देवेश पथ सारिया की कविताएं

देवेश पथ सारिया


 

 

साहित्यिक पत्रिकाओं में प्रकाशन: हंस, नया ज्ञानोदय, वागर्थ, कथादेश, कथाक्रम, परिकथा, पाखी, आजकल, अकार, बया, बनास जन, मधुमती, कादंबिनी, समयांतर, समावर्तन, उद्भावना, गगनांचल, जनपथ, नया पथ, आधारशिला, दोआबा, बहुमत, परिंदे, कविता बिहान, ककसाड़, प्रगतिशील वसुधा, साखी, अक्षर पर्व, मंतव्य, मुक्तांचल, रेतपथ, कृति ओर, शुक्रवार साहित्यिक वार्षिकी, उम्मीद, अनुगूँज, कला समय, पुष्पगंधा आदि।

 

समाचार पत्रों में प्रकाशन : राजस्थान पत्रिका, दैनिक भास्कर,  प्रभात ख़बर,  दि सन्डे पोस्ट।

 

वेब प्रकाशन : सदानीरा, जानकीपुल, अनुनाद, बिजूका, समकालीन जनमत, पोषम पा, हिन्दीनेस्ट, मीमांसा, शब्दांकन, कारवां, इंद्रधनुष, साहित्यिकी, अथाई, हिन्दीनामा, लिटरेचर पॉइंट।


ज्ञान स्वयं में अंतहीन है। इसका दायरा असीमित है। ऐसे में किसी भी क्षेत्र में किसी भी व्यक्ति द्वारा विद्वता का दावा कर पाना हास्यास्पद होता है। इस सन्दर्भ में प्रख्यात वैज्ञानिक न्यूटन का यह कथन आज भी खासा प्रासंगिक लगता है। जब एक पत्रकार ने उनसे ज्ञान के बारे में सवाल किया तो न्यूटन का जवाब था : 'ज्ञान महासागर की तरह है। मैं जब उस महासागर की तरफ गया तो उसके किनारे की शंख सीपियों ने ऐसा लुभाया कि उनको ही देखने परखने में ही जीवन भर लगा रहा। मैं तो उस ज्ञान रूपी महासागर में एक कदम तक नहीं रख पाया।' ज्ञान व्यक्ति को अहंकारी नहीं बल्कि विनम्र बनाता है। विनम्रता इंसानियत की पहचान होती है। अहंकार तो व्यक्ति का ओछापन जाहिर करता है। युवा कवि देवेश पथ सारिया इस मर्म को बखूबी समझते बूझते हैं। वे लिखते हैं : 'सफल हो कर भी रहे विनम्र/ वे मनुष्य बने रहे/ खरे उतरे कविता की अंतिम कसौटी पर।...  उन्हें पता है सूत्र-/ परिष्करण अंतहीन प्रक्रिया है।'  देवेश ताइवान में खगोल शास्त्र में पोस्ट डाक्टरल शोधार्थी है। मूल रूप से राजस्थान के राजगढ़ (अलवर) से उनका सम्बन्ध है। देवेश की अपने समय की नब्ज पर अच्छी पकड़ है। खगोलशास्त्र का अध्येता होना उनके कल्पनात्मक आयाम को और विस्तृत करता है। उनकी कविताएँ हमें आश्वस्त करती हैं। 'ऑनलाइन युग में युवा कवि' एक श्रृंखलाबद्ध कविता है जिसमें दस छोटी छोटी कविताएँ हैं। यहाँ पर उनकी श्रृंखलाबद्ध कविताओं के अतिरिक्त चार अन्य कविताएँ भी दी गयी हैं। आज देवेश का जन्मदिन है। उन्हें जन्मदिन की बधाई देते हुए पहली बार पर हम प्रस्तुत कर रहे हैं देवेश पथ सारिया की कुछ नई कविताएँ।



देवेश पथ सारिया की कविताएं

 

ऑनलाइन युग में युवा कवि

 

(1) मुश्किल

 

इस युग में जितना आसान है

कवि बनना

उससे भी ज़्यादा सहूलियत भरा

किनारे कर दिया जाना

 

युद्ध के बाद

भूखी भीड़

टूट पड़ी है

आसमान से बरसती सहायता पर

 

