फरहाद आज़ाद की कहानी 'एक चुम्बन नदी के किनारे'

 

हरेक व्यक्ति की जिन्दगी में कुछ अहसास ऐसे होते हैं जो ताजिंदगी भुलाए नहीं भूलते। ये अहसास जीवन का अटूट हिस्सा बन जाते हैं। और अगर यह अहसास प्रेम का हो तो फिर क्या कहने। अफगान कहानीकार फरहान आज़ाद ने अपनी कहानी 'एक चुम्बन नदी के किनारे' इन मधुर और प्यारे अहसासातों को केन्द्रित करते हुए लिखी है। पहली ही पंक्ति से जैसे हम कहानी से बंध जाते हैं और फिर कहानी और पाठक साथ साथ अन्त तक बने रहते हैं। यही इस कहानी की खूबसूरती भी है। कवि कहानीकार श्रीविलास सिंह ने अनुवादों की श्रृंखला के महत्त्वपूर्ण क्रम में इस बार फरहान आज़ाद की कहानी का उम्दा अनुवाद किया है। आइए आज पहली बार पर पढ़ते हैं फरहाद आज़ाद की कहानी 'एक चुम्बन नदी के किनारे'। इसका हिन्दी अनुवाद किया है श्रीविलास सिंह ने।



(अफगान कहानी)

'एक चुम्बन नदी के किनारे'


फरहाद आज़ाद 

हिंदी अनुवाद : श्रीविलास सिंह 


मैं कार से बाहर निकला। मैं नर्वस महसूस कर रहा था और मेरी हथेलियों में पसीना आ रहा था। मैं इसके पूर्व किसी संगीत कार्यक्रम में कभी नहीं गया था। मैं कभी किसी बड़े शहर में घर से बाहर नहीं गया था। मैं एक छोटे क़स्बे से गर्मी की छुट्टियों में यहाँ अपने परिवार से मिलने आया था। 


मैंने कार की खिड़की में अपने बाल देखे, यह सुनिश्चित करते हुए कि एक भी बाल इधर उधर न हो। मैं एक काला सूट पहने हुए था और उसके साथ एक काली सफ़ेद धारीदार रेशमी टाई जिसे पहनने के लिए मेरे चचेरे भाई फरज़ाम ने जिद की थी। जैसे ही हमने “मस्टैश कैफे” (Moustache Cafe) नाम की ईमारत की ओर चलना शुरू किया, मैंने लोगों को उसके भीतर जाते हुए नोटिस किया। हर कोई अपने बेहतरीन परिधान में था, अधिकांशतः गहरे रंगों के। 


हम अंततः कैफे की विशाल इमारत में दाखिल हो गए। वहां नीम अँधेरा था। हर मेज पर बस एक छोटी सी मोमबत्ती जल रही थी। मेरा चचेरा भाई, फरज़ाम काले घुंघराले बालों वाली परिचारिका के पास गया। वह हमें कैफे के पीछे के हिस्से में एक छोटी टेबुल तक ले गयी। वह मुझे देख कर मुस्करायी और आँख दबाती हुई तेजी से चली गयी। 


मेरे चचेरे भाइयों फरज़ाम और महमूद ने इधर उधर दृष्टि डाली और अपनी कुर्सियों पर बैठ गए। फरज़ाम ने मार्लबरो रेड का अपना पैकेट निकाला जो उसने अपने डैड का झटक लिया था। उसने हमें भी सिगरेट ऑफर की। महमूद ने एक सिगरेट ले ली लेकिन मैंने कहा, “नहीं, मुझे धूम्रपान से दिक्कत होती है।”


महमूद ने अपनी आँख से हमारी बगल की टेबुल की ओर इशारा किया। वह आकर्षक लड़कियों का एक समूह था। मैंने उनकी ओर देखा। फरज़ाम ने मेरी ओर देखा और हलके से मुस्कराया। 


तिकोने अकार के स्टेज पर एक व्यक्ति एकॉस्टिक गिटार पर एक परिचित सी धुन बजा रहा था। कोई उस की ओर ध्यान नहीं दे रहा था जबकि हर कोई अन्य दूसरे को ताक रहा था। कभी कभार आँखें टकरा जाती थी। 


