प्रचण्ड प्रवीर की कहानी 'शहर में स्टार्ट-अप'




बाजारीकरण ने आज हमारे जीवन के हर क्षेत्र में अच्छा खासा दखल दिया है। यह काम इसने बड़े तरतीब से किया है। धर्म ही नहीं बल्कि हमारे तीज त्यौहार, हमारी परंपराएं भी इससे बुरी तरह प्रभावित हुई हैं। हम चाहें या न चाहें, इनके मकड़जाल में उलझ ही जाते हैं। हमारे वे पर्व जो ऋतु परिवर्तन के साथ जुड़े हुए थे, जो हमारे जीवन में उमंग का संचार करते थे, वे भी इनसे दुष्प्रभावित हुए हैं। होली या दीपावली इसका अपवाद नहीं है। आज होली के अवसर पर पहली बार परिवार की तरफ से सभी को बधाई एवम शुभकामनाएं। आप सबका जीवन रंगों उमंगों से भरा हुआ हो। प्रचण्ड प्रवीर ने कहानी लिखी है जो इस मौके के लिए एक खास उपहार है। आइए आज पहली बार पर हम पढ़ते हैं प्रचण्ड प्रवीर की कहानी 'शहर में स्टार्ट-अप'।



'शहर में स्टार्ट-अप'


प्रचण्ड प्रवीर


कल की बात है। जैसे ही मैंने घर के बाहर कदम रखा, सुबह-सवेरे मंटू अपनी स्कूटी पर मुस्कुराता खड़ा मिला। उसने कहा, “वीरु भइया भेजे हैं। चलिए हमारे साथ।” अब वीरु की मेहरबानी थी।

               


हमारे दोस्त वीरु पूरी दुनिया घूम कर उसी निष्कर्ष पर पहुँचे हैं जो नेपाल का ध्येय वाक्य है – ‘जननी जन्म भूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी।‘ क्या नहीं है हमारे शहर में? घूमना है तो इलेक्ट्रिक रिक्शा पर बैठ कर पूरा शहर घूम लो। खाना है तो एक से एक मिठाई का दुकान है। कपड़ा पहनना है तो एक से एक रेशमी कपड़ा का दुकान है। वीरु ने कई देशों में कई शहरों में होटलों में काम किया और वापस हमारे शहर आ कर अपना ‘स्टार्ट-अप’ खोला है। उसने कहा था कि शहर जब भी आओगे तो हमसे मिलना। ‘स्टार्ट-अप’ के बारे में गप करना है। सो हम गए मिलने। बताया गया कि तुम तो नालायक आदमी हो। दिल्ली में रह कर कोई ‘स्टार्ट-अप’ खोले नहीं? अब हमे देखो। यहाँ नया ‘स्टार्ट-अप’ खोला गया है, ‘पाव-भाजी’, ‘डोसा’ और ‘चाट’ का। बाकी चाट वाला कैसा-कैसा रिफाइन तेल में बनाता है और खिलाता है, हमारे यहाँ सब कुछ ‘शुद्ध घी’ में बनेगा। वीरु ने बताया कि आजकल शहर में ‘स्टार्ट-अप’ बहुत चल रहा है। उसके मोहल्ले में मंटू नाम के लड़के ने एक नया ‘स्टार्ट-अप’ खोला है, गंगा स्नान कराने का।

               


सब याद कर के हम चुपचाप अपना कपड़ा-तौलिया ले कर मंटू की स्कूटी में पीछे बैठ गये। मंटू अपना स्कूटी हवा में उड़ाते हुए बोला, “देखिए भइया। अभी मोबाइल एप नहीं बनाए हैं। लेकिन पूरा कॉन्सेप्ट तैयार है। लोग-बाग मोबाइल से घाट और नहाने का समय बुक करेगा। हमारा आदमी उसको घर से उठा लेगा, मतलब है कि ‘पिक-अप’ कर लेगा। उसके बाद घाट पे ले जा कर छोड़ देगा। वहाँ दूसरा आदमी उसको डुबकी लगा देगा। तीसरा आदमी उसका कपड़ा-लत्ता देखेगा। आपके लिए स्पेशल छूट है क्योंकि वीरु भइया आपको भेजे हैं।”

               


