सेवाराम त्रिपाठी का आलेख 'पारिवारिकता के साथ समय के स्पंदन'
सेवाराम त्रिपाठी मनुष्य द्वारा आविष्कृत संस्थाओं में परिवार का अपना विशिष्ट महत्त्व है। इसने मनुष्य में न केवल मानवीय भावनाओं और संवेदनाओं का विकास किया अपितु उसे वह स्पेस प्रदान किया जिससे वह समूची मानवता की भलाई के लिए कुछ सोच समझ सके और कर सके। वैसे तो सामान्य तौर पर परिवार में प्रेम ही प्रमुख होता है परन्तु कभी कभी मनो मालिन्य भी पैदा हो जाता है। बावजूद इसके व्यक्ति परिवार में ही सब कुछ खोजने की कोशिश करता है। एक जमाना था जब परिवार का मतलब मां पिता के दादा दादी, चाचा चाची, भाई बहन भी हुआ करते थे। तब नाना नानी, मामा मामी, मौसी मौसा, बुआ फूफा आदि भी परिवार के विस्तृत अंग हुआ करते थे। लेकिन पूंजीवाद और उपभोक्तावाद के जंजाल ने परिवार के इस बने बनाए ढांचे को तोड़ कर रख दिया है। अब घर में होते हुए भी हम परिवार से दूर हैं। घर में होते हुए भी सोशल मीडिया के माध्यम से बातें करते हैं। सब कुछ के लिए समय है लेकिन आपस में मिल बैठ कर बात करने के लिए समय नहीं है। आलोचक सेवा राम त्रिपाठी ने इस पारिवारिकता पर एक महत्त्वपूर्ण आलेख लिखा है जिसे आवश्यक तौर पर पढ़ा जाना चाहिए। कल सेवाराम जी का जन...