फयोडोर मिखाइलोविच दोस्तोवएस्की की कहानी 'क्रिसमस का पेड़ और शादी'
दोस्तोवएस्की |
फयोडोर मिखाइलोविच दोस्तोवएस्की
रूसी कथाकार और पत्रकार फयोडोर मिखाइलोविच दोस्तोवएस्की का जन्म 11 नवम्बर 1821 को मास्को में हुआ था। उनके पिता डॉक्टर थे। 15 वर्ष में माँ की मृत्यु के बाद दोस्तोवएस्की ने स्कूल की पढ़ाई छोड़ दी और मिलिट्री इंजीनियरिंग इंस्टिट्यूट में दाखिला ले लिया। इंजीनियर का पेशा न अपना कर उन्होंने लेखन कार्य को अपनी जीविका का साधन बनाया। उनका पहला उपन्यास “पुअर फोक” एक सरकारी कर्मचारी के जीवन पर आधरित था। उन्हें सत्ता के विरोध में चार साल जेल में रहना पड़ा और चार साल साइबेरिया में फौज़ में काम करना भी पड़ा। 19वीं शताब्दी के रूस की राजनीतिक सामाजिक और आध्यात्मिक परिवेश में मानवीय स्थितियों का उनकी कृतियों में प्रामाणिक साक्ष्य मिलता है। उनके उपन्यासों में ऐसे मनुष्यों का मन का मनोवैज्ञानिक अध्ययन मिलता है जिनकी तर्क शक्ति नष्ट हो जाती है या पागल हो जाते हैं या आत्म हत्या करते हैं। उनका मानना था कि मनुष्य खुशी से अधिक आज़ादी को पसंद करता है लेकिन अनियंत्रित आज़ादी घातक होती है क्योंकि इस बात की गारंटी नहीं होती है कि मनुष्य आजादी का सकारात्मक उपयोग करेगा। उनकी मृत्यु 9 फरवरी 1881 को हुई। 'क्राइम एंड पनिशमेंट', 'द ब्रदर्स करामज़ोव', 'नोट्स फ्रॉम द अंडरग्राउंड', 'इडियट' उनके महत्त्वपूर्ण उपन्यास हैं।
कला मनुष्य के अंतर्मन या कह लें मनुष्य की संवेदनाओं से जुड़ी होती है इसीलिए वह किसी भी तरह की सीमाओं का सहज ही अतिक्रमण कर जाती है। बकौल विनोद दास एक क्लासिक कहानी किस तरह सरहद और समय के पार चली जाती है, रूस के महान कथाकार फयोडोर मिखाइलोविच दोस्तोवएस्की की यह कहानी एक अप्रतिम उदाहरण है। शताब्दियों के बाद भी यह कहानी आज की लगती है। हाल ही में न्यू वर्ल्ड पब्लिकेशन से विनोद दास की एक महत्त्वपूर्ण किताब "सरहद के पार के महान कथाकार" प्रकाशित हुई है। इस किताब में दोस्तोवएस्की की यह उम्दा कहानी संकलित है। आइए आज पहली बार पर पढ़ते हैं फयोडोर मिखाइलोविच दोस्तोवएस्की की कहानी 'क्रिसमस का पेड़ और शादी'।
फयोडोर मिखाइलोविच दोस्तोवएस्की
क्रिसमस का पेड़ और शादी
अनुवाद : विनोद दास
हाल में मैंने एक शादी देखी। लेकिन नहीं, मुझे इसके बजाय क्रिसमस के पेड़ के बारे में आपको बताना चाहिए। यह शादी शानदार थी। मुझे बेइन्तहा पसन्द आयी। लेकिन दूसरी घटना और भी अच्छी है। पता नहीं क्यों उस शादी को देख कर मुझे क्रिसमस के पेड़ की याद आ गयी। वाकया कुछ इस तरह घटा।
ठीक पाँच साल पहले नए साल के मौके पर व्यापार जगत के उस नामचीन आदमी ने मुझे बच्चों के एक उत्सव में आमंत्रित किया जिसके अपने अपने दायरे में पहुँच, मेल-जोल और दुरभि-संधियाँ थीं। ऐसे में यह लगता था मानो बच्चों का उत्सव महज़ उनके अभिभावकों का एक दूसरे के करीब आने का बहाना था ताकि वे मासूमियत और सहजता से अपने हितों से जुड़ी बातों पर चर्चा कर सकें।
