ईगर सीद की कविताएँ (मूल रूसी से अनुवाद : अनिल जनविजय)
रूसी कवि, निबन्धकार
और अन्वेषक ईगर सीद (Igor Sid) का जन्म 1963 में सोवियत क्रीमियाई प्रदेश में
हुआ था। रूस में वे अनेक अन्तरराष्ट्रीय सांस्कृतिक और वैज्ञानिक परियोजनाओं के
संयोजक के रूप में भी प्रसिद्ध हैं। द्निप्रापित्रोव्स्क विश्वविद्यालय से
जीवविज्ञान में एम. ए. करने के बाद एक जीव-वैज्ञानिक के रूप में उन्होंने
अण्टार्कटिक प्रदेश की यात्राओं के अलावा हिन्द महासागर में फैले द्वीपों और
अफ़्रीका के अनेक देशों में सम्पन्न हुए कई वैज्ञानिक अभियानों में हिस्सा लिया।
ईगर सीद की कविताएँ रूस में और रूस
के बाहर अन्य देशों में प्रकाशित होने वाले रूसी कविता के प्रमुख संकलनों में
शामिल हैं। सन 2012 में ईगर सीद का तीसरा कविता सँग्रह ‘कपटी क्रीमियाई’ (कवारनी क्रीमत्सि) शीर्षक से
प्रकाशित हुआ था। अब तक इनकी कविताओं के अनुवाद हिन्दी और अँग्रेज़ी
भाषाओं के अलावा अरमेनियाई, मलाया, नीदरलैण्डी, रुमानियाई, उक्रअईनी और फ़्रांसीसी भाषाओं में प्रकाशित हो चुके हैं। इनके निबन्धों के अनुवाद
जर्मन भाषा की ‘तागेससाईतुँग’ (Tageszeitung) और जापानी भाषा की ‘गेन्दाई सीसो’ (Gendai Shiso) जैसी प्रमुख पत्रिकाओं में छपे हैं। इसके अलावा ईगर सीद विडियो-कविता के क्षेत्र में
बेहद सक्रिय हैं। इनके विडियो कविता-पाठ को सिडनी में 2010 में हुए आस्ट्रेलियाई ‘एण्टीपोड’ (Antipodes) साहित्य महोत्सव और 2013 में रूस के नवासिबीर्स्क नगर में
सम्पन्न अन्तरराष्ट्रीय मीडिया-कविता महोत्सव ‘एक्सपीरियंसिस’ (Experiences) यानी ‘अनुभव’ में पुरस्कार मिल चुके हैं। पहली बार के लिए इन कविताओं का मूल रूसी भाषा से अनुवाद किया है अनिल
जनविजय ने।
समकालीन रूसी कवि ईगर सीद की कविताएँ
मूल रूसी से अनुवाद : अनिल जनविजय
पृथ्वी की रक्तवाहिकाएँ
सागर, नदियाँ, झीलें और तालाब हैं
पृथ्वी का रक्तवाहिका तन्त्र
इनमें से हर चीज़ का अलग महत्व है
अलग है ज़िम्मेदारी पृथ्वी की हर रक्तवाहिका की।
हमारे इस ब्रह्माण्ड की सबसे बड़ी नदी है अमेज़न
पृथ्वी का सबसे ज़्यादा रक्त यानी मीठा पानी
दक्षिणी अमेरिका की इसी नदी में है।
यह नदी अक्सीर का काम करती है पृथ्वी पर जीवन के लिए
इस नदी-घाटी के इलाके में फैले विशाल जंगल
अमेज़न वन कहलाते हैं, जिन्हें पृथ्वी के फेफड़े माना जाता है।
पृथ्वी की आज की पर्यावरण दूषण की स्थिति में
भारी दबाव है पृथ्वी के फेफड़ों पर।
कुछ ऐसा हो गया है कि
पृथ्वी की रक्तवाहिकाओं की गति धीमी हो गई है
ऐसी ही एक नदी है रूस में, जिसे अमूर कहा जाता है
लेकिन अमेज़न के जंगलों में अमूर नदी को
नहीं खोजा जा सकता है
उनमें तो घुली हुई है अमेज़न नदी।