फरज़ाम उठा और उसने कहा कि वह बार से कुछ पीने के लिए लेने जा रहा था। उसने महमूद और मुझसे पूछा कि हमें क्या चाहिए। महमूद ने एक केप कॉड मंगवाया। फिर फरज़ाम ने मुझ से पूछा कि मुझे क्या चाहिए। मुझे नहीं मालूम था कि क्या लेना चाहिए। मैंने जीवन में कोई ड्रिंक नहीं लिया था। 


मैं बड़बड़ाया, “जो कुछ भी तुम ले रहे हो।”


फरज़ाम मेरी ओर देख कर मुस्कराया और बोला, “मैं तुम्हारे लिए कुछ ऐसा लाऊंगा जो तुम पसंद करोगे।”


मगर कैसे? मैं चिंतित था। मैं एक छोटे से कस्बे से आया था और कभी भी किसी अफगान या ईरानी कार्यक्रम में नहीं गया था। मैंने न कभी धूम्रपान किया था न ही एल्कोहल लिया था। मैंने अपनी दुनिया में कभी इतने सारे लोगों को एक जगह इकठ्ठा होते नहीं देखा था। यह एक नया दृश्य था। क्षण प्रति क्षण मैं कुछ सामान्य सा होता महसूस कर रहा था। 


फरज़ाम ड्रिंक्स के साथ वापस आया और उसने उन्हें मेज पर रख दिया। मैंने गिलासों की ओर देखा और सूंघने का प्रयत्न किया कि उनमें क्या था। उनमें से तीव्र महक आ रही थी। 


फरज़ाम हँसा, “पियो, ड्रिंक लो।”


मैंने वैसा ही किया। उसका स्वाद कड़वा था और वह जलाता हुआ मेरे गले से नीचे उतरा। मैंने तत्काल अपने सिर को पीछे की ओर झटका दिया। मेरे दोनों चचेरे भाई मेरे चेहरे पर आए विचित्र भाव देख कर मुस्कराये। 


फरज़ाम ने कहा, “यह लॉग आइसलैंड आइस टी है।"


मैंने थोड़ा और पिया और मेरा सिर कुछ हल्का लगने लगा। मैंने स्वयं को हल्का फुल्का महसूस किया। संगीत कुछ अलग सा महसूस होने लगा। अब धुवाँ मुझे उतना परेशान नहीं कर रहा था। लड़कियों का एक समूह हमारी मेज की तरफ आया। उनमें से एक महमूद से काबुली लहजे में बतियाने लगी। 


फिर उसने फरज़ाम, जो धूम्रपान और ड्रिंक का आनंद ले रहा था, से कहा, “सलाम!”


फिर उसने अपनी हरी आँखें मुझ पर डाली और मुझसे कहा, “सलाम!”


महमूद ने उससे और उसकी मित्रों से मेरा परिचय कराया। मैं उनकी शानदार आँखों में कैद सा हो गया था। मुझे स्मरण नहीं रहा कि किसका क्या नाम था लेकिन मेरा ध्यान उनमें से एक पर अटक गया। वह लम्बा काला लिबास पहने हुए थी जो उसकी आँखों के रंग से मैच कर रहा था। उसकी मुस्कराहट फरिश्तों जैसी थी। क्या मैं प्रेम में था?


लड़कियां अपनी मेज पर वापस चली गयीं। मैं उस लड़की पर से अपनी निगाहें नहीं हटा सका जिसने मुझे आकर्षित किया था। मुझे नहीं पता था कि अफगान लड़कियां इतनी प्यारी भी होती हैं। मेरा परिचय बस दक्षिण की सादा चेहरे वाली और भारी आवाज वाली लड़कियों से था। 





संगीत रुक गया। एक बैंड स्टेज पर आया और उद्घोषक ने गायक का परिचय दिया। गायक ने तेजी से स्टेज पर प्रवेश किया और भीड़ ने उत्तेजना के साथ उसका स्वागत किया। उसने तीव्र गति के एक गीत से शुरुआत की। लोग डांस फ्लोर पर उतर आये। शीघ्र ही वह पूरा पूरा भर गया था।


अफगान लड़कियों का समूह पास आया, उनमें से एक ने महमूद का हाथ पकड़ लिया और वे डांस फ्लोर की ओर चले गए। महमूद लड़कियों के साथ सामान्य था, वह 1930 के हॉलीवुड नायक जैसा लग रहा था, कटाव लिए जबड़ा, बड़ी आँखें, चौड़े कंधे और उन पर फैले रेशमी बाल, टॉयरोन पॉवर के अवतार जैसा। 


