यतीश कुमार के काव्य संग्रह आविर्भाव पर शैलेश गुप्त की समीक्षा

 




आमतौर पर यह मान्यता है कि साहित्य में कोई नवोन्मेष नहीं हो सकता लेकिन कवि यतीश कुमार ने अपने हुनर से इस अवधारणा को गलत साबित किया है। अपने समय के कुछ क्लासिकल उपन्यासों को पढ़ते हुए उन्होंने समीक्षा की एक नई पद्धति विकसित की और उसे काव्य रूप में एक एक कर प्रस्तुत करना शुरू किया। इस क्रम में उन्होंने कुल 11 क्लासिकल रचनाओं की पड़ताल की और उन रचनाओं को एक एक कर काव्यात्मक विमर्श के आईने में समेटने की सफल कोशिश की। किसी न किसी रचना पर आधारित होते हुए भी इस संग्रह की कविताएं स्वतंत्र कविता के रूप में देखी पढ़ी जा सकती हैं और यही इनकी खूबी है। यानी कि इन कविताओं का आस्वाद दोहरा है। स्वतन्त्र भी और कृतिपरक भी। यह सारी कविताएं 'आविर्भाव' शीर्षक कविता संग्रह में संकलित की गई हैं एवं हाल ही में प्रकाशित हुई हैं। यतीश कुमार के इस 'आविर्भाव' कविता संग्रह की एक पड़ताल की है शैलेश गुप्त ने। तो आइए आज पहली बार पढ़ते हैं कवि यतीश कुमार के कविता संग्रह आविर्भाव पर शैलेश गुप्त की समीक्षा 'आविर्भाव : जटिल पुस्तकों पर सहज काव्य विमर्श'।



आविर्भाव : जटिल पुस्तकों पर सहज काव्य विमर्श


शैलेश गुप्त


पिछले दिनों अंतस की खुरचन की अपार सफलता के बाद यतीश कुमार  की दूसरी काव्य संग्रह "आविर्भाव" प्रकाशित हो कर आई है जिसे पाठकों का भरपूर स्नेह मिल रहा है। यतीश कुमार आज हिंदी साहित्यकाश में उदीयमान नक्षत्र की भांति सुशोभित हैं जिन्हें किसी परिचय की आवश्यकता नहीं है! आविर्भाव की कुछ कविताएं उन्होंने पहले भी फेसबुक पर पोस्ट की थीं लेकिन एक साथ इन कविताओं को क़िताब की शक्ल में पढ़ने की अनुभूति सुखद है।


यतीश कुमार का ये काव्य संग्रह अपने आप में विशिष्ट है! इस काव्य संग्रह की विशेषता ये है कि इसकी कविताएं हिंदी साहित्य की 11 प्रसिद्ध कृतियों पर आधारित काव्यात्मक सृजन हैं जो उन कृतियों को पढ़ने के उपरांत कवि के मन में उपजी हैं।


यतीश कुमार ने सच कहूं तो हिंदी साहित्य में उपन्यासों पर आधारित काव्यात्मक सृजन करने की एक नई विधा की शुरुआत की है। उनकी इस विधा का हिंदी साहित्य जगत में प्रबुद्ध साहित्यकारों ने हृदय से स्वागत किया है और उनकी ये कविताएं लेखन के एक नए आयाम, नए क्षितिज को तलाशती हैं।





यहां ये बात स्पष्ट करना आवश्यक है कि आविर्भाव की कविताएं यद्यपि गद्य कृतियों पर आधारित हैं तथापि उनकी अपनी स्वतंत्र स्वायत्तता है, वो मात्र उस उपन्यास का प्रतिबिंब भर नहीं हैं।


यदि इन कविताओं के विषय में आपको यह न बताया जाए कि ये किस उपन्यास पर आधारित हैं तो आप इन्हें पढ़ कर उस उपन्यास का अंदाज़ा नहीं लगा सकेंगे।  लेकिन यदि आप को बता दिया जाए और आपने उस उपन्यास को पढ़ा हो तो आप उस उपन्यास के परिप्रेक्ष्य में इन कविताओं को पढ़ते हुए एक आश्चर्यमिश्रित सुखद और अद्भुत अनुभूति करेंगे।


