गैब्रियल गार्सिया मार्खेज की कहानी ‘मुझे तो सिर्फ़ फोन करना था’। (अनुवाद और प्रस्तुतीकरण यादवेन्द्र)
गैब्रियल
गार्सिया मार्खेज दुनिया के उम्दा कहानीकारों में से एक हैं। यादवेन्द्र जी ने उनकी एक कहानी का अनुवाद ‘मुझे तो सिर्फ़ फोन करना था’ शीर्षक से की है। इस
कहानी की पात्र मारिया गलती से पागलखाने पहुँचा दी जाती है और फिर वह अभिशप्त हो
जाती है पागलों के साथ अपना जीवन बिताने के लिए। मारिया की बात न तो कोई सुनने के
लिए तैयार है न ही समझने के लिए। अन्त में जब मारिया का पति मैजिशियन पति भी उसे
नहीं समझ पाता तो वह अपने इस त्रासदी को ही जीवन मान लेती है। यादवेन्द्र जी का
सहज अनुवाद कुछ इस तरह का है कि कहानी पढ़ते समय हमें कहीं भी यह आभास नहीं होता कि
हम अनुदित कहानी से हो कर गुजर रहे हैं। तो आइए आज पहली बार पर पढ़ते हैं गैब्रियल गार्सिया
मार्खेज की कहानी ‘मुझे तो सिर्फ़ फोन करना था’। कहानी का अनुवाद और प्रस्तुतीकरण
यादवेन्द्र जी का है।
मुझे
तो सिर्फ़ फोन करना था
गैब्रियल
गार्सिया मार्खेज
(हिन्दी अनुवाद-
यादवेन्द्र)
मारिया
दी ला लुज
सर्वन्तेस बरसात
की उस शाम अकेले बार्सिलोना से लौट रही थी कि बीच रास्ते में किराए पर ली हुई उसकी
कार मोनेग्रोस रेगिस्तान के पास ख़राब
हो गयी। सत्ताईस वर्षीया मारिया
सजीली और समझदार
मेक्सिकी थी जो कुछ सालों पहले तक म्यूज़िक
हॉल परफॉर्मर
के तौर पर अच्छी खासी
लोकप्रिय थी। बाद में उसने एक कैबरे में जादू के
करतब दिखाने
वाले मैजीशियन से शादी कर ली - उस शाम मारिया का ज़ारगोज़ा में अपने कुछ रिश्तेदारों से मिलने के बाद मिलना तय था। कार
ख़राब हो जाने के लगभग एक घंटे तक उसने सड़क से गुजरती कारों और ट्रकों को रुक जाने के लिए सैकड़ों बार हाथ दिये और उनकी तूफ़ानी गति के
कारण उड़ती
धूल भी खायी। अंत में एक बिलकुल
खस्ताहाल बस उसको सड़क पर हाथ
हिलाते देख
कर घरघराती हुई रुक गयी ....फिर भी रहमदिल
बस ड्राइवर ने उसको आगाह कर दिया कि उसको थोड़ी दूर तक ही जाकर ठहर जाना है।
"कोई बात नहीं" ……
मारिया ने जवाब दिया ...." मुझे तो
सिर्फ़ टेलीफ़ोन करना है, बस।"
बात
सच भी थी क्योंकि मारिया को अपने पति को यह इत्तिला देनी
थी कि कार ख़राब हो जाने के कारण शाम सात बजे तक उसका घर पहुँचना नामुमकिन लग रहा
था। अप्रैल के महीने में भी युवा विद्यार्थियों वाला
कोट और
बीच की रेत में चलने वाले जूते पहने हुए वह यूँ ही किसी झुग्गी झोपड़ी से सीधे निकल
कर आयी लग रही थी, ऊपर से बीच रास्ते सुनसान में गाड़ी ख़राब हो जाने से वह इतनी बदहवास हो गयी कि कार की चाभी भी साथ लेना भूल गयी। ड्राइवर के बगल की सीट पर फौजी वर्दी
पहने एक स्त्री बैठी थी जिसने मारिया को न सिर्फ़ तौलिया और कम्बल दिया बल्कि खुद खिसक कर बैठने
