निर्मला तोदी के कविता संग्रह 'सड़क मोड घर और मैं' के लोकार्पण कार्यक्रम की एक रपट



निर्मला तोदी की कविताएँ हम पहले भी ‘पहली बार’ ब्लॉग पर पढ़ चुके हैं। निर्मला की कविताएँ प्रायः ऐसे विषयों को ले कर होती हैं जिनके बारे में और लोग बात नहीं करते। एक अलग किस्म की कल्पनाशीलता उन्हें औरों से अलगाती है। अभी हाल ही में कवयित्री निर्मला तोदी का एक कविता संग्रह 'सड़क मोड घर और मैं' वाणी प्रकाशन से आया है। इसका लोकार्पण कोलकाता में वरिष्ठ कवि केदार नाथ सिंह ने किया। इस लोकार्पण कार्यक्रम की एक रपट आपके लिए प्रस्तुत है। 
   

लोकार्पण 'सड़क मोड घर और मैं' काव्य-संग्रह


हमारे समय की संभावनाशील कवयित्री है निर्मला तोदी : केदार नाथ सिंह


 
वाणी प्रकाशन से प्रकाशित निर्मला तोदी के दूसरे कविता संग्रह  'सड़क मोड घर और मैं' का लोकार्पण 22 जनवरी को  भारतीय भाषा परिषद में किया गयाकार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए हिन्दी के सुप्रसिद्ध कवि केदार नाथ सिंह ने कहा कि निर्मला तोदी का यह काव्य संग्रह अनोखी कल्पनाशीलता के लिए जाना जाएगाइनका संग्रह पहले संग्रह से अलग है क्योंकि इधर इनकी कुछ कहानियाँ भी आई हैं और कहानियों के साथ नयी भाषा  आई है, उस भाषा का असर इस संग्रह में भी है, ये केवल कवि की भाषा नहीं है एक गद्यकार की भाषा भी है जिसमे परिष्कार है निखार हैइनकी छोटी-छोटी कविताएं बारीकी से लिखी गयी कविताएँ हैंछोटी कविताओं का एक एलबम है उसमे एक मार्के की चीज है, छोटी कविता की अंतिम पंक्ति में वे एक टिप्पणी करती हैं जहां कविता अचानक एक नए धरातल पर पहुँच जाती हैमैं अपने से पूछता हूँ ऐसा क्या होता है जो एक कवि को विलक्षण  बना देता हैयूनिक बना देता हैऐसा कुछ जरूर होता होगा, मैं सोचने लगा इसमे नया क्या है? जो सिर्फ निर्मला तोदी का है, मेरा ध्यान गया एक ऐसी कविता पर 'कान तुम ही कहो' पर। एक अच्छी कविता, एक बिलकुल नयी कविता, जो इस कवि ने लिखीएक नयी कल्पना जो इस कवि ने की   इसमें कवि कान से बातें करता है, अपने कान से, किसी और के कान से नहीं और वो विलक्षण बातचीत है इस संग्रह पर बात करते हुए कवि ने कहा ऐसे समय में जब कविता एक दुर्लभ चीज़ हो गयी है कविता को बचाने में थोड़ा सा योगदान  यह संग्रह देता है