मैं उस दुनिया से बाहर का आदमी था, चूँकि मेरे पास बात करने के लिए ऐसा कोई खास मुद्दा नहीं था जिसे उस साँझ मैं दूसरों से साझा कर सकता। मेरी तरह एक और सज्जन थे जो इस घरेलू आयोजन के मंगल अवसर पर आ टपके थे। शक्लों-सूरत से वह जन्म से या वैसे भी कुलीन परिवार के नहीं लगते थे। उनका ऊँचा कद था, दुबले-पतले थे, सजे-धजे और बेहद गम्भीर दिख रहे थे। एक नज़र में लगता था कि उनका मन पारिवारिक उत्सवों में नहीं रमता होगा। फ़ौरन से पेश्तर उन्होंने खुद एक कोना पकड़ लिया। उनके चेहरे से मुस्कान गायब हो गयी और उनकी मोटी काली भौंहों की त्योरियाँ चढ़ गयीं। मेजबान के अलावा वह किसी को भी नहीं जानते थे। उनके हाव-भाव से लग रहा था कि वह बुरी तरह ऊब रहे हैं, हालाँकि मेहमान की भूमिका को पूरी तरह आनन्द में डूब कर साहस के साथ निभाने की कोशिश कर रहे थे। बाद में मुझे पता चला कि वह किसी सूबे में रहते हैं और एक महत्त्वपूर्ण काम से या यूँ कहिए कि एक मुश्किल व्यापार के सिलसिले में राजधानी आए हैं। उनके पास हमारे मेजबान के लिए एक सिफारिशी खत भी था। मेजबान ने उन्हें अपनी शरण में बिना किसी उत्साह के ले लिया था। यह केवल उनकी सदाशयता थी कि उन्होंने उन्हें बच्चों के उत्सव में निमन्त्रित किया था।
उन्होंने उसके साथ ताश नहीं खेला। उन्होंने उसे सिगार की पेशकश भी नहीं की। कोई उनकी बातचीत में शामिल नहीं हुआ। शायद उन्होंने दूर से ही उस चिड़िया को उसके पँखों से पहचान लिया था। ऐसे में मेरे वह महाशय समझ नहीं पा रहे थे कि अपने हाथों का उपयोग क्या करें तो शाम अपनी बड़ी बड़ी मूँछें मरोड़ कर गुजार रहे थे। उनकी मूँछें वाकई शानदार थीं लेकिन वह महाशय उन्हें ऐसे मरोड़ रहे थे गोया इस दुनिया में मूँछें पहले आयी हो और उसके बाद इन मूँछों को मरोड़ने के लिए इस आदमी का जन्म हुआ हो।
एक और मेहमान दिलचस्प लग रहे थे। लेकिन वह कुछ अलग सम्भ्रान्त से लग रहे थे। वे उसे जूलियन मस्ताकोविच कह कर पुकार रहे थे। पहली नज़र में कोई कह सकता था कि वह एक सम्मानित मेहमान हैं और मेजबान से उनका रिश्ता उसी किस्म का है जो उस मुच्छड़ महाशय का मेजबान से है। मेजबान और महिला मेजबान उससे अन्तहीन अच्छी-अच्छी बातें कर रहे थे, उसका खास ख्याल रख रहे थे, उसका दिल जीत रहे थे, उसके इर्द-गिर्द मँडरा रहे थे, मेहमानों को ला कर उनसे मिलवा रहे थे लेकिन उन्हें किसी और के पास नहीं ले जा रहे थे। जब जूलियन मस्ताकोविच ने यह कहा कि ऐसी खुशगवार शाम मैंने बहुत कम बितायी है तो मैंने देखा कि मेरे मेजबान की आँखों में चमकते आँसू थे। बहरहाल इस सम्भ्रान्त व्यक्ति की मौजूदगी से मैं असहज होने लगा था। लिहाजा मैं बच्चों में रस लेने लगा जिनमें हमारे मेजबान के खाये-पिए पाँच नौनिहाल खासतौर से अलग दिख रहे थे। फिर मैं एक छोटे से खाली बैठके में गया। मैं आखिरी कोने में जा कर बैठ गया जहाँ एक पौधशाला थी जिसने आधे कमरे को घेर रखा था।
