स्वप्निल श्रीवास्तव की कविताएँ
स्वप्निल श्रीवास्तव |
यह दुनिया आज जो इतनी खूबसूरत दिख रही है उसकी खूबसूरती में
उन तमाम लोगों का महत्वपूर्ण योगदान है जिन्होंने अनाम रह कर इसकी बेहतरी के लिए अपना
जीवन खपा दिया। इन
लोगों ने कहीं पर भी अपने नाम नहीं उकेरे।
आज देखने में भले ही आग और पहिये के आविष्कार बहुत सामान्य लगें लेकिन इन
आविष्कारों ने ही सही मायनों में आधुनिकता की नींव रखी। जरा एक पल ठहर कर सोचिए आज भी इन आविष्कारों की हमारे जीवन में कितनी उपादेयता है। अगर आज की दुनिया से इन्हें हटा दिया जाए तो हमारी आज की दुनिया कैसी लगेगी। इसी
तरह यायावरी की ज़िंदगी को जीने वाले नटों, मछुआरे गड़ेरियों और न जाने कितनी घुमन्तू जातियों ने भी मनुष्यता की आत्मा
की आवाज को बचाए-बनाए रखने में अहम् भूमिका अदा की।
एक कवि ही ऐसे अनाम लोगों की इस मानीखेज भूमिका को रेखांकित कर सकता है। यहीं पर कवि औरों (वैज्ञानिकों और समाजशास्त्रियों) से बिल्कुल अलग खड़ा दिखायी पड़ता है।
'ईश्वर एक लाठी है', 'ताख पर दियासलाई', 'मुझे दूसरी पृथ्वी चाहिए', 'जिन्दगी का मुकदमा' जैसी काव्य कृतियों के अप्रतिम कृतिकार, अस्सी के दशक से सक्रिय हमारे समय के महत्त्वपूर्ण कवि स्वप्निल
श्रीवास्तव लेखन के क्षेत्र में आज भी चुपचाप लेकिन अपने
ढंग से सक्रिय हैं। मैंने पहली बार के लिए जब कुछ
नयी कविताएँ स्वप्निल जी से भेजने का आग्रह किया तो उन्होंने बड़ी विनम्रता के साथ
अपनी हालिया लिखी कुछ रचनाएँ हमें भेज दीं। आइए
आज हम पहली बार पर पढ़ते हैं स्वप्निल श्रीवास्तव की कविताएँ।
स्वप्निल श्रीवास्तव की कविताएँ
पृथ्वी के वंशज
पृथ्वी के वंशज हैं गड़ेरिये और मछुआरे
उनके गीत हमारी आत्मा की आवाज हैं
गड़ेरिये अपनी भेड़ों के साथ चरागाह की
खोज में
धरती के सुदूर कोने में पहुँच जाते हैं
गर्मी हो या सर्दी बाधित नहीं होती उन
की यात्रा
वे छतनार पेड़ो के नीचे बना लेते हैं
ठिकाना
चाँद और सितारों की रोशनी के नीचे
गुजारते हैं रात
इसी तरह मछुआरे अपनी नाव के साथ
समुंदर में विचरण करते है
और तूफानों से लड़ते हैं
थल और जल के नागरिक हैं
गड़ेरिये और मछुआरे
वे हमारे आदिम राग के आलाप हैं
कुल्हाड़ियां
कुदाल और हंसिये की तरह नहीं होता
कुल्हाड़ियों का दैनिक इस्तेमाल
वे कभी-कभार काम में लायी जाती हैं
जब मैं किसी के कंधे पर कुल्हाड़ियों को
जाते हुए देखता हूँ तो लगता है कि
पेड़ों पर मुसीबत आने वाली है
कुल्हाड़ियां घर से बाहर निकल कर
कोई न कोई हादसा जरूर करती हैं
उनकी मार से नहीं बचती हैं डालियां
छोटे- मोटे पेड़-पौधे उन्हें
देख कर
भय से कांपने लगते हैं
कुल्हाड़ियां सिर्फ पेड़ों को नहीं काटती
आदमी कंधों को लहुलुहान कर देती हैं
वे कंधे पर अंगोछे की जगह को काबिज
