अरुण माहेश्वरी






अकेलों की नयी दुनिया



‘टाईम’ पत्रिका के ताजा अंक (12 मार्च 2012) में ऐसी दस बातों का ब्यौरा दिया गया है जो “आपकी जिंदगी को बदल रही है”।  इनमें पहली बात है - अकेले जीना। परिवार परम्परा के बाहर ऐसा एकाकी जीवन जिसमें किसी संतति का स्थान नहीं होता। अमेरिका समेत विभिन्न विकसित देशों के आंकड़ों के जरिये इसमें बताया गया है कि किस प्रकार दिन प्रति दिन ऐसे सभी आगे बढ़े हुए देश के लोगों में बिना किसी परिवार के अकेले रहने की प्रवृत्ति जोर पकड़ती जा रही है। अमेरिका में 1950 में अकेले रहने वाले लोगों की संख्या जहां सिर्फ 40 लाख, अर्थात वहां की आबादी का 9 प्रतिशत थी, वहीं अब 2011 की जनगणना के मुताबिक इनकी संख्या बढ़ कर 3 करोड़ 30 लाख, अर्थात आबादी का 28 प्रतिशत हो चुकी है। इसमें दिये गये तथ्यों से पता चलता है कि ऐसे एकाकी लोगों की सबसे बड़ी तादाद स्वीडन में, 47 प्रतिशत है, फिर ब्रिटेन में 34 प्रतिशत, जापान में 31 प्रतिशत, इटली में 29 प्रतिशत, कनाडा में 27 प्रतिशत, रूस में 25 प्रतिशत, दक्षिण अफ्रीका में 24 प्रतिशत तथा केन्या, ब्राजील और भारत की तरह के विकासशील देशों में क्रमशः 15 प्रतिशत, 10 प्रतिशत और 3 प्रतिशत है।

‘टाईम’ में आधुनिक दुनिया की इस नयी सच्चाई को इस दुनिया के चरम आणवीकरण ((Ultimate Atomization) ) का संकेत कहा गया है। पहले आधुनिक जीवन को एकल परिवार (Nuclear Family) से जोड़ा जाता था, अब इसका तात्पर्य क्रमशः अकेला आदमी होता जा रहा है। उभरती हुई इस नयी सचाई को समाजशास्त्रियों का एक हिस्सा जहां समाज के ‘स्वास्थ्य और खुशियों’ के लिये हानिकारक मानता है, और इसकी व्याख्या कुछ इस प्रकार करता है कि “यह इस बात का संकेत है कि हम कितने अकेले और असंलग्न हो गये है।”

इसके विपरीत, दूसरी व्याख्याएं यह कहती है कि इस बात के कोई प्रमाण नहीं है कि अकेले रहना अमेरिकी आदमी को अधिक अकेला बना दे रहा है। ‘लोनलीनेस’ पुस्तक के सह-लेखक टी. केसियोपो के अनुसार मुद्दे की बात यह नहीं है कि हम अकेले रहते हैं, बल्कि यह है कि क्या हम अपने को अकेला महसूस करते हैं। “किसी गलत आदमी के साथ रहने से अधिक एकाकीपन और किसी में बात में नहीं है।” खुद ‘टाईम’ पत्रिका के लेखक एरिक क्लिनेनबर्ग के अपने सर्वेक्षण के अनुसार, अधिकांश अकेले लोग अकेली आत्माएं नहीं होती है। इसके विपरीत, उनके अनुसार, तथ्य यह बताते हैं कि अकेले रहने वाले लोग अन्य लोगों के साथ रहने वालों की तुलना में कहीं ज्यादा सामाजिक गतिविधियों के जरिये अपनी कमी को पूरा कर लेते है और जिन शहरों में अकेलों की संख्या ज्यादा है, वे एक ‘समृद्ध सार्वजनिक संस्कृति’ का मजा लेते हैं।

क्लिनेनबर्ग का मानना है कि “अन्ततः अकेले रहने से एक उद्देश्य की पूर्ति होती हैः यह पवित्र आधुनिक मूल्यों - व्यक्ति स्वातंत्र्य, आत्म-नियंत्रण, और आत्मानुभव - को अपनाने में हमारे लिये मददगार होता है जो किशोरावस्था से लेकर अंतिम दिनों तक हमारा साथ देते हैं।'

