सुनील कुमार पाठक का आलेख 'दिल्ली के बड़का अस्पताल में नर्स से जे कहले एगो भोजपुरिया बूढ़ऊ'

 



अपनी बोली भाषा किसे प्रिय नहीं होती। अपनी भाषा में ही हमें जीवन की गहनतम अनुभूतियां प्राप्त होती हैं। केदार नाथ सिंह हिन्दी के महत्त्वपूर्ण कवि रहे हैं। लेकिन अपने एक साक्षात्कार में उन्होंने यह बात कही थी कि मैं चाहता हूं कि मेरा अन्तिम कविता संग्रह भोजपुरी में प्रकाशित हो। इसका आशय यह है कि वे भोजपुरी में कविताएं जरूर लिखते रहे होंगे। सदानंद साही उनके निकटस्थ लोगों में से रहे हैं। उन्होंने केदार जी की दो भोजपुरी कविताएं उनके मृत्यु के उपरान्त अपनी पत्रिका 'साखी' में प्रकाशित की। केदार जी की इन भोजपुरी कविताओं के भी गहरे निहितार्थ हैं। इन भोजपुरी कविताओं को आधार बना कर एक आलेख लिखा है सुनील कुमार पाठक ने। बीते 19 मार्च को केदार जी की पुण्यतिथि थी। उनकी स्मृति को नमन करते हुए आज पहली बार पर हम प्रस्तुत कर रहे हैं केदार नाथ सिंह की भोजपुरी कविताओं पर सुनील कुमार पाठक का आलेख 'दिल्ली के बड़का अस्पताल में नर्स से जे कहलें एगो भोजपुरिया बूढ़ऊ'।



'दिल्ली के बड़का अस्पताल में नर्स से जे कहले एगो भोजपुरिया बूढ़ऊ'


सुनील कुमार पाठक



"ना, हमरा के दवाई मत द

मत द बर्फ के पट्टी 

परवल के जूस

ई किसिम किसिम के टिकिया

ई रंग बिरंग के सीसी 

ना ना 

हमरा के कुछ मत द 

जदि कर सकs

त एतने करs

जब चले लागे बड़की निदिया के झकोर

अउर झलमलाए लागे हमार पलक 

त हमरा कान में बुदबुदा द 

कवनों भोजपुरिया धुन

हम ठीक हो जाइबि।"

         


ई भोजपुरी में लिखल कविता हियs डाॅ. केदार नाथ सिंह के। केदार जी के भोजपुरी प्रेम ना दिखावटी रहे ना शौकिया। ऊ अपना आत्मा के गहिराई से भोजपुरी के चाहत रहस, प्रेम करत रहस, दुलारत-पुचकारत रहस। तथाकथित खाँटी भोजपुरिया लोग कहेला कि का कइले केदार जी? का कइले नामवर जी? का कइले हजारी जी? का कइले मैनेजर जी? आ का करत बाड़ें विश्वनाथ प्रसाद तिवारी जी? भा अष्टभुजा शुक्ल जी? का करत बाड़ें सदानंद जी? भा वशिष्ठ नारायण तिवारी जी? भा चन्द्रकला त्रिपाठी जी? भा जितेन्द्र श्रीवास्तव जी? भा प्रमोद कुमार तिवारी जी? भा अरुण शीतांश जी? भा भरत प्रसाद जी? भा अंचित जी? हम बहुत जल्दी बताएब कि का जोगदान बा एह सब के भोजपुरी खातिर। बैर के बीया जनि बोईं सभे। खाँटी वाला के बेखाँटिये वाला तैयार कइले बा लोग। डाॅ. जितराम पाठक जी, डाँ. रामेश्वर सिंह काश्यप जी, डाॅ. अविनाश चंद्र 'विद्यार्थी' जी, डाॅ. बच्चन पाठक 'सलिल' जी, डाॅ. हरेराम त्रिपाठी 'चेतन' जी, डाँ. विश्वरंजन जी, डाँ. तैयब हुसैन 'पीड़ित जी, डाॅ. हरिकिशोर पांडेय जी, डाॅ. बलभद्र जी, डाॅ. अशोक द्विवेदी जी, डाॅ. प्रकाश उदय जी खांटी हउवन कि बेखाँटी? मत पड़ीं सभे एह पूरा झमेला में। भोजपुरी के भारी अहित आ नोकसान हो जाई।