बच्चे आकर्षक थे। माँओं और दाई माँओं की कोशिशों के बावजूद वे अपने बुजुर्गों की तरह बनने को तैयार नहीं थे। चुटिकयों में उन्होंने क्रिसमस ट्री को गिरा कर उसकी मिठाई का कचूमर निकाल दिया। यही नहीं, इसके पेश्तर कि वे पता लगा पाते कि कौन सा खेल का सामान किसका है, उन्होंने अपने आधे खेल का सामानों को तहस-नहस कर दिया।
लेकिन इनमें काली आँखेँ, घुँघराले बाल वाला एक सुकुमार बालक भी था जो बेहद ढिठायी से बार-बार अपनी लकड़ी की बन्दूक से मेरे ऊपर निशाना साध रहा था। लेकिन इन सबमें जो बच्चा सबसे अधिक ध्यान खींच रहा था, वह उसकी ग्यारह साल की बहन थी जो सौन्दर्य की देवी की तरह मोहक लग रही थी। बड़ी-बड़ी स्वप्निल आँखों वाली वह ख़ामोश और विचारमग्न थी। बच्चों ने उसे नाराज़ कर दिया था और वह उनका साथ छोड़ कर उसी कमरे में आ गयी थी जिसमें मैं मौजूद था। वहाँ वह कोने में अपनी गुड़िया के साथ बैठी थी।
“इसके पिता जी बहुत बड़े अमीर व्यापारी हैं। इसके दहेज के लिए तीन सौ हजार रूबल पहले से ही अलग रखे हुए हैं।” मेहमान एक दूसरे को सादर बता रहे थे।
जैसे मैंने झुण्ड की और मुड़ कर देखा जहाँ से यह सूचना आ रही थी, मेरी नज़र जूलियन मस्ताकोविच पर पड़ी। वह अपने हाथों को पीठ के पीछे कर के और एक तरफ अपने सिर को झुका कर इस नीरस गपशप को अत्यंत एकाग्रता से सुन रहा था।
इस दौरान मैं अपने मेजबान की तोहफ़े बाँटने की चतुराई पर अचरज करते हुए उसमें खोया हुआ था। दहेज में सबसे अधिक रूबल पाने वाली छोटी लड़की को सबसे सुन्दर गुड़िया दी गयी। बाकी उपहार माता-पिता की समाज में घटते हैसियत की श्रेणी के अनुसार बांटे गए। दस साल के दुबले-पतले लाल बालों बच्चे के हिस्से में चित्रों वाली कुदरत से जुड़ी कहानियों की एक छोटी किताब आयी। वह दाई माँ का बच्चा था। दाई माँ एक गरीब विधवा थी। उसका लड़का पीले भूरे रँग की एक छोटी और बेकार सी जैकेट पहने हुए बुरी तरह दबा-कुचला सा लग रहा था। उसने कुदरत की कहानियों की किताब ले कर बच्चों के खिलौनों के चारों ओर गोल-गोल घुमाया। उनके साथ खेलने के लिए उसे कुछ और भी दिया जा सकता था। लेकिन उसे यह कहने की हिम्मत नहीं पड़ी। आप कह सकते हैं कि उसे अपनी औकात पहले से ही पता थी।
मुझे बच्चों को देखना अच्छा लग रहा था। अपने वजूद के लिए लड़ते हुए उनकी निजी खूबियों को देखना वाकई रोचक था। मैं यह भाँप रहा था कि लाल बालों वाले बच्चे की उत्सुकता दूसरे बच्चों की चीजों में खासतौर से एक टॉय थिएटर में बहुत अधिक थी। इसमें हिस्सा लेने के लिए वह दूसरे बच्चों की लल्लो-चप्पो करने लगा था। वह मुस्करा कर उनके साथ खेलने लगा। उसने अपना एकमात्र सेब उस मोटे से गरीब बच्चे को दे दिया जिसकी जेबें पहले से मिठाइयों से भरी हुई थी। यही नहीं, उसने अपने से छोटे बच्चे का थैला भी बस इसलिए ढोने लगा कि शायद उसे थिएटर के खेल में बने रहने दिया जाए।