“अकेले रहना हमें इस बात की अनुमति देता है कि हम अपनी शर्तों पर अपनी मर्जी का जब मन आए काम करें। यह हमें किसी घरेलू सहभागी की जरूरतों और मांगों की बाधाओं से मुक्त करता है और खुद पर केंद्रित होने की अनुमति देता है। डिजिटल मीडिया और लगातार फैल रहे सोशल नेटवर्क के आज के युग में अकेले रहने के और भी ज्यादा लाभ मिल सकते हैं, मसलन्, सिद्धिकारी एकांत के लिये समय और अवसर (Time and Space for Restorative Solitude)।”

‘टाईम’ पत्रिका की यह चर्चा हमें अनायास ही फ्रेडरिक एंगेल्स की अमर कृति ‘परिवार, निजी संपत्ति और राज्य की उत्पत्ति’ की याद को ताजा कर देती है। एंगेल्स ने यह कृति मार्क्स की कई अधूरी रह गयी इच्छाओं में से एक, ल्यूईस एच मौर्गन की कृति ‘प्राचीन समाज’ (Ancient Society or researches in the lines of Human progress from sevegary through Barbarism to civilisation) की खोजों के महत्व को स्पष्ट करने के लिये लिखी थी। मौर्गन दुनिया के ऐसे पहले समाजशास्त्री कहे जा सकते हैं जिन्होंने 40 सालों के एकांतिक अध्ययन के जरिये हमारे लिखित इतिहास के प्रागैतिहासिक आधार अर्थात सामाजिक ढांचे की खोज की और उसका पुनर्निर्माण किया। इस कृति की एंगेल्स की भूमिका के अनुसार कार्ल मार्क्स चाहते थे कि इतिहास के भौतिकवादी अध्ययन के जरिये वे जिन निष्कर्षों तक पंहुचे थे, मौर्गन की खोजों के परिणामों से उन निष्कर्षों की पुष्टि की जाए और उन्हें इतिहास के उनके भौतिकवादी अध्ययन के साथ जोड़ कर पेश किया जाए।

एंगेल्स के विचार में, भौतिकवादी धारणा के अनुसार, “इतिहास में अन्ततोगत्वा निर्णायक तत्व तात्कालिक जीवन का उत्पादन और पुनरुत्पादन है। परन्तु यह खुद दो प्रकार का होता है। एक ओर तो जीवन के - भोजन, परिधान तथा आवास के साधनों तथा इन चीजों के लिए आवश्यक औजारों का उत्पादन होता है, और दूसरी ओर स्वयं मनुष्यों का उत्पादन, यानी जाति प्रसारण होता है। ऐतिहासिक युग विशेष तथा देश विशेष के लोग जिन सामाजिक व्यवस्थाओं के अन्तर्गत रहते हैं, वे इन दोनों प्रकार के उत्पादनों से, अर्थात् एक ओर श्रम के विकास की अवस्था और दूसरी ओर परिवार के विकास की अवस्था से निर्धारित होती है। श्रम का विकास जितना ही कम होता है, तथा उत्पादन की मात्रा जितनी ही कम होती है, और इसीलिए समाज की सम्पदा जितनी ही सीमित होती है, समाज व्यवस्था में रक्त-सम्बन्धों का प्रभुत्व उतना ही अधिक जान पड़ता है।” मौर्गन ने अपने विशद अध्ययन के जरिये इसी तथ्य की पुष्टि की थी।

