नीलाम्बुज सिंह की कविताएँ
नीलाम्बुज सिंह |
बचपन में ही पहला उपन्यास 'चित्रलेखा' पढ़ा और कविता पढ़ी 'कुकुरमुत्ता'. यहीं से साहित्य के कीटाणु लग गए. डी. यू. से नजीर अकबराबादी की कविताओं पर एम फिल कर चुकने के बाद जे. एन. यू. के भारतीय भाषा केंद्र से 'सामासिक संस्कृति और आज़ादी के बाद की हिंदी कविता' पर पी-एच. डी. कर रहा हूँ.
आजीविका के लिए अध्यापन करता हूँ.
कुछ फुटकर रचनाएँ (शोध लेख, आलोचना, कवितायेँ, समीक्षाएं और रिपोर्ताज) प्रकाशित
आजीविका के लिए अध्यापन करता हूँ.
कुछ फुटकर रचनाएँ (शोध लेख, आलोचना, कवितायेँ, समीक्षाएं और रिपोर्ताज) प्रकाशित
कविता क्या है? यह सवाल अक्सर कवियों को मथता रहा है. आज भी जब कोई युवा कवि कविता की दुनिया में प्रवेश करता है तो इस सवाल से टकराने की कोशिश करता है. कविता की दुनिया में नए युवा कवि नीलाम्बुज भी इसी क्रम में 'कविता आखिर कविता है दोस्त' शीर्षक से कविता लिखते हैं जिसमें वे बेबाकी से कहते हैं कि कविता और अनुशासन नहीं तो वह स्वच्छन्दता भी नहीं है. इसी क्रम में वे आगे लिखते हैं -
'आज़ादी है करुणा की!/ कविता विराग नहीं/ अनुराग है- /मनुष्य का मनुष्यता से/ जीव का जीवन से/ यह हार नहीं, विजय है/ विकृति पर संस्कृति की/ कविता, आखिर कविता है दोस्त!'
नीलाम्बुज कवि-दायित्व का निर्वहन उसी सजगता से करते हैं जिसकी हम हम किसी कवि से अपेक्षा करते हैं. इसी क्रम में वे 'नीडोतनिया' जैसी कविता लिखते हैं. और उस मुद्दे को रेखांकित करने का प्रयास करते हैं जिसे हम कुछ ही दिनों में भूल बैठते हैं. वे पाते हैं कि अरुणाचल के जिस लड़के नीड़ो तानियम को उसके प्रादेशिक पहचान की वजह से दिल्ली में मार डाला गया, उसका चेहरा उनके किसी पड़ोसी, भाई या फिर देश के किसान के काफी मिलता जुलता है. आज की विकट परिस्थितियों में आम आदमी कुछ ऐसा ही महसूस कर रहा है. वह हर जगह अपने को ठगा हुआ पा रहा है. कुछ इसी तरह की गहन संवेदनाओं वाले कवि की कविताओं के साथ आज हम आपसे रूबरू हैं. आइए पढ़ते हैं युवा कवि नीलाम्बुज की कविताएँ.
नीलाम्बुज सिंह
नीडोतनिया
मेरे मरहूम दोस्त
तुम्हारे बालों का क्या रंग था?
तुम्हारे बालों का क्या रंग था?
तुम्हारी बोलती सी आँखें मुझे सोने
नहीं दे रहीं
तुम्हारा चेहरा मिलता है मेरे किसी भाई से
किसी पड़ोसी से
मेरे किसी दोस्त से
मेरे देश के किसी मेहनती किसान से
किसी निरीह मजदूर से
मेरे देश के किसी भावी खिलाड़ी से
तुम्हें मार दिया गया!
देश साउथ एक्स में भी है
देश लाजपत नगर में भी है
देश लिट्रेचर फेस्टिवल और सिने शो में भी है थोड़ा थोड़ा
देश तो तवांग में भी होगा
देश तो होगा कछार में भी
देश तो त्रिपुरा के सिलाचरी बॉर्डर पर भी है
देश मस्त है, देश
शर्मिंदा है, देश
डरा हुआ है, देश
क्षुब्ध है
कितना अलग है तुम्हारा और मेरा देश नीडो?
मेरे ज़िंदा दोस्त!
तुम्हारे बालों का रंग कैसा भी था
तुम्हारे लहू का रंग तो लाल है न!
मेरे भी लहू का रंग लाल ही है।
देश का क्या रंग है?
शर्मिंदगी का क्या रंग होता होगा?