लेकिन कुछ ही पलों में एक ढीठ किशोर उसके ऊपर गिर पड़ा और उसे एक घूँसा मार दिया। वह रोने की हिम्मत भी नहीं कर सका। दाई माँ आयी और दूसरे बच्चों के खेल में टाँग अड़ाने के लिए उसे मना किया। वह उसी कमरे में आ गया जिसमें वह लड़की और मैं मौजूद थे। लड़की ने उसे अपने बगल बैठने दिया और वे दोनों उस मँहगी गुड़िया को कपड़े पहनाने में व्यस्त हो गए।
लगभग आधा घण्टा बीत गया। पौधशाला में बैठ कर लाल बालों वाले लड़के और दहेज वाली सुन्दर लड़की की उड़ती हुई चटरपटर सुनकर मुझे कुछ कुछ झपकी आ रही थी कि जूलियन मस्ताकोविच कमरे में आ गया। बच्चों के शोर-शराबे के बहाने वह ड्रॉइंग रूम से बाहर सरक आया था। अपने एकान्त कोने से कुछ क्षण पहले मैंने उसे उस अमीर लड़की के पिता से उत्साह से बात करते हुए देखा था जिससे उसका परिचय कुछ देर पहले कराया गया था।
वह वहाँ खड़े-खड़े अपने से बात करते और बुदबुदाते हुए अपनी अँगुलियों से कुछ हिसाब लगा रहा था।
तीन सौ-तीन सौ-ग्यारह-बारह-तेरह-सोलह - पाँच सालों में! कह सकते हैं- चार फीसदी-पाँच गुणा बाढ़ - तेरह और सोलह तक -मान लीजिए पाँच सालों में यह रकम- इतनी हो गयी, चार सौ - हूँ हूँ लेकिन वह बूढ़ा लोमड़ चार फीसदी से संतुष्ट नहीं होगा। वह आठ या दस फीसदी तक शायद चाहेगा। मान लीजिए पाँच सौ, पाँच सौ हज़ार कम-से-कम इतने पर जरूर राज़ी हो जाएगा। इसके अलावा उसका जेब खर्च - हूँ।"
उसने अपनी नायक सिनकी और कमरे को छोड़ कर जाने को ही था कि उसने उस लड़की को देखा और रुक गया। पौधे के पीछे उसकी नज़र से दूर मैं उसे देख रहा था। वह उत्तेजना से काँप रहा था। शायद उसके हिसाब ने उसे बेचैन कर दिया होगा। उसने अपनी गदोलियों को रगड़ा, एक जगह से दूसरी जगह जाते हुए और भी अधिक उत्तेजित होता चला गया। अंततः उसने अपनी भावनाओं को काबू किया और एक जगह खड़ा हो गया। उसने पहली नज़र में ही दृढ़ निश्चय के साथ अपनी भावी वधू को देखा और उसकी तरफ जाना चाहा। फिर उस बच्ची के पंजे पर ऐसे चढ़ गया मानो उसे कोई अपराध बोध हो। बाद में झुक कर उस बच्ची का सिर चूम लिया।
उसका आना इतना अचानक था कि वह लड़की डर से चीख पड़ी।
“मेरी प्यारी बच्ची तुम यहाँ क्या कर रही हो?” उसने फुसफुसाते हुए कहा और चारों ओर नज़र दौड़ाने के बाद उसके गाल पर चिकोटी काट ली।
“हम खेल रहे हैं।"
“इस लड़के के साथ” दाई माँ के लड़के की ओर सवालिया नज़र से देखते हुए उसने कहा। फिर उस लड़के से उसने कहा, ”मेरे बच्चे तुम जा कर ड्रॉइंग रूम में खेलो।"
वह बच्चा खामोश खड़ा रहा और उस आदमी को आँखें फाड़ कर देखने लगा। एक बार फिर चारों ओर चौकन्नी नज़र दौड़ाने के बाद जूलियन मास्तकोविच ने उस लड़की पर झुक कर उससे पूछा, ”मेरी प्यारी तुम्हारे पास क्या गुड़िया है?”
“हाँ सर! “वह बच्ची कुछ घबड़ा गयी और उसकी भौंहें पर बल पड़ गए।
“गुड़िया है अच्छा! मेरे प्यारी क्या तुम जानती हो कि गुड़िया किस चीज़ से बनती है?”