फरज़ाम शांत था और किसी प्रोफ़ेसर जैसा दिख रहा था, दुबला पतला और लम्बा। वह अपने ड्रिंक्स और धूम्रपान में लगा रहा। वह मुस्कराया और उसने मुझे अन्य सब के साथ जाने को कहा। 


मैंने अपना सिर हिलाया, “नहीं।”


मैंने पहले कभी नृत्य नहीं किया था और इस तरह के संगीत के साथ तो बिलकुल नहीं। दूसरों को दूर से नृत्य करता देखना ही पर्याप्त था। फरज़ाम दूसरे ड्रिंक के लिए जा रहा था और उसने मुझ से पूछा कि क्या मुझे भी और ड्रिंक चाहिए। 


मैंने कहा, “नहीं, अभी मैंने अपना पहला ही समाप्त नहीं किया है।”


वह बार की ओर चला गया और मैं अकेला बैठा रहा। मैंने अपनी आँख की कोर से देखा कि कोई मुझे देख रहा था। यह काली आँखों वाली वही लड़की थी। वह अकेली बैठी हुई थी। मैं उसकी ओर देख कर मुस्कराया और जवाब में वह भी मुस्करायी। मैं उसके पास जा कर उससे बात करना चाह रहा था। लेकिन यदि वह मुझे विचित्र अथवा उबाऊ समझती तब?  मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि मुझे क्या करना चाहिए। मैंने लांग आइलैंड आइस टी के कुछ और घूँट लिए और एक गहरी साँस ली। मैं उठ कर उसकी टेबुल पर चला गया। 


मैंने कहा, “सलाम चे तूड़ी (सलाम, कैसी हो)?”


“सलाम,” उसने जवाब दिया। 


मैं उससे संगीत कार्यक्रम के सम्बन्ध में फारसी में बात करने लगा। वह बस अपना सिर हिलाती रही। मैंने उससे पूछा कि क्या गड़बड़ है।  उसने फिर अपना सिर हिलाया। 


अंततः मैंने उससे अंग्रेजी में कहा, “जो मैं कह रहा हूँ क्या वह तुम्हें समझ में नहीं आ रहा ?”


“नहीं, मैं नहीं समझ पा रही,” उसने अंग्रेजी में कहा। 


“क्या तुम्हें फारसी नहीं आती?” मैंने उससे पूछा। 


उसने अंग्रेजी में जवाब दिया, “नहीं मैं फारसी नहीं बोलती, मैं पश्तो बोलती हूँ।”


मैं मुस्कराया और अपनी कमजोर पश्तो में पूछा, “सेंग हे (कैसी हो)?”


वह हँसी और बोली, “झे खे’म (मैं अच्छी हूँ)”


मैंने उससे अंग्रेजी में पूछा कि क्या वह कंधहार से है। उसने स्वीकार किया। हम थोड़ा और बात करने लगे लेकिन जोर से बज रहे संगीत के कारण सुन पाना मुश्किल था। 




मेरा चचेरा भाई फरज़ाम अपने लिए दो और ड्रिंक्स के साथ वापस आ गया था और उसने देखा कि मैं काली आँखों वाली लड़की से बात कर रहा था। वह मुस्कराया। 


मैंने उससे पूछा कि क्या उसे कुछ पीने को चाहिए। उसने इनकार किया। उसने मुझसे पूछा कि क्या मैं डांस करना चाहता हूँ। मैं थोड़ा डरा हुआ था। मुझे नहीं पता था कि क्या करना चाहिए। मैंने पहले कभी डांस नहीं किया था। वह उठ खड़ी हुई और उसने अपना हाथ मेरी ओर बढ़ाया। मैंने हिचकिचाते हुए उसे पकड़ लिया और उठ खड़ा हुआ। वह मुझे डांस फ्लोर की ओर ले गयी। 


वह एक अच्छी डांसर थी। मैंने उसकी नक़ल करते हुए साथ देने का प्रयत्न किया और वह लगातार मुस्कराती रही। मैं धीरे-धीरे बेहतर हो रहा था, कम से कम अपने मन में। एक धीमा गीत बजने लगा, हमने एक दूसरे को देखा और दोनों ने थोड़ा अवकाश लेने का निर्णय लिया। हम वापस टेबुल पर आ गए। 


