यादवेन्द्र की टिप्पणी 'बमबारी के बीच एक स्वप्निल कविता'।

नासेर बन्धु

 

 

सिनेमा और प्रेम का चोली दामन का संबंध रहा है। भारत में बनने वाली शायद ही कोई फ़िल्म होगी, जिसमें प्रेम हो। यह अलग बात है कि युद्ध मनुष्य की नियति है। और हर युद्ध का अंत शान्ति की प्रत्याशा में होता है। फिलिस्तीन और इजराइल का विवाद इसका एक महत्वपूर्ण उदाहरण है। दोनों  के बीच जंग की एक लंबी दास्तान है। यह दास्तान कब तक चलती रहेगी इसके बारे में कोई भरोसे से कुछ नहीं बता सकता। दुनिया ने अभी हाल में ही फिलीस्तीन और इजरायल के बीच के संघर्ष को प्रत्यक्ष देखा है। ऐसा ही एक युद्ध 2008 में हुआ था जो अनवरत 22 दिन तक चला था। बाईस दिन के इस युद्ध को दो फिलिस्तीनी फिल्मकार भाइयों जिन्हें नासेर बन्धु कहा गया, ने सिनेमाबद्ध किया। पन्द्रह मिनट की छोटी सी इस फ़िल्म पर एक टिप्पणी लिखी है यादवेन्द्र जी ने। तो आइए आज पढ़ते हैं यादवेन्द्र की टिप्पणी 'बमबारी के बीच एक स्वप्निल कविता'

 

 

बमबारी के बीच एक स्वप्निल कविता

 

 

यादवेन्द्र

 

 

2008 के अंतिम दिनों में इजरायल ने गज़ा पट्टी में रहने वाली फिलिस्तीनी आबादी पर अंधाधुंध बमबारी और हिंसा शुरू की जो 22 दिनों तक जारी रही। इस विभीषिका को दो फिलिस्तीनी फिल्मकार भाइयों ने अपनी नज़र से देखा और एक दिन में 15 मिनट की एक बेहद प्रभावशाली लघु फिल्म बना डाली। इजरायल ने अपने इस अभियान को "ऑपरेशन कास्ट लीड" नाम दिया था, नासेर बंधुओं में अपनी फिल्म में इस घटना को पांच साल बाद एक विद्रूप के रूप में याद करते हुए "कंडोम लीड" नाम दिया।

 

 

पर कंडोम जैसे प्रतीक को इस्तेमाल करते हुए नासेर बंधु इस बात के लिए बेहद सतर्क रहे कि एक विध्वंसक घटना और मानवीय त्रासदी को याद करने की उनकी कोशिशों को हल्के फुल्के विनोद के तौर पर लिया जाए - एक इंटरव्यू में वे कहते हैं : हमने कंडोम को निवारण या रोकथाम के प्रतीक के तौर पर सोच समझ कर इस्तेमाल किया...युद्ध हर हाल में रोके ही जाने चाहिएं।

 

 


 

 

एक विवाहित जोड़ा अपने कमरे के एकांत में अंतरंग होने की कोशिश कर रहा था कि अचानक उनकी निजी बातचीत के तमाम शब्दों और ध्वनियों को रौंदता हुआ एक सैनिक विमान शोर करता हुआ सिर के ऊपर से गुज़र जाता है .... ज़ाहिर है ऐसे में उनकी सारी शक्ति किसी तरह जान बचाने की होती है। उसके कुछ मिनटों बाद पति अपनी पत्नी को चूमने को आगे बढ़ता है कि सामने बम कर गिरता है -- पास पहुँचते पहुँचते दो जोड़ी होंठ घबराहट में दूर जाकर धड़ाम से गिरते हैं। थोड़ा हट कर सोयी हुई उनकी छोटी सी मासूम बेटी इन सब शोर शराबे में जग जाती है और जोर जोर से रोने लगती है -- पत्नी बेटी को थपकी देकर सुला देती है और पति की ओर लौटती है कि जहाज फिर से उनको डराता धमकाता ऊपर से गुजारता है। हताश हो कर बिस्तर पर बैठे बैठे पत्नी अपने पैर पति के पैरों से छूती है कि धाँय से एक बड़ा सा बम का गोला उनके घर के एकदम पास गिर कर फटता है बच्ची चौंक कर जग जाती है और डर से रोने लगती है। पत्नी बच्ची को गोद में ले कर हौसला देने लगती है …… किंकर्तव्य विमूढ़ होकर पति कंडोम में मुँह से हवा भर कर गुब्बारे बनाने लगता है …… पूरे कमरे में गुब्बारे ही गुब्बारे भर जाते हैं। पति बालकनी में निकलता है तो देखता है आसपास के सभी घरों में वैसे ही कंडोम के गुब्बारे दिखायी दे रहे हैं और घरों से निकल कर ये गुब्बारे गज़ा की हवा में तैरने लगे हैं। 

 

 


 

 

2008 - 2009 में गज़ा पर इस्राइली हमले के बाईस दिनों की घटनाओं को निहायत अपारम्परिक पर  कवितामयी शैली में बयान करने वाली फ़िल्म "कंडोम लीड"  गज़ा के दो युवा जुड़वा भाइयों अरब और तरज़ान नासेर ने बनायी है और 66 वें कान फ़िल्म महोत्सव के लघु फ़िल्मों के वर्ग में शामिल की गयी थी।

 

 

इस फिल्म के बारे नासेर बंधुओं का कहना है :

 

प्रेम को आप हाशिए पर नहीं धकेल सकते, यह दूसरे तरह का प्रतिरोध है। फिल्म यह बताती है कि युद्ध की मशीनें कितनी भी विध्वंसक क्यों हों, वे इंसानी शरीर और उत्साह को तो तोड़ सकती हैं पर उसकी इच्छाओं और कल्पना शक्ति को नष्ट कर उस पर विजय नहीं प्राप्त कर सकतीं। इस फिल्म में हम इंसान के प्यार करने के बुनियादी अधिकार की बात करते हैं - युद्ध आज रहेगा कल रुक जाएगा पर इंसानी शरीरों को नजदीकी के हक से वंचित कर दिया जाए तो इसके घाव कभी नहीं भर सकते।बल्कि इस बंदिश का असर उल्टा होगा, प्रेम और पैशन वैसे गुब्बारों में तब्दील हो जायेंगे जिन्हें मौका मिलते ही फूटना ही फूटना है। हमने यह फिल्म भले इजरायली कब्जे वाले गज़ा पट्टी पर बाईस दिनों की भयानक बमबारी पर बनाई हो पर यह दुनिया में सभी युद्धग्रस्त इलाकों की कहानी है।

 

 

नासेर बंधु आगे कहते हैं कि प्यार किसी भी इंसान का बुनियादी हक़ है और इसको दुनिया के नक़्शे से नहीं मिटाया जा सकता है -- दरअसल ऐसी कठिन स्थितियों में प्रेम करना अलग पर अपने ढंग का स्वप्निल और काव्यात्मक प्रतिरोध है।

 


 

 

 शारीरिक अंतरंगता युद्ध की विभीषिका के बरक्स सुरक्षा का भावनात्मक कवच और आश्वस्ति प्रदान करती है, यह सर्वविदित है। 

 

 
जिज्ञासु पाठक यदि देखना चाहें तो यह फ़िल्म देख सकते हैं : 

https://www.youtube.com/watch?v=LNkn552kEYA&ab_channel=ArabA.Nasser

 

 


 

 

सम्पर्क


मोबाइल  9411100294

 

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