अन्त्जे श्तीन की कविताएं

 

अन्त्जे श्तीन


वैसे दीवार को मनुष्य ही ईंट, गारे, सीमेंट और अपने हुनर से निर्मित करता है लेकिन निर्मित हो जाने के बाद दीवार अपने को ऊंचा देख कर अहंकार में डूब जाती है। खुद की हैसियत को भूल जाती है। इसी क्रम में वह दीवार आदमी को आदमी से अलग करने का काम करने लगती है। बर्लिन की दीवार को भला कौन भूल सकता है। यह तो मनुष्य की भावनाएं और संवेदनाएं थीं जिसने उस अटूट सी लगने वाली दीवार को पूरी तरह से जमींदोज कर दिया। चर्चित जर्मन-इतालवी कवयित्री अन्त्जे श्तीन की कविताएं इस दीवार के ढहने की और मनुष्यता के विजय की कहानी बयां करती है। अन्त्जे श्तीन की कविताओं का उम्दा अनुवाद किया है हिन्दी की चर्चित कवयित्री पंखुरी सिन्हा ने। आइए आज पहली बार पर पढ़ते हैं अन्त्जे श्तीन की कविताएं।



मूल कविता

अन्त्जे श्तीन की कविताएं

(चर्चित जर्मन-इतालवी कवयित्री)


अनुवाद - पंखुरी सिन्हा



वह पुरानी दीवार


बर्लिन की वह पुरानी दीवार

नामुमकिन था जिसे फांदना 

ढ़ह नहीं गई अपने आप! 

उन्होंने बेचा उसे 

टुकड़े टुकड़े, तोड़े सीमेंट के 

वृहदाकार हिस्से, जिनकी नुमाईश की 

गई, जीत के पुरस्कारों की तरह 

संग्रहालयों में, जबकि उसकी 

छोटी छोटी ईंटें, खून से लिपटे 

हथियारों के साथ साथ 

बिखरी हुई हैं दुनिया भर में 

और बढ़ जाती हैं अपनी संख्या में 

पूरे विश्व में लगातार बढ़ती 

युद्ध की महामारी के साथ!



चिंतनशील, तर्क संगत, विरोधी 

सब उर्जाएं, कब्ज़े में जैसे 

पुरातन नैसर्गिक प्रवृत्तियों के 

और फिर भी, हम सब चाहते हैं 

जैसे केवल शान्ति 

अच्छे और बुरे लोग 

जैसे फँसाते हैं, एक को 

दूसरे के आगे! जैसे एक दूसरे 

को विकर्षित करते चुम्बक 

के दो टुकड़े! शांति एक

शब्द, ज़मीन पर फेंका हुआ! 

उलट कर औंधा किया हुआ! 

मरोड़ा हुआ, अपमानित! 

पीड़ा में, बह रहा हो 

खून जिससे, वर्षों से हो 

रहा हो बलात्कार जिसका! 

दीमक खा चुके हों जिसे 

जिसका बचा हो केवल 

खाली खोल! 

 


खुशी 


ताज़ी उड़ेली बियर पर 

चिंता मुक्त फेनिल झाग 

बुलबुलों की एक खुशनुमा 

उत्तेजित भीड़, बना कर 

उठाती है एक चमकीला ताज! 



कर बन्द आँखे 

मुँह में भर कर प्यार 

पी जाईये आखिरी 

घूँट तक! 



ग्लास की सतह पर चिपकी 

धातु की सी एक चमकीली 

झालर, बुलाती है उत्सव मनाने 

के आनन्द को, जो कभी नहीं 

होता पुराना! जब तक एक 

कुशल हाथ लपक कर 

थाम सकता है बियर की 

एक मग, और उछाल दे 

सकता है धुलने को 

डिश वाशर में! 



तीसरी लहर, लाल दायरा 


गगनचुम्बी इमारतों से दिन 

एक मंज़िल के बाद दूसरी 

दुहराती किसी स्लेटी आईने 

में, पारदर्शिता के, समय

फ़िसलता, एक नदी में मछली सा 

पकड़ा गया अन्ततः झुर्रीदार 

उंगलियों से, रहना भीतर हादसे के 

बस एक क्लिक की निकासी के साथ 

ढूढ़ते खुशी का एक रंग उड़ा स्वरूप!



पागल होने की कगार पर 

मैं कांपती उछलती हूँ किसी 

मादा भेड़िये सी केवल उस सन्नाटे सी चुप्पी से 

बचने के लिए जो छा जाती है 

डिनर के बाद, थाली में रखी 

मछली के काँटों पर ! नेटफ़्लिक्स पर 

लगाए एक आँख, दूसरी गड़ाये 

इंस्टाग्राम पर, संदेश, चैट, पी एम 

डी एम, कितना चमकीला है किसी 

जाल में उलझा सा चाँद, बिखेरता 

अपनी रौशन किरणे मेरे मसहरी 

लगे बिस्तर के चारों ओर! 


इस सब के बीच, पूरे आत्म विश्वास के साथ

चुपचाप बढ़ते हैं मेरे नाखून

सपने देखती किसी चिड़िया की तरह 

जो देती है अनुभव के अंडे! 



पंखुरी सिन्हा 



संपर्क


मोबाइल : 9508936173


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