              


अपने सभे त जानीले कि केदार जी भोजपुरी में नइखन लिखले। बाकिर सदानंद शाही जी अपना 'साखी' के केदार जी पर केन्द्रित अंक में उनकर दू गो भोजपुरी कवितो छपले बाड़ें। पहिलकी कविता- "भागड़ नाला : जागरण मंत्र" सचमुच अद्भुत कविता बिया - भोजपुरी के सार्वकालिक महत्व वाली एगो कविता। आ दोसरकी कविता बिया जवना से शुरुआते हम एह आलेख के कइले बानीं। दोसरकी कविता के बुढ़ऊ दोसर केहू ना बलुक खुद केदारे बाबू बुझात बाड़ें, जे भोजपुरी धुन कान में सुनिके जुरते टनमना जाये के बात कविता में कर रहल बाड़ें। नर्स के किसिम-किसिम के टिकिया आ रंग-बिरंगी सीसी से जब रोग छूटे के नाॅव नइखे लेत त रोगी खुदे दवाई सुझावे लागत बा - "हमरा कान में बुदबुदा त कवनों भोजपुरिया धुन।" - ई भोजपुरिया धुन खाली धुन भर ना ह, ई ह माई के अँचरा के छाँव! ई ह माई के लोरी के गुनगुनाहट! ई ह माई के हियरा के हिलोर आ ओकरा आँखिन के लोर! ई ह ओकरा पलकन के पुलक आ ओकरा होठन के मृदुल हँसी! ई सब जब बुढ़ऊ के कान में जा के घुलि जाई त कवनों संजीवनी से कम थोड़े होई!

           


अपना एह भोजपुरी कविता में 'चिरनिद्रा' के केदार जी "बड़की निदिया के झकोर" कह के सम्बोधित कइले बाड़ें। एह झकझोर में पलकन के झलमलाहट आसा-निरासा दूनू के झलकावत बा। बाकिर कवि एह झलमलाहटो में अपना राग-चेतना से उबरे के नइखे चाहत, काहे कि ऊहे ओकरा के उबार सकत बिया - एह सजोर झकोर से। ऊ जानत बा एह झकोर से उबरे के एगो आउर दवाई बिया- ओकर माईभाषा भोजपुरी- जवन कि कान में पड़ते जीवन-रस घोर देले मनई में। कवि का भरपूर भरोसा बा अपना भोजपुरिया धुन पर जवन कवनों जनमतुआ का अपना माई के गोदिये में भेंटा जाले- "आव रे निदिया निदर बन से!" 

             

भोजपुरी के ले के केदार बाबू के व्यामोह आ झुकाव आभ्यंतरिक बा। ऊ एकरा खातिर पसंगो मार सकत बाड़ें। उनकर रग-रग भोजपुरी में पगल बा। ऊ भोजपुरी आ हिन्दी के अपना प्रेम के 'घर' आ 'देश' के रूपक के जरिए व्यक्त कइले बाड़ें -


"हिन्दी मेरा देश है 

भोजपुरी मेरा घर 

घर से निकलता हूँ 

तो चला जाता हूँ देश में 

देश से छुट्टी मिलती है 

तो लौट आता हूँ घर।"



केदार जी अपना घर से निकल के देश के सीमा पर जा के ठहर नइखन जात, ऊ ओहू ले आगे बढ़ जात बाड़ें। उनकर पुरबिहा कबीरी मन-मिजाज देश-काल सगरी सीमा के लाँघि अपना वैश्विक नजरिया के इजहार करे लागत बा -