एक और नदी है गंगा
भारत की जान है जो
भारत की पहचान है वो।
एक नदी है नील
मिस्र के मैदानों में बहती है जो
पृथ्वी की इन सभी रक्तवाहिकाओं पर
दबाव बढ़ता जा रहा है
ऐसी स्थिति में मैं एक सपना देखता हूँ
फैल रहा है मेरा सपना तूफ़ान की तरह चारों दिशाओं में
सपना नहीं है यह, भावनाओं के गहरे तालाब और झीलें हैं
बचाना है हमें अपनी पृथ्वी की रक्तवाहिकाओं को
बचाना है उसके फेफड़ों को
पर पृथ्वी पर मनुष्य एक गहरी तन्द्रा में है
यह एक नींद में, जिससे बचना
असम्भव है
मनुष्य की खोपड़ी सो रही है
अपने बदसूरत चेहरे के साथ
हो सकता है यह मेरी अभिव्यक्ति की ग़लती है
जो विद्वानों और पृथ्वी के गायकों के ख़ून में मिल गई
है।
लेकिन मेरा मानना है कि
जब तक पृथ्वी की रक्तवाहिकाओं में
बह रहा है स्वच्छ रक्त
जब तक अमेज़न और अमूर नदियाँ जीवित हैं
पृथ्वी पर रहने वाले
सात अरब लोगों का
जीवन सुरक्षित रहेगा
उन्हें मिलता रहेगा प्रेम।
समय और हम
अगर आप राह में नहीं हैं
तो समय उलटा चलने लगता है ।
आपको खड़े रहने की ज़रूरत नहीं
और मुझे चलते रहने की कोई सूरत नहीं।
2018
पुरुष का अहंकार
प्राचीन
काल से ही पुरुष ख़ुद को दिखाता है बुद्धिमान
होता
है उसमें अत्यन्त विशाल अजगर-सा अभिमान।
गोल
घेरे बना कर, ताक़त
दिखा कर, बनता है सत्ताधीश
परिवार
की ख़ुशी का जैसे सिर्फ़ उसे ही रहता है भान।
ख़ुद को
मानता है वह आदर्श परिवार के लिए
बढ़ती
चली जाती हैं उसमें परतें अभिमान की।
पर
पुरुष जो सोचता है साहसी, दिलेर ढंग से
उसमें
होती नहीं, कोई ज़िद, दिखावे की, शान की।
झुलसी
हुई पृथ्वी की रणनीति
झुलसी हुए पृथ्वी की रणनीति ऐसी है
कि वह कर रही है मेरे दिल के
टुकड़े-टुकड़े
जबकि उसकी अपनी परम्पराएँ हैं, अपना है रेगिस्तान।
बुजुर्ग बैठे हुए हैं एक घेरा बनाकर और
बता रहे हैं
यह बहुत पुरानी बात है, पचासियों साल पुरानी
जब वे बहुत छोटे थे
बड़े-बूढ़ों ने उन्हें बताया था
कि रेगिस्तान में कहीं
कहाँ, यह किसी को याद नहीं
एक दिन
कब, किसी को मालूम नहीं
आसमान से टपकी थी बारिश की एक बून्द।
बड़े-बूढ़े कभी झूठ नहीं बोलते।
वैसे भी सूखे हुए गले के साथ
जब बेहद प्यास लगी हो
झूठ बोलना सम्भव नहीं है।
मेरा दिल टुकड़े-टुकड़े हो जाता है
रेगिस्तान पर तरस बहुत आता है
प्यार करता हूँ मैं रेगिस्तान को।
हमारी पृथ्वी के सबसे बड़ा रेगिस्तान
में
एक कोने में बना है सबसे बड़ा
नखलिस्तान
लेकिन उसे देख मुझे उतनी ख़ुशी नहीं
होती
जितनी ख़ुद उस रेगिस्तान को देख कर।
हज़ारों साल पहले यहाँ फैला था सदाबहार
जंगल
हमारी इस धरती का सबसे बड़ा वन।
पृथ्वी का यह सबसे बड़ा रेगिस्तान
लगता है, इससे है भारी जान-पहचान
आख़िर कारण क्या है इसका?