दौड़ में पिछड़ जाना

रौंद दिया जाना

सहज संभाव्य परिणति हैं

 

कवि बने रहना

पहले कभी इतना कठिन नहीं रहा।

 

 

(2) नये युवा कवि

 

कई अच्छे युवा कवि

लीक से हट कर करते हैं शुरुआत

फ़िर बन जाते हैं लकीर के फ़कीर

अपने ही नक़्शे में खो जाते हैं वे

 

अधिकांश वेब सीरीज का

अच्छा होता है सिर्फ पहला सीजन ही

 

(3) सफल युवा कवि-1

 

पुरस्कार सबके लिए नहीं बने

वे सबमें नहीं बंटे

 

नोटिस हो जाना ही रखता है मायने

यह एक मध्यांतर है

 

मध्यांतर के बाद

भटक जाती हैं रास्ता अधिकतर फिल्में।

 


 

 

(4) सफल युवा कवि-2

 

जिनकी गाड़ी दौड़ती रही शानदार 

पश्चात मध्यांतर के भी

उनकी राह में है रोड़ा एक ही -

उनका अपना अहंकार

 

जैसे 11वीं में आते ही

मेरे क़स्बे के मुकेश कुमार

लिखने लगते थे अपना नाम- एम. के.

और साइकिल चलाना तौहीन समझते थे अपनी।

 

(5) सफल युवा कवि-3

 

सफल हो कर भी रहे विनम्र

वे मनुष्य बने रहे

खरे उतरे कविता की अंतिम कसौटी पर

 

उन्हें पता है सूत्र-

परिष्करण अंतहीन प्रक्रिया है

 

 

(6) पुरस्कृत कवि

 

वे जितना शुक्रिया अदा करना सीखते हैं

उससे ज्यादा गालियाँ हजम करना

 

कमज़ोर पाचन शक्ति वाले

पुरस्कार लेने से मना कर दें।

 

 

(7) तुर्शी

 

तुर्शी गुण है

बहुधा उस समय चर्चा में आए कवि का

जब सोशल मीडिया भेड़चाल नहीं था।

 


 

 

(8) की वर्ड

 

स्त्री, प्रेम और बुद्ध

सोशल मीडिया पर सफल

कविता के कीवर्ड हैं।

 

मैं पहली बार कर रहा

तथागत का उपयोग।

 

(9) कुलीन कवि

 

कुलीन कवि

प्रेमी, प्रेमिका और बुद्ध नहीं लिखते

वे लिखते हैं

प्रेयस, प्रेयसी और तथागत।

 

 

(10) संकरित कवि

 

बरबस ही उनके मुंह से निकला जाता है-

"एक बार आपकी तालियों की गड़गड़ाहट मुझ तक पहुंचे!"

 

मंचीय कविता में उन्होंने बघार लगाया है

इधर-उधर से की गई अच्छे कवियों की नक़ल का

इतिहास में उन्हें संकरण का श्रेय दिया जाएगा

 

उन्हें अमरत्व की चाह है

मूल्यांकन के लिए तैयार भी नहीं वे

उनकी श्रवण सामर्थ्य में नहीं ये शब्द-

"खेद सहित वापस"

 

ईमानदार संपादकों को भी

वे कहते हैं खेमेबाज

 

 


 

क्राइम सीन

 

टीन शेड और उसकी बगल का रास्ता

लगता था सेना के ख़ुफ़िया ठिकाने सा

कुछ था नहीं वहाँ

पेड़ थे, जो रचते थे मायाजाल

 

पेड़ कटने के साथ

टूटा मायाजाल

दिखने लगा आरपार मैदान

 

उन्होंने एक काला जाल डाल दिया मिट्टी पर

और आड़ लगा दी उन पीली पन्नियों से

जिन्हें लगाया जाता है

आपराधिक कृत्य वाली जगह

 

 

 

अँधेरे के असफल जिप्सी

 

लगभग सभी बच्चों की

कल्पनाओं में

शामिल होती है

तारों की दुनिया की पटकथा

 