“नहीं सर" उसने कमज़ोर आवाज में कहा और अपना सिर झुका लिया।
“फटे-पुराने कपड़ों से बनती है मेरी प्यारी। ऐ लड़के ! तुम बच्चों के पास ड्रॉइंग रूम में जाओ।” जूलियन मास्तकोविच ने उस लड़के को सख्ती से घूरते हुए कहा।
उन दोनों बच्चों की त्योरियाँ चढ़ गयीं। उन दोनों ने एक दूसरे को और जकड़ लिया और अलग नहीं हुए।
“और क्या तुम यह जानती हो कि उन्होंने तुम्हें यह गुड़िया क्यों दी है?" अपनी आवाज़ के लहज़े को कम से कमतर करते हुए जूलियन मास्तकोविच ने पूछा।
“नहीं।"
“चूँकि तुम पूरे सप्ताह एक अच्छी लड़की रही थी।”
यह कह कर उसने अपने आवेश को रोका। उसने चारों ओर देखा और हल्की, लगभग न सुनायी देने वाले लहज़े में विकलता से कहा, "अगर मैं तुम्हारे माँ पिता से मिलने तुम्हारे घर आऊँ तो क्या तुम मुझे प्यार करोगी मेरे प्यारी?”
उसने उस छोटी सी प्यारी बच्ची को चूमने की कोशिश की लेकिन लाल बालों वाला लड़के ने देखा कि वह रूआँसी हो गयी थी। लड़के ने उसका हाथ थाम लिया और हमदर्दी में जोर-जोर से सुबकने लगा। इससे उस आदमी का क्रोध से पारा चढ़ गया।
“जाओ भागो! भागो! दूसरे कमरे में अपने खेल के साथियों के पास जाओ।"
“मैं नहीं चाहती कि वह जाये। मैं नहीं चाहती कि वह जाये। आप जाओ। लड़की चीखी। उसे अकेला रहने दो। उसे अकेला छोड़ दो।" वह एक तरह से रो रही थी।
दरवाजे पर पाँवों की आहट सुनायी दी। जूलियन मास्तकोविच इज़्ज़तदार जिस्म को सँवारने में मशगूल हो गया। लाल बालों वाला लड़का और भी अधिक चौकन्ना हो गया। उसने लड़की का हाथ छोड़ दिया और दीवार के किनारे किनारे चलता हुआ ड्रॉइंग रूम से डाइनिंग रूम में पहुँच गया।
सबकी नज़र बचा कर जूलियन मास्तकोविच भी डाइनिंग रूम की तरफ़ चल दिया। वह झींगा मछली की तरह लाल था। आईने में अपना चेहरा देख कर उसे अपने पर शर्म आती थी। मुमकिन है कि उसे लड़की को ले कर अपनी ललक और बेसब्री पर गुस्सा आ रहा हो। अपने महत्त्व और गरिमा का ख्याल किए बिना लाभ के हिसाब ने उसके भीतर एक लड़के सा आतुर लालच पैदा कर दिया था जो सीधे अपने सामान पर झपट्टा मारता है जबकि वह लड़की तो अभी तक सामान भी नहीं बनी थी। सामान बनने में उसे अभी पाँच साल और लगने वाले थे। उस गुणी आदमी का पीछा करते हुए मैं डाइनिंग रूम आ गया जहाँ मैंने अनूठा नाटक देखा।
जूलियन मास्तकोविच चिढ़ और जहर भरी नज़र से लाल बालों वाले लड़के को धमकी दे रहा था। लाल बालों वाला लड़का डर से पीछे हटते हटते ऐसी जगह पहुँच गया था जहाँ से वापस लौटने की गुंजायश नहीं थी और वह समझ नहीं पा रहा था कि डर से कहाँ मुड़ जाए।
“यहाँ से निकलो? तुम यहाँ क्या कर रहो हो? निकलो, मैं कहता हूँ कि तुम किसी मशरफ़ के नहीं हो। क्या तुम फल चुरा रहे हो?अच्छा तो तुम फल चुरा रहो हो, फूटो यहाँ से बदसूरत चेहरा लेकर। अपने जैसे लोगों के पास जाओ”
आखिरी उपाय के रूप में वह डरा बच्चा मेज के नीचे जल्दी से रेंग गया। अब उसका मुद्दई पूरी तरह गुस्से में भर गया था। उसने अपना कपड़े का रुमाल निकाला और उस लड़के को उसकी जगह से हटाने के लिए उसे कोड़े की तरह इस्तेमाल करने लगा।
