फ्रांज़ काफ़्का की कहानी 'भ्रातृहत्या'
Franz Kafka |
फ्रैंज काफ्का की रचनाऍं आधुनिक समाज के व्यग्र अलगाव को चित्रित करतीं हैं। समकालीन आलोचकों और शिक्षाविदों, व्लादिमिर नबोकोव आदि का मानना है कि काफ्का 20 वीं सदी के सर्वश्रेष्ठ लेखकों में से एक है। इसी के चलाते "Kafkaesque" (काफ्काएस्क) अंग्रेजी भाषा का हिस्सा बन गया है जिसका उपयोग 'बहकानेवाला', 'खतरनाक जटिलता' आदि के संदर्भ में किया जाता है। 'भ्रातृहत्या' इसी तरह की एक कहानी है। मूल जर्मन से इस कहानी का अंग्रेजी अनुवाद किया है किला और एडविन म्यूर ने। और इससे हिन्दी अनुवाद किया है जाने माने अनुवादक श्रीविलास सिंह ने। तो आइए आज पहली बार पर पढ़ते हैं फ्रांज़ काफ़्का की की कहानी 'भ्रातृहत्या'।
भ्रातृहत्या
फ्रांज़ काफ़्का
अंग्रेजी
अनुवाद : विला और एडविन म्यूर
हिंदी
अनुवाद : श्रीविलास सिंह
साक्ष्य
दर्शाता है कि हत्या इसी तरह से की गयी :
स्मर,
हत्यारे ने रात्रि की धवल चांदनी में लगभग नौ बजे के आसपास उस कोने में अपनी जगह ले
ली जहाँ उसके शिकार वेस को, उस गली से, जिसमें
उसका कार्यालय था, हो कर उस गली में वापस आना था जहाँ वह रहता था।
रात्रि
की हवा में कंपकपा देने वाली ठंढक थी। फिर भी स्मर ने मात्र एक पतला, नीला सूट पहन
रखा था, जैकेट के बटन भी खुले हुए थे। उसे ठंढक नहीं महसूस हो रही थी; साथ ही वह निरंतर
गतिशील था। अपने हथियार, जो आधा संगीन और आधा रसोई के चाकू जैसा था, को वह एकदम खुले
रूप से अपने हाथ में कस कर पकड़े हुए था। उसने चाँद की रोशनी में छुरे को देखा; धार
चमक रही थी, लेकिन इतना स्मर के लिए पर्याप्त नहीं था; वह उसे तब तक फुटपाथ पर मारता
रहा जब तक चिंगारिया नहीं निकलने लगीं; यद्यपि उसे संभवतः इस बात का बाद में खेद हुआ
और वह एक पैर पर खड़े हो आगे की ओर झुक कर, छुरे को ठीक करने के लिए उसको वायलिन की
बो की तरह अपने जूते के तल्ले पर रगड़ने लगा और अपने जूते की आवाज, साथ ही साथ वाली
गली से आती किसी और आवाज दोनों को सुनता रहा।
पलास, एक आम नागरिक, जो पास के भवन की दूसरी मंजिल की अपनी खिड़की से यह सब देख रहा था, ने यह सब क्यों घटित होने दिया? मानव स्वभाव की पहेली सुलझाइये! अपने कॉलर ऊपर को उठाये, अपनी स्थूल काया के चारो ओर अपना ड्रेसिंग गाउन लपेटे, वह अपने कांपते हाथों के साथ, नीचे देखता खड़ा रहा।
और
गली की दूसरी ओर पाँच मकान दूर, मिसेज वेस, जो अपने नाइटगाउन के ऊपर लोमड़ी के फर का
कोट पहने हुए थी, ने अपने पति को देखने के लिए, जो आज असामान्य रूप से विलम्ब कर रहा
था, गली में बाहर झांका।
अंततः
वेस के कार्यालय के सामने, दरवाजे पर लगी घंटी बजी, दरवाजे की घंटी के अनुपात में एक
बहुत तेज आवाज, शहर से उठ कर स्वर्ग तक पहुंचती हुई सी, और वेस, वह उद्यमशील, रात्रिकालीन
कर्मचारी, मात्र घंटी की आवाज से उत्प्रेरित, कार्यालय भवन से बाहर निकल आया। अभी भी
वह उस गली में अदृश्य था किंतु फुटपाथ पर उसके शांत कदमों की आहट तत्काल ही आने लगी
थी।
पलास
काफी आगे झुक गया। वह एक भी क्षण को अनदेखा करने को इच्छुक नहीं था। मिसेज वेस ने घंटी