हमारी पृथ्वी का सबसे बड़ा रेगिस्तान
जिसके एक कोने में बना है सबसे बड़ा
नखलिस्तान।
सरदियाँ बिताने के लिए,
गर्म देशों की ओर उड़ते हुए पंखों वाले
घोड़े
आराम करने के लिए उतरते हैं यहाँ।
रचते हैं पवित्र गीत और वचन
मैं यहीं पर जन्म लेना चाहता हूँ।
बुजुर्गों के उस घेरे में बैठना चाहता
हूँ
टूटे हुए दिल के टुकड़ों के इकट्ठा
करना चाहता हूँ।
मैं बताना चाहता हूँ कि बहुत साल पहले
रेगिस्तान में कहीं
मुझे अच्छी तरह से याद है वहीं
एक दिन जब
मुझे अच्छी तरह से याद है कब
एक टिब्बे पर खड़ा था मैं
थी सुबह-सवेरे की वेला
मेरे कन्धे पर लटका था एक ख़ाली थैला
कई दिन का उपासा था मैं
बेहद प्यासा था मैं
मेरे ऊपर हज़ार मील दूर
उड़ रहा था एक बादल भरपूर
अचानक वह आवारा, शैतान
उतर पड़ा वहाँ देख रेगिस्तान।
मेरे सामने, मेरे पड़ोस वाले टिब्बे पर,
उस समय खड़ी थी एक विशाल छिपकली
मुँह खुला हुआ था उसका, थी बड़ी बेकली
अपने बचपन में जब वह छोटी थी असगुनियाँ
उसने भी, सुनी थीं बड़े-बूढ़ों की कहानियाँ।
ईश्वर करता है प्यार वैसे ही रेगिस्तान
से
जितना मैं करता हूँ इस दास्तान से
वहाँ अन्तरिक्ष में जहाँ पानी है बहुत
पानी के सागर हैं, बड़े-बड़े अद्भुत्त
नीला पानी बहता है दिन में, काला पानी रहता है कुदिन में
झरनों की तरह गिरती है बारिश
मिटाने को रेगिस्तान की ख़लिश
झुलसी हुई धरती पर रेगिस्तान की
ईश्वर गिराता है बारिश के झरने
इतनी भारी बारिश, इतना ज़्यादा पानी
करती है रेगिस्तान को ठण्डा बड़े प्यार
से
भूल जाते हैं हम अपनी सारी बुद्धिमानी।
गर्मी में डूबी है झुलसी हुई पृथ्वी
रूखी
अन्तरिक्ष से गिरती है बारिश की बूँदें
पर वे हमारे एक मील ऊपर ही सूखी।
छिपकली और मैंने दूर बादल को देखा
फिर एक दूसरे को देख किया यह लेखा
फिर खोल लिए अपने प्यासे, सूखे मुँह
और सोचा अपनी परम्पराओं के बारे में
खड़े उस रेगिस्तान में, जहाँ चारों ओर थे ढूह।
मैंने और छिपकली ने एक दूसरे को देखा
और फिर पढ़ी हमने एक-दूसरे की ललाट
रेखा।
दोनों को एक ही दुख सुहाता है
दुख हमारी पहचान को व्यापक बनाता है।
झुलसी हुए पृथ्वी की रणनीति है यह –
पहले टुकड़े-टुकड़े कर दो इस दिल के
और फिर उन्हें जोड़ो एक साथ मिल के।
मैं डरता हूँ कि मैं इन ट्कड़ों को जोड़
नहीं पाऊँगा
अपनी इस दुनिया को अँगोर नहीं पाऊँगा।
एक हज़ार मील दूर उड़ेगा वह बादल
एक हजार मील दूर रहेगा सदाबहार वन।
मैं, बस, कर सकता हूँ इतना ही इस हालत में
जब दुनिया डूबी हुई है पूरी तरह जिहालत
में
लोगों के दिल फिर से मैं जोड़ूँ
उनके बीच नफ़रत का जाल मैं फोड़ूँ।
मुठभेड़
तारों भरी रात में
उत्तर-पश्चिम की दिशा से भारत के क़रीब
पहुँचते हुए
विमान में दाईं तरफ़ मैं
खिड़की के पास बैठा हुआ था
और खिड़की से सिर टिका कर बाहर झाँकते
हुए
मैं मोहित हो कर देख रहा था
चुपचाप