ये ठीक उसी प्रकार की युगलबंदी है जैसे किसी लाइव शो में कोई संगीतज्ञ अपना वाद्य यंत्र बजाए, कोई चित्रकार पेंटिग करता जाए और वहीं बैठा कोई कवि उस रसानुभूति को अपने शब्दों में कविता में ढालता जाए।


हमारी सारी रचनाएं जीवन की प्रत्यक्ष या परोक्ष अनुभूतियों पर ही आधारित होती हैं। इसी प्रकार, उपन्यासों की पाठकीय अनुभूतियों पर आधारित हैं यतीश कुमार के काव्य संग्रह आविर्भाव की कविताएं।


176 पृष्ठों की इस काव्य संग्रह का प्रकाशन राधाकृष्ण प्रकाशन, नई दिल्ली के द्वारा किया गया है जिसकी प्रस्तावना सुप्रसिद्ध साहित्यकार ममता कालिया  ने लिखी है। वो अपनी प्रस्तावना में लिखती हैं... "अचरज की बात यह है कि यतीश कुमार सरल की बजाय जटिल पुस्तकों पर काव्य विमर्श करते हैं.. यतीश कुमार की ये पुस्तक अपनी तरह का अनूठा प्रयोग है, उम्मीद है यह रचना पाठ की एक नई प्रणाली विकसित करेगा।"


आविर्भाव काव्य संग्रह पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए प्रसिद्ध कवि और लेखक देवी प्रसाद मिश्र, यतीश कुमार के लेखन के विषय में लिखते हैं ...


"वह वृत्तांतों में न्यस्त आकांक्षाओं, ललक, उद्वेग, दुविधा, उम्मीद, वियुक्ति, विघटन, आवेग, संघर्ष वगैरह को कविता के स्वगत में ढालना शुरू करते हैं और उस विवेक को ढूंढ़ना शुरू करते हैं जो किसी भी उपन्यास का अग्रसारक होता है। कह लीजिए कि उपन्यासों पर लिखी जाती इन कविताओं की अपनी अंतर्यात्रा है जो मूल कृति के समानांतर होते हुए भी स्वायत्त है और कथा के ठोस के समानांतर संवेग का आवेग।"





यतीश कुमार  ने जिन 11 कृतियों पर अपनी काव्यात्मक अभिव्यक्ति इस संग्रह में सम्मिलित की हैं वो निम्नवत हैं।


1. मुझे चांद चाहिए / सुरेंद्र वर्मा

2. मैंने मांडू नहीं देखा/  स्वदेश दीपक

3. दीवार में एक खिड़की रहती थी/  विनोद कुमार शुक्ल

4. कितने पाकिस्तान/  कमलेश्वर 

5. कसप/ मनोहर श्याम जोशी

6. मैला आंचल/ फणीश्वर नाथ रेणु

7. कलि कथा वाया बाइपास/ अलका सरावगी

8. जूठन/ ओम प्रकाश वाल्मीकि

9. स्पीति में बारिश/ कृष्णनाथ

10. आईनासाज/ अनामिका

11. थलचर/ कुमार अंबुज


इन 11 कृतियों में सौभाग्य से चार कृतियां मेरी पढ़ी हुई हैं... मैंने मांडू नहीं देखा, दीवार में एक खिड़की रहती थी, मैला आंचल और कलिकथा वाया बाइपास। जब मैं इन कृतियों पर आधारित यतीश जी की कविताएं पढ़  रहा था तो उन उपन्यासों के घटनाक्रम की सुखद स्मृतियां मन के आंगन में महक उठती थीं। एक ऐसा सबलाइम इफेक्ट पैदा कर रही थीं जो मेरे लिए शब्दों में व्यक्त करना संभव नहीं है।


बाकी जो सात उपन्यास मैंने नहीं पढ़े हैं उनके लिए मेरे मन में तीव्र उत्कंठा और अभिलाषा जगा दी है यतीश कुमार की आविर्भाव की इन कविताओं ने।





इस काव्य संग्रह की एक और खूबसूरत बात है हर कविता के लिए विनय अंबर  का रेखांकन। ऐसा लगता है कि विनय अंबर ने यतीश कुमार की कविता को आत्मसात करते उसका रेखाचित्र बना दिया है जो कविता की मूल भावना और उसकी आत्मा को निरूपित कर रहा है। इस संग्रह में यतीश कुमार की कविताओं को पढ़ते हुए विनय अंबर के रेखांकन को निहारना एक सुखद अनुभव प्रदान करता है।


यतीश कुमार की सृजनात्मकता सहज और स्वाभाविक भी है, गहन और दार्शनिक भी... कभी वो कहते हैं...


