सुशील कुमार की कविताएँ
भाषा शब्द बन कर कवि के पास कैसे आती है इसे जानने के लिए आपको कवि के घर जाना पड़ेगा जो अपने घर में रहते हुए भी प्रकृति से जुड़ा होता है. हो सकता है आपको वहाँ भौतिक सुविधाओं का अभाव दिखे, लेकिन आत्मीयता की सुगन्ध और समृद्धि आपको वहाँ जरुर दिखाई पड़ेगी. ऐसी ही समृद्धि से युक्त सुशील कुमार की कविताएँ आज हम प्रस्तुत कर रहे हैं. आईए पढ़ते हैं सुशिल कुमार की कविताएँ - कवि का घर (उन सच्चे कवियों को श्रद्धांजलिस्वरूप जिन्होंने फटेहाली में अपनी जिंदगी गुज़ार दी ) कि सी कवि का घर रहा होगा वह और घरों से जुदा और निराला जहाँ चींटि यों से ले कर चिरई तक उन्मुक्त वास करते थे चूहों से गिलहरियों तक को जहाँ हुड़दंग मचाने की छूट थी बेशक उस घर में सुविधाओं के ज्यादा सामान नहीं थे ज्यादा दुनियावी आवाज़ें और हब-गब भी नहीं होती थीं पर वहाँ प्यार , फूल और आदमीयत ज्यादा महकते थे आत्माएँ ज्यादा दीप्त दिखती थीं साँसें ज्यादा ऊर्जस्वित धरती की सम्पूर्ण संवेदनाओं के साथ प्यार , फूल और आदमीयत की सु- ...