फ़्रांसीसी कवि गैयोम अपोल्लीनेर (Guillaume Apollinaire) की कविताएँ, अनुवाद : अनिल जनविजय

Guillaume Apollinaire



कवि, आलोचक, पत्रकार और बीसवीं सदी के शुरू में यूरोपीय अवाँगार्द आन्दोलन के एक सक्रिय सदस्य विश्व प्रसिद्ध फ़्रांसीसी कवि गैयोम अपोल्लीनेर (1880-1918) की कविताओं का हिन्दी में अब तक अनुवाद नहीं हुआ है। यूरोप में भविष्यवादी कला आन्दोलन की नींव रखने वाले अपोल्लीनेर ने कई साहित्यिक पत्रिकाओं की स्थापना की। बाद में रूसी कवि मयकोवस्की भी अपोल्लीनेर के भविष्यवादी आन्दोलन से जुड़ गए और उन्होंने रूस में भविष्यवादी कला आन्दोलन का नेतृत्व किया।
 
पोलिश मूल के इस विश्व-प्रसिद्ध फ़्रांसीसी कवि की मृत्यु सिर्फ़ 38 वर्ष की उम्र में हो गई।  कविता के अलावा नाटक, कहानी, उपन्यास और ढेर सारी कला-समीक्षाएँ लिखीं। प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान 17 मार्च 1916 को  अपोल्लीनेर बुरी तरह से घायल हो गए। उनके सर में गहरी चोट लगी थी। 1918 के शरद में कई ऑपरेशनों की वज़ह से कमज़ोर कवि ’इस्पानी बुख़ार’ नामक महामारी की चपेट में। उसके बाद एक महीने में ही मृत्यु।  


’पहली बार’ ने अपने पाठकों के लिए विशेष रूप से इन कविताओं के अनुवाद कराए हैं। रूसी भाषा से इन्हें हिन्दी में लाए हैं अनिल जनविजय


फ़्रांसीसी कवि गैयोम अपोल्लीनेर (Guillaume Apollinaire)  की कविताएँ
 

उड़ गई, चिड़िया मेरी

 
उड़ गई, चिड़िया मेरी, उड़ गई
तेज़ बारिश हो रही थी, पर वह उड़ गई
पड़ोस के शहर को उड़ गई चिड़िया

नाचेगी वहाँ
किसी दूसरे के साथ
किसी दूसरे के यहाँ,
किसी दूसरे के पास

औरत नहीं है,
वह है झूठी गुड़िया
उड़ गई मेरी जादू की पुड़िया
 
 

बीच वाली उँगली में

 
बीच वाली उँगली में
अँगूठी है

चुम्बन है,
चुम्बन के पीछे हैं सपने
सपनों के पीछे हैं
आवेग मन के अपने

बीच वाली उँगली की अँगूठी में
काँटे हैं गुलाब के
मेरे मन के राग के
सपनों की आग के  


हलकी गर्म शाम थी वह

 
हल्की गर्म शाम थी वह
जब हमने देखा
झील में चमक रही थी
सूरज की मेखा

कुबड़े पेड़ झुके खड़े थे वहाँ
श्वेत राजहँस तैर रहे थे जहाँ
दिन बीत रहा है,
उसने कहा  


 
आज बहुत लम्बा था दिन

 
आज बहुत लम्बा था दिन
आख़िर बीत गया

कल फिर उभरेगा वैसे ही
पहाड़ पर डूबेगा ऐसे ही
जाएँगे जादू के किले में हम
लौटेंगे थकान से भर कर

दिन फिर रीतेगा
जैसे आज रीत गया
आख़िर दिन बीत गया
 
 

बुला उसे, कह, आजा, आजा

 
तेरी गोद में सिर रख कर
मर गया था प्रेम
तुझे याद हैं क्या उससे हुई वे मुलाक़ातें
फिर से बुला उसे तू
पूछ उसका कुशल-क्षेम
वो फिर आ जाएगा, करेगा तुझसे वैसे ही बातें

बीत रहे हैं दिन वसन्त के
गुज़र जाएगा यह क्षण
बुला उसे, कह — आजा, आजा
जल रहा है याद में तेरी आज भी मेरा मन ! 
 

रहस्य मेरा

मेरा रहस्य तू अभी तक
खोल नहीं पाया
और मौत का रथ क़रीब आता जा रहा है
दुख से पीली पड़ गई है
हम सबकी काया
और यूँ ही समय ग़रीब ये बीता जा रहा है

फव्वारा जीवन का यह
सजा हुआ है फूलों से
और लोगों के चेहरों पर है मुखौटों की छाया
और मेरे भीतर जैसे
बज रही हैं घण्टियाँ
मेरा रहस्य तू अभी तक खोल नहीं पाया


बारिश

अस्तित्त्वहीन लगती है
पर स्मृति में बरसती है
औरतों की आवाज़ों की तरह बारिश

बीते समय की बातों से
उन जादुई मुलाक़ातों से
मेरे मन में झरती है बून्द-बून्द बारिश

रुई-से फूले हुए बादल
कानों में गरजते हैं, बरसते हैं
ब्रह्माण्ड को शर्मसार करते हैं

ध्यान से सुनो तुम, मगर
बारिश की यह झरझर
रुदन का अपमान-भरा संगीत है यह पुराना

सुनो, ज़रा, ध्यान से सुनो, तुम यह साज
है यह टूट रहे बन्धनों की आवाज़
जो तुम्हें रोकते हैं इस धरती पर और स्वर्ग में।  


अलविदा

लू के लिए

अलविदा मेरे प्यार, अलविदा दुर्भाग्य
मुक्त हो गईं तुम, यह है मेरा कुभाग्य
वो आसमानी प्रेम, बस, कुछ देर झलका
फिर उस पर काला अन्धेरा-सा छलका
अब हमेशा के लिए तिमिर उसपर ढलका ।

समुद्र सी थी गहरी तेरी वो नज़र
गर्म थी, हरी थी, खिला बादाम का शजर
पैरों के नीचे हमारे, जो फूल दब गए थे
एक बार फिर खिले वो, फिर से फब गए थे
तेरी याद आ रही है, मुझे भरमा रही है ।

मुरमेलोन के पास हूँ मैं, यह है वह इलाका
जहाँ विरह में मधुपान कर, मुझ जैसा छैला-बाँका
गोलाबारी से घिरा है, झेले गोलों का धमाका
ओ लू ! तू अशुभ है, अमंगल, नज़र तेरी भोली
मुझे बेध रही है ऐसे, ज्यों सीसे की कोई गोली ।

लू — लुइज़ा दे कोलीनी-शतियोन नामक एक भद्र महिला, जिसे अपोल्लीनेर मन ही मन चाहते थे। कवि ने इस कविता को अपनी पाँच सर्वश्रेष्ठ कविताओं में से एक माना था।

 
मूल रूसी से अनुवाद : अनिल जनविजय  
 
 
अनिल जनविजय
 

 
 
 
 

टिप्पणियाँ

  1. अनिल जी और तुम्हे धन्यवाद इतनी सुन्दर कविताएं पढ़वाने के लिए ।केदार जी ने भी अपोलोनायार की कविताओं का अनुवाद किया था ।पता नहीं कहां छपी हैं ।

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