मुझे यहाँ यह बता देना चाहिए कि जूलियन मास्तकोविच का शरीर मोटा, भारी, खाया-अघाया सा लगता था। फूले-फूले गाल थे। मोटी तोंद थी। सुपारी की तरह उसकी गोल कोहनी थी। उसको पसीना आ गया। शरीर बेदम हो गया। वह हाँफने लगा। उस बच्चे के प्रति उसकी नापसंदगी (या कहें ईर्ष्या) इतनी गहरी थी कि वह दरअसल एक पागल की तरह व्यवहार करने लगा था।
मैं खुल कर हँसने लगा। जूलियन मास्तकोविच ने मुड़ कर देखा। वह बुरी तरह चकराया हुआ था। एक क्षण के लिए साफ लगा कि वह अपने भारी वजूद को भी भूल गया है। इसी वक्त दरवाजे पर हमारे मेजबान नमूदार हो गए। जूलियन मास्तकोविच ने जल्दी से अपना रुमाल पीछे कर लिया जिसे वह अपनी नाक के कोने के पास से हिला रहा था। हमारे मेजबान ने हम तीनों की तरफ़ कुछ सन्देह से देखा। लेकिन एक ऐसे शख्स की तरह जो इस दुनिया को जानता-पहचानता है, फिर तुरन्त उससे अपना सामंजस्य बना लेता है, वह अपने उस सबसे मूल्यवान मेहमानों से मिलने-जुलने के अवसर को भुनाने में लग गया जिनसे वह कुछ मन-मुताबिक चीज़ें हासिल कर सकता था।
लाल बालों वाले बच्चे की तरफ़ इशारा करते हुए मेजबान ने कहा, "यह वह बच्चा है जिसके बारे में मैं आपसे बात कर रहा था। मैं आपकी भलमनसाहत को देखते हुए उसकी तरफ़ से गुजारिश करने की छूट ले रहा हूँ।”
“अच्छा! जूलियन मास्तकोविच ने जवाब दिया। उसका अभी भी अपने पर पूरी तरह नियंत्रण नहीं था।
“यह मेरी दाय माँ का बेटा है। हमारे मेजबान ने अपनी बात विनम्र लहज़े में जारी रखी।” बेचारी गरीब औरत है। एक ईमानदार अधिकारी की विधवा है। इसीलिए अगर आपके लिए मुमकिन हो।”
“नामुमकिन, नामुमकिन" जूलियन मास्तकोविच ने जल्दी-जल्दी जोर से कहा। “आप मुझे माफ कीजिए, फिलिप आलेक्सएविच ! मैं वाकई नहीं कर सकता। मैंने पता किया है। नौकरी के लिए वहाँ कोई जगह नहीं खाली है। दस लोगों के इंतजार की लम्बी कतार है जिनका हक बड़ा है। मुझे खेद है।”
“बुरा हुआ” हमारे मेजबान ने कहा। “वह एक सीधा फ़रमादार बच्चा है।”
मैं तो कहूँगा कि वह एक बेहद शरारती बदमाश लड़का है “ जूलियन मास्तकोविच ने चिढ़ कर कहा। फिर उस बच्चे से कहा, ”ये लड़के ! यहाँ से हटो। तुम अभी तक यहाँ बने हुए हो? दूसरे बच्चों के पास जाओ।”
अपने को नियंत्रित करने में असफल उसने तिरछी नज़र से मुझे देखा। मैं भी अपने पर काबू न पा सका। मैं उसके चेहरे के सामने जाकर सीधे हँसने लगा। उसने अपना चेहरा मोड लिया और कुछ अजीबोगरीब नवजवान मेजबान से कुछ ऐसे लहज़े में पूछा जो मुझे भी साफ़ सुनायी दे रहा था। मुझे नज़रंदाज़ करके एक दूसरे से फुसफुसाते हुए वे कमरे से बाहर चले गए।
मैंने ठहाका लगाया। फिर मैं भी ड्रॉइंग रूम चला गया। पिता- माँओं और मेजबान और उनकी पत्नी से घिरा वह महान आदमी बेहद उत्कंठा के साथ एक स्त्री से बात कर रहा था जिससे कुछ देर पहले उसका परिचय कराया गया था। वह स्त्री उस लड़की का हाथ अपने हाथ में लिए हुए थी। जूलियन मास्तकोविच उसकी भरपूर तारीफ़ करने में लगा हुआ था। वह उस प्यारी बच्ची की खूबसूरती, उसकी प्रतिभा, उसकी शिष्टता, उसके उम्दा लालन-पालन का बखान लच्छेदार शब्दों में कर रहा था जिसे दूसरे मायनों में कहा जाए तो यह उस लड़की की माँ की चापलूसी थी। बड़ी मुश्किल से अपने खुशी के आँसू को रोके हुए माँ उसे सुन रही थी जबकि पिता अपनी कृतज्ञ मुस्कान से अपनी खुशी का इज़हार कर रहे थे।
