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किरण मिश्रा
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परिचय
डॉ किरण मिश्रा
जन्मस्थान अंबिकापुर, छत्तीसगढ़,
शैक्षणिक योग्यता - पी-एच. डी. (समाजशास्त्र)
स्कूली शिक्षा मालवा मध्य- प्रदेश, उच्च शिक्षा कानपुर उत्तर -प्रदेश ।
वर्तमान में प्राचार्या, डिग्री कॉलेज बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय, झांसी
इंडियन सोशियोलॉजिकल सोसायटी व एसीएमई की सदस्य।
हरिगंधा, हिमप्रस्थ, आजकल, आधारशिला, अहा! जिन्दगी, बया, दोआबा, मधुमती, सृजन कुंज, प्रेरणा, नई दुनिया, आदि विभिन्न प्रतिष्ठित पत्रिकाओं एवं साहित्यिक अकादमी की पत्रिकाओं में कविताएँ प्रकाशित।
कई प्रतिष्ठित ब्लॉगों पर कविताएँ प्रकाशित ।
नेपाली और पंजाबी भाषा में कविताओं का अनुवाद प्रकाशित ।
विभिन्न काव्य- गोष्ठी एवं मंचों पर काव्य पाठ।
आकाशवाणी के राष्ट्रीय चैनल में कविता पाठ।
लेख- दैनिक हिन्दुस्तान, दैनिक जागरण, लोकसत्य, लोकमत, जनमत की पुकार, स्वर- सरिता, ग्राम सन्देश ( पत्रिका)
साहित्यिक ,शैक्षिक एवं समाजशास्त्रीय गतिविधियों के लिए चार पुरस्कार
अनेक शोध पत्र -राष्ट्रीय /अंतरष्ट्रीय शोध -पत्रिकाओं में प्रकाशित
समाजशास्त्रीय पुस्तकें प्रकाशित।
मनुष्य इस पृथ्वी का सबसे शक्तिशाली प्राणी है। यह उसकी बुद्धिमत्ता की वजह से ही है। मनुष्य की सबसे बड़ी खूबी यह है कि वह अपने अनुभवों को न केवल दूसरों के साथ साझा करता है बल्कि अर्जित ज्ञान को अपनी अगली पीढ़ी को सौंपता भी है। मनुष्य की बुद्धिमत्ता या शक्ति का एक बड़ा कारक यह भी है। अर्जित ज्ञान को अगली पीढ़ी को सौंपने का यह हुनर मनुष्य के अलावा किसी अन्य जीव में नहीं है। हालांकि मनुष्य में भी तमाम संकीर्णताएं हैं लेकिन मनुष्यता इसीलिए बची है कि इसे आगे बढ़ाने की प्रतिबद्धता रखने वाले कुछ लोग भी हैं। कवयित्री किरण मिश्रा इसे रेखांकित करते हुए लिखती हैं : 'गिर जाने पर हाथ बढ़ा कर उठा देना/ ऐसे शख़्स का मिल जाना/ इस धरती की सबसे अद्भुत घटना है।' आइए आज पहली बार पर पढ़ते हैं किरण मिश्रा की कुछ नई कविताएं।
किरण मिश्रा की कविताएं
पृथ्वी का रुदन
रात का फक्कड़,
आवाज देता है पृथ्वी को
शांति का प्रकाश सिर्फ एक लहर है
जो रोष के तूफान में खो जाती है
असहाय पृथ्वी,
निर्दयी आत्माओं से करती है रुदन
जरा ठहरो मेरे दर्द को साझा करो
बांसुरी बजाता मनुष्य
ओट में हो जाता है