के लिए जगह भी बनायी। बैठते ही मारिया ने सबसे पहले बारिश
से भीगा
अपना चेहरा पोंछा फिर बदन पर कम्बल
लपेट लिया। थोड़ा इत्मीनान
होते ही उसको सिगरेट की तलब हुई पर माचिस
की डिबिया बारिश
में पूरी तरह गीली
हो गयी थी। बगल बैठी स्त्री ने उसको माचिस
की डिबिया थमाई
और बदले में सूखी
बची हुई एकाध सिगरेट माँग ली। सिगरेट पीते हुए मारिया को उस स्त्री के साथ कुछ जुड़ाव महसूस हुआ सो उसने
मन के अंदर घुमड़
रही बातों को सुनाना
शुरू किया पर इंजन की तेज घरघराहट
और बारिश के शोर में कुछ भी सुनना
मुश्किल था। बीच में उस स्त्री ने
होंठों पर
ऊँगली रख कर मारिया से चुप रहने का इशारा किया।
" श्श् … सब सो रहे हैं। " वह धीरे से बोली।
मारिया
ने जब गर्दन
पीछे मोड़ कर ताका
तो बस में औरतें ही
औरतें थीं
- कुछ अँधेरे
के कारण और कुछ कम्बलों
से ढँके होने के कारण उनकी सही सही उम्र
का अंदाज़ा लगाना मुश्किल था। उनके बीच पसरी हुई ख़ामोशी
बड़ी सम्मोहक थी .... मारिया ने अपनी जगह पर बैठे हुए खुद को और गुच्चु
मुच्चु कर
लिया और बारिश की बूँदों
से उत्पन्न ध्वनियों के बीच खो गयी। जब
उसकी नींद खुली तो
घना अंधेरा
छा चुका था, झंझावात थम चुका था पर बर्फ़ के फाहों की बरसात शुरू हो गयी थी। उसको कोई आभास नहीं था कि कितनी देर सोयी … या कहाँ
पहुँच गयी। जागने
पर उसको लगा कि बगल
में बैठी स्त्री चौकन्ना
होकर बाहर देख रही है।
"हम कहाँ पहुँच गये?" मारिया ने पूछ ही लिया।
"पहुँच गये अब तो" स्त्री ने जवाब दिया।
मारिया
को बाहर देखने से लगा कि विशाल
वृक्षों के
घने जंगल के बीच वह किसी पुराने
स्कूल की भुतही और खूब फैली हुई इमारत थी। बेहद धुँधली रोशनी में उसने देखा कि बस
के अंदर बैठी तमाम औरतें
तब तक बगैर हिले डुले
यथावत बैठी
रहीं जब तक फौजी
वर्दी वाली स्त्री ने नर्सरी स्कूल की
कड़ियल मास्टरनी जैसी आवाज़ में उनको बस से नीचे उतरने का फ़रमान
नहीं सुनाया। उनके बाहर निकलने पर जब इमारत
की अधबुझी लाइट पड़ी तब मारिया को मालूम हुआ कि वे सभी बूढी औरतें
हैं … उनकी
सुस्त चाल-ढाल
से ऐसा लग रहा था जैसे वे असल इंसान
न हों बल्कि सपनों में चलती
फिरती परछाइयाँ
हों। सबसे अंत में मारिया बस से उतरी, उसको लगा जैसे वे सब नन हैं।
बस से उतर रही औरतों को रिसीव करने के लिए इमारत से बाहर आती स्त्रियों
की वर्दी को देखते ही उसको थोड़ा अंदेशा हुआ … वे बस से उतर रही औरतों के सिर पर कम्बल डाल रही थीं जिस से उनका सिर न भीगे और फिर उनको एक लाइन में खड़े करवा रही थीं .... धीमी तालियों के इशारे से उन्होंने सभी औरतों को चुपचाप खड़े रहने को कहा। मारिया ने जिस
स्त्री के साथ सीट साझा की थी उसको कम्बल लौटाते हुए गुड
बाई कहा पर
उसने कम्बल
छूना तो
दूर उलटे मारिया को हुक्म दिया कि