उसे प्यास लग रही थी और उसने पानी के लिए कहा। मैं बार तक जा कर उसके लिए पानी लाया। हम कुछ और देर तक बात करते रहे। उसे आश्चर्य हो रहा था कि छोटे कस्बों में जीवन कैसा होता होगा। हमारी बातचीत दूर पास आती जाती रही। मुझे उसकी साहित्य की व्यापक जानकारी से प्रेम हो गया था। उसके प्रिय लेखक पुश्किन थे और उनकी कहानी ‘हुकुम की बेगम।’


बाद में हमने और नृत्य किया और इसके पूर्व कि मुझे पता चले कार्यक्रम समाप्त हो गया। मैंने महमूद और फरज़ाम को ढूढने के लिए इधर उधर निगाह डाली। महमूद चार लड़कियों के साथ हँसता हुआ फ्लर्ट कर रहा था। फरज़ाम अपनी मेज पर था अपने ड्रिंक और अंतिम सिगरेट के साथ। 


उसने लगभग कुछ कहते हुए से मेरी आँखों में देखा लेकिन मैं नहीं समझ सका कि वह क्या था। मुझे महसूस हुआ कि मैं इस लड़की को जिंदगी भर से जानता हूँ। संभवतः मैं उसे जानता था। हम महमूद और अन्य लड़कियों की ओर चल दिए। निर्णय हुआ कि पोटोमैक नदी के किनारे एक चक्कर लगाया जाये। 


इस तरह हम संगीत कार्यक्रम से बाहर आ गए। महमूद कार चला रहा था और मैं आगे उसकी बगल में बैठा था। फरज़ाम पीछे था और नशे में बेहोश सा होता जा रहा था। हम प्रार्थना कर रहे थे कि वह कहीं उलटी न कर दे। लड़कियां अपनी कार में हमारे पीछे थीं। फरज़ाम की जिद पर हम एक स्टोर पर सिगरेट लेने के लिए रुके। अंततः हम अपने गंतव्य तक पहुँच गए। 


यह एक खूबसूरत रात्रि थी और कोई भी थका हुआ नहीं महसूस कर रहा था। केवल फरज़ाम को पीछे कार में छोड़ दिया गया था। उसने अपनी सिगरेट का नया पैकेट खोला और सिगरेट पीने लगा। 


मैंने लड़की को ढूंढा। वह अपने लम्बे बालों के साथ सदैव की भांति शानदार लग रही थी। मैंने उसे प्रभावित करने को कहा, “तुम्हारे बाल बहुत ‘तोर’ हैं,” पश्तो में ‘काले’। 


“जेमा वेस्तान दिर तोर देह,” वह हँसी और उसने पश्तो में जवाब दिया। 


मैंने कहा, “मेरी माँ ने मुझे बताया था कि जब वे काबुल में एक छोटी लड़की थी, उनके माता-पिता उन्हें काबुल नदी के किनारे ले जाया करते थे और पानी में पूरे चाँद का प्रतिबिम्ब देखा करते थे।”


उसने कहा, “हो सकता है हम किसी रात काबुल में उसे देखने जाएँ।”





उस क्षण हमारी आँखे एक दूसरे से जा मिली। चाँद का प्रकाश उसकी काली आँखों और होठों के सौंदर्य को और बढ़ा था। क्या मैं किसी ऐसे के प्रेम में पड़ चुका था जिससे मैं बस कुछ घंटे पूर्व ही मिला था ? मेरा एक अंश मुझे उसका चुम्बन लेने को कह रहा था। इसके पूर्व कि मैं इसे जान पाता उसने अपने होंठ मेरे होठों पर रख दिए थे। 


मैंने लोगों को हमें देखते हुए महसूस किया। महमूद और अन्य लड़कियां मुस्करा रहे थे। मुझे लज्जा सी आ रही रही थी लेकिन मैं उसे जाने नहीं देना चाहता था। सभी को जाना था। सुबह के चार बज रहे थे। 



मैं उससे पुनः मिलना चाहता था लेकिन मेरी  दोपहर की फ़्लाइट थी। मैं कार में घुस गया और मैंने कागज का एक टुकड़ा ढूंढा। अपना फोन नंबर और पता उस पर लिखा। मैंने उससे उसका पता और फोन नंबर पूछा।  उसने कहा कि उसके माँ-बाप उसके लिए किसी अजनबी लडके का फोन या पत्र आना बहुत पसंद नहीं करेंगे। उसने वादा किया कि वह स्वयं मुझे पत्र लिखेगी। 


