शम्मी मिश्रा की कविताएँ



शम्मी मिश्रा

शम्मी लिखने पढ़ने की दुनिया में एकदम नया नाम है। हिन्दी से उनका इतना ही सम्बन्ध है कि वे मुझसे हिन्दी कविताएँ सुनते रहे हैं। वे कंप्यूटर की पढ़ाई करके फिलहाल एक नौकरी कर रहे हैं। यहाँ दी जा रही कविताएँ प्रेमाभिव्यक्ति हैं। उन्हें खूब जीवनानुभव मिलें। उन्हें पहला कदम मुबारक।
-कमलजीत चौधरी


युवा कवि कमलजीत चौधरी ने अपनी एक संक्षिप्त टिप्पणी के साथ बिल्कुल नए कवि शम्मी मिश्रा की कविताएँ उपलब्ध कराईं हैं। इन कविताओं में प्रेम के साथ-साथ एक एक पक्षधरता भी स्पष्ट तौर पर देखी जा सकती है। यह पक्षधरता कविता की उस रीढ़ की तरह होती है जो कवि के भविष्य का रास्ता निर्धारित करती है। 'परमात्मा भाग्य नहीं लिखता' एक बिल्कुल अलग किस्म की कविता है जिससे शम्मी के कवित्व और उनकी पक्षधरता को समझा जा सकता है  शम्मी का हिन्दी साहित्य संसार में स्वागत करते हुए और उन्हें पहले कदम की बधाई देते हुए हम आज उनकी कविताओं से आपको रु ब रु करा रहे हैं तो आइए आज पहली बार पर पढ़ते हैं शम्मी मिश्रा की बिल्कुल टटकी कविताएँ।
    
    


शम्मी मिश्रा की कविताएँ


जुदाई के खिलाफ  



रात को फोन करते हुए 
जब तुम्हे हँसी आ जाती थी 
तुम हाथ मुँह पर रख लेती थी


अब हम बात नहीं कर पाते
तुम्हें रात को रोना आ जाता है
तुम हाथ मुँह पर रख लेती हो 


किसी दिन यूँ करो
अपना हाथ इस ज़माने के मुँह पर  रखो 
और इसे गोली मार दो।
 

चप्पल  

याद है 
एक चप्पल 
खरीदी थी तुमने
मेरी पसन्द से
दो दिन बाद
वापिस करवा दी थी
यह कह कर 
'यह मेरी किसी ड्रेस से 
 मेल नहीं खाती शम्मी'


कमल भैया बताते हैं 
कबीर प्रेम में राम के कुत्ता बन गए थे
मेरे राम तुम थे
कांटे और तुम्हारे पाँव देख कर
मैं तुम्हारी चप्पल बना


दो महीने बाद 
मुझे मुझ को वापिस करते हुए 
तुमने कहा - 
'तुम मेरी किसी ड्रेस से
 मेल नहीं खाते शम्मी।।'
   




कब दरवाज़ा खोला था


दोस्तों ने कहा - 
वह किसी और की बन गई
जैसे कोई सुख का बन जाता है 
उसने तुम्हे छोड़ दिया 
जैसे कोई दुःख को छोड़ देता है ...


मैंने पूछा दोस्तों से -
आपको याद हो तो बताओ कि
प्यार में 
कब दरवाज़ा खोला था किसी सुख ने 
और 
कब दरवाज़ा बन्द किया था
दुःख ने।
 


परमात्मा भाग्य नहीं लिखता


हमें धरती मिली है
आँख, कान, मुँह, हाथ और पैर 
मिले हैं 
अरे!
कह रहा हूँ न 
हमें कागज़ और कलम मिले हैं
जो मन करे लिखो

जिनको स्कूल नहीं मिले
वे हथौड़ी, छेनी या जूठे बर्तनों से नई वर्णमाला बनाएँ
और उससे बनी भाषा से 
ऊँचे महलों पर लिख दें - 

हम तुम्हारा भाग्य लिखेंगे।





जुदा हो जाने के बाद   


मैं डल में रोज
पत्थर फेंकता हूँ 
वह डूब जाता है 


जब तुम छोड़ कर गई
मैं पत्थर हो गया था
तेरी याद मुझे
तुझमें फेंकती है 
मैं डूब जाता हूँ


काश! न डूबने वाले पत्थर 
मेरे हाथ में होते
और तुम मुझे पत्थर नहीं 
एक काठ बना कर गई होती ।। 



वो मान जाएगी


उसने कहा 
तुमने लैला मंजनू को गालियाँ दीं
इसलिए तुम्हारे पितर रूठ गए हैं 
मैंने कहा कि
मैं उन्हें कच्ची लस्सी दे कर मना लूँगा 


प्रेमिका रूठ गई है क्या करूँ
उसने कहा 
घी के दिये क्यों जला रहे हो
शक्कर की चूरी दो
वो मान जाएगी। 
 


सम्पर्क

गाँव - रमलू, डाक - रामगढ़  (विजयपुर)
तहसील व जिला - साम्बा -181141
जम्मू कश्मीर।

ई मेल : shammimishra90@gmail.com


(इस पोस्ट में प्रयुक्त पेंटिंग्स वरिष्ठ कवि विजेन्द्र जी की हैं.)

टिप्पणियाँ

  1. सुन्दर, अती सुन्दर। मेरी ओर से हार्दिक शुभकामनाएं और साधुवाद।

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  2. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 20.12.2018 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3191 में दिया जाएगा

    धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं

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