कम्बल डाल
कर वह अपना सिर गीला होने से बचाये ....उसके बताये अनुसार मारिया को पूरा मैदान पार कर के कम्बल चौकीदार को सौंप देना था।
"यहाँ कोई टेलीफ़ोन है?" मारिया ने पूछा।
"हाँ है न" उसने जवाब दिया .... 'वो
ही बता देंगे कहाँ रखा है।"
इसके
बाद उसने मारिया से दूसरी सिगरेट माँगी …
मारिया ने उसको पूरी डिब्बी
ही पकड़ा दी जो बरसात में गीली हो गयी थी और कहा :"थोड़ी देर में सूख जायेंगी।"
उस
स्त्री ने हाथ हिला कर मारिया को अलविदा कहा और चलते चलते चलती बस से लगभग चिल्ला कर बोली : "गुड लक"
मारिया
जवाब देती उस से पहले ही बस वहाँ से जा चुकी थी।
बस
के आँखों से ओझल
होते ही मारिया तेज
कदमों से इमारत के मुख्य द्वार की ओर
लपकी। वहाँ तैनात महिला
चौकीदार ने
मारिया को ताली
बजा कर रोकने का प्रयास किया पर
मारिया को अनसुना
करते देख जोर चिल्लायी
: "रुको , एक कदम भी और आगे मत बढ़ाना।"
मारिया
ने कम्बल
के अंदर से झाँक कर देखा तो
बर्फीली आँखों
की जोड़ी और सामने तनी
हुई ऊँगली पर नज़र पड़ी - उसको एकदम से
समझ आ गया कि लाइन में लगने को कहा
जा रहा है … उसने
बात मान लेने में ही भलाई समझी, मान गयी।
दहलीज़ पार करते ही उसने खुद को बस से उतरी औरतों से अलग कर लिया और
पास खड़े चौकीदार
से टेलीफ़ोन के बारे में पूछा। वहाँ पहरे
पर तैनात एक महिला ने मारिया के कंधे पर हल्का सा हाथ मारते हुए लाइन में लगने को कहा और मुँह में चाशनी
घोलते हुए
कोमल स्वर में बोली "इधर से जाओ मेरी खूबसूरत जान
.... टेलीफ़ोन इधर ही है।"
साथ
की औरतों के साथ साथ मारिया भी नीचे के टिमटिमाती रोशनी वाले गलियारे में दाखिल हो गयी जहाँ एक बड़ी सी डॉर्मिटरी
बनी हुई थी।
कुछ मैट्रन वहाँ औरतों से
कम्बल इकट्ठे कर सबको अलग अलग नंबर का बेड
अलॉट कर रही
थीं। एक बेहतर और सभ्य ज़ुबान में बात करने वाली मैट्रन - मारिया
को लगा कि वह शायद ओहदे में ऊँची हो - लिस्ट से एक एक नाम पढ़ती जाती और नयी आई औरतों को दी जा
रही वर्दी पर टँकी
नाम लिखी चिप्पियों के साथ मिलान करती जाती। जब मारिया की बारी आयी तो उसके परिधान
में नाम कहीं न
टँका देख
एकदम से चौंक
पड़ी।
"मुझे तो सिर्फ़ फोन करना था", मारिया बोली।
उसने
जल्दी-जल्दी उसको विस्तार से समझाने की कोशिश की कि कैसे सुनसान
रास्ते में कार का ब्रेक
डाउन हो
जाने की वजह से बस में शरण लेनी पड़ी .... कि उत्सवों जमावड़ों में
जादू दिखाने वाला उसका पति शाम से बार्सिलोना में उसका इन्तज़ार कर रहा है और मध्य रात्रि तक उनको तीन-तीन इंगेजमेंट
निबटाने हैं
… अचानक ऐसी मुश्किल
आन पड़ने
पर उसको तो सिर्फ़ पति को
टेलीफोन कर
के यह बताना था कि वह उसका
इन्तज़ार न
करे ,समय पर वहाँ पहुँचना उसके लिए संभव नहीं हो पायेगा। उस समय सात बज रहे थे और दस मिनट बाद दोनों को अपने प्रोग्राम के लिए घर से