यूरेशिया बह रहा है
यूरेशिया बह रहा है
मेरे रास्ते के आर-पार।
भारतीय
उपमहाद्वीप
महासागर
की हिलोरों के पार
हमारी
ओर बढ़ रहा है
साल में
क़रीब एक सेण्टीमीटर से भी ज़्यादा गति से —
उत्तरी
टुकड़ा
असामयिक
रूप से मृत सुपरमहाद्वीप का
जिसका
रोमांचक भारतीय नाम है
गोण्डवाना।
बढ़ रही दुनिया का सिद्धान्त पीड़ादायक
है
अफ़्रीका पश्चिम की तरफ़, आस्ट्रेलिया
पूरब की तरफ़,
अण्टार्कटिक दक्षिण की तरफ़
बेहूदा और क्रूर झगड़ों के कारण हैं
धुआँरहित, विवेकहीन, बेघर टुकड़े।
सिर्फ़ मेडागास्कर ही दुनिया के बीचोबीच
लटका हुआ है
उस महाविस्फोट बिग बैंग के
प्रत्यक्षदर्शी के रूप में।
ये सब हमारे परिवेश में घटा था,
सात करोड़ साल पहले
ठीक-ठीक जानने के लिए डायरी में लिखी
प्रविष्टियों को देखना होगा।
ब्रह्मा ने तब तक रचना नहीं की थी
मनुष्य की,
असुरों की और देवों की,
महानाग मन्थन करते हुए
सागर को बान्ध नहीं पाए थे। और अभी ...
मन्थन जारी था
लीजिए, यह
हिन्दुस्तान है
एक शानदार विमानवाहक पोत के रूप में
ढँके हुए सोए हुए ड्रेगनों, सरीसृपों के साथ
और शान्त मण्डराते हुए विशालकाय
टिड्डों के साथ
क़रीब आ रहा है फहरे हुए केसरिया, सफ़ेद और हरे झण्डे के साथ
जिसके सामने वाले डैक पर
बड़े उत्साह से झूल रहे हैं कुछ बेहद
प्राचीन जानवर
फ़ूलों के साथ अपनी पूँछों को उठाए
खिड़की के शीशे पर धुन्ध जम गई है
साफ़-साफ़ कुछ दिखाई नहीं दे रहा...
अगर मैं कुछ पहले ही यहाँ आ गया होता – तो मुझे
इसका मूल कारण मालूम होता।
अपनी उड़ान के लिए कभी देर से न पहुँचिए
नहीं तो मन में सारी ज़िन्दगी बनी रहेगी
पिछली उड़ान के यात्रियों से ईर्ष्या।
हमारा विमान अभी पामीर के ऊपर ही उड़
रहा था
जब वो अन्तरिक्ष घोष हमारे केबिन में
घुस आया था
आख़िरकार महाद्वीप से टकरा गया था
हिन्दुस्तान
एशियाई मैदान को उड़ाते हुए
हिमालय की महान सिलवटों के समक्ष
नमस्कार भारत!
तुम मुझे एक द्वीप के रूप में नहीं
मिले
मैं उस टकराव को रोक नहीं पाया
मैं नहीं समझ पाया कि क्या हो रहा है
और क्यों हो रहा है
यहाँ तक कि विडियो बनाना शुरू नहीं कर
पाया
मैं ख़ुद को एक बौड़म और असहाय पर्यटक के
रूप में महसूस कर रहा हूँ
जिसका अभियान एक यात्रा में बदल गया
और जिसे बाद में पूरी तरह से रद्द कर
दिया गया
क्योंकि नहीं थे भौगोलिक मानचित्र
जिसको ढूँढ़ने वाला कोई नहीं था
क्योंकि हमारी पृथ्वी अभी भी इतनी
निर्जन है
कि हमारे महाद्वीप भटक रहे हैं
नियन्त्रण के अभाव में
मैंने सब छोड़ दिया
मुझे वापिस जाना है।
अनिल जनविजय |
सम्पर्क
ई मेल : aniljanvijay@gmail.com
बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत अर्थपूर्ण और सजग कविताएं...अनिल जी तो शानदार अनुवादक हैं ही। ईगर और अनिल जी को बधाई
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