मैं समय, समुद्र का एक बेड़ा
अपने डूबने के इंतज़ार में हूँ
निस्तब्ध
धरती को चूमने के हजारों तरीके हैं
सारी व्याख्यायें खत्म हुईं
दिल का ताप बढ़ा
मेरे दिल मे छिपे तारे ने
सातों दिशाएं रोशन की
गिर जाने पर हाथ बढ़ा कर उठा देना
ऐसे शख़्स का मिल जाना
इस धरती की सबसे अद्भुत घटना है
कि ईश्वर को पता है ये दुनिया कैसे चलती है
पृथ्वी हमारे कदम चूमती है
बुझते सूरज की वीरानी
रोशनी का पता दे जाती है
कौन बेवजह मौत की कहानी छेड़ता है
लेकिन जो हुआ उसका पर्दा तो समय उठाएगा
हम समय के फेर में पड़ी आत्माएं हैं
पर हताश नहीं
कलहंस को उड़ना, हिरणों को दौड़ना
पेडों को झूमना हमने सिखाया
पृथ्वी जानती है कंगूरों की कहानी
जो कराहती मुस्कान के साथ हम ने उसे सुनाई
जीवन की चंचल लौ जब तक खत्म नहीं होती
हम खड़े हैं महामारी के झुलसते झंडे के नीचे
अपना अस्तित्व बचाने को
क्योंकि,
हमारी नस्ल आपकी आत्मा के हाथों बिकी हुई है
निर्वासन
कोलतार की सड़क को देखती एक स्त्री
रोती है खामोश होंठो के साथ
रास्ते प्रारब्ध या अंत नहीं हो सकते
एक बिखरा हुआ झूठ,
जिसके फ़रेब में सांसें भी आईं
स्त्री सोचती है,
जीवन के द्वंद्व में, मूकचालित मवेशियों की तरह
कब्र तक जाना बेहतर है
नंगी आत्माओं के द्वार पर सिसकने से
निर्वासन रिश्तों के हुए
दुःख बस इतना रहा
ठहराव
और एक दिन जब
मनुष्य ने ईश्वर को
फड़ पर बैठने को कहा
ईश्वर ठिठका
मनुष्य की बिछाई बिसात देख,
पहली चाल मनुष्य ने चली
विकास
सारे अर्थहीन, खतरनाक मुद्दे
उठ खड़े हुए
दूसरी चाल
विज्ञान
ह्रदयहीन हुए मनुष्य
ईश्वर हँसा
अब आखिरी चाल उसकी थी
उसने पासे फेंके
दौड़ते मनुष्यों के पैरों में उसके पासे थे
अब ईश्वर के सामने मनुष्य था
और मनुष्य के सामने उसकी छाया
यह देख
पृथ्वी फिर से उठ खड़ी हुई!
जमीनस्तो
बादल उमड़ घुमड़ रहे हैं
खदेड़ी गई कौमों की स्त्रियां
इंतज़ार में हैं
आषाढ़ की उमस कुछ कम पड़े
सियासत की हवा कुछ नरम पड़े
तो नसों में धंसी वक्त की कीलों
को निकाल फेका जाए,
वो जर्द चिनारों से
जो खौफ ले कर चली थी
वो खौफ भी उनके नहीं
आंसुओं से तर दर्द सूख गये
लेकिन लोरियों में घुले खून की महक
अभी तक गई नहीं,
उनके रौंदे जिस्म महज़ब की कहानी कहते हैं
स्त्रियां भूल गईं
रचना रचाना स्त्री का है
उसे बारूद के ढेर पर बिठाना पुरुष का काम है,
स्त्री के लिए जमी कभी जन्नत न बनी
फिरदौस बरूह जमीनस्तो
जहाँगीर ने कहा था,
नूरजहां कहां कह पायी थी?