यह खुशी संक्रामक थी। हर कोई इसमें हिस्सा ले रहा था। बच्चों ने भी खेलना बन्द कर दिया था ताकि बातचीत में कोई अड़चन न आए। पूरा माहौल विस्मय से भरा हुआ था। मैंने उस विशिष्ट लड़की की माँ को सुना जो अपनी दिल की गहराइयों से अपने शालीन लहज़े में जूलियन मास्तकोविच से पूछ रही थी कि क्या वह उसके ग़रीबखाने पर आने की मेहरबानी करेंगे। उसके न्योते को सरल उत्साह के साथ जूलियन मास्तकोविच को स्वीकार करते हुए भी मैंने सुना। फिर कमरे के अलग-अलग हिस्सों में मेहमान शिष्टता से बिखर गये। मैंने फिर उस व्यापारी, उसकी पत्नी, उसकी बेटी और खासकर जूलियन मास्तकोविच के बारे में आदर के लहज़े में भूरि-भूरि प्रशंसा करते हुए मेहमानों की बातें सुनीं।
“क्या वह शादीशुदा है?” जूलियन मास्तकोविच के करीब खड़े अपने एक परिचित से मैंने जोर से पूछा।
जूलियन मास्तकोविच ने मुझे ज़हरीली नज़र से घूरा।
“नहीं" बेवकूफी भरे मेरे इरादे से बुरी तरह चौंकते हुए मेरे परिचित ने जवाब दिया।
ज्यादा दिन नहीं हुए मैं गिरजाघर के पास से गुज़र रहा था। वहां एक शादी का नज़ारा देखने के लिए लगे जमघट को देख कर मैं चौंक गया। यह एक उदास दिन था। बारिश की झींसी शुरू हो गयी थी। चर्च में जाने के लिए मैंने भीड़ में रास्ता बनाया। दूल्हा गोलमटोल, खाते-पीते परिवार का तोंदियल आदमी था जो खूब सजा-धजा था। वह परेशान दौड़-धूप कर रहा था और चीजों को सुव्यवस्थित करने के लिए हुक्म दे रहा था। आखिरकार यह घोषणा हुई कि दुल्हन आ रही है। भीड़ में धक्का-मुक्की करके मैने उस अतीव सुन्दरी को देखा जिस पर पहला बसन्त अभी आना शुरू हुआ था। लेकिन वह सुन्दरी पीली और मुरझाई हुई थी। वह कुछ खोयी खोयी लग रही थी। ऐसा लग रहा था कि कुछ देर पहले रोने से उसकी आँखें लाल थीं। उसके चेहरे की हर रेखाओं का उत्कृष्ट उभार उसके सौन्दर्य को एक खास किस्म की प्रतिष्ठा और गरिमा प्रदान कर रहे थे। लेकिन इस प्रतिष्ठा और गौरव, उसकी उदासी और बच्ची के चेहरे पर चमकती निच्छ्लता के बावजूद उसके युवा चेहरे की रेखाओं में ऐसी कुछ अनोखी और बैचैन करने वाली बात थी जो बिना कहे बता रही थी कि वह दया की पात्र है।
वे कह रहे थे कि वह मात्र सोलह साल की है। मैंने दूल्हे को ध्यान से देखा। सहसा मुझे लगा कि यह तो जूलियन मस्ताकोविच है जिसको पिछले पाँच सालों में मैंने फिर कभी नहीं देखा है। फिर मैंने दुल्हन को दुबारा देखा। हे प्रभु! अब मैं गिरजाघर से जल्दी से जल्दी निकलने लगा। भीड़ में मैंने लोगों को दुल्हन की धन-दौलत-पान सौ हजार रूबल दिया गया उसको दहेज- इतना अधिक -इतना अधिक जेब खर्च के बारे में गपशप करते हुए सुना।
“फिर तो उसका हिसाब-किताब एकदम ठीक था" मैने सोचा और गली में घुस गया।
(इस पोस्ट में प्रयुक्त पेंटिंग्स कवि विजेन्द्र जी की हैं।)
सम्पर्क
मोबाइल : 09867448697
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