ललन चतुर्वेदी का संस्मरण 'खाकी बाबा की याद में'
![]() |
ललन चतुर्वेदी |
हमारा बचपन उन तमाम कथा, किंवदंतियों और सच्चाइयों से भरा होता था जो हमारे लिए मार्गदर्शक का काम किया करते थे। इन कथाओं में बाबा भी शामिल हुआ होते थे जिनका अभिप्राय गांव के आस पास अवस्थित मठों के सन्त लोगों से होता था। गांवों के फेरे लगाते हुए जोगी मिल जाते थे जो गोरख बानी गाते हुए अपने दिन बिताया करते थे। यह कहानियां ऐसी हैं जिसमें थोड़ी गप्प हुआ करती तो थोड़ी सच्चाई भी। खुद इनका जीवन ऐसा त्यागमय होता कि लोग बाग उसका अनुसरण किया करते। यह सब हमारे मन मस्तिष्क में कुछ इस तरह रच बस जाता कि इसकी स्थाई स्मृति बनी रह जाती थी। कवि ललन चतुर्वेदी आजकल संस्मरण लिख रहे हैं और इस क्रम में उन्होंने अपने पैतृक गांव बैजलपुर जो मुजफ्फरपुर (बिहार) जिले के थाना पारू में अवस्थित है, इसी गांव के निकटवर्ती गांव कल्याणपुर में एक सन्त खाकी बाबा हुआ करते थे। अपने संस्मरण में ललन चतुर्वेदी ने खाकी बाबा को याद किया है। आज जब अक्सर सन्त महन्त लोगों के वैभव, विलास और व्यभिचार में डूबे होने की खबरें आम होती हैं तब वे सन्त हमारे सामने एक आदर्श उपस्थित करते हैं। आइए आज पहली बार पर हम पढ़ते हैं ललन चतुर्वेदी का संस्मरण 'खाकी बाबा की याद में'।
संस्मरण
'खाकी बाबा की याद में'
ललन चतुर्वेदी
संसार में ऐसे अनेक लोग होते हैं जो इतिहास में दर्ज नहीं होते। इसलिए कहा गया है कि इतिहास राजा-महाराजाओं का होता है। यह इतिहास की सीमा होती है। साहित्य इस सीमा का अतिक्रमण करता है। इसकी दृष्टि का विस्तार बूँद से समुद्र तक होता है। एक क्लर्क की जिन्दगी पर कौन सोचता है? पर चेखव जब क्लर्क के जीवन पर लिखते हैं तो दुनिया में विद्यमान लाखों नौकरीपेशा लोग अपना जीवन उस क्लर्क में ढूँढने लगते हैं। मेरी इच्छा है कि मैं ऐसे ही लोगों को अपनी रचनाओं में चित्रित करूँ जो मेरे आस-पास के हैं या थे और जो छूटे हुए लोग हैं. हमें यह समझना चाहिए कि महत्वपूर्ण बातें हाशिए पर लिखीं जाती हैं। उसी तरह हाशिए के लोग भी महत्वपूर्ण होते हैं। भले ही इनका जीवन विशाल जनसमुदाय के काम न आ सका हो लेकिन अपने-आप में ये मिसाल होते हैं यह भी गौर करने लायक है कि कभी हम किसी के कृतित्व से तो कभी किसी के व्यक्तित्व से प्रभावित होते हैं। यदि नहीं भी हों तो क्षण भर के लिए वे हमें जरूर प्रेरित करते हैं। इनमें बहुत से लोग मेरी आँखों के सामने हैं और अनेक लोग गुजर भी चुके हैं पर उनकी कहानियां मुझे चिंतन का एक नया आयाम देतीं हैं।
आज की कथा खाकी बाबा की है। यह नाम सुनने में थोडा अटपटा लग सकता है। पुराने ज़माने में साधु-संतों का नाम ऐसा ही होता था। उनके गुरु दीक्षा देने के बाद एक नया नाम देते थे। खाकी बाबा बहुत पढ़े-लिखे नहीं थे लेकिन गुरु-वचन में उनकी अगाध आस्था थी। उनके गुरु भी बड़े प्रतापी थे। कहा जाता है कि सुबह स्नान करने के समय वे अपने शरीर पर गागर से तब तक पानी डालते रहते थे जब तक गीता के सात सौ श्लोकों का पाठ पूर्ण न हो जाए। खाकी बाबा ऐसे गुरु की सेवा और भक्ति में तल्लीन रहा करते थे। दोनों गुरु-शिष्य वैष्णव थे और नारायणी नदी के तट पर स्थित कल्याणपुर गाँव के सूनसान पश्चिमी इलाके में स्थित टीनही मठ पर भगवत सेवा में लीन रहते थे। टीनही मठ उसे इसलिए कहा जाता था कि वह टीन से छाया हुआ था। मठ में कुछ जमीन हुआ करती थी जिसकी उपज से साधुओं की दिनचर्या चलती थी। अब तो न मठ रहे न साधु। उनके छिटपुट अवशेष हैं। खैर, आज से कुछ वर्ष पूर्व गाँव गया तो शाम में टीनही मठ की ओर टहलने चला गया। गाँव के एक प्रमुख व्यक्ति भी साथ हो लिये। हम दोनों नदी किनारे से कुछ दूर एक मूर्ति के पास पहुँच गए। उन्होंने कुछ दूर पहले ही पैर से चप्पल उतार लिया और शीश झुका दिया। उन्होंने मुझे निर्देश दिया कि खाकी बाबा को प्रणाम कीजिए, ये सिद्ध पुरुष थे। यह कह कर उन्होंने बाबा की कहानी एक बार फिर से सुनाई। हालांकि बाबा के उस दुस्साहसिक कर्म की प्रशंसा या समर्थन नहीं करता, फिर भी इस यथार्थ को प्रकट किए बिना शान्ति का अनुभव भी नहीं करता। पाठकों पर इसकी अलग-अलग प्रतिक्रिया अवश्यसंभावी है।
