प्रतिभा चौहान की कविताएँ

 

प्रतिभा चौहान



आम आदमी सामान्य तौर पर अपनी समस्याओं में कुछ इस तरह उलझा होता है कि राष्ट्रीय या अंतरराष्ट्रीय स्तर पर घटने वाली ऐसी घटनाएं, जो पूरी दुनिया को प्रभावित करती हैं और जिनके बारे में हम यह मुगालता पाल लेते हैं कि यह तो दुनिया के सभी व्यक्तियों को पता होगा, उसे आमतौर पर पता नहीं होती। उसे इस तरह की राष्ट्रीय या अंतरराष्ट्रीय घटनाओं से कोई बहुत फर्क भी नहीं पड़ता। हां, इस आम आदमी को तब फर्क पड़ता है जब उसकी रोजी-रोटी प्रभावित होती है। जब उसके दो वक्त का खाना प्रभावित होता है। जब उसके जरूरत की वस्तुएं आसानी से नहीं मिल पाती है, तब उसे फर्क जरूर पड़ता है। हालांकि इसका राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय स्तर की घटनाओं से कुछ भी सरोकार नहीं है। लेकिन एक आम आदमी की ये मामूली चिंताएं एक कवि के लिए एक बड़ी चिंता की तरह होती हैं। कवि का काम इस चिंता को उभारना ही होता है। प्रतिभा चौहान अत्यंत संवेदनशील कवयित्री है और अपनी एक कविता 'फरक पड़ता है' में वे इस आम आदमी की समस्या के बारे में बड़ी संजीदगी से बात करती हैं। आइए आज पहली बार पर हम पढ़ते हैं प्रतिभा चौहान की कुछ नई कविताएं।



प्रतिभा चौहान

परिचय


जन्म -10 जुलाई


शिक्षा : रुहेलखण्ड विश्वविद्यालय, बरेली, उत्तर प्रदेश से एम. ए. (इतिहास ) एल-एल. बी.



प्रकाशन: प्रतिष्ठित राष्ट्रीय/अंतर्राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में कहानियाँ, कविताएँ (हिन्दी व अंग्रेजी), बाल कहानियाँ/कविताएँ, समीक्षा, आलेख, यात्रा वृत्तान्त का नियमित प्रकाशन। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, गांधी स्मृति दर्शन समिति एवं महिला एवं बाल अधिकारों के संरक्षण, शांति व सौहार्द के लिए लेखन। राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय सेमिनार में सहभागिता और पत्र वाचन। देश की विभिन्न भाषाओं में कविताओं का अनुवाद। 



कृतियां : 


1. "जंगलों में पगडंडियाँ"(भारतीय ज्ञानपीठ व वाणी प्रकाशन से आदिवासियों एवं जंगल को समर्पित कविता संग्रह),

 2.  "पेड़ों पर हैं मछलियाँ" (कविता संग्रह),

 3.  "बारहखड़ी से बाहर" (कविता संग्रह)

 4.  "युद्ध में जीवन" (प्रकाशनाधीन कविता संग्रह)