"इस समय यहाँ हूँ

पर ठीक इसी समय

बगदाद में 

चीर गयी गोली 

वहाँ भी हूँ

हर गिरा खून 

अपने अँगोछे से पोंछता 

मैं वही पूरबिहा हूँ 

जहाँ भी हूँ।"


केदार जी 'तौलिया' आ 'गमछा' के प्रतीकन के जरिये भोजपुरिहा के वैश्विक यात्रा के फरिआवत नजर आ रहल बाड़ें-



"तेज धूप में थोड़ी सी गरमा-गरमी के बाद

मैंने सुना तौलिया गमछे से कह रहा था

तू हिन्दी में सूख रहा है

सूख

मैं अंग्रेजी में कुछ देर 

झपकी लेता हूँ।" 



गमछा के हिन्दी में सूखला के पीड़ा के अनुभव केदार जी के बराबर रहल। ऊ जानत रहलें कि आज भोजपुरिहा गमछा ना तौलिया ले चल रहल बा तबो ऊ गमछे ले के बगदाद खून पोंछे पहुँचल रहलें।

             


केदार जी के एगो आउर कविता बिया जवना में ऊ अपना माई के राख गंगा में प्रवाहित कइला के बाद कहत बाड़ें -


"जब कुछ नहीं दिखा था 

तो मैंने भागीरथी से कहा था 

माँ! माँ का ख्याल रखना 

उसे सिर्फ भोजपुरी आती है।" 


काल के प्रवाह में भोजपुरी के प्रति कवि के ई अकिंचनता ओकरा समरथ भरल आत्मविश्वास आ भागीरथी के आश्वस्ति के परिचायक बिया जवन अपना दीनते में गहन आ सघन आत्मीयता के बोध करा देत बिया।

           


