जितेन्द्र कुमार यादव की कहानी “एक गहरी और काली आँखों वाली लड़की”



जितेन्द्र कुमार यादव

उत्तर प्रदेश  के  अम्बेडकर नगर  जिले  में  स्थित  नेवादा  कलां  नामक  गाँव  में 17 दिसम्बर 1988  को  जन्म.
इलाहाबाद वि० वि० से  स्नातक, परास्नातक  तथा  कुमाउं  विश्वविद्यालय  नैनीताल  में शोधरत.
विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं  में  अनेक  कविताओं   लेखों  का  प्रकाशन.

विजय गौड़ ने अपने एक आलेख में कहानी के संदर्भ में महत्वपूर्ण बात उठायी है कि कविता के शिल्प में परिवर्तन को तो लोग आसानी से स्वीकार कर लेते हैं लेकिन कहानी के क्षेत्र में ऐसा नहीं दिखायी पड़ता. कहानी के बारे में एक रूढ़ धारणा बनी हुई है कि बिना कथ्य के कहानी लिखी ही नहीं जा सकती. यह दिक्कत आज भी ज्यों की त्यों बनी हुई है. इसके बावजूद कहानीकार ख़ुद ही यह तय करता है कि उसे कहानी कैसी लिखनी है. उसके शिल्प के निर्धारण का फैसला भी बहुत हद तक कहानीकार ही करता है. जो कहानीकार रूढ़ियों के बैरियर को तोड़ता है वही अपनी पहचान बना पाता है. युवा कथाकार जितेन्द्र कुमार यादव की कहानी पढ़ते हुए मुझे ऐसा ही लगा. यह कहानी सुदूर पूरब के मैदानों के रहवासी उस बातूनी लड़के की है जो ऊँचे पहाड़ों पर जा कर वही करता है जिसके बारे में उसके दोस्तों और पिता ने मना किया था. और धीरे-धीरे गहरी और काली आँखों वाली लडकी के सम्मोहन के झील में डूबने लगता है.  

एक दिन जब वह बातूनी लड़का उस काली आँखों वाली लड़की, जो उसे तितली की तरह लगती थी, के परों का चित्र बनाने की बात कहता है, और उस लडकी की आवाज पर गीत लिखने की इच्छा व्यक्त करता है तो लड़की उसे दृढ़ता से मना करती है और चली जाती है कभी न लौटने के लिए. 

इस कथ्य की सघन बुनावट जिस तरह जितेन्द्र ने की है वह उस में निश्चित रूप से भविष्य के एक बेहतर कथाकार की तरफ इशारा करती है. एक प्रेम कहानी लगते हुए भी यह कहानी उस बिन्दु की तरफ भी इशारा करती है जहाँ पहाड़ और पहाड़ी लोगों का प्राकृतिक जीवन काफी कुछ अवरोधित हुआ या किया गया है, उन लोगों के द्वारा जो घूमने-फिरने का मजा लेने के लिए पहाड़ों की तरफ आते हैं और उसे मलीन बना जाते हैं. इसमें पाठकों के लिए और भी बहुत कुछ है. खासकर वह प्रकृति जो अब हमारी नजरों से कहीं न कहीं छूटती बिसरती चली जा रही है. जितेन्द्र की यह कहानी हमें उपलब्ध कराई युवा कवि शिव त्रिपाठी ने. तो आइए आज 'पहली बार' पर पढ़ते हैं एक संभावनाशील कथाकार जितेन्द्र कुमार यादव की यह कहानी 'एक गहरी और कालों आँखों वाली लड़की'.  
                    

“एक गहरी और काली आँखों वाली लड़की”

जितेन्द्र कुमार यादव


वह सुदूर पूरब के मैदानों में बसे एक छोटे से गाँव का एक बातूनी लड़का था। उसे शौक था ढेर सारी बातें करने का और बहुत-थोडा सा लिखने का। उसने अपने पिता से सुना था ऊँचे पहाड़ों पर एक गहरी झील के किनारे पर बसे और बड़ेबड़े देवदार के जंगलों से घिरे एक खूबसूरत शहर के बारे में और दोस्तों से उसी शहर की झील की ही तरह गहरी और काली आँखों वाली खूबसूरत लड़कियों के बारे में। उसके पिता और दोस्त इस बारे में एकमत थे कि इनमे बसता है एक जादुई सम्मोहन। दोनों ने उसे सावधान किया था कि अगर तुम्हारा कभी सामना हो उस झील से या कि उतनी ही गहरी और काली आँखों वाली उस शहर की खूबसूरत लड़कियों से तो तुम बचना उनकी गहराई में झांकने से। चेतावनी दी थी उसे कि अगर तुमने ऐसा किया तो पूरब की गांजा पीने वाली तांत्रिक योगिनियों के तंत्र-जाल की तरह उसके पाश में आबद्ध हो जाओगे। और यह कहते हुए चुप हो गये थे दोनों कि उससे मुक्ति एक असम्भव-सम्भावना बन कर रह जायेगी।

