अच्युतानंद मिश्र
कवियों, दार्शनिकों और विचारकों के लिए मृत्यु हमेशा से एक ऐसा 'रहस्य' रही है जिस पर वे एक लम्बे अरसे से चिंतन करते आ रहे हैं. सभ्यता के सोपान पर आगे बढ़ते मनुष्य ने अपनी सुरक्षा के लिए या फिर किसी को चोट पहुंचाने के लिए जब पहला पत्थर उठाया होगा तब से ही शुरू हुई हथियारों की परम्परा अब इतनी समृद्ध हो गयी है कि हम अपनी इस जीवनदायी धरती को ही हजारों-हजार बार नष्ट कर सकते हैं. एक तरफ हथियारों पर मिलियन-ट्रिलियन डॉलर खर्च करने वाले देश हैं वहीँ भूख-प्यास से बिलखते हुए तमाम देश हैं. अनजाने या पागलपन में उठाया गया हमारा एक कदम आत्मघाती साबित हो सकता है. तो क्या हमारे लिए 'मृत्यु ही सबसे बड़ी चीज़ है?' कदापि नहीं. क्योंकि जीवन के होने से ही मृत्यु का अस्तित्व है. यानी जीवन से ही सब कुछ है. हमें इसे सहेजने की कोशिशें करनी चाहिए. अच्युतानंद मिश्र ने एक लम्बी कविता लिखी है- 'मृत्यु एक बड़ी चीज है.' लेकिन ठीक इस पंक्ति के बाद ही वे प्रश्नवाचक मुद्रा में पूछते हैं- 'लेकिन जीवन?' . यहीं पर कवि इस मायने में विशिष्ट हो जाता है कि उसके चिंतन के मूल में सबसे पहले जी...