केदार जी के दोसरकी भोजपुरी कविता के हम पूरा तरे एजवा रखि रहल बानीं -


"भागड़ दादा उठs

हो गइल बिहान 

पुरुब में फूट गइल सुग्गा ठोर लेखा

टह टह लाली

कौआ खुशी से बजावे तारे सs ताली

उठs दादा कि तोहरा उठला के देरी बा

उठते तोहरा इनार में, गड़हा में आ जाई पानी

गरुअन के पखेरू के 

मिले लागी पानी 


उठs भागड़ दादा 

उठs लs आपन पतवार 

आपन लग्गी

बस ओही के देरी में 

चह पुल नाई डोंगी अपने आप कूदत 

आ जइहें स तोहरा लगे 

लs देखs आ गइले बंसी मल्लाह 

आ गइले जई नाई 

भर्दुल लोहार, मँगनी कोहार 

देखs देखs परबतिया आ गइल

सोहबतिया आ गइल  

जेही सुनल सेही आ गइल

उठs उठs दादा 

दिशा फराकित हो लs

मुँह हाथ धो लs 

लs लइकन के ले आइल बाड़ें

गुड़ के भेली 

कुछ मुँह में डालि लs 

नाहीं त खराई मारि दी 

बहुत सूति लिहलs 

इयादो नइखे केहू के 

कि कतना दिन हो गइल 

बाकिर कवनों बात ना 

चिरइन का उमेद बा 

बेद बा, लबेद बा 

का भइल कि ना अइले पंडी जी

उनकर शंख भुलाइल बा 

बाकिर कवनों बाति ना 

मंत्र के कमी नइखे 

खेत के डड़ार पर

रस्तन धूरि से होत बाड़ें पैदा

बस तू उठि जा 

त मंतर में आ जाई जान 

सूखल दूबि में मोथा में 

धमोय में आ जाई परान 

चील आ जइहें सs

चिल्होर के भुलाइल 

महावीर के भुलाइल 

गैया आ जइहें सs 

उठs दादा 

लोगन का अबहूँ उमेद बा 

काहे कि बेद के भीतर 

अबहीं बाँचल 

एगो टटका लबेद बा 

देस के सबसे बड़का 

इमारत में  एगो 

बड़का छेद बा 

बाकिर दादा 

तू तनीं जागs  तs 

लइका एक दिन उठिहें सs 

आ पढ़े लगिहें सs 



सगरो एगो नवका बेद 

लs किसुन बिसुन 

मँगरू सीधू सब आ गइल

कहs तारे सs ई का 

कि भागड़ दादा के 

फूल से सजावल जाई 

सितुहा के सितुही के बेदी बनावल जाई 

आ इहो कह तारे सs

कि पंडी जी के पतरा 

हो गइल पुरान 

एगो नया पोथी लिखल जाई 

नया मंतर बाँचल जाई

ना अब सूतs मत

तनीं सुनिहs लइकन के मंतर के मथेला.....

ओम श्री भागड़ दादा 

काई नमः

सेवार नमः 

गगरी नमः

लोटा नमः

बाँस के पुल नमः

साँस के पुल नमः 

नन्हकू सीधू घुरुहुआ नमः

गाँव जवार नमः

घर पतवार नमः

उधार नमः 

महुआ नमः 

गाँव जवार नमः

मंत्र के पोथी त लमहर बा 

बाकी अब बंद करs तानीं  

लइकन से कहबि

तनी संछेप क दीहें सs

बाकिर दादा 

आजुकाल संछेप में 

कुछऊ कहाते नइखे

चाहे मन के बाति होखे 

महीनवन कहs 

ओराते नइखे

अंत में समेटि के

समय के देखि के 

एतने कहबि कि 

उजला नमः 

काला नमः 

जवार के सगरे 

देवन के देवता 

पूज्यवर 

श्री श्री पूज्यवर 

भागड़ नाला नमः।"


(भागड़ नाला : जागरण-मंत्र)

         


भोजपुरी में लिखल केदार जी के ई कविता एगो कालजयी रचना बिया। पड़रौना से केदार जी के गाँवे चकिया जाये में। एगो नाला पड़त रहे -'भागड़ नाला'। धीरे-धीले ऊ दुबरात गइल। गंगा आ सरजुग के पानी ओमें आइल बंद हो गइल। दूनू नदी आपन राह बदल लिहली सs। धरती में पातर रेख-जस कहीं-कहीं एकर निसानी लउक जाव बाद में। सब बिसरि गइल-ना एमें काई रह गइल ना जलकुम्भी ना सेवार। ना एकरा गगरी के अब दर्शन होखे ना लोटा के। भागड़ नाला पर से बाँस के पुल का बिलाइल गाँव-जवार के साँस हेरा गइल। सम्बन्धन के सेतु टूट गइल, संवेदना के सोता सूखि गइल।

           


भागड़ नाला के मानवीकरण लोक जीवन के अनुकुल बा। गाँव के इनार, पोखरा, मठिया, आम-पीपर के गाछ, बाबू के दालान, काली माई के देवास, हनुमान जी के धाजा, गाय-बैल, रहट, नाहर, गढ़, बउली, रहरी, मूँजी के झूर, खेत -खरिहान,।कटनी-बोअनी, दँवरी-ओसवनी - सगरी से मनई के इयारी एतना गहिर-गज्झिन रहे कि ओकरा खातिर जीवन के स्पन्दन आ संगीत के ऊ अनिवार्य जरिया हो गइल रहे। केदार जी भागड़ नाला से अतीत-राग (Nostalgia) से जुड़ियो के नवकी पीढ़ी से ओकरा रिश्तन के आजु के समय आ सामाजिक बदलाव के हिसाब से देखत -परखत बाड़ें। ऊ कहत बाड़ें -