निकलना था। यदि समय पर उसको
इत्तिला नहीं
दी तो हो सकता है वह तीनों प्रोग्राम ही कैंसिल कर
दे। सामने बैठी मैट्रन
ने मारिया की पूरी बात बड़े ध्यान से
सुनी।
"तुम्हारा नाम क्या है?", उसने पूछा।
तसल्ली की साँस लेते हुए मारिया ने अपना नाम बताया पर बार-बार लिस्ट
पढ़ने पर भी उसको मारिया का नाम वहाँ मिला। थोड़ा चौंकते हुए उसने दूसरी
मैट्रन को आवाज
देकर बुलाया और मारिया के बारे में दरियाफ़्त
किया। …उसके
पास भी इस प्रश्न का कोई संतोषजनक उत्तर नहीं था सो वह अपने कंधे उचकाने के सिवा कुछ नहीं पायी।
"पर मुझे तो सिर्फ़ फोन करना था", मारिया ने फिर कहा।
"बिलकुल सही, हनी" वह बोली और मारिया को लेकर बड़े प्यार से उसके बीएड
तक पहुँचा आयी। ....... साफ़ दिखायी
दे रहा था कि वह प्यार वास्तविक नहीं
निपट दिखावा था।
"यहाँ ठीक तरह से
रहोगी तो
जिस से
चाहो बात
कर सकोगी। ....पर अभी
धीरज रखो ,कल
देखते हैं।"
अचानक
मारिया के मन में कुछ अंदेशा हुआ और बस में बैठी औरतों का ख़्याल आया। ....बस की औरतों का किसी एक्वेरियम
की तलहटी में खरामां-खरामां चलने जैसा अंदाज़ एकदम से उसके ध्यान में कौंध
गया। दरअसल उन औरतों को नींद की गोलियाँ
दे कर सुस्त बना दिया गया था और पत्थर की मोटी दीवारों
और भुतही
सीढ़ियों वाली वह अँधेरी
विशाल इमारत महिला मानसिक रोगियों का
अस्पताल थी। बदहवासी
में मारिया डॉर्मिटरी की
सीढ़ियाँ चढ़
कर बाहर की ओर भागी
पर बीच में मेकैनिक जैसी वर्दी पहने हुए एक लम्बी तगड़ी
मैट्रन खड़ी
थी.... उसने अपना भारी हाथ उसके रास्ते में लहरा कर मारिया को कस कर पकड़ लिया। मारिया अचानक हुए इस घटनाक्रम से बुरी तरह डर गयी और
बचाव के लिए इधर उधर वैकल्पिक रास्ते ढूँढने लगी।
"ख़ुदा के वास्ते मुझे जाने दो। ...मैं
अपनी गुज़री हुई माँ की
सौगंध खा
कर कहती हूँ कि मुझे तो सिर्फ़ फोन करना था", मारिया एक सुर से बोलती गयी।
हाँलाकि पहली नज़र में मारिया को यह समझ आ गया कि उस मुस्टंडी के ऊपर कुछ भी कहने या गिड़गिड़ाने का कोई असर नहीं होने वाला - ज़रूर असाधारण कद काठी
को देख कर ही उसका नाम हर्कुलिना
रखा गया होगा। आसानी से हाथ न रखने देने वाले मरीज़ों
को काबू में करने के
लिए उसको वहाँ तैनात किया गया था और दो
औरतों की तो उसके साथ धक्का
मुक्की में
जान भी चली गयी - कहने को कहा यह गया कि उग्र मरीजों
को काबू में करने के क्रम में ध्रुवीय भालुओं सरीखा
उसका भारी भरकम हाथ गलती
से किसी नाज़ुक जगह लग गया .... सच्चाई
तो यह है कि उन हाथों को क़त्ल करने में महारत हासिल थी। बाद में जाँच बैठायी
गयी तो रिपोर्ट में यह कहा गया कि पहले
मामले में तो सरासर गैर इरादतन गलती
से मौत हो गयी …दूसरे
