पंकज पराशर
हमारे समय के कुछ युवा आलोचकों ने समकालीन कहानी पर बेहतर काम किया है । युवा आलोचकों में पंकज पराशर एक ऐसा ही नाम है जिन्होंने शिद्दत से इस काम को शुरू किया है । इसी क्रम में पंकज ने हमारे समय की चर्चित कहानीकार अल्पना मिश्र की कहानी 'स्याही में सुरखाब के पंख' पर यह विस्तृत पड़ताल की है. पिछली पोस्ट में आपने अल्पना के उपन्यास अंश पढ़े । इस पोस्ट में पहली बार पर पढ़िए पंकज पराशर का आलेख 'पितृसत्ता, स्त्री और समकालीन जीवन यथार्थ । ' पितृसत्ता, स्त्री और समकालीन जीवन-यथार्थ (संदर्भः अल्पना मिश्र की कहानी ‘ स्याही में सुर्खाब के पंख ’ ) समकालीन कहानी पर यदि हिंदी आलोचना की गुरु-गंभीर और पारंपरिक भाषा में (जिसे उपहास में प्रायः ‘ प्राध्यापकीय आलोचना ’ कहा जाता है और संयोग से यह लेखक भी प्राध्यापक नामक जीव ही है) बात शुरू की जाए, तो कुछ इस तरह शुरू कर सकते हैं-बीसवीं सदी के अंतिम दशक के उत्तरार्द्ध से हिंदी कहानी में जिन कथाकारों का प्रवेश होता है, उन्होंने उदारीकरण के बाद पैदा हुए नए जीवन-यथार्थ की संशिलष्टता को न केवल पूरी गहराई और संव...