नील कमल की कविताएँ
नील कमल |
कवि परिचय :
नील
कमल
जन्म
: 15 अगस्त 1968 (वाराणसी, उत्तर प्रदेश)
शिक्षा
: स्नातकोत्तर (प्राणि-विज्ञान)
सम्प्रति
: पश्चिम बंगाल सरकार के एक विभाग में प्रशासनिक पद पर कार्यरत ।
लेखन
:
कविताएँ,
कहानियाँ, समीक्षाएँ एवं स्वतन्त्र आलोचनात्मक गद्य हिन्दी की महत्वपूर्ण साहित्यिक
पत्रिकाओं में प्रकाशित ।
प्रकाशन
:
कविता
संग्रह:
1.
हाथ सुंदर लगते हैं (2010)
2.
यह पेड़ों के कपड़े बदलने का समय है (2014)
सम्पादित
पुस्तक:
1.
हिंदी कविता: संभावना के स्वर (2017)
आलोचना
पुस्तक:
1.
गद्य वद्य कुछ (2018)
मृत्यु इस जीवन का अन्तिम सत्य है। फिर सवाल यह कि यह जीवन क्या है? जीवन दरअसल उस जद्दोजहद का नाम है, जो मृत्यु से लगातार संघर्ष करता रहता है। जीवन की खूबसूरती यही जद्दोजहद है। नील कमल ने इस जद्दोजहद से जुड़ी कुछ बेहतरीन कविताएं लिखी हैं। एक तरह से कहें तो यह कवि की आपबीती है। इसीलिए इन कविताओं में दुर्लभ सघनता है। नील कमल कुछ उन कवियों में से एक हैं जो चुपचाप लिखते हैं। कम लिखते हैं, लेकिन उम्दा लिखते हैं। आइए आज पहली बार पर पढ़ते हैं नीलकमल की कुछ नई कविताएं।
नील कमल की कविताएँ
'अंतिम वक्तव्य' और अन्य कविताएँ
अंतिम वक्तव्य
मृत्यु
के जल में
डोलती
है जीवन की नाव
जर्जर,
कई-कई छिद्रों वाली।
कर्कश
हुआ जाता है
साँसों
का वाद्य अति प्राचीन।
पीठ
की तरफ हाथ बाँधे
खड़ी
हैं उम्मीदें, उदासी ओढ़ कर।
काम
जब नहीं आती एक भी महौषधि
बीमार
की फूलती-पिचकती छाती, देती है
जीवन
के पक्ष में अंतिम वक्तव्य।
प्रतीक्षा ..
नाभि
से उठती है कराह -
पसलियों
में खरखराती हुई,
काँपता
है पुतलियों में जीवन जल।
कोई
नहीं जानता है,
अगली
साँस तक जा कर लौट आयेगा -
प्राण
बन सीने में दौड़ता रहा जो वायु।
मृत्यु
की एक-एक पुकार को
अनसुना
करता, अभी तक थामे हुए है
बीमार,
खड़-खड़ करती जीवन पतंग।
मृत्यु
के देवता को
अभी
करनी होगी और प्रतीक्षा।
बीमार दिनों में..
एक
हल्की खाँसी में
उखड़ने
लगी हैं स्त्री की साँसें।
छाती
सहला रहा हूँ मैं उसकी,
जिसे
अपने सबसे अल्हड़ दिनों में भी
रहा सदा संकोच मुझे छाती से लगाने में।
सूख
चुके उसकी छाती के दोनों अमृत-कुंड,
यहाँ
बचा है जर्जर हड्डियों का काँपता पिंजर।
स्त्री
को अच्छा लग रहा है
मेरा
उसे इस तरह छूना, जब
कोई
नहीं पास उसके एक मेरे सिवाय।
उसकी
नाभि के ठीक नीचे
वहाँ
जहाँ जाँघों की रेखा ऊपर को आती है,
एक
चमकता हुआ काला मोटा तिल रहता है -
यह
जाना मैंने उसका गू-मूत्र साफ़ करते हुए
उसके
सबसे बीमार दिनों में।
अन्तिम सफर..
माघ
पूर्णिमा का अभिमानी चाँद
खाड़ी
के खारे जल में काँपता है।
पारे
की चमक वाली चाँदनी में
नहा
उठता है मैनग्रोव का जंगल।
नदी
के कलकल छलछल के बीच
एक
नाव माँगती है कोई सुरक्षित तट।
हवाओं
में तैरती आती है
एक
थके पंछी की कातर पुकार
वक़्त
कम है, पहुँचो जल्दी।
दूर
उधर डूबती जाती है उसकी नब्ज़
उसके
अन्तिम सफर के निमित्त ही
चाँद
का यह आयोजन।
अमृत..
तुम्हारी
नाभि का अमृत
धारण
किये अपनी धमनियों में
जीवित
है मनुष्य इस पृथ्वी पर।
तुम्हारी
लौ को
जलाये
अपने हिया में
घूमता
इस छोर से उस छोर।
तुम्हारी
ही मिट्टी ने
धूप
और बारिश में
गढ़ा
है सृष्टि का आकार।
तुम
हो, ओ स्त्री,
तेइसवें
क्रोमोज़ोम के जोड़े का
अविभाज्य
आधा, अनश्वर।
तुमने
जने हैं पृथ्वी पर कई ईश्वर
रहोगी तुम ईश्वर की मृत्यु के बाद भी।
सम्पर्क
244, बाँसद्रोणी प्लेस,
कोलकाता-700070.
मोबाइल-(0)9433123379.
सुन्दर सृजन
जवाब देंहटाएंमार्मिक कविताएँ। नीलकमल जी की काव्य भाषा संयत है और मृत्यु पर लिखना थोड़ा कठिन भी है, पर इन कविताओं में मृत्यु के सघन बिम्ब हैं। उन्हें अच्छी कविताओं के लिए बधाई।
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