मामले में स्पष्ट कुछ नहीं सामने आया, हाँ
हर्कुलिना को
यह चेतावनी ज़रूर दे दी गयी कि
आइन्दा फिर
उसके हाथों कोई मौत हुई तो उसको
बख्शा नहीं
जायेगा। कागज़ी
बातें जो हों लोगों के बीच उसकी पहचान
एक ऐसे कुख्यात परिवार के
शातिर सदस्य की थी जिसका स्पेन के एक
नहीं अनेक मानसिक अस्पतालों में दुर्घटना के नाम पर अनेक मरीजों
को मौत के घाट उतारने का इतिहास रहा है।
पहली
रात बच कर बाहर निकलने को बेचैन
मारिया को सुलाने के लिए उनको नींद की दवा की सुई
लगानी पड़ी। भोर
में रोशनी फूटने से पहले सिगरेट की तालाब से उसकी नींद खुली तो उसने खुद को बेड
की छड़ में रस्से
के साथ बँधा पाया - कलाई और टखने दोनों जगह से। रस्से
पर नज़र पड़ते ही उसकी चीख निकल गयी पर
मदद को कोई नहीं आया। उधर बार्सिलोना में पति
ने भी सुबह उठ कर मारिया को घर पर नहीं देखा, इधर मारिया
अप्रत्याशित हादसे को बर्दाश्त नहीं कर
पायी और बेहोश हो कर बिस्तर पर निढ़ाल हो गयी।
जब
मारिया को होश आया तब उसके लिए यह पता लगाना मुश्किल था कि कितनी देर वह वैसे ही निढ़ाल
पड़ी रही। पर इस समय उसके आसपास प्यार की
लहरें हिलोरें ले रही थीं। - एक सदाबहार
बूढ़ा चेहरे
पर मुस्कुराहट ओढ़े टहलता
हुआ उसके बेड तक आया और कोमलता
के साथ उसके कन्धों
पर दोनों हाथ रख कर खड़ा हो गया - कंधे
पर स्पर्श महसूस करते ही मारिया को लगा जैसे जाती हुई साँस
वापस लौट आई हो। वह
बूढा सेनिटोरियम का डायरेक्टर था।
मारिया
को कुछ न सूझा, उसने बूढ़े के
स्नेहिल बर्ताव के
बदले न कुछ कहा न सामान्य तौर पर किया जाने वाला उसका
अभिवादन किया - बस, तपाक
से एक सिगरेट माँग ली। उसने एक सिगरेट जलायी और सामने खड़ी मारिया को
थमा दी
- साथ में पूरी डिब्बी
भी दे दी। मारिया इतनी अभिभूत हो गयी कि
उसके आँसू नहीं थमे - वह
कातर होकर जोर-जोर से रोने लगी।
"कोई बात नहीं बेटे जितना मन करे रो लो …रुलाई
के लिए यह बिलकुल मुफ़ीद
वक्त है।"
डॉक्टर ने अलसाये
स्वर में कहा : "आँसुओं से बढ़िया और असरदार और कोई दवा नहीं।"
इस तरह मारिया ने अपने मन के अंदर जमे हुए दुखों को आँखों के
रास्ते बह जाने
दिया, उनको सहेजने या समेटने की कोई कोशिश नहीं की
– समय-समय पर उसके जो
भी प्रेमी रहे उनके साथ प्यार करने के
बाद का जो थोड़ा बहुत खाली और
निश्चिन्त समय मिला भी उसमें यह मुमकिन
नहीं था। मारिया की कहानी सुनते हुए डॉक्टर हौले-हौले उसके
बालों में उँगलियाँ
फेरता रहा, बड़ी
सावधानी से
उसकी तकिया
को ठीक किया ताकि सिर समतल
पर रहे और उसकी बिगड़ी
हुई साँस सामान्य होकर पटरी पर लौट आये
और भरपूर समझदारी और कोमलता
के साथ उसको अज्ञात आशंकाओं की भूलभुलैया
से निकाल पाने में सफल हुआ जिसकी सपने
में भी मारिया ने कभी कल्पना नहीं की थी। उसके जीवन में यह पहला मौका था जब किसी मर्द