हम क्या बताते कि कौन भेजा है और कौन पकड़ लिया है। रात में वीरु के यहाँ आलू टिक्की चाट खाये तो बोला कि अरे-अरे, ये तो तुम अपने पैसा से खाये हो। हमारे दुकान पर आये हो तो कुछ हमारे मन का, कुछ हमारे पैसा का खाओ। फिर खिला दिया एक प्लेट पापड़ी चाट और फिर पेट का हो गया सत्यानाश। दिल्ली स्टाइल में बिल दिया सो अलग।

               


घाट पर पहुँचे तो मंटू का साथी घोल्टा शर्ट पैंट पहन के एकदम तैयार था। जैसे ही हम उतरे, घोल्टा ने हमारा सामान झपट कर ले लिया – “लाइएगा सर। हम सँभालते हैं। यहाँ बहुत चोर-उचक्का घूम रहा है। आजकल घाट से चप्पल चोरी का बहुत शिकायत आ रहा है। हमारे घाट स्नान स्टार्ट-अप से आपका सारा रिस्क कवर हो रहा है। अगर कोई आपका सामान जैसे कि पर्स, बेल्ट गुम भी हो जाता है तो हर व्यक्ति से मात्र पचास पैसा का इंश्योरेंस हम लेते हैं। बदले में तीस दिन के अन्दर नुकसान का भरपाई हो जाएगा।”

               


मंटू ने स्कूटी पार्क कर के कहा – “आप स्नान कर के आइए। हम यहीं मिलेंगे आपको वापस घर छोड़ने के लिए।”



               


घोल्टा के साथ हम घाट में उतर आये। घोल्टा के सुझाव पर हमने अपने कपड़े, बटुआ आदि निकाल कर उसे पकड़ाया। घोल्टा ने हमें उँगली के इशारे से गङ्गा में खड़े आदमियों के बीच सफेद धोती में मुस्टण्डे पहलवान को दिखा कर कहा, “वो रहे बजरंगी भइया। वो आपको स्नान कर ने में सहायता कर देंगे।” हमने घोल्टा से कहा, “नहीं नहीं, हम खुद ही नहा लेंगे।” घोल्टा ने बानी में मिश्री घोलते हुए कहा, “ऐसे कैसे सर? आप तो हमारा स्टार्ट-अप फेल कर देंगे। बजरंगी जी आपको बढ़िया से डुबकी लगा देंगे। आपको पसंद नहीं आया तो आप रेटिंग के साथ फीडबैक लिख दीजिएगा।”

               


“लेकिन कहाँ? आपका एप कहाँ बना है?” हमारे पूछने पर घोल्टा ने कहा, “आपको शाम तक हमारी वेबसाइट ‘मायगंगास्नान डॉट इन’ से लिंक आ जाएगा। आप चिन्ता मत कीजिए।” हम अभी डर ही रहे थे, सोच ही रहे थे कि नहाऊँ या वापस भाग जाऊँ, तब तक नदी की तरफ से बढ़ते हुए बेहद मजबूत पंजे ने हमें एकदम से पकड़ लिया। देखते ही देखते उस घटोत्कच के अवतार ने हमें सशरीर दोनों हाथों से ऊपर उठा कर नदी की धारा की ओर ले चले। जब करीब पानी में छह फीट उतर गये तब बजरंगी ने कहा, “नाक-कान बंद कर लीजिएगा सर। जल्दी ही हमारा स्टार्ट-अप कान में डालने के लिए अलग से इअर प्लग भी देगा। आप अभी गंगा मइया को प्रणाम कर के स्नान का आनन्द लीजिए।”

               


पहलवान बजरंगी ने हमें गङ्गा में पटक-पटक कर के पाँच डुबकी दिलाई। हम गङ्गा मइया को प्रणाम कर कर के जल्दी से भागे। जब घोल्टा से कपड़ा ले कर पहना जा रहा था, तब घोल्टा ने एक और प्रस्ताव दिया, “सर, साथ में मंदिर दर्शन का भी पैकेज है। ऊपर जगन्नाथ मंदिर है।“ हम इतने आतिथ्य से ही बड़े प्रभावित थे कि और हमारी हिम्मत नहीं थी। लग रहा था कि कान में पानी घुस गया है।

               