कर लेती हैं
कुल्हाड़ियों को कई हत्याओं में शामिल
पाया गया है
वे पेड़ की नहीं आदमियों की
हत्या
करती हैं
कुछ शहरों के नाम
कुछ शहरों के नाम आकर्षक होते हैं
उसमें प्रवेश करने का मन करता है
नदियों के नाम वाली स्त्रियां
जादूगरनी की तरह होती हैं
वे हमें अपने भीतर डुबो लेती हैं
कुछ लड़कियों के नाम फूलों के करीब होते
हैं
याद आते ही खुशबू फैल जाती हैं
कुछ पेड़ों के फल बहुत मीठे होते हैं
थोड़ी डाल हिलाओ तो हमारी हथेली पर
चू जाते है
तितिलियों और मधुमक्खियों से हम जरूरी
सबक ले सकते हैं
वे हमें खूबसूरत ढंग से उड़ने के तरीके
सिखाती हैं
पृथ्वी की सबसे छोटी जीव चींटी हमें
अपने से ज्यादा
बोझ उठाने के गुर बताती है
एक ओस की बूंद में समा सकता है
समुंदर
इसी तरह इंद्रधनुष में शामिल होते हैं
कायनात के अंग
इसलिए पृथ्वी की छोटी-छोटी चीजों को
गौर से देखो
फिर वहां से शुरू करो जीना
घड़ी में समय
हर देश की घड़ी में बजता है
अलग-अलग समय
दिल्ली की घड़ी में जो समय है
वह रावलपिंडी की घड़ी से नहीं मिलता
हो सकता है वे समय पर नहीं
हिंसा में यकीन करते हो
वाशिंगटन और पेचिंग की घड़ियों में
समय और विचार की दूरी है
इतिहास को ले कर कई असहमतियां हैं
हाँ, दुनिया भर के दलालों और तस्करों की
घड़ियों में
एक जैसा समय बजता है
वे समय से ज्यादा अपने इरादे पर भरोसा
करते हैं
उनके दम पर चलती है दुनियां की
अर्थव्यवस्था
बादशाह की घड़ी का समय जनता की घड़ी से
हमेशा अलग होता है
वे समय को सुविधानुसार आगे-पीछे खिसकाते
रहते हैं
वे अपने वजीरों को भी सही समय
नहीं बताते
तानाशाह की घड़ी में समय उसकी मर्जी से
चलता है
उसके इशारे पर नाचती हैं रक्तरंजित
सूईयां
गरीब मुल्कों में बच्चों के पैदा होने
का
समय पढ़ना मुश्किल होता है
पर जानना आसान है कि उस के जन्म की
तारीख
के आसपास होगा उस की मृत्यु का समय
झुर्रियां
इस बूढ़ी औरत की झुर्रियां
बहुत खूबसूरत हैं
जैसे किसी चित्रकार ने उसे अदम्य
कलात्मकता के साथ रचा हो
बोलती हैं उस की आँखें
कुछ कहते समय लय में
हिलते है होठ
उसकी आवाज में खनक और मिठास है
कोई सुन ले तो भूल न पाये
अपने जमाने में सुघड़ रही होगी
यह औरत
आप पूछ सकते हैं कि कैसे मैं
इस औरत के बारे में इतना
जानता हूँ
मित्रों, यह औरत हमारी माँ है
नंगे लोग
नंगे लोग कहीं भी, किसी वक्त
नंगे हो सकते है
उनके लिये किसी हमाम की जरूरत
नहीं होती
उनकी लुच्चई सार्वजनिक होती है
वे लाख वस्त्र पहने
अपने स्वभाव से निर्वसन होते हैं
वे भाषा को निर्वस्त्र और व्याकरण को
अश्लील बना देते हैं
कोई उन्हें टोके तो वे हमलावर
हो जाते हैं
दिखाने लगते हैं पंजे
वे किसी कबीलाई समाज से
नहीं आते
वे हमारे बीच से निकल कर
दिगम्बर हो जाते हैं
वे साधु या कुसाधु नहीं