ने उसकी बात भरपूर तसल्ली से सुनी थी, एक-एक बात दिल से समझी थी
और बदले में हमबिस्तर होने की उम्मीद और उतावली
नहीं जतायी थी। घंटा भर … या और ज्यादा ही समय इस बातचीत में जब बीत
गया और सभी बातें सुना कर मारिया ने अपना दिल जब हल्का कर लिया तब बड़ी मासूमियत
से उसने अपने पति से टेलीफ़ोन पर बात
करने की इजाज़त माँगी।
अपने
ओहदे के अनुरूप भंगिमा
धारण करते हुए डॉक्टर अपनी जगह से उठा ,बोला:
"अभी नहीं, मेरी
राजकुमारी." और
उसके गालों
पर हौले से
प्यार भरी थपकी दी - मारिया को यह भी जीवन में पहली बार मिली थी।
"हर चीज अपने समय पर मिलेगी।"
दरवाज़े पर पहुँच कर उसने मारिया को ईश्वर का वास्ता देते हुए आशीर्वाद दिया - जैसे आम तौर पर बिशप दिया करते हैं - मारिया को उसके ऊपर भरोसा रखने को कहा .... और हमेशा के लिए विदा हो गया।
उसी
शाम मारिया को एक नया नम्बर दे कर
पागलखाने में बाकायदा भर्ती कर लिया गया - वहाँ के कारिंदे उसके बारे में आपस में बात करते रहे। जाने कहाँ से आयी है
… उसकी पहचान को लेकर भी कानाफूसी होती रही। रजिस्टर में उसके नाम के सामने हाशिये
पर डाइरेक्टर ने अपने हाथ से लिखा था : घबरायी हुई, उत्तेजित (agitated)
मारिया
को जैसी उम्मीद थी उसका पति आधे घंटे का
इन्तज़ार करने
के बाद अपने तीन पूर्व निर्धारित प्रोग्राम करने घर से निकल गया था। इस पति के साथ के दो सालों के आज़ादी भरे और बेहद सुखद संतुष्ट
जीवन में यह
पहला मौका था जब उसे अपने
घर पहुँचने में देर हुई हो। ....पति ने भी यही निष्कर्ष
निकाला कि पूरे सूबे
में हुई असाधारण बारिश के चलते मारिया
रास्ते में कहीं मज़बूरीवश फँस गयी। घर से निकलते वक्त वह दरवाज़े पर मारिया के लिये
खोंसी चिट में अपने प्रोग्राम का विवरण लिखना नहीं भूला।
निर्धारित
स्थान पर पहुँच कर उसने देखा सभी बच्चे कंगारू
की ड्रेस पहन कर वहाँ
धमाचौकड़ी मचा
रहे हैं पर वह अपना सबसे अच्छा और लुभाने वाला जादू
- अदृश्य
हो जाने वाली मछली – वहाँ
नहीं दिखा सका क्योंकि मारिया की मदद के बगैर उसको दिखाना संभव नहीं होता। दूसरा प्रोग्राम व्हील चेयर
पर बैठी रहने वाली तिरानबे वर्ष की एक बुढ़िया के जन्म-दिन के मौके पर आयोजित था - हाथ की
सफ़ाई की दीवानी यह बुढ़िया पिछले तीस सालों से अपना जन्म-दिन हर बार एक नए
जादूगर के साथ
मनाती रही
है - इस बार उसको यह सौभाग्य मिला था पर मारिया की गैर हाज़िरी से वह इतने गंभीर सदमे में था कि
मामूली से मामूली
ट्रिक पर
भी ध्यान मुश्किल से केंद्रित कर पा रहा था। तीसरा प्रोग्राम उस कैफ़े में था जहाँ
वह हर रात बिला नागा
जाकर परफॉर्म किया करता था - पर उस रात
फ्रेंच पर्यटकों
का जो दल वहाँ आया था उसको जादू का वह प्रोग्राम जबरदस्ती का
