताएँ।

 

गाबोर ग्यूकिक्स

 

 

मूल कविता

 

 

गाबोर ग्यूकिक्स

 

(हंगरी के चर्चित कवि)

 

अनुवाद - पंखुरी सिन्हा

 

 

कहीं नहीं जाती हुई एक बंद गली

 

 

वर्तमान का यह समय ईश्वर निर्मित एक सैंडविच है

भविष्य और अतीत के बीच फंसा हुआ 

 

 

अंधेरा और कुहासा देते हैं सुरक्षा

सड़क पर जलती बत्ती की अपेक्षा 

 

 

फेंस के दूसरी तरफ

खड़ा है सफेदी पुता एक मकान 

 

 

बिना किसी पहरेदार के 

ईश्वरीय हथियारों के धारदार 

चमकीले आईने में, दिखाई पड़ती है 

कहीं नहीं जाती हुई एक बंद गली!

 

 

 

 

एक बारिश के बाद 

 

 

एक बारिश के बाद 

छत से बहता हुआ बरसात का पानी 

तमाम पाइपों से गुजर कर 

इकट्ठा होता है कंकडो के बीच 

छोटे छोटे गड्ढों में 

बहता है जंगली घासों के बीच 

सड़क किनारे 

ज़मीन उसे अपने भीतर नहीं सोखती 

 

  


                                              

 

स्याही 

 

 

आज खुल सकता है वह दूसरा स्वर्ग 

जहाँ तुम मिल सकते हो एलियन से 

 

 

उठ जाती है तुम्हारी कलम की नीब 

ऊपर अन्तरिक्ष की ओर 

स्याही के गहरे लाल, सरहदी बादलों के पार से 

जबकि चीटियों के दल  से सघन 

सिपाही गण, कर रहे हैं स्थान का निरीक्षण

देख रहा है एलियन!

 

 

 

(मूल कविता - गाबोर ग्यूकिक्स, हंगरी के चर्चित कवि, जिन्हे बीट फाउंडेशन का अवार्ड मिल चुका है)

 

 

अलेज्सा कुबेर्स्का

 

 

मूल कविता

 

अलेज्सा कुबेर्स्का

 

(पोलिश कवयित्री)

 

 

एक अजनबी से भेंट 

 

 

बिजली की गति से जैसे टकराए हम 

और खड़े रहे, भौंचक

एक ऐसी अप्रत्याशित मुलाकात 

थी यह! तार्किक दृष्टि से 

असंभव सी मुलाकात

 

 

हो सकता है, हम किसी रेस्तराँ के 

बार में अलग अलग मेजों पर मिले हों 

फिर निकल गए हों बाहर और गुज़रे हों एक दूसरे की बगल से 

किसी सड़क पर

बैठे हों चुपचाप, एक दूसरे की बगल में लोकल ट्रेन में

 

 

यकीनन, हमने आदान प्रदान किया 

कुछ विवादास्पद खयालों का

और साझा किये कुछ खुफिया 

चुप्पे से सपने और विचार

 

 

एक ईमानदार बातचीत ज़्यादा आसान है

उस व्यक्ति के साथ

जिसका कोई चेहरा नहीं होता!

 

 

एक दार्शनिक और एक कवि 

 

 

वो मिले स्वर्ग और धरती के बीच 

एक ऐसी जगह जहाँ समय 

बातें, कथ्य, तत्व, सब हो जाते हैं 

अर्थहीन, अमूर्त के किसी उंचे स्तर पर, उन्होने पार की असल दुनिया की 

मुश्किलें, सुलझाईं उलझनें!

 

 

 

वह ले कर आया एक सफ़ेद कैनवस 

और दार्शनिक फ़लसफ़े 

वह खरीद लाई रंगने के लिए तूलिकायें और मुट्ठी भर सपने 

शब्दों में 

तस्वीर को रंगा उन्होंनें

कितने तरहों के नीले रंग से 

नीले के हल्के गहरे को आज़माते 

उन्होनें उड़ेले अपने ख्याल 

भावनाएँ अपनी, एक दूसरे के भीतर!