इसी के आधार पर एंगेल्स पूंजीवाद के बाद के प्रचुरता से भरे नये साम्यवादी समाज में यौन-संबंधों के स्वरूप का कयास लगाने की कोशिशों के बारे में इस पुस्तक में कहते हैं कि उसके बारे में आज सिर्फ नकारात्मक अनुमान लगाये जा सकते हैं कि तब क्या चीजें नहीं रहेगी? “उसमें कौन सी नयी चीजें जुड़ जायेगी, यह उस समय निश्चित होगा जब एक नयी पीढ़ी पनपेगी - ऐसे पुरुषांे की पीढ़ी जिसे जीवन भर कभी किसी नारी की देह को पैसा दे कर या सामाजिक शक्ति के किसी अन्य साधन के द्वारा खरीदने का मौका नहीं मिलेगा, और ऐसी नारियों की पीढ़ी जिसे कभी सच्चे प्रेम के सिवा और किसी कारण से किसी पुरुष के सामने आत्म-समर्पण करने के लिये विवश नहीं होना पड़ेगा, और न ही जिसे आर्थिक परिणामों के भय से अपने को अपने प्रेमी के सामने आत्मसमर्पण करने से कभी रोकना पड़ेगा। और जब एक बार ऐसे स्त्री-पुरुष इस दुनिया में जन्म ले लेंगे, तब वे इस बात की तनिक भी चिन्ता नहीं करेंगे कि आज हमारी राय में उन्हें क्या करना चाहिए। वे स्वयं तय करेंगे कि उन्हें क्या करना चाहिए और उसके अनुसार वे स्वयं ही प्रत्येक व्यक्ति के आचरण के बारे में आम राय का निर्माण करेंगे - और बस, मामला खतम हो जायेगा।”

मौर्गन भी अपने अध्ययन में इस निष्कर्ष पर पंहुचे थे कि “यदि सुदूर भविष्य में एकनिष्ठ परिवार समाज की आवश्यकताओं को पूरा करने में असमर्थ सिद्ध होता है, तो आज यह भविष्यवाणी करना असंभव है कि उसका स्थान विवाह का कौन सा रूप लेगा।”

मौर्गन और एंगेल्स के परिवार और यौन-संबंधों के बारे में इस समूचे विमर्श की पृष्ठभूमि में आज यदि ‘टाईम’ पत्रिका की उपरोक्त चर्चा को देखे तो ‘श्रम का विकास और उत्पादन की मात्रा’ के साथ परिवार के स्वरूप में बदलाव की सचाई को आज के युग में और भी आसानी से देखा जा सकता है। एकनिष्ठ परिवार के उद्भव को एंगेल्स के विश्लेषण के आधार पर ही आम तौर पर पूंजीवाद के साथ जोड़ कर देखा जाता है। एंगेल्स इतिहास के भौतिकवादी अध्ययन के जरिये पूंजीवाद में श्रम के विकास और उत्पादन की मात्रा में परिवर्तन की एक नयी मंजिल को देखते हैं और इसके समानान्तर सामन्तवाद की तुलना में पूंजीवादी व्यवस्था में समाज में रक्त-संबंधों के घटते हुए प्रभुत्व और संयुक्त परिवारों के स्थान पर एकनिष्ठ परिवार के उदय की प्रक्रिया भी देखते हैं। मौर्गन और एंगेल्स के इन्हीं अवलोकनों के आधार पर भौतिकवादी समाजशास्त्रियों में एकनिष्ठ परिवार को पूंजीवाद के साथ अनिवार्य रूप से जोड़ कर देखने की परिपाटी चल पड़ी है। लेकिन ‘श्रम के विकास और उत्पादन की मात्रा’ की जिस बुनियादी कसौटी पर एंगेल्स ने रक्त-संबंधों के प्रभुत्व की मात्रा को तय किया था, उसी कसौटी पर पूंजीवाद के अंतर्गत ही श्रम के और विकास तथा और ज्यादा उत्पादन की मात्रा की परिस्थितियों में यौन-संबंधों के नये रूपों के उद्भव की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है। इसीलिये, ‘टाईम’ के सर्वेक्षण में विकसित पूंजीवादी देशों में समाज के ‘चरम आणवीकरण’ की प्रवृत्ति की भी सही समाजशास्त्रीय व्याख्या मौर्गन और एंगेल्स के अध्ययन और उनके द्वारा निर्धारित की गयी कसौटियों के आधार पर करना सबसे ज्यादा समीचीन जान पड़ता है।