तुम्हारे सपने जब 2000 किलोमीटर से भी ज्यादा
दूरी तय करके गए थे राजधानी में
तो उनको पंख तक ठीक से न लग पाये थे
और तुम्हें बेदर्दी से मार दिया गया।
धरने थे, रैलियाँ थीं, नारे थे
रिपोर्ट थी, एन
जी ओ थे, थाने थे
नहीं थी तो इंसानियत
नहीं था तो वो जज़्बा
जो रंग को नहीं आत्मा को देख लेता है
मैं तुमको नहीं जानता दोस्त
लेकिन तुमको बहुत सारा जान गया हूँ अब
तुम्हारे बहाने थोड़ा सा जान गया हूँ खुद को
थोड़ा सा राजधानी को
थोड़ा सा रंग को
थोड़ा सा ख़ून को।
(नीड़ो तानियम या तानिया अरुणाचल का वह लड़का था जिसे उसके बालों के रंग और नार्थ ईस्ट की पहचान की वजह से दिल्ली में भीड़ के हमले में मार दिया गया था।)
परिवर्तन
जब पहली बार
बैठा था वो
'पिज्जा हट' में
तो उसे याद आई थी
चूल्हे की अधजली
रोटी,
याद आई थी उसे
अपनी टपकती हुई झोपडी
जब लिफ्ट से उसने
पच्चीसवें माले पर
कदम रखा था,
बूढ़े बॉस के चेहरे
की
लालिमा की तुलना
उसने जवान भाई के
मुरझाये हुए चेहरे
से की थी,
शहर की चमचमाती सड़कों
में
उसे रह-रह कर
गाँव की गड्ढे वाली
कच्ची सड़क
याद आई थी,
उसे जब पहली बार
मिला
कॉर्पोरेट कंपनी
से
'पेमेंट' का चेक
तब उसे कुछ याद नहीं
रहा...
अब वो खुश है !
कविता लिखना आसान है
समझाना उससे ज़रा ज्यादा मुश्किल
और जीना?
बहुत कठिन है साथी
कविता को जीना बहुत कठिन है!
आज
वो शोख तितली है
कि गहरा सागर है
वो हवा है कि चट्टान?
उसे समझना न मुश्किल है न आसान।
फिर भी मैं कभी-कभी करता हूँ कोशिश
और पाता हूँ कि
वह पानी है!
यह पानी उसकी आत्मा से ले कर
उसकी आँखों तक फैला हुआ है
जिसे वह अक्सर अपनी हँसी से
छिपा लेती है।
कविता, आखिर कविता है दोस्त!
कोई दस्तावेज़ नहीं
कविता, आखिर कविता है दोस्त!
कविता
कोई दस्तावेज़ नहीं
जिसे आप टाइप कर दें
पाठक के ह्रदय पर.
यह स्फूर्त है संवेदनाओं से.
कोई अस्त्र नहीं जिससे लड़ा जाये
किन्तु आत्म बल का प्रकाश है
संवेगों की उत्प्रेरक है
निश्चय है-
बाधाओं को पार कर जाने का.
कविता अनुशासन नहीं
स्वच्छंदता भी नहीं है
पर-
स्वतंत्रता है प्रेम की
आज़ादी है करुणा की!
कविता विराग नहीं
अनुराग है-
मनुष्य का मनुष्यता से
जीव का जीवन से
यह हार नहीं, विजय है
विकृति पर संस्कृति की
कविता, आखिर कविता है दोस्त!
संपर्क-
केन्द्रीय विद्यालय, नंबर एक,
कांचरापाड़ा, 24 परगना (उत्तर),
पश्चिम बंगाल में हिंदी प्रवक्ता
मोबाईल- 08100938431, 07044178071
ई-मेल : thenilambuj@gmail.com
ब्लॉग : http://nilambujciljnu.blogspot.com(इस पोस्ट में प्रयुक्त पेंटिंग्स वरिष्ठ कवि विजेन्द्र जी की हैं.)
बहुत बहुत सुंदर भावनायें और शब्द भी ...बेह्तरीन अभिव्यक्ति ...!!शुभकामनायें.
जवाब देंहटाएंbahut sundar kavitaye...
जवाब देंहटाएंशुक्रिया मदन मोहन जी और उपासना जी। विजेंद्र जी के चित्र बहुत अच्छे लगे अपनी कविताओं के साथ। मौका देने के लिए आभार संतोष सर । अब पारिश्रमिक कब मिलेगा , ये देखते हैं। कोई अच्छी सी किताब चाहिए मुझे।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर कविताएँ
जवाब देंहटाएंshukriya Onkar jee !
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