 

 

 

बहुत गहरी नीली लकीर से 

लड़के ने बनायी एक रूप रेखा 

ज़िन्दगी की! लड़की ने पृष्ठभूमि को भरा कोमल आसमानी रंग से 

चला कर कूचियाँ साथ साथ 

उन्होनें जोड़े कुछ रंगो के बिन्दु 

आश्चर्य भरे! लड़के की आँखे 

हेज़ल हरी नीली हैं और 

लड़की की पूरी हरी!

 

 

(मूल कविता ---अलेज्सा कुबेर्स्का--पोलिश कवयित्री, दर्जनों किताबें, दुनिया की अनेकों भाषाओँ में अनूदित, कई राष्ट्रीय अंतर राष्ट्रीय पुरस्कार जीत चुकी हैं, दुनिया के अनेकों कविता महोत्सवों में सह भागिता कर चुकी हैं

 

 

अन्त्जे स्तेहन

 

मूल कविता

 

 

अन्त्जे स्तेहन

 

(जर्मन इतालवी कवयित्री)

 

अनुवाद - पंखुरी सिन्हा

 

 

 

अदभुत 

 

कौन नहीं चाहेगा जागना 

सफ़ेद चादरों के बीच 

बर्च के जंगलों में 

एक साधु की तरह 

जो जीता है अपना मौन व्रत 

एक खामोश दुनिया में 

फुसफुसाता हुआ खुद से 

कितना अदभुत!

 

 

कौन नहीं चाहेगा जीना 

गिरते हुए जैसे बिना वज़न 

समय के बीचों बीच 

बर्फ़ की तरह 

मुड़ते अपनी ही ओर 

गुनगुनाते हुए 

कितना अदभुत!

 

 

कौन नहीं चाहेगा 

हरे घास के मैदानों को 

घोड़े पर उछलते हुए पार करना 

वह भी बिना लगाम 

बिना कोई खास आसन लगाये 

चिल्लाते हुए, कितना अदभुत

 

 

और कौन चाहेगा खत्म करना 

अपने दिनों को, जो भरे होते हैं 

किसी थैले की तरह 

चखते हुए चीज़ केक का एक टुकड़ा 

बुदबुदाते हुए, कितना अदभुत !

 

 

 

सीखने का एक रास्ता है सद्भावना

 

 

मर गई है लूसी!

बारह मीटर उँचे एक पेड़ से गिर कर 

हमारे इतिहास के शुरुआत में ही 

मर गई लूसी

और हम सीधे हो गए, तन कर खड़े 

अपनी तार्किकता में करते विश्वास

करते विश्वास अपनी आध्यात्मिक 

क्षमताओं में, एक खास जगह के साथ, कहीं परियों, देवदूतों, और जानवरों के बीच!

फिर भी, हमारा दिल, है एक शोर भरा स्थानीय बाज़ार! बच्चों के हाथों में हैं 

नुची हुई जड़ी बूटियाँ, वो दबा रहे हैं 

मकड़े और चीटियां 

भाग रहे हैं एक दूसरे के पीछे 

पत्थरों और छडियों को थामे हुए 

और मज़बूत मर्दों की तरह 

वो शामिल नहीं होते राजनयिक 

कूटनीतिक वार्ता में 

छोड़ देते हैं मुठभेड़ का व्याकरण 

हमेशा चलते हैं चाल 

प्रतिद्वंद्वी से पहले 

और सूचित करते हैं हमें 

एक ट्वीट के साथ!

 

 

(मूल कविता - अन्त्जे स्तेहन - जर्मन इतालवी कवयित्री, कई पत्रिकाओं के संपादन से जुडी हैं, इटली के 'लिटिल म्यूजियम ऑफ़ पोएट्री' की कार्यकारी सदस्य, और कोरोना के बाद से, रकसैक नामक कविता प्रोजक्ट के तहत दुनिया भर के कवियों का कविता पाठ एवं उनकी प्रदर्शनी करवा रहीं हैं)

 


 

डॉमिनिक विलियम्स


 

मूल कविता

 

डॉमिनिक विलियम्स

 

(चर्चित वेल्श कवि)

 

(अनुवाद - पंखुरी सिन्हा)


 

सुप्रभात

 

सुप्रभात मिस्टर जोन्स, आइए मिलते हैं हमारे मेज़बान से 

मुझे पक्के तौर पर मालूम नहीं 

हम आये है पहले यहाँ 

तैरते हुए चीटियों के साथ 

नाचते हुए पानी के भूतों संग 

 

 

दाँत काटती ठंड से जल गए हैं 

घुटनों के नीचे पैर हमारे 

झुलसे हुए हैं फेफड़े, लहके दहके 

अंग प्रत्यंग! बर्फ़ गिरती रही लगातार 

और चढ़ते रहे हम चढ़ाई ट्रोल्सज़ोन की चोटियों तक, झील के किनारों तक

शुभ प्रभात मिस्टर जोन्स! आईये मिलते हैं अपने मेज़बान से!