उनींदे समय में शब्द
इस उनींदे समय में
शब्द जाग रहे हैं
वो बना रहे हैं रास्ता
उन के विरुद्ध
जो जला कर देह को
सुर आत्मा से निकाल रहे हैं
वो ख़ामोश हो जाते हैं
उन चुप्पियों के विरुद्ध
जो उपजी हैं
गली गली होती हत्या के बाद
बहरूपिया होते हैं शब्द,
झूठ को ले कर
चढ़ाते हैं उस पर चमकदार मुलम्मा
फिर उसमें भरते हैं रंग , मनचाहा
शब्द अपने भीतर और भीतर से
कर रहे हैं विस्फोट
ताकि मुर्दे बाहर निकल लड़े
ज़मीन, जंगल के लिए,
फिर शब्द
ख़त्म करते हैं
महान सभ्यताओं, संस्कारों को
शब्द अब पैने हैं
समय को अपने भीतर छिपाये
वो उसे भेद रहे हैं
और भविष्य लहूलुहान पड़ा
आखिरी सांसें ले रहा है।
क्या शब्दों से मोर्चा संभव है??
तुतलाते बोलों में मौत की आहट
एक अंतहीन रात में
एक औरत तोड़ना चाहती है दु:स्वप्न के जालों को
वो छाती की दर्दनाक गांठ में दबे
उस शून्य को निकाल देना चाहती है
जो हर चीख के साथ बढ़ता जाता है
और हटाना चाहती है
इर्द गिर्द जमा डर की बीट को
वो रखना चाहती थी जिंदा
सत्य, न्याय, प्रेम की कहानियों को भी
जो पिछली रात उसने सुनाई थी
उस फूल को जिसे
टिड्डियों ने तबाह कर दिया
अब किलकारियों के साथ
कहानियां भी दफ़न हैं
हिंसा से बचने के नुस्खे खोजना चाहती है वो औरत
हर उस फूल के लिए जो अभी खिले नहीं
हालाँकि पिछली रात टैंकों के नीचेक
एक नन्नी धड़कन दबा दी गई है
गर्भ धारण करने वालियों को नहीं पता
कंस ने फूलों पर हिंसा की शुरुआत
उसी दिन कर दी थी
जिस दिन वो देवकी के गर्भ में छुपे थे।
घनघोर अंधेरे मे
घनघोर अंधेरे में जो दिखती है,
वो उम्मीद है जीवन की
हिंसक आस्थाओं के दौर में प्रार्थनाएं डूब रही हैं
अन्धकार के शब्द कुत्तों की तरह गुर्राते
भेड़ियों की तरह झपट रहे हैं
उनकी लार से बहते शब्द
लोग बटोर रहे है उगलने को
जर्जर जीवन के पथ पर पीड़ा के यात्री
टिमटिमाती उम्मीद को देखते हैं
सौहार्द्र के स्तंभ से क्या कभी किरणें फूटेंगी
उधेड़बुन में फँसा बचपन
अँधेरे की चौखट पर ठिठका अपनी उँगली से
मद्धिम आलोक का वृत खींचना चाहता है
एक कवि समय की नदी में
कलम का दिया बना कविताओं का दीपदान कर रहा है।
(इस पोस्ट में प्रयुक्त पेंटिंग्स स्व. कवि विजेन्द्र जी की हैं।)
सम्पर्क
ई मेल : kiranpmg@gmail.com
कुछ कविताएं तो सचमुच अद्भुत हैं। किरण जी को पहली बार पढ़ रहा हूँ।कविताओं में परिपक्वता है। उन्हे खूब शुभकामनाएं। पहली बार उम्दा रचनाओं का मंच है। आभार।
जवाब देंहटाएंकुछ कविताएं तो सचमुच अद्भुत हैं। किरण जी को पहली बार पढ़ रहा हूँ।कविताओं में परिपक्वता है। उन्हे खूब शुभकामनाएं। पहली बार उम्दा रचनाओं का मंच है। आभार।
जवाब देंहटाएंललन चतुर्वेदी,बेंगलुर
यूं हौसला तो पाठक में छिपा लेखक ही दे सकता है....आपका हार्दिक धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी कविताएं
जवाब देंहटाएंरचनाओं की पसंद और चयन के लिए ओंकार जी एवं संतोष जी बेहद आभारी हूँ
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