कई बार चीजों को उपयोगिता की दृष्टि से देखना सही नहीं होता। यथार्थ का भी निष्पक्ष मूल्यांकन और विश्लेषण होना चाहिए। बहरहाल, बाबा भक्त थे या हठधर्मी या हठधर्मी भक्त इसका निर्णय लिए बगैर मैं उनकी सत्य कथा को रखता हूँ। हुआ यूँ कि गुरु जी ने खाकी बाबा को एक दिन मजदूरों को ले कर धान की निराई-गुड़ाई कराने के लिए खेत पर जाने को कहा। मजदूर महिलाएँ थी। सबकी अलग-अलग उम्र थी। उसमें से एक युवती बहुत सुन्दर थी। यौवन लावण्य प्रदान करता ही है। इसे यूँ कहें कि जवानी सुन्दरता की सहेली है। पर सौंदर्य के मामले में एक तथ्य सत्य है कि सौन्दर्य पर किसी का विशेषाधिकार नहीं है। गरीब और तथाकथित निम्न जाति की स्त्रियाँ भी अपने सौन्दर्य का सानी नहीं रखतीं। खाकी बाबा का स्थितप्रज्ञ मन उस सर्वांग सुन्दरी युवती को देख कर विचलित ही नहीं विकल हो गया। लेकिन उनकी आत्मा से धिक्कार की आवाज उठी। वर्षों से की गयी तपस्या को कामदेव चुनौती देने के लिए तैयार खड़े थे। दोपहर की बेला में खाकी बाबा के मन में द्वंद्व का तूफान चल रहा था जिसे उन्होंने सावधानीपूर्वक विवेक से शमित करने का आश्चर्यजनक उपाय ढूँढा। वह तुरंत एक मजदूर के पास गए और उससे हंसिया (मेरे यहाँ हंसुआ कहा जाता है. पानी से भरे धान के खेतों में खर-पतवार निकालने के लिए इसका उपयोग किया जाता है) ले लिया। वह कुछ दूर पर स्थित झील के किनारे (मेरे यहाँ इसे मान कहा जाता है जिसमें डूबने लायक पानी भरा होता है) चले गए। उन्होंने झील में प्रवेश कर धारदार हंसिए से अपना लिंग काट लिया। झील का पानी रक्त से लाल हो उठा। जब थोड़ी तक खाकी बाबा नहीं आए तो एक पुरुष मजदूर झील की ओर गया और पूरा दृश्य देख कर सन्न रह गया। उसने दौड़ कर गुरु जी को सूचित किया। आनन्-फानन में डॉक्टर को बुलाया गया। बाबा ने अपने इस कृत्य के सम्बन्ध में कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया। शायद उनकी दृष्टि से उन्हें इन्द्रिय-निग्रह का यही रास्ता आसान लगा होगा। जो भी हो, गाँव के लोगों की उनके प्रति श्रद्धा और अधिक बढ़ गयी। खाकी बाबा बच गए और जब तक इस धरा-धाम पर रहे, उन्होंने अपने ढंग से निर्मल जीवन जिया।
यह दुखद सत्य है कि उनके पावन मठ में निर्मलता की परम्परा बन नहीं सकी। बाद के साधुओं पर तरह-तरह के आक्षेप लगे। वे तन-मन-धन के पोषण में लगे रहे। मठ और महंथ के प्रति लोगों के सम्मान का भाव क्षीण होना बिलकुल आश्चर्यजनक नहीं रहा। सैकड़ों वर्षों बाद लोगों ने नदी किनारे खाकी बाबा की मूर्ति स्थापित की। यह मूर्ति स्मारक है जो आते-जाते लोगों को एक बार अवश्य उद्वेलित करती है और बहुत कुछ सोचने-विचारने और आत्ममंथन करने के लिए प्रेरित भी करती है।
संपर्क :
मोबाइल : 09431582801
संस्मरण मुझे पढ़ना बहुत पसंद हैं, बिल्कुल जीवंतता बनी रहती है उनमें, मुझे लिखना भी पसंद है संस्मरण और पढ़ना भी।
जवाब देंहटाएंरहती
जवाब देंहटाएंरहती
जवाब देंहटाएंइसे पढ़ लगा कि ऐसे महात्मा दुर्लभ ही होते हैं। ललन जी की
संस्मरण लिखने की यह श्रृंखला टूटनी नहीं चाहिए। इस तरह के संस्मरण दिखावे की इस दुनिया में सच्चे महापुरुषों पर भरोसा रखने का आग्रह करते दिखते हैं।
विनीता बाडमेरा