की आवाज से निश्चिन्त हो कर खड़खड़ाहट के साथ खिड़की को जोर से बंद कर दिया। लेकिन स्मर
नीचे को झुक गया; चूँकि उसकी देह का अन्य कोई हिस्सा खुला हुआ नहीं था, उसने अपना चेहरा
और हाथ फुटपाथ से लगा लिया; जहाँ अन्य हर चीज ठण्ड से जमी जा रही थी, स्मर की देह तीव्र
गर्मी से जल रही थी।
दोनों
गलियों को बांटते हुए कोने पर वेस थोड़ा सा ठहरा; उसे सहारा देने के लिए दूसरी गली में
केवल उसकी टहलने की छड़ी ही आयी। एक आकस्मिक सनक। रात्रि के आकाश ने अपने गहरे नीले
और स्वर्णिम रंग के साथ उसे आमंत्रित सा किया। अनजाने ही उसने ऊपर आकाश की ओर देखा।
ऊपर कुछ भी किसी ऐसे ढंग से नहीं रेखांकित था जो उसके लिए उसके आसन्न भविष्य को व्याख्यायित
करता; हर वस्तु अपनी अतार्किक, अस्पष्ट स्थिति में थी। यह अपने आप में एक तर्कसंगत
क्रिया थी कि वेस को चलना था किन्तु वह स्मर के छुरे की ओर चल कर गया।
“तुम
फिर कभी जूलिया को नहीं देख पाओगे!” और उसके गले में दायीं ओर, गले के बायीं ओर तथा
पेट में गहराई तक स्मर का छुरा घुस गया। पानी के चूहों का पेट फाड़ देने पर निकलती आवाज की सी आवाज वेस के भीतर से आयी।
“हो
गया,” स्मर ने कहा और अवांछित हो चुके, रक्त से सनी धार वाले छुरे को पास के मकान के
दरवाजे में घुसेड़ दिया। “हत्या का आनंद! राहत,
किसी अन्य का रक्त बहाने से उठती तीव्र आनंदानुभूति! वेस, पुराने रात्रिचारी, मित्र, मयखाने के अंतरंग साथी, तुम
अँधेरे में पिछली गली में नीचे जमीन पर पड़े खून उगल रहे हो। तुम सीधे रक्त का थैला
मात्र ही क्यों नहीं थे कि मैं तुम्हें अपने पैरों के नीचे बस कुचल देता और तुम शून्य
में खो जाते? वह सब कुछ जो हम चाहते हैं सच नहीं होता, न ही सभी खिलने वाले स्वप्नों
में फल आते हैं, अब हर ठोकर के प्रति उदासीन तुम्हारा भौतिक अवशेष यहाँ पड़ा है। उस
मूर्खतापूर्ण प्रश्न का क्या औचित्य जो तुम पूछ रहे हो ?”
पलास
अपने घर के दो पल्लों वाले दरवाजे के मध्य, अपनी देह के आंतरिक विष से स्वांसावरुद्ध सा, खड़ा था जब दरवाजे
के पल्ले तेजी से खुल गए। “स्मर ! स्मर ! मैंने सब कुछ देखा, मुझ से कुछ नहीं छूटा।”
पलास और स्मर ने एक दूसरे का गहन निरीक्षण सा किया। निरीक्षण के परिणाम ने पलास को
संतुष्टि दी। स्मर किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंचा।
मिसेज
वेस, अपने दोनों तरफ भीड़ के साथ तेजी से आयीं, उनका चेहरा इस आघात से काफी बूढ़ा हो
गया था। उनका फर का कोट खुला हुआ था, वे वेस के ऊपर गिर पड़ीं; नाइटगाउन में सिमटी देह
वेस की थी, और उस दम्पति के ऊपर किसी कब्र पर उगी कोमल घास की तरह फैला फर का कोट भीड़
के लिए था।
स्मर
ने, अपने को आ रही आखिरी उबकाई से कठिनाई से संघर्ष करते हुए अपना मुँह पुलिस वाले के
कंधे में दबा लिया जो हलके कदम रखता उसे वहाँ से ले कर दूर चला गया।
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(इस पोस्ट में प्रयुक्त पेंटिंग स्व. विजेंद्र जी की हैं।)
सम्पर्क
श्रीविलास सिंह
A-5 आशीष रॉयल टावर
बीसलपुर पुर रोड
बरेली-243006
मोबाइल : 8851054620
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