उस झील और उसकी ही तरह गहरी तथा काली आँखों वाली लड़कियों के शहर में पहुँच कर उस लड़के ने तय किया कि न तो वह उस झील के किनारे बैठ कर उसको निहारेगा और न ही कभी झील की ही तरह गहरी और काली आँखों वाली उस शहर की लड़कियों को। इस तरह रहते हुए उसने उस शहर में अपने जीवन की पहली बर्फ़बारी का आनंद लिया और ठण्ड से बचने के लिए चाय का कप लेते हुए पहली बार डरते-डरते कनखियों से उस लड़की को देखा, जिसकी आँखें झील की ही तरह गहरी और काली थीं। वह उसे एक खूबसूरत तितली की तरह लगी। उसे याद आयी पिता और दोस्तों की बातें और उनकी चेतावनी, उनके भोलेपन को याद करते हुए उसके चेहरे पर एक हल्की सी मुस्कान तैर गयी।

उस गहरी और काली आँखों वाली लड़की ने जो कि उसे एक तितली की तरह लगी थी, उससे पूछाक्या तुमने कभी देखा है पहाड़ के जंगलों में खिलने वाले झक-लाल रंग के फूलों से लदा हुआ बुरांश का कोई पेड़, जिसे अकेले में देखने से पहाड़ की लड़कियों को लग जाता है छल। जिनमे बसती है उनके पिछले जन्मों के प्रेमियों की आत्माएं। उसने उस लड़के से पूछा कि क्या उसने कभी सुना है ऊँचे-नीचे पहाड़ों पर बैठ कर मुरली बजाने वाले किसी चरवाहे की मुरली की कोई उदास-धुन।
उसने अपनी बड़ी गहरी और काली आँखों को और बड़ा करते हुए आश्चर्य जताया कि कैसे उसने इतने दिनों तक नहीं देखा बर्फ से ढकी उन चोटियों को जो सूरज की रोशनी में सोने और चांदी की तरह चमकती हैं। और जिस पर सदियों से एक प्रेमी व्याकुल प्रतीक्षा कर रहा है अपनी प्रेमिका की जो उसकी ही तरह गहरी और काली आँखों वाली एक पहाड़ी लड़की थी। और जिसकी याद में पहाड़ के लोग आज भी भेजते हैं उसका डोला उन चोटियों पर। 



उसने हैरानी जताई कि उसने अभी तक पहाड़ की किसी चोटी पर बैठ कर नहीं देखा कि कैसे बादलों का दो समूह मिल कर एक होता है और तेजी से गुम हो जाता है अनन्त विस्तार लिये हुए इन पहाड़ों की घाटियों में।
आज पहली बार सुदूर पूरब के मैदानों में बसे एक छोटे से गाँव का वह लड़का जो काफी बातूनी था, पूरी तरह से चुप था और उस गहरी और काली आँखों वाली लड़की जो कि उसे एक तितली की तरह दिखती थी, उसकी आँखों में एकटक देख रहा था। शाम को उस शहर की झील के किनारे बैठ कर उस लड़की ने कहा चाहे कोई अपनी पूरी जिन्दगी इस झील के किनारे बैठ कर बिता दे इसे निहारते हुए फिर भी वह पायेगा कि यह झील कभी पुरानी नहीं लगती।
एक दिन उस लड़की ने उसे दिखाया पहाड़ की लोक-कथाओं के उस राजा का मंदिर जो अपने मरने के सदियों बाद आज भी अपने पास आने वालों का करता है न्याय। जिस के मंदिर पर बंधी थी हजारों घंटियाँ जो उसके द्वारा किये गए न्याय की गवाही दे रही थीं। वह उसे ले कर गयी वहां जहाँ से सूरज को उगते देखना दुनिया की सबसे खूबसूरत घटनाओं में से एक का साक्षी होना था। वह उसे वहां पर भी ले कर गयी जो पहाड़ की असफल प्रेम-कथाओं तथा उनके नायक और नायिकाओं का अवसान बिंदु कहा जाता है।

वह जगह उस लड़के को अधूरी प्रेम कथाओं के स्मारक की तरह लगी।
घने जंगलों में घूमते हुए उसने उस लड़के को बुरांश के पेड़ों को दिखाया। 
 