"बाकिर दादा 

तू तनीं जागs  तs 

लइका एक दिन उठिहें सs 

आ पढ़े लगिहें सs 

सगरो एगो नवका बेद ।"

            


केदार जी एह नवका बेद जवना के ऊ 'लबेद' कहत बाड़ें के ताकत से पूरा तरे वाकिफ बाड़ें। ई बेद-लबेद आउर कुछ ना, लोक आ शास्त्र के अजगुत मेल से बनल एगो अइसन  नया लोकाश्रित ज्ञान के विद्या बा जहाँ सामाजिक बराबरी के भरपूर कदर बा। सद्भावना जहाँ खातिर पहिलकी प्राथमिकता बिया। बेद-लबेद के प्रतिष्ठा के एह दौर में कर्मकांड आ ढकोसला के नवका पीढ़ी पूरा तरे अस्वीकार कर के चल रहल बिया। केदार जी के कहनाम बा -



"आ इहो कह तारे सs

 कि पंडी जी के पतरा 

हो गइल पुरान 

एगो नया पोथी लिखल जाई 

नया मंतर बाँचल जाई

ना अब सूतs मत

तनीं सुनिहs लइकन के मंतर के मथेला....

ओम श्री भागड़ दादा 

काई नमः

सेवार नमः 

गगरी नमः

लोटा नमः

बाँस के पुल नमः

साँस के पुल नमः।"

       


नवका लबेद बेद से अचिको कम नइखे। ना एह लबेद के उमिरे बेद से कम बा। एकर व्याप्तियो वेद ले कम नइखे। ई लबेदवा जन-जन के मन-तरंगन के पचवले बा। इहे कारन बा कि एकर चमक आजुओ तनिको फींका नइखे पड़ल। ई अबहियो टटके लागत बा-



"लोगन का अबहूँ उमेद बा 

काहे कि बेद के भीतर 

अबहीं बाँचल 

एगो टटका लबेद बा 

देस के सबसे बड़का 

इमारत में  एगो 

बड़का छेद बा।"

  


केदार जी के ई खूबी ह कि अपना कवितन में बहुते महीन ढंग से ऊ कवनों राजनीतिक टिप्पणी एकदम निठाह रूप में कर देलें जेसे कविता के खाँटीपनो पर कवनों असर ना पड़े आ कवि के सामाजिक दायित्वो पूरा हो जाला। अपना एह कवितो में उनकर एगो राजनीतिक टिप्पणी बहुते मारक बिया। ऊ कहत बाड़ें-



"देस के सबसे बड़का

इमारत में एगो

बड़का छेद बा।" 



एतने भर इशारा करि के कवि चुप हो जात बा। बाकिर ई चुप्पी आज के कविता के चीख आ चिल्लाहट से केतना ले भारी बिया-  ई समझल जा सकत बा। देश के ओह बड़की इमारत के छेद अइसनका सुगम बा कि जवना से ओमें कवना-कवना तरे के जीव-जन्तु शरण ले लेत बाड़ें आ सफेद लिबास झार के चिक्कन बन जात बाड़ें - ई सोच के मिजाज खउले लागत बा। कवि केदार जी सूक्ष्म आ गज्झिन संवेदना के कवि मानल जालें। एह भोजपुरी कविता में जवना मंत्र के ऊ नवकी पीढ़ी से उचरववले बाड़न ओकरा के देख के बाबा नागार्जुन इयाद आवे लागत बाड़ें। उनकर एगो कविता हियs "मंत्र"। देखीं सभे ओकरा पंक्तियन के-



"ऊं  भाषण नमः ऊं प्रवचन नमः 

ऊं हुंकार ऊं शीत्कार ऊं फुसफुस 

ऊं फुत्कार ऊं चीत्कार

ऊं आस्फालन ऊं इंगित

ऊं इशारे, ऊं नारे, और नारे, और नारे, और नारे।


××                 ××                   ××


ऊं हमेशा राज करेगा मेरा पोता

ऊं छूःछूः फूः फूः फट-फिट-फूट 

ऊं शत्रुओं की छाती पर लोहा कूट।"

