रवि भूषण पाठक
गांगेय प्रदेश चुनाव 2012 भय और श्रद्धा के निमित्त शायद पुरानों की तरह ही निर्धारित थे यहॉ आदमी नहीं जाति रहते थे कभी कभी मूल गोत्र टोला गुट भी ये सांपों को पूजते थे बिना पर्यावरण की चिंता किए यद्यपि कई के बाप बेटे मॉ डँसे गए थे पर निरपराध सांपों को भी कुचल डालते थे छद्मफणिधर और र्निविष भुजंगों की पेट में बरछा डाल घूमाते थे चौराहों पर गांगेय प्रदेश के’धामन’ ,’हरहारा’ ढ़ोढि़या ,पनहारा गांव पर खतरा भी गंगा से ही था गंगापुर गंगा के पेट में ही तो था ससुर ! यद्यपि गांव जन्मा भी गंगा के द्वारा लाई जलोढ़ों से ही इसीलिए गंगा पूजी जाती थी इस ऐतिहासिक विवशता के साथ गंगा द्वारा लीलने के प्रयास के चिह्न गांव के चारों ओर फैले थे। ब्राह्मण अपनी पौराणिक विद्वता के बावजूद लैट्रिन की नाली गंगा में खोलते थे ठाकुर महाभारतकालीन शांतनु की कथा को बार-बार कहते आदि माता का तट ही उनके तमाम दुष्कर्मो के साक्षी थे कायथों ने केवल बोलना लिखना ही जाना था धीरे धीरे धीरे धीरे............. अन्य जातियॉ कम सक्रिय थी ये कविता उन्हीं कम सक्रियों की है जिन्हें गंगापुर के मतदान क...