 

 

रौशनी जलती है पर करती है निर्माण 

पत्थर के जमे हुए चौकीदार चबूतरॉ का, बर्च का युगों से कांपता, हिलता पेड़, प्रतिध्वनित करता है रा, रा रोर की ध्वनियां! हम तैरते हैं चीटियों के साथ, नाचते हुए पानी के भूतों संग

 

 

याद आता है तुम्हारा मृदु स्वभाव

और बेखौफ़, उच्छृंखल इरादे हमारे 

बोले हुए शब्दों की बावत 

जितने ज़्यादा, उतने सुखकर 

शुभ विहान मेरे दोस्त 

आइए मिलें अपने मेज़बान से 

 

 

और हम अब भी करेंगे मौज मस्ती 

फ़ेसबुक के अपने पोस्टों से 

चाय के बड़े टी पॉट का सच 

भरता है मुझमें विश्वास नया 

तैरते हुए चीटियों, नाचते हुए पानी के भूतों के साथ!

 

 

बाई पोलर सा, दो टुकड़े में बंटा 

मीठा दर्द

खूबसूरत कला बताती है 

एक महान कवि और लोक कथा प्रेमी का पता 

सुप्रभात मिस्टर जोन्स! चलो मिलते हैं 

अपने मेज़बान से!

 

 

ट्रोल 

 

 

तुमने कहा मुझसे साथ ले आने को एक ट्रोल 

वह दैत्य जो रहता है 

पुल के नीचे 

बिस्तर के नीचे का राक्षस 

तुम कैसे चाह या माँग सकती हो 

एक ऐसी कलाकृति 

जो खौफ़ का एक बाज़ारू 

बाज़ारी कृत, उत्पाद हो 

खिलौने सा

मैंने ढूंढा भी, उँची बड़ी सड़को पर 

और पीछे की गलियों में

जाने किन कूचों में मेहनतकश 

लोगों से पूछा और पूछा पुरानी 

प्राचीन चीजों के कद्र दानों से 

लेकिन अकेले जाना था मुझे 

ट्रोल की उस नगरी, उसके इलाके 

उसकी झील में भी, गहराइयों तक 

मैंने दे दिया, खुद को उसे 

होकर कुछ भयाक्रान्त 

जानते हुए खुद को भेद्य 

घिरा हुआ! एक नया बपतिस्मा 

भयानक और खतरनाक

एक और कदम आस्था की ओर 

कोई राक्षस नहीं थे, नहीं था कोई ट्रोल, केवल मुक्ति की चाहत थी 

लोभ जैसी, संभव हैं, हमारे सौ पुनर्जन्म, मैं वापस घर आया 

और ठीक मेरी मेज़ के नीचे 

मुझे मिल गया वह ट्रोल 

वह भूताकार दैत्य 

धोखे की रुपहली परतों में 

और अमानुषिक व्यावसायिक चतुराईयों में 

तुम्हारे लिए ले कर आया मैं 

एक बारहसिंघा 

ताकि हम मुस्कुरा सकें 

और आज मैं वादा करता हूँ 

खुशी को चुनने का वादा!

 

 

(मूल कविता - डॉमिनिक विलियम्स, चर्चित वेल्श कवि, कई कविता पुस्तकें, अनेकों कविता महोत्सवों के आयोजक, स्वीडन के त्रानस फ्रिंज महोत्सव के कार्यकारी सदस्य)  

 

 


पंखुरी सिन्हा



सम्पर्क – 

ई मेल : nilirag18@gmail.com

टिप्पणियाँ

  1. अच्छी कविताओं के अच्छेअनुवाद। प्रस्तुत करने का धन्यवाद।

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