           


बाबा नागार्जुन घनघोर रूप से राजनीतिक चेतना के कवि रहलें एह से उनका "मंत्र" कविता में सबकुछ खुल के आइल बा, अभिधात्मक रूप से जबकि केदार जी के कविता के मंत्र प्रतीकात्मक बाटे। उनकरा कविता में भागड़ नाला  के साथे-साथे  सेवार, गगरी, लोटा, बाँस के पुल, साँस के पुल, घर-जवार, खर-पतवार, नन्हकू, सीधू, घुरहुआ, आम-महुआ, उधार-पाँईच - सभका खातिर नमस्कार के भाव बा। केहू खातिर तिरस्कार नइखे। कवि जानत बा कि एह सभकर उपस्थितिये से भागड़ नाला खातिर जागरण मंत्र बनी। ऊ इहो जानत बा कि भागड़ नाला के  उपस्थिति ओकरा चकिया गाँव खातिर केतना ले जरूरी बा चूँकि ई नाला खाली नाला भर नइखे। ई भागड़ नाला पूरा ओह लबेद संस्कृति (हमरा एकरा के लोक संस्कृति मानहूँ से कवनों परहेज नइखे) के प्रतीक बा, जवना के चमक हर जुग, हर काल, हर समाज आ हर देश-देस में बनल रही।

     


एह कविता में केदार जी कुछ अइसनका भोजपुरी के पदबंधन आ मुहावरा-कहावतन के प्रयोग कइले बाड़न जवना के हटा के एह कविता के अरथ बूझल संभव नइखे। उदाहरन के तौर पर -



"दिशा फराकित हो लs", "गुड़ के भेली", "खराई मार दी "ओराते नइखे" आदि। दिशा फराकित हो लिहल मतलब गंदगी बाहर करि के तरोताजा हो गइल। भागड़ नाला खातिर ई केतना जरूरी बा। गुड़ के भेली-खराई आ तरास मेटावेला सहज भाव से। भागड़ नाला गंगा-सरजुग से बिछोह के कारन तरासल बा। एह से गुड़ के भेली त ओकरा चहबे करी ।

                


कविता में बतकही होखे भा दोसरो केहू के मन के बात होखे - कवि एजवा आपन एगो गंभीर टिप्पणी दर्ज करवले बा। ऊ कहत बा -



"बाकिर दादा!

आजुकाल संछेप में 

कुछऊ कहाते नइखे

चाहे मन के बाति होखे 

महीनवन कहs 

ओराते नइखे।"    

        


कइसे ओराव? जुग आ जमाना के बरताव एतना जटिल-कुटिल हो चलल बा कि बात लमरिया जात बा, लहरिया जात बा। पता ना, आज के समय में अगर केदार जी रहितें त केहू के 'मन के बात' के सीरीज सुनिके का सोचितें? हमरा उमेद बा ऊ अपना बात पर दोहरा के जरूर सोचिते ना त आपन कान मूँदि लीते। दोसर चारा का रहित उनकरा लगे?

           


आज केदार बाबू के पुण्यतिथि पर आपन प्रणाम निवेदित करत बानीं - एगो सच्चा भोजपुरिहा के! फेर आगे कबो केदार जी के एह दूनू भोजपुरी कवितन के शिल्प पर बात होई।



●●

          



सम्पर्क


मोबाइल : 9431283596

टिप्पणियाँ

  1. केदार जी के भोजपुरी कविता के बहाने केदार जी पर आ उहां के माटी से जुड़ाव पर बढ़िया बतकही। साधुवाद एवं बधाई भाई सुनील जी।

    जवाब देंहटाएं
  2. डाॅ.दिवाकर राय मोतिहारी21 मार्च 2024 को 12:27 pm बजे

    कवि केदारनाथ सिंह के कविताई आ ओकरा गहराई पर लिखल एगो बेजोड़ आलेख।गहन अध्ययन आ मेहनत से लिखल अतना बढ़िया लेख खतिरा अपने के अनघा बधाई!