इसी श्रंखला में, गौर करने लायक बात यह है कि विकसित दुनिया में परिवार के बजाय अकेले आदमी का ही सबसे बुनियादी सामाजिक इकाई के रूप में उभर कर आने वाला यह नया यथार्थ तब है जब इस दुनिया में अब भी स्त्री-पुरुष समानता पूरी तरह से कायम नहीं हुई है और पुरुषांे की ऐसी पूरी नयी पीढ़ी नहीं आ गयी है “जिसे जीवन भर कभी किसी नारी की देह को पैसा दे कर या सामाजिक शक्ति के किसी अन्य साधन के द्वारा खरीदने का मौका नहीं मिलेगा”, और न ही नारियों की ऐसी पूरी पीढ़ी पैदा हो गयी है “जिसे कभी सच्चे प्रेम के सिवा और किसी कारण से किसी पुरुष के सामने आत्म-समर्पण करने के लिये विवश नहीं होना पड़ेगा, और न ही जिसे आर्थिक परिणामों के भय से अपने को अपने प्रेमी के सामने आत्मसमर्पण करने से कभी रोकना पड़ेगा।” ऐसे में ‘टाईम’ पत्रिका में अधिसंख्यक अकेले लोगों के शहरों में मनुष्यों द्वारा जिस नयी ‘समृद्ध सार्वजनिक संस्कृति’ के उपभोग का उल्लेख किया गया है, वही सभ्यता अथवा आधुनिक मूल्यों का अन्त नहीं है। इसके स्वरूप में भी आगे अनिवार्य तौर पर और बड़े तथा गुणात्मक परिवर्तन आयेंगे, इसमें कोई शक नहीं है। और, कहना न होगा, ये भावी नये परिवर्तन समाज के उस नये समानतावादी क्रांतिकारी रूपान्तरण से जुड़े होंगे जिनका उल्लेख एंगेल्स ने अपनी कृति में किया था।

आज एकनिष्ठ विवाह की जड़ें तो हिल गयी है, लेकिन एंगेल्स ने पूंजीवाद के अंतर्गत पैदा हुए एकनिष्ठ विवाह के साथ अभिन्न रूप में जुड़े व्यभिचार और वेश्यावृत्ति की जो बात कही थी, वह पूंजीवादी गैर-बराबरी से जुड़ी सचाई है। पूंजीवादी दुनिया के अकेलों से भरे शहरों की ‘समृद्ध सार्वजनिक संस्कृति’ के साथ अभी तक तो यह व्यभिचार और वेश्यावृत्ति स्थायी रूप से चिपके हुए दिखाई देते हैं। यही इस नयी, अकेली दुनिया की सबसे बड़ी विडंबना है। अकेलेपन के अभाव से लेकर अकेलेपन के आनन्द तक की व्यक्ति की ऐतिहासिक यात्रा के समूचे वृत्तान्त में विडंबना की ऐसी गुत्थियों के सुलझने में ही मनुष्यता की प्रगति है। कहना न होगा कि यह पूंजीवादी ‘व्यक्ति’ के ही लोप की भी प्रक्रिया होगी।

अन्त में, मार्क्स, एंगेल्स के कम्युनिस्ट पार्टी के घोषणापत्र के एक छोटे से उद्धरण के साथ अपनी बात खत्म करूंगा। घोषणापत्र के जिस अंश में उन्होंने परिवार, नारियों की स्थिति आदि विषयों का जिक्र किया है, उसी में वे कहते हैं कि “वर्तमान परिवार, पूंजीवादी परिवार किस आधार पर टिका है? पूंजी और निजी लाभ पर।’ अपने पूर्ण विकसित रूप में ऐसा परिवार सिर्फ पूंजीपतियों में मौजूद है। लेकिन सर्वहाराओं के बीच व्यवहारिक अर्थ में परिवार की अनुपस्थिति और खुले आम वेश्यावृत्ति इस यथार्थ के पूरक तत्व है।

“काल क्रम में पूंजीवादी परिवारों का तभी लोप होगा जब उसके इन पूरकों का लोप होगा, और दोनों का ही लोप होगा पूंजी के लोप के साथ।”





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