पुरस्कार/ सम्मान


1.लक्ष्मीकान्त मिश्र स्मृति सम्मान, 2017

2.राम प्रसाद बिस्मिल सम्मान, 2018, 

3.स्वयंसिद्धा सृजन सम्मान, 2019, 

4.तिलकामांझी राष्ट्रीय सम्मान, 2020, 

5.IECSME वुमन एक्स्लेन्सी अवॉर्ड, 2021, 

6. निराला स्मृति सम्मान, 2022

7. अंतर्राष्ट्रीय तथागत सम्मान, 2022



संप्रतिः अपर जिला न्यायाधीश, बिहार न्यायिक सेवा




प्रतिभा चौहान की कविताएँ 



शऊर की स्त्री 


रुदन को धरती में बो कर 

सतरंगी धुनें उगाती हुई 

एक हंसमुख स्त्री 

खोई हुई अपने वजूद से बेखबर 

समर्पित स्त्री 

अपनी मुस्कुराहट के भँवरों में 

अंतहीन भार से चरमराई 

जिम्मेदार और गंभीर स्त्री 

पीठ पर पड़े नीले निशान छिपाती हुई 

भले घर की स्त्री 

समृद्ध इतिहास के युगों के मध्य 

विस्मृत की गई स्त्री 


वृद्ध महिलायें 

बताती हैं 

आज के खराब जमाने में 

ऐसी अच्छी स्त्रियां अब नहीं मिलतीं 

जो संभालें घर बार 

बिना किसी उफ्फ़ के। 



चिंताएँ 



मेरी वाजिब सी चिंताएं 

उस जमीन के लिए 

जिस पर उगने के लिए कम हो रहे हैं बीज



उस आकाश  के लिए 

जिसमें कोई कोना  

नहीं बचा है सुरक्षित धुएं और धूल की गर्मी से 



मेरी कुछ चिंताएं 

उन बच्चों के लिए भी हैं जो 

छोड़ चुके हैं बीच में ही किताबों का आँचल 

बढ़ चुके हैं प्रौढ़ता की राह पर 

घर की स्थिति का मुआयना करते हुए 



उस आम आदमी के लिए 

जो नहीं सीख सके हैं अभी अमन पर चलने का सबक 



उस नदी की उम्र के लिए जिसमें जन्मती हैं सभ्यताएं

कहीं वह रोक न दे बहना 



उस समुद्र के लिए भी 

जिसके धरातल पर हो चुके हैं छेद 

जो बनते हैं किसी जलजले के इंतजार में 

कई शताब्दियों के बाद 

नई जमीन की तैयारी के साथ। 







सब एक सा


 

मैंने पाली हैं कई 

चिड़ियाँ 



जो नहीं पूछतीं एक दूसरे की जाति 

जो नहीं लड़ती आपस में आकाश में सरहदों के नाम पर 

न उन्होंने बाँटा है जमीन पर गिरे हुए दानों को चुगते वक्त 

तुम्हारा-मेरा कह कर 



मैंने उन्हें दी आजादी 

खुला आसमान 

खुली फिजायें और समस्त ब्रह्माण्ड के 

खूबसूरत नजारे 



भरपूर आजादी नहीं डिगा सकी

मूल स्वभाव से

उन्होंने अपने नियम प्रकृति से लिए 

नहीं बनाया गया कोई कानून उनके खिलाफ़ 



मेरी चिड़ियों ने 

होली के समय में गाये हैं फागुन के गीत 

हर मौसम का किया सत्कार

ठीक त्योहारों की तरह  



पैरों ने कभी नहीं समझा

अपने पराये का अर्थ 

कभी नहीं डरीं एक साथ अंधेरे में होने से 

नहीं दिखी वैमनस्यता उनके दिलों में 

हालांकि हम मनुष्यों की भांति सबकी रगों में

एक सा ही रक्त बहता था।  




फरक पड़ता है 


छोटी बड़ी स्क्रीन 

चैनलों की मारामारी 

भर रही है दिमाग में 



खबरों का जंजाल, चीन की चालें 

आतंकवादी हमला 



एक बड़ी राजनीतिक उठापटक 

में एक नया इतिहास का बनना 



किसी महिला के सर्वोच्च पद पर पहुँचने पर 

महिलाओं के दर्द कम होने का ख्याल 



अमेरिका और रूस के बड़े नए पैंतरे 

एक शांत देश का युद्ध में खत्म हो जाना 



सब कुछ दिल को हिला देने वाली चीजें हैं 

खबरों ने बढ़ा दिया है घर के भीतर का ताप 



पर 

घर के बाहर 

सड़क पर एक बुढ़िया बेचती है 

नारियल पानी 



उतनी ही खुश,

उतनी ही दुखी जैसी दिखती है हमेशा 

बेखबर हर वक्त 

थोड़ी सी मस्त 



मैंने पूछा 

आजकल की खबरों से तुम पर कोई फर्क नहीं पड़ता 

क्या तुम्हें मालूम है 

एक देश हो गया है 

नेस्तनाबूद 

पिछले कई वर्षों से राज करने वाली पार्टी आज हार गई 

तुम नहीं जानती चीन कर रहा है युद्ध की तैयारी

किसी देश पर हो सकता है किसी वक्त हमला 


 