"आवाज़ की टहनी पर

मुस्कान की चहचहाहट फुदकती देखी"


तो कहीं उनकी चेतना इतनी जागृत है कि वो ईश्वरत्व की परिकल्पना का भी मूल्यांकन करती दिखती है...


"सत्य भीतर है

रूप में नहीं

सदियों ने रूप को स्वीकारा

और खोजते रहे कि सत्य न जाने किस रूप में मिल जाए


और यूं अनगढ़े ईश्वर स्मृतियों से निकल

धर्म के कबाड़ में दाख़िल होते रहे"


प्रेम की अभिव्यक्ति भी उनकी बहुत सघन और प्रबल होती है...


"तुम आती नहीं हो

प्रवेश करती हो"


जब वो सांसारिक जीवन की  बात करते हैं तो बिल्कुल स्पष्टवादी दृष्टिकोण होता है उनका...


"बाज़ार के विस्तार में

निकलता है खोजी नाविक

लिए बंदूक और धर्म प्रचारक को एक साथ


इनका गठजोड़ ही

बाज़ार में सफ़लता की कुंजी है"





उनकी सृजनशीलता कहीं कहीं स्वयं का आत्मावलोकन करती सी लगती हैं जो पाठक को भी एक सकारात्मक संदेश प्रेषित करती हैं...


"जो दरवाज़ा अंदर की ओर खुलता हो

उसे बाहर की ओर खोलने का

अथक प्रयास करता रहा

अंदर की ओर खोलता

तो छूते ही खुल जाता"


उनकी सोच का विस्तार समग्र मानवता को समाहित कर लेने की क्षमता रखता है... वो अपने ही जैसा सभी को सहृदय, संवेदनशील और सहज मानते हैं जब वो कहते हैं अपनी इन पंक्तियों में...


"हर आदमी के पास

उसकी अपनी एक नदी है

उसका अपना वसंत

और अपना पतझर


सच यही है, अकेला होना

निर्वाण का अंतिम रास्ता है

प्रकृति साथ चलती है

अंतिम अरण्य तक"


जीवन में वो महात्मा बुद्ध के संतुलन के सिद्धांत को प्रतिपादित करते हुए लिखते हैं...


"संतुलन की अपनी दुनिया है

हिमालय संतुलित है

संतुलन में शीर्ष पर जमी हिम

त्रयंबक की हँसी जैसी है"





इन सारी पंक्तियों के दृष्टांतो को देने के उपरांत यदि मैं आपसे सवाल करूं कि कृपया बताएं.. यतीश कुमार ने किस उपन्यास से प्रभावित हो कर कौन सी पंक्तियां लिखीं हैं तो शायद आपसे संभव न हो ये बता पाना क्यूंकि ये सारी अभिव्यक्तियां अपने आप में संपूर्ण हैं.. स्वतंत्र हैं.. सारगर्भित हैं।


आविर्भाव की भूमिका में यतीश कुमार ने लिखा है...


"कोशिश यही है कि रचना की मूल आत्मा का अनुभूति के माध्यम से काव्य चित्रण हो सके... भामह के शब्दों में कहूं तो... शब्दार्थो सहितौ काव्यं गद्यम पद्यम च तत् द्विधा।"


कवि यतीश कुमार 



यतीश कुमार अपनी इस कोशिश में पूरी तरह सफल हैं... उन्होंने आविर्भाव की कविताओं में कृतियों की मूल भावना को समावेशित करते हुए भी अपनी रचनात्मक स्वतंत्रता बनाए रखी है और उत्कृष्ट भाव अभिव्यंजना प्रस्तुत की है अपनी कविताओं में।


यतीश कुमार को आविर्भाव के प्रकाशन की हार्दिक बधाई एवं इसकी सफलता के लिए अशेष स्नेहिल शुभकामनाएं।



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