वन्दना शुक्ला के उपन्यास ‘मगहर की सुबह’ का एक अंश
वन्दना शुक्ला ने थोड़े ही समय में कहानीकार के रूप में अपनी पहचान बना ली है । जीवन की उष्मा से भरी हुई उनकी कहानियाँ सहज ही हमारा ध्यान आकृष्ट करती रही हैं। आधार प्रकाशन से वन्दना का पहला उपन्यास ‘मगहर की सुबह’ आने वाला है। इस उपन्यास में भी ग्रामीण और कस्बाई जीवन के रंग अपनी पूरी आभा के साथ मौजूद हैं। इसी उपन्यास का एक अंश आपके लिए प्रस्तुत है। उपन्यास अंश मगहर की सुबह इस गांव में एक सरकारी विद्यालय हुआ करता था । मिसिर जी की प्राथमिक शिक्षा दीक्षा इसी सरकारी विद्यालय में संपन्न हुई । जाड़ों और गर्मियों के मौसम में कक्षाएं खुले मैदान में पेड़ों के नीचे या धूप में लगा करतीं । धूप जो सीधी और कभी घूम फिर के नीम, बरगद, पीपल, कचनार, झडबेरी आदि पेड़ों के झुरमुट में से रास्ता बनाती हुई पत्तों के सायों को ओढ कर पेड़ों के नीचे बिछ जाती थी । चार छः भद्रंग छोटे कमरे जिनके ऊपर एक जंग खाई लोहे की टीन पर उतना ही मैला कुचैला...