वे मठ-मंदिर में नहीं प्रजातन्त्र में
रहते हैं
वे देह से नहीं आचरण से नंगे’
होते हैं
उन की नंगई ढकने के लिये अभी तक
किसी वस्त्र का आविष्कार नहीं हुआ है
बाढ़
बाढ़ सब से पहले हमारे घर
आती है
अपने समय पर पहुँच जाता है
सूखा
सबसे बुरी खबर यह है कि
राजनेता हमारे घर आने लगे हैं
उनकी शक्लों में दिखाई देते हैं
गिद्ध
वे झपट्टा मारने को तत्पर हैं
हम बाढ़ और सूखे से खुद को
बचा लेंगे
कोई हमें इन आदमखोरों से
बचाये
मछुआरा
मछलियों से मुझे इतना प्रेम था कि
मैं बन गया मछुआरा
मैंने जाल बुनना सीखा
उसे कंधे पर रख कर
नदी–नदी घूमता रहा
तालो पर डाले डेरे
हमेशा रंग–बिरंगी मछलियों के
बारे में
सोचता रहा
वे पानी में नहीं स्वप्न में दिखाई
देती थीं
जहां भी जाल डाले
मछलियों ने दिया धोखा
वे दूसरों के जाल में फंसती रहीं
मैं कुशल मछेरा नहीं बन पाया
अपने बनाये जाल में
फंस गया
आधा–अधूरा
तुम झुके ही थे कि मुझे
दिख गया आधा-अधूरा चाँद
सिहर उठी देह
वह आधा-अधूरा इतना पूरा था कि
मुझे पूरा देखने की इच्छा न रही
चाँद पर बहुत देर तक ठहरते
नहीं बादल
शरारती हवाएँ उन्हें उड़ा देती हैं
चाँद का काम है दिखना
वह न दिखे तो पृथ्वी पर
छा जाता है अंधेरा
जीवन भर चलता रहता है
चाँद से लुका–छिपी का खेल
मुश्किल तब होती है जब आ जाती है
अमावस्या
और हम चाँद को ढ़ूढ़ते रह जाते हैं
संसद में कवि सम्मेलन
एक दिन संसद में कवि सम्मेलन हुआ
सबसे पहले प्रधान-मंत्री ने कविता पढ़ी
विपक्षी नेता ने उसका जवाब कविता में
दिया
बाकी लोगों ने तालियां बजायीं
कुछ लोग हँसे कुछ लोगों को हँसना नहीं आया
आलोचकों को अपनी प्रतिभा प्रकट
करने का सुनहला अवसर मिला
टी.वी. कैमरों की आंखें चमकीं
एंकर निहाल हो गये
खूब बढ़ी टीआरपी
टी.वी. चैनलों पर हत्या और भ्रष्टाचार से
ज्यादा मार्मिक खबर मिली
इस लाफ्टर-शो को विदूषक देख कर प्रसन्न हुए
एक विदूषक ने कैमरे के सामने ही तुकबंदी शुरू कर दी
आधा पेट खाये और सोये हुए लोग हैरान थे
यह संसद है या हँसीघर
हमारी हालत पर रोने के बजाय हँसती है
बाकी लोगों ने तालियां बजायीं
कुछ लोग हँसे कुछ लोगों को हँसना नहीं आया
आलोचकों को अपनी प्रतिभा प्रकट
करने का सुनहला अवसर मिला
टी.वी. कैमरों की आंखें चमकीं
एंकर निहाल हो गये
खूब बढ़ी टीआरपी
टी.वी. चैनलों पर हत्या और भ्रष्टाचार से
ज्यादा मार्मिक खबर मिली
इस लाफ्टर-शो को विदूषक देख कर प्रसन्न हुए
एक विदूषक ने कैमरे के सामने ही तुकबंदी शुरू कर दी
आधा पेट खाये और सोये हुए लोग हैरान थे
यह संसद है या हँसीघर
हमारी हालत पर रोने के बजाय हँसती है
सम्पर्क -
510, अवधपुरी कालोनी,
अमानीगंज
अमानीगंज
फैजाबाद
-224001
मोबाईल - 09415332326
ई-मेल : swapnil.sri510@gmail.com
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