घाट के ऊपर जब मंटू के पास पहुँचे, तब मंटू ने स्कूटी चालू करते हुए कहा, “बहुत से विदेशी लोग आते हैं। उनको घाट में नहाना नहीं आता है। हमारा स्टार्ट-अप उन सबके लिए मददगार होगा।“ मंटू अभी स्कूटी चला कर बाजार पहुँचने ही वाले थे कि रास्ते में उन्होंने गाड़ी किनारे कर के रोक दी। हमने सबब पूछा, वो मंटू ने कहा, “देखिए न भइया। वहाँ है आइसक्रीम वाला। आइए न जरा आइसक्रीम खाते हैं।”

   


            


हमने देखा कि आइसक्रीम वाला एक नए ही ब्राण्ड का है। हमारी तफ्तीश पर ठेले वाले ने जवाब दिया, “सही जान रहे हैं सर। ये हमारे शहर का नया स्टार्ट-अप है। इसके सामने क्या देशी क्या इंटरनेशनल, सब फेल हैं। कुल पंद्रह गाड़ी चल रहा है आइसक्रीम का।” मंटू ने उसकी हाँ में हाँ मिलायी, “हमारे स्टार्ट-अप कल्चर के आगे दुनिया फेल हो जाएगी। आप लोग देखते जाइए।”

               


तभी वीरु का फोन आया। “क्या जी, कैसा रहा गंगा स्नान?”

               


“अच्छा था।” हम मरे-मरे आवाज़ में बोले। “सुनो न, तुम्हारी भाभी जौ है न, वो भी एक स्टार्ट-अप खोल रही है। ज़रा तुम मंटू के साथ इधर आ जाओ। उस पर भी विचार कर लेंगे।” हम अब चिढ़ कर बोले, “मेकअप वाला पार्लर? या चूड़ी-बिन्दी का दुकान?”

               


“बहुत कुबुद्धि है तुम्हारे में जी। हर धंधा स्टार्ट-अप होता है क्या? तुमको मेरे स्टार्ट-अप में और बिजनेस में अंतर ही नज़र नहीं आता है? पार्लर वाला आइडिया अब दस साल पुराना हो गया है। वो धंधा करने वाला लोग शहर छोड़ कर गाँव में चला गया है। तुम चाय तो पियोगे नहीं, लेकिन यहाँ तुम्हारी भाभी तुम्हारे लिए जो है न, लस्सी तैयार कर के रखी है। आओ भी।”

               


मंटू फिर वीरु के घर ले कर चला। वहाँ पहुँच कर हम बैठक में बैठे ही थे कि मंटू दस मिनट में आने को कह कर कट लिया। वीरु की अन्दर से आवाज़ आयी कि दो मिनट में आ रहे हैं। इधर हम बैठे ही थे कि अचानक लगा कि मेरे सिर पर कुछ लाल-लाल बूँद टपक रहा है। जब तक पलट कर देखते तब तक भाभी जी ने बाल्टी भर लाल रंग हमारे ऊपर डाल दिया। “बुरा न मानो होली है।“ वे हँसती हुई बोलीं।

               


होली से पहले ही होली के रंग में डूब कर मेरा माथा भन्ना गया। पर भाभी जी को क्या बोलते। वो तो लगातार हँसे जा रही थी। वीरु भाई तब बनियान और पाजामा में निर्विकार प्रकट हुए। बिना किसी शिकन के बोले, “आज कल लोग को होली खेलना नहीं आता है। तुम्हारी भाभी का आइडिया है कि उनके स्टार्ट-अप में देशी और विदेशी दोनों तरह के आदमी को पहले डोसा खिलाया जाएगा, फिर लस्सी पिलाई जाएगी और ऐसे पक्का रंग डाला जाएगा जो कि जल्दी छूटेगा नहीं। अब बाजार में जो रंग मिलता है उसमें कितना मिलावट होता है तुमको तो मालूम ही है। हमारे स्टार्ट-अप में, ‘मायदेसीहोली डॉट इन’ में वनस्पति से बने रंगो का इस्तेमाल होगा। तुम बताओ, इस आइडिया के लिए ‘एंजल इन्वेस्टर’ कैसे ढूँढे?”

               


ये थी कल की बात!



(इस पोस्ट में प्रयुक्त पेंटिंग्स इंटरनेट से साभार ली गई हैं।)

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