मैंने उसकी ओर देखा और कहा, “दा खुदाए पा अमान।”


यह लगभग तीन वर्ष पूर्व की बात थी। मुझे उसकी ओर से कोई पत्र नहीं मिला। मैं परिवार से मिलने के लिए कई बार वाशिंगटन डी. सी. के इलाके में आया और अनेक बार महमूद से उसके बारे में पूछा। उसने बताया कि वह अपने परिवार के साथ कैलिफोर्निया चली गयी है। उसे उसके बारे में ठीक-ठीक नहीं पता था और यह भी नहीं मालूम था कि किस प्रकार उससे संपर्क हो सकता था। 


मुझे सदैव उसकी स्मृति बनी रही, वह कहाँ है और हमारे मध्य क्या हुआ था। उसने पत्र क्यों नहीं लिखा अथवा फोन क्यों नहीं किया। उसने अपनी काली आँखों से मुझ पर एक जादू सा कर दिया था। 


शायद ऐसा होना नियति में नहीं था? हो सकता है वह सब बस भ्रम रहा हो ? संभवतः वह नदी किनारे का एक चुम्बन मात्र था। 



(यह कहानी “अफ़ग़ान कम्युनिकेटर” पत्रिका के जुलाई-अगस्त, 1998 अंक में पहली बार प्रकाशित हुई थी।)


(इस पोस्ट में प्रयुक्त पेंटिंग्स विजेन्द्र जी की हैं।)






सम्पर्क

मोबाइल : 8851054620

टिप्पणियाँ

  1. कहानी का परिवेश अपरिचित होने के बावजूद मन पर एक छाप छोड़ गई. असल में परिवेश नहीं, थीम महत्वपूर्ण होती है. प्यार का कोई परिवेश नहीं होता. यह कहीं भी, कभी भी घटित हो सकता है. प्रेमी प्रेमिका के मिलने के समय से नहीं, प्रेम की पहचान उसकी उत्कटता और तीव्रता से होती है. कुछ क्षणों की अनुभूति अगर लंबे समय तक स्मृति में रहती है और दुबारा मिलने की कशिश बरकरार रहती है तो वह प्रेम ही सच में प्रेम है. सुंदर कहानी का सुन्दर अनुवाद! कुछ वाक्यों के हिंदी अनुवाद दिये हैं, कुछ के नहीं. पश्तो न समझने वालों को अनुमान से समझना पड़ता है.

    जवाब देंहटाएं
  2. कहानियों को पढ़ते हुए मैं उनका हिस्सा बन जाता हूँ । माने कि मैं वहाँ बैठा हुआ आसपास देख रहा हूँ । फरहाद आज़ाद की कहानी ने यही असर किया । मुझे वह पात्र पसंद आया जो चाय के सिवा कोई beverages नहीं पीता । सिर्फ़ एक ख़ूबसूरत युवती की काली आँखें इन्हें भा गयीं ।
    एक-दूसरे के फ़ोन नंबर लिये लेकिन फ़ोन से बात न हो सकी । चिट्ठी की इंतज़ार दोनों तरफ़ से होगी । श्रीविलास सिंह ग़ज़ब के अनुवादक हैं । मेरे लाल जी [पिता जी] को हिन्दी, अंग्रेज़ी, उर्दू, पश्तो और फ़ारसी भाषाएँ आती थीं । हिन्दुस्तान में आकर पंजाबी भाषा भी सीख ली । वे ख़ुश ख़त से उर्दू लिखते थे । उनकी उर्दू ज़ुबान का असर मुझ पर पड़ा । लाल जी ऑल इंडिया रेडियो की उर्दू सर्विस सुना करते । मोबाइल टॉवर्स के आने के बाद मीडियम वेव पर उर्दू सर्विस सुनाई नहीं देती । महरूम हो गया हूँ ।

    जवाब देंहटाएं

एक टिप्पणी भेजें

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

मार्कण्डेय की कहानी 'दूध और दवा'

प्रगतिशील लेखक संघ के पहले अधिवेशन (1936) में प्रेमचंद द्वारा दिया गया अध्यक्षीय भाषण

हर्षिता त्रिपाठी की कविताएं