उलझे वालों वाली बुढ़िया मुस्कुराई

-साहब 

मैं तो शांत जगह पर रहती हूँ 



मुझे तो फरक पड़ता है 

जब नारियल पानी कम बिकता है। 








अगली सुबह का सूरज


मुझे सो नहीं जाना है 

इंतजार की घड़ियाँ गिनते हुए 



निराश हो कर 

इस अमूल्य घड़ी में

नहीं रह जाना है प्रतीक्षा करते हुए 

एक मासूम सी नायिका बन कर 

जीवन संबंध में 

अवसाद सा घुलते हुए 



मेरी प्रतीक्षा तुम्हारी नहीं है 

मेरी प्रतीक्षा 

और लक्ष्य 

अगली सुबह का नारंगी सूरज है। 



युद्ध की परछाईयां


क्या तुमने देखी हैं  

युद्ध की परछाईयां 


जो काटती हैं संवेदनाओं की जड़ें

तीर जैसे भेदती हुई गहरी चली जाती हैं 

और कर देती हैं 

धरती का अहिंसक सीना लहूलुहान


ह्रदय में किसी हिंसक मनुष्य की 

आंखों के लाल डोरे सी उभर आती हैं 


और फिर उग जाती हैं नए दरख़्त सी 

अगले छोर पर अपनी शाखाओं को बढ़ाते हुए 


इस आकाश को शांत करने वाली 

कोई वर्षा ऋतु आएगी क्या?


क्या तुमने वह सारे गीत गाने बंद कर दिए?

जिनसे उठते थे बादल, होती थी बारिश 

और उमगती थी हरियाली मिट्टी के हर कण से 



भरते थे पेट और संतुष्टि भर गूँजती थीं 

धूसरित घरों में खुशियों की किलकारियां 



खेतों में मोटे दाने और आशाओं की हरी-हरी कोपलें सी 

संवेदनाएँ उग जाती थीं बिना किसी खाद या पानी के 



सुनो, ऐसा करो 

कुछ बताना है तुम्हें 



मेरी संवेदनाओं और स्नेह के बीज बो देना 

इस धरती के कोने-कोने में 



डालना अंजुली भर-भर प्रेम के गीत 

जला देना हिंसा के कीट-पतंगे, खर पतवार 

कविताओं की खाद से 



ईश्वर की तलाश में निकले संतों से कहना 

न रहें गुफाओं में, तपस्या में लीन 



गुजर जाएं पृथ्वी के कोने कोने से 

उनके पावों से पनपेगी पवित्रता 



कुछ चिट्ठियाँ लिख देना खुशगवारियों की 

उन तमाम भुलाए गए लोगों को 

जिनकी गुमशुदा मुस्कुराहट ढूंढ रही है 

मुस्कुराने का कोई मुद्दा 



और कुछ कर सको तो 

सुनो 


कुछ कवितायें लिख देना प्रेम और शांति की 

शेष बातों के लिए। 




(इस पोस्ट में प्रयुक्त पेंटिंग्स स्वर्गीय कवि विजेंद्र जी की हैं।)




 

सम्पर्क



ई मेल : cjpratibha.singh@gmail.com

टिप्पणियाँ

  1. संवेदनशील मन से निःसृत कविताएं जिनमें वर्तमान की बहुविध चिंताएँ शामिल हैं। प्रतिभा जी और पहलीबार को समवेत बधाई।
    ललन चतुर्वेदी

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  2. सारगर्भित टिप्पणियों के लिए आप सभी का बहुत आभार

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