आपस में मिल कर एक होते हुए बादलों को और उसने उस चोटी को भी दिखाया जिसका नाम पहाड़ की उस झील की तरह गहरी और काली आँखों वाली लड़की के नाम पर रखा गया है जिसका प्रेमी उन चोटियों पर बैठ कर उसकी व्याकुल प्रतीक्षा कर रहा है जो सूरज की रोशनी में सोने और चांदी की तरह चमकती हैं, उन चोटियों को भी उसने उसे दिखाया।
संतरे की फांकों के मानिंद खूबसूरत अपने होठों को अनेक प्रकार से घुमाते हुए उसने बताया कि पहाड़ ऊपर से दिखतें हैं जितने कठोर उनकी आत्मा उतनी ही कोमल होती है। उसने अपनी गहरी काली आँखों की पुतलियों को नचाते हुए बताया कि आज-कल इन घाटियों में फिरता है एक दैत्य, जो खा जाता है पहाड़ की आत्मा को और खोखला कर रहा है उन्हें। उसने दबी सी आवाज में बताया कि आज-कल जंगलों में बढ़ गए हैं आदमखोर जो खून चूसते हैं सिर्फ जवान लड़कों का। इसीलिए पहाड़ की माताएँ अपने बेटों को जवान होते ही भेज देतीं हैं दूर... किसी शहर में। ऐसा कह कर वह चुप हुई थोड़ी देर और फिर दुखी मन से धीरे-धीरे गुनगुनाने लगी कोई उदास पहाड़ी गीत।
उसे उदास देख कर वह बातूनी लड़का उसे सुदूर पूरब  मैदानों में प्रचलित उन कहानियों में ले कर चला गया जहाँ हंसी ख़ुशी के छोटे-छोटे गाँव बसते थे। जिसे देख कर वह गहरी और काली आँखों वाली लड़की जो उसे एक तितली की तरह लगती थी फिर से मुस्कुराने लगी। उसने सामने से आते हुए बादलों के एक झुण्ड को दिखाते हुए कहा कि वो मैं हूँ, और दूसरे झुण्ड की तरफ इशारा करते हुए बोली वो तुम अब हम इन्हीं बादलों की तरह मिल कर एक हो जाएंगें और मुस्कुराते हुए लड़के की तरफ देखने लगी। लड़के ने भी मुस्कुराते हुए बात को आगे बढ़ाया और कहा कि फिर हम अनंत विस्तार लिए हुए इन घाटियों में गुम हो जाएँगे और दोनों हँसने लगे।
एक दिन उस बातूनी लड़के ने उस लड़की से जो उसे एक खूबसूरत तितली की तरह लगती थी। उस के खूबसूरत परों को देखते हुए कहा तुम्हारे परों के रंग कितने खूबसूरत हैं क्या मैं इन के चित्र बनाऊं? उस लड़की की गहरी और काली आँखों में आशंका की एक हल्की सी रेखा उभरी और उसने कहा .. नहीं।  तुम मेरे परों से रंग ले कर बनाओगे चित्र और एक दिन जब तुम बन जाओगे एक प्रसिद्ध चित्रकार तो फिर उन चित्रों की लगेगी सार्वजनिक प्रदर्शनी, हो सकता है कोई लगाये उनकी बोली। लड़के ने कहा जब तुम बोलती हो तो तुम्हारी आवाज की झंकार में जीवित हो जातें हैं पहाड़ के सारे लोक-राग। मैं  इन पर कुछ गीत और कविताएँ लिखना चाहता हूँ। 
 

उस लड़की की गहरी और काली आँखों में आशंका की रेखाएं और गहरी हो गयीं। उसने कहा चुप हो जाओ तुम इन पर गीत नहीं लिख सकते, नहीं कर सकते इन पर कोई कविता, ये तो मेरे पूर्वजों की अमानत है।
लड़के ने कहा - 'अच्छा तो क्या मैं सुदूर पूरब के मैदानों में बसे एक छोटे से गाँव के एक बातूनी लड़के और एक गहरी और काली आँखों वाली पहाड़ी लड़की की कहानी लिख सकता हूँ?'
लड़की ने कहा ठीक कहती थी मेरी माँ। सुदूर मैदानों से आतें हैं तुम्हारी तरह बातूनी लड़के जो अपनी बातों का रचते हैं जाल और लगा देतें हैं छल पहाड़ की लड़कियों पर और उन्हें किसी प्रसिद्ध चित्र में स्तब्ध खड़ी किसी सुन्दरी की तरह या पहाड़ी गीतों की किसी विरहणी स्त्री या फिर किसी अधूरी कहानी की प्रसिद्ध नायिका की तरह अकेला छोड़ कर चले जातें हैं। तुम्हे भी यही करना था। अब मैं और नही रह सकती तुम्हारे साथ । यह कहते हुए वह गहरी और काली आँखों वाली लड़की चली गयी, कभी न लौटने के लिए।
वह लड़का जो काफ़ी बातूनी था और जिसे शौक था, ज्यादा बातें करने और कम लिखने का।वाक खड़ा देखता रहा उस लड़की को जाते हुए। अब उस लड़के ने धीरे-धीरे छोड़ दिया लोगों से बात करना। उसने तय किया कि आज के बाद वह तब तक कुछ भी नहीं लिखेगा, जब तक उस शहर में बिगुल की आवाज के साथ छोलिया नृत्य का आयोजन सम्पन्न न हो जाय। उसने ऊँचे पहाड़ों पर एक गहरी झील के किनारे बसे और बड़े-बड़े देवदार के जंगलों से घिरे उस शहर को छोड़ दिया और  चला गया बर्फ से ढकी पहाड़ की उन  चोटियों  पर जो सूरज की रोशनी में सोने और चांदी की तरह चमकती हैं और जहाँ सदियों से एक प्रेमी अपनी प्रेमिका की व्याकुल प्रतीक्षा कर रहा है जिसकी आँखे गहरी और काली हैं।


(इस पोस्ट में प्रयुक्त पेंटिंग्स वरिष्ठ कवि विजेन्द्र जी की हैं.)

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