संजना तिवारी की कविताएं
संजना तिवारी |
आज बाजार हर जगह कुछ इस तरह अपना प्रभाव जमाए हुए है कि रहीम की तर्ज पर कहें, तो ऐसा लगता है बिन बाजार सब सून। बाजार का तिलिस्म कुछ इस तरह का है गोया इससे दुनिया की हर चीज खरीदी जा सकती है। यानी कि दुनिया की हर चीज बिकाऊ है। लेकिन यही सच नहीं है। बाजार के वर्चस्व के बावजूद कुछ व्यक्ति, विचार और चीजें बिकाऊ नहीं है। इन लोगों ने कभी अपने सामने अपना मूल्य पट्ट नहीं टांका। सच तो यह है कि बाजार हमेशा एक भ्रम रचता है। 'कबीर तो खुलेआम कहते हैं कबीरा खड़ा बाज़ार में लिए लुकाठी हाथ...'। कबीर की इस लुकाठी को हाथ में लिए कुछ लोग हैं जिनसे उम्मीद कायम है। संजना तिवारी ऐसी ही जुझारू महिला हैं जिनसे साहित्य से जुड़ा हर व्यक्ति परिचित है। किताबों को पाठकों तक पहुंचाने की उनकी मुहिम से भला कौन अंजान होगा। संजना कविताएं भी लिखती हैं, यह जान कर सुखद आश्चर्य हुआ। तो आइए आज पहली बार पर पढ़ते हैं संजना तिवारी की कुछ कविताएं।
संजना तिवारी की कविताएं
बेटियों के लिए
सुबह
किरणों के रथ पर
आती हैं बेटियां
इन्हीं उधार ले कर
फूल बिखेरते हैं खुशबू
बेटियाँ ही कोयल को
सिखलाती हैं तान
जहाँ जन्म लेती हैं ये
बसंत खूद-ब-खूद
आ जाता है वहां
अनमोल धरोहर हैं ये धरती की
फिर भी इनके आगमन पर
उदासी क्यों छा जाती?
आखिर हम
कब समझेंगे
कि बेटियों के हाथ में ही
जगती की डोर है
इन्हीं से अंजोर है।
नयापन
हमने हवा से कहा-
कुछ नया कर के दिखाओ,
हवा मुस्कुराते हुए
हमारे भीतर समा गई!
हमने सूरज से कहा-
कुछ नया करके दिखाओ,
बिना कुछ कहे उगता हुआ सूरज
उजास से हमें भर दिया!
हमने फूलों से कहा-
कुछ नया करके दिखाओ,
बिना कुछ कहे फूलों ने
खुशबू बिखेर दी!
मगर हम नएपन की तलाश में
न जाने क्या से क्या होते जा रहे हैं
अपनी सहजता खोते जा रहे हैं।
पेड़ों के जमीन से रिश्ते हैं
जीवन का हवा से
नदियों के समुद्र से रिश्ते हैं
रोगी का दवा से
पत्तियों के टहनियों से रिश्ते हैं
मछलियों का पानी से
धरती के सूरज से रिश्ते हैं
सरहद का जवानी से
चिड़ियों के आकाश से रिश्ते हैं
पाठक का किताब से
कवि के कविता से रिश्ते हैं
चांदनी के आफताब से रिश्ते हैं
ये रिश्ते प्रेम से संचालित हैं
मगर जो लोग
बाजार में रिश्ते ढूंढते हैं
वे यह भूल जाते हैं
कि जहां बाजार है
वहां प्रेम नहीं है
और जहाँ प्रेम नहीं है
वहां रिश्ते कहाँ से होंगे।
सच्चे रिश्ते बाजार में नहीं
वे होते हैं दिल के पास
जो रिश्ते बाजार में बनते
वे हैं रिश्तों की लाश।
माँ
तुम प्रथम गुरु हो माँ
मगर गुरु होने का
जरा भी गुरूर नहीं है तुममें
एक ऐसी नदी हो तुम
जो बच्चों लिए रुक जाती हो
ऐसी पर्वत हो तुम
जो प्यार में झुक जाती हो
तुम्हारे भीतर एक समुद्र है
जो ममता की हिलोरें मारता है
जिसमें मैं डूबती-उतराती हूँ
मैं जहाँ कहीं अकेली होती हूँ
वहां तुम्हें पाती हूँ
तुम्हारी गोद से हो कर
जो रोशनी आती है
लोग उसे सूरज कहते हैं
तुम हो तो सब कुछ है माँ
तुम नहीं तो कुछ भी नहीं।
(इस पोस्ट में प्रयुक्त पेंटिंग्स कवि विजेन्द्र जी की हैं।)
सम्पर्क
मोबाइल : 09650480219
सुंदर कविताएं 🌹
जवाब देंहटाएंसुंदर सृजन
जवाब देंहटाएंकाफी अच्छी कवितायें
जवाब देंहटाएंखूबसूरत भावपूर्ण कविताएँ।
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