हर ताज़ा जवान ख़ून

किसी फिसलन भरे मोड़ पर भावनाओं के

हो जाना चाहता है एक जिप्सी

जिसका कारण कभी-कभी होता है

क्रांति करगुज़रने का अवसर मिलना

 

कूट-कूट कर भरी होती है

बच्चे में जिज्ञासा

और इंकलाब के दो नारे

होते हैं युवा के पास-

कर गुजरना

या, बेफिक्री में सिमटना

 

आसपास

इन बच्चोंं और युवाओं के

होते हैं

कुछ अड़ियल वयस्क, प्रौढ़ और बुज़ुर्ग 

जिनकी ठसक और दखल से

खैरियत से आबाद रहते हैं

आजीविका के अधिक सुरक्षित विकल्प

 

जिज्ञासाएं रीत जाती हैं

इंकलाब भी कहाँ रह पाता है ज़िंदा

टप-टप टपक, बूंद-बूंद रिस

खाली होता है घड़ा

परियों की कहानियों

और जुनूनी गीतों का 

 

एक 'सुरक्षित' काम में लट्टू की तरह नाचते

किसी दिन ये देखते हैं

आँखें फाड़ तारे देख रहे आदमी को

और एक हूक उठती है

प्रथम प्रीत में हार सी

 

जब-जब मिलते हैं ये

अपने जैसे

दूसरे किसी असफल जिप्सी से

फुसफुसाते हैं-

"सब कुछ छोड़ हिमालय पर चले जाना है"

 

पुराने फिल्टर पेपर पर

उभर आते हैं

दाग़

जिज्ञासा और इंकलाब के।

 

 


 

 

पश्चाताप

 

मैंने प्रेम किया

जैसा साधक करते हैं

 

अंकित किया तुम्हें

हर पेड़ की हर पत्ती के हर रेशे में

देखा तुम्हारा अक़्स

बारिश की हर टपकती बूंद में

तुम पर्णहरित थीं

तुम जल का अणु

 

हश्र मेरा हुआ वैसा

जैसा हुआ करता है

बाज़ार में आंखें मूंद

धूनी रमाने वाले का

 

कवि होने का

यह पश्चाताप भी है

कि मैंने व्यर्थ किया

प्रकृति के अवयवों को

कुपात्र को उपमा देने में

 

कोई ठीहा नहीं

जहां छुपकर

दिल को

बचाया जा सके खरोचों से

 

कनाठे तक जलकर

बुझी हुई

माचिस की तीली

बेहतर विकल्प है। 

 

 

मसखरा

 

 

संदेह है मुझे

कि मेरे चश्मे का नंबर बढ़ाने में

गुनाहगार है चिलचिलाती धूप भी

 

नए नंबर वाले

एक अतिरिक्त चश्मे को

धूप का बनवाया है मैंने

 

जब तक वह नहीं आता बन कर

मैं पहन कर निकला हूं

दो चश्मे एक साथ

धूप के बिना नंबर के चश्मे के ऊपर चढ़ा कर

नज़र का चश्मा

 

कोई हंसेगा क्या

इस पर?

 

हंसे फिर...

कवि होने के इतर

मेरी कामना थी सदा से

छू सकने की

क्रियात्मकता का दूसरा आयाम भी।

 

 

(इस पोस्ट में प्रयुक्त पेंटिंग्स वरिष्ठ कवि विजेंद्र जी की हैं।)

 

 

सम्प्रति:  ताइवान में खगोल शास्त्र में पोस्ट डाक्टरल शोधार्थी।  मूल रूप से राजस्थान के राजगढ़ (अलवर) से सम्बन्ध। 

 

 

 

भारत का पता :

 

श्रीमती सरोज शर्मा

माडा योजना हॉस्टल

पोस्ट ऑफिस के पास राजगढ़ (अलवर)

राजस्थान- 301408

 

मेरा ताइवान का पता :

देवेश पथ सारिया

पोस्ट डाक्टरल फेलो

रूम नं 522, जनरल बिल्डिंग-2

नेशनल चिंग हुआ यूनिवर्सिटी

नं 101, सेक्शन 2, ग्वांग-फु रोड

शिन्चू, ताइवान, 30013

 

 

फ़ोन: +886978064930

ईमेल: deveshpath@gmail.com

 

 

 

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