आलोचक प्रोफ़ेसर शंभु नाथ जी ने कहा कि निर्मला तोदी की कविताओं में स्त्री की खामोशी ही प्रतिरोध की आवाज़ है। टेक्नोलोजी  अगर पैर है तो कविता आँखटेक्नोलोजी कविता और मनुष्यता के बगैर सभ्यता को प्रगति की ओर नहीं ले जा सकतीडॉक्टर राज श्री शुक्ला ने कहा कि निर्मला तोदी की कविताएं अनुभूति की कविताएं हैंजो अपनी परंपरा और संवेदनाओं से जुड़ी हैंआज मूल्यों के क्षरित होने का युग है, इस युग में मूल्यों को बचाए रखना इस बात पर निर्भर करता है कि हम समाज के बीच संवेदनाओं  को कितना बचाए रखते हैं इनकी कविता है लोहे का ट्रंकस्त्री लोहे के ट्रंक में जब अनुभूतियों, अनुभवों, संवेदनाओं को संभाल कर रखती है उसमें इतिहास में अपना नाम दर्ज करने की कोशिश नहीं करती बल्कि इतिहास बनाए रखती हैइसलिए लोहे का ट्रंक स्त्री हृदय के इतिहास का ट्रंक है, स्त्री का हृदय हैइस संग्रह में स्रष्टा को ले कर, कला को ले कर, बहुत सी विचार उत्पन्न करने वाली कविताएँ  हैंजिन में बहुत से सूत्र वाक्य कहे गए हैंइस संग्रह की विशेषता है सहजता, लगातार एक सकारात्मक एप्रोच है संघर्ष के बीच भी सभी प्रकार की नकारात्मकता को झाड़ते हुए सकारात्मकता सौंप देने की जद्दोजहद दिखाई  देती हैयहाँ  वाक संयम के साथ की गयी प्रतिरोध की आवाज हैईमानदारी इस संग्रह को विशिष्ट बना देती है जहाँ कोई बड़ी-बड़ी दावेदारी नहीं हैवेद रमन पांडे ने कहा कि निर्मला तोदी की कविताओं में एक स्त्री की संवेदना 'मैं' से होते हुए 'पर ' की बेचैनी को भी शामिल किए हुए हैइस पूरे कविता संग्रह से गुजरते हुए उस स्त्री से उस स्त्री मन से उसके अनुभव से उमड़ते-घुमड़ते विचारों से आपकी मुकम्मल भेंट होगीइसका शीर्षक 'सड़क मोड घर और मैं' संग्रह पढ़ते हुए क्रम को उलट दीजिये, सब से पहले 'मैं' इन कविताओं के केंद्र में है, इसके बाद घर है पेड़ है प्रकृति हैनिर्मला जी ने ख़ुद रेखांकित किया है कि ''सबसे कठिन होता है अपने भीतर उतरना''एक स्त्री जब भीतर उतरती है उसे क्या क्या मिलता है उसने क्या क्या पाया, वही संचित राशि इन कविताओं में हैइनकी प्रकृति पर लिखी कविताएँ ध्यान खींचती हैनिर्मला जी एक अनुभव सिद्ध स्त्री के जीवन  को हमारे सामने पूरे विस्तार और गहराई के साथ लाती हैविन्यास की दृष्टि से कलात्मक रचाव की दृष्टि से अत्यंत अच्छी कविताएं हैं युवा कवि विमलेश त्रिपाठी ने कहा कि इनकी कविताएं अतिवाद से मुक्त सहज और संप्रेषणीय हैजो आमजन की संवेदना के निकट हैइस अवसर पर पलक और सलोनी  ने सरस्वती वंदना प्रस्तुत कीइस लोकार्पण समारोह में कुसुम खेमानी, कवि शैलेंद्र, अभिज्ञात, नीलकमल, राज्यवर्धन, आशुतोष, निशांत,  मृत्युंजय, संजय राय, वरुण कुमार,  विजय गौड़, रितेश पांडे, मनोज  झा, सुषमा त्रिपाठी, संजय जयसवाल सहित भारी संख्या में साहित्य प्रेमी उपस्थित थेकार्यक्रम का सफल संचालन ममता पांडे और धन्यवाद ज्ञापन किशन तोदी ने किया। 



निर्मला तोदी की एक कविता

 

कान! तुम ही कहो


आज मुझे अच्छा लग रहा है
बहुत–बहुत अच्छा
मैंने अपने कान से बातें की
जिनसे आज तक कभी नहीं की

मैंने कहा-
सुनो, तुम मेरे हो
आज मेरी सुनो
दुनिया भर की सुनते हो
आज मेरी सुनो

जो मैं सुनना चाहती हूँ
वही सुना करो
सामने तरह-तरह के भोजन पड़े हो
मेरा स्वाद वही खाता है
जो खाना चाहता है
अगर कुछ और खाना पड़ भी जाए तो
दवा की तरह गटक जाता है

मेरा नाक कचरे के ढेर से
दूर रहना जानता है
तुम क्यों कचरे का डब्बा बन बैठे हो
सुन लेते हो सब कुछ

तुम्हें मालूम है
तुम्हारा सुना– मेरी कोशिकाओं में
मेरी ग्रंथियों में जम जाता है
फिर दुखता है
बहुत दुखता है
बार-बार दुखता है
पिघल कर बह नहीं जाता
आंसुओं के साथ भी नहीं

मत पहुंचाया करो उसे भीतर तक
प्लीज़...

डरावना और वीभत्स देख कर
आँखें बंद हो जाती है ना
अपने आप
क्या आग को उठा लेते हैं हाथ
हाथों में

फिर तुम क्यों सुन लेते हो सब कुछ

जो बोलता है
अपनी जुबान से बोलता है
अपनी बातें
अपनी मनपसंद बातें
अपनी सोच से बोलता है
ठीक है ज़्यादातर बिना सोचे ही बोलता है

तुम क्यों नहीं सिर्फ वही सुनते
जो तुम्हें पसंद है
सबका बोला सब कुछ क्यों सुन लेते हो
कहो आज तुम ही कुछ कहो
और मैं सुनूँ  

  
सम्पर्क
ई-मेल : nirmalatodi10@gmail.com

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