अस्मुरारी नंदन मिश्र का आलेख 'ईदगाह : एक पुनःपाठ'
प्रेमचंद हमारे वे पुरोधा हैं जो बार-बार याद आते हैं. हिन्दी साहित्य को पढने वाला शायद ही कोई ऐसा होगा जो प्रमचंद से अपरिचित होगा. दरअसल हमारे आधुनिक कहानी-साहित्य की शुरुआत ही प्रेमचंद से होती है. आम जीवन के विविध प्रसंगों को जिस तरह उन्होंने अपनी कहानी का विषय बनाया है, वह हमें बरबस ही अपनी लगती हैं. होरी की मुसीबतें आज भी बढ़ी ही हैं. हामिद जैसा बच्चा जो गरीबी में जन्मा और पला-बढ़ा होता है, मेले से अपने लिए कोई खिलौना नहीं बल्कि अपनी दादी के लिए चिमटा लाता है. दरअसल वे परिस्थितियाँ ही होती हैं, जिनके अनुसार हम सोचने के विवश होते हैं. गरीबी का दंश झेल रहे बच्चे अपने जीने के लिए संघर्ष करते सड़कों किनारे चाय देते, खाना खिलाते या बर्तन साफ़ करते आज भी दिख जाएंगे. प्रेमचंद इसीलिए आज भी प्रासंगिक हैं कि वे परिस्थितियाँ कमोबेस आज भी जैसी की तैसी बनी हुई हैं, जो उनके समय में थीं और जिनको उन्होंने अपनी कहानी का आधार बनाया था. युवा कवि अस्मुरारी नंदन मिश्र, ने प्रेमचंद जयंती के अवसर पर पहली बार के लिए एक आलेख लिख भेजा है. प्रेमचंद को आज इकतीस जुलाई के दिन विशेष तौर पर य...