    जवाब देंहटाएं
  3. प्रो.पी राज सिंह21 मार्च 2024 को 12:29 pm बजे

    बढ़िया
    एगो मौज में कलमकारी भइल बा ।

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत सुंदर। सर की स्मृति को सादर नमन

    जवाब देंहटाएं
  5. सौरभ पांडेय, भोपाल21 मार्च 2024 को 12:43 pm बजे

    सउँसे आलेख केदारनाथ सिंह के कवि-दायित्व के भोजपुरिया आलोक में उजागर क रहल बा। सोन्ह गमक के आनन्द आ अपना माटी के रस में बेर-बेर डूबे के चाह अमदी के आपन जमीन से बान्ह के राखेले। मनई अपना जमीनी से उत्पाटित भलहीं भ जाव, बाकिर ओकर मन के सोर जीवनभर उहँवें से रस-पानी पावत रहेले। ईहे 'बड़का इमारत में छेद' प अङुरी बता पावे के कसमसाहट के कहि पावे के तागद गेला। नाहीं त मनई का आ मशीन का?
    केदारनाथ जी के पावन इस्मृती प आम भोजपुरिया के संवेदना आ लोक-भाव प राउर आलेख आजु पढ़ि के मन आनन्द में बा।
    जै जै

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  6. शिव कुमार पराग21 मार्च 2024 को 12:56 pm बजे

    बहुते निम्मन आ गोटरगर लेख. जानल-मानल कवि केदारनाथ सिंह जी के बारे में सोचला पऽ ढेर लोग के जीउ अफदरा में परि जाला की ऊहाँके खड़ी बोली के कवि हईं तऽ भोजपुरी में कइसे राखल जाइ! बाकिर जाने वाला जानत बा की केदार जी के मनवा तऽ भोजपुरिये में रमत रहे आ उनकर हियरा तऽ भोजपुरिये में जुड़ाय. एह लेख खातिर डॉ० सुनील कुमार पाठक जी के अनघा बधाई!
    कवि केदारनाथ सिंह जी के इयादि के सादर नमन!

    जवाब देंहटाएं
  7. एम के मधुर ,पटना21 मार्च 2024 को 12:59 pm बजे

    बहुत ही भावपूर्ण सारगर्भित आलेख

    जवाब देंहटाएं
  8. सूर्यदेव पाठक 'पराग',लखनऊ21 मार्च 2024 को 4:23 pm बजे

    बहुत बढ़िया आलेख।

    जवाब देंहटाएं
  9. बिम्मी कुंवर सिंह21 मार्च 2024 को 4:54 pm बजे

    बहुत बढ़िया आ शानदार आलेख खातिर बहुत बधाई सर 🙏🏻
    नमन केदारनाथ सिंह जी के🙏🏻💐

    जवाब देंहटाएं
  10. उदय नारायण सिंह,छपरा।21 मार्च 2024 को 4:59 pm बजे

    शत शत नमन।
    भोजपुरी के प्रति उहां के आंतरिक लगाव के उंहे के लिखल कविता आ ओह पर निठाह आंख से करल राउर विवेचना अद्भुत बा गुरु जी।🙏

    जवाब देंहटाएं
  11. ज्योतिष जोशी,नई दिल्ली23 मार्च 2024 को 6:23 am बजे

    बहुत नीमन। केदार जी के आत्मा में भोजपुरी रमल रहली। ऊ देह आ मन से भोजपुरी माटी के सपूत रहले। ई आलेख आ कविता उनके व्यक्तित्व के साकार करे में समर्थ बा। हमार भाव भरल नमन।

    जवाब देंहटाएं

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