ठूँसा हुआ
एकदम बेजान लगा .... वैसे भी
फ्रेंच लोगों
का जादू में विश्वास नहीं था। एक एक कर तीनों प्रोग्राम निबटाने
के बाद उसने उत्सुकतापूर्वक अपने घर फोन
मिलाया, मारिया के फ़ोन उठाने का इन्तज़ार किया ....पर मारिया को फ़ोन कहाँ उठाना था, सो उसको फ़ोन की
घंटियाँ देर
तक बजती सुनायी
देती रहीं ....आखिरी कॉल
के बाद उसके सब्र का बाँध टूट गया और
मारिया की हिफाज़त को लेकर चिंता उसको घेरने लगीं।
सारे
काम निबटाने
के बाद इन प्रोग्रामों के लिए ख़ास तरह
से सजायी अपनी वैन में घर लौटते हुए खजूर के ऊँचे
पेड़ों के
बीच से गुज़रते
हुए उसको
बसंत के आगमन
का एहसास हुआ और मारिया के बगैर उस शहर
में जीने की कल्पना मात्र से वह
सिहर सिहर गया। घर का दरवाज़ा खोलते हुए उसको खुद की लिखी चिट जब
यथास्थान अनछुई खोंसी
मिली तब उम्मीद की आख़िरी किरण भी बुझ
गयी .... मारिया के बारे में सोचते हुए
वह इतना विचलित हो गया कि पालतू बिल्ली को खाना डालना भूल गया।
अब
कहानी लिखते हुए उसके बारे में जब इतनी बातें कह रहा हूँ तो एहसास हो रहा
है कि उसका असली नाम मुझे नहीं मालूम --
इसकी कोशिश भी नहीं की मैंने --
बार्सिलोना में सब उसको उसके
प्रोफेशनल नाम से ही जानते हैं :
सैटरनो द
मैजिशियन। वह सामाजिक जीवन में लोगों के साथ न घुलने
मिलने वाला और अजीबोगरीब चाल चलन वाला इंसान था पर मारिया के बर्ताव में वह सारी व्यवहार कुशलता
और मोहकता भरपूर
तौर पर मौज़ूद थी जिसका उसके स्वभाव में अभाव था।
मारिया ही थी जो उसको तमाम रहस्यों के आवरण
में लिपटे इस समाज के बीच हाथ पकड़ कर ले आयी थी जहाँ शायद ही कोई आदमी मध्य-रात्रि में अपनी पत्नी के बारे में पूछताछ करने को किसी का दरवाज़ा खटखटाने की जुर्रत करे .... पर सैटरनो ने
उस रात घर लौट कर ऐसा ही किया -
ज़रगोज़ा में
गहन निद्रा
में डूबी एक बूढ़ी पड़ोसन
को जगा कर
मारिया के बारे में पूछा तो मालूम हुआ कि लंच के समय मारिया घर से निकली थी .... और उसकी बातों से कुछ अनहोनी या षड्यंत्र की भनक बिलकुल नहीं लगी। भोर होते होते कोई घंटे भर को उसकी आँख लगी होगी ....इस बीच करवटें बदलते-बदलते
अधनींद उसने
सपना देखा कि मारिया सामने से शादी के फटे पुराने परिधान में चली आ है जिसपर खून के
छींटे बिखरे
हुए हैं - घबराहट में उसकी नींद खुल गयी और उसको पक्के तौर पर लगने
लगा कि मारिया अब कभी उसके पास नहीं
लौटेगी …और
इतनी बड़ी दुनिया अब उसको बगैर किसी सहारे अकेले ही
झेलनी पड़ेगी।
पहले भी पाँच सालों का हिसाब किताब देखें तो मारिया
तीन अलग-अलग मर्दों को छोड़
चुकी थी जिनमें वह खुद भी शामिल रहा था
- मैक्सिको सिटी में मुलाक़ात के
छह महीने बीते नहीं थे कि मारिया उसका
घर छोड़ के चली गयी थी जिसके पहले
उन्होंने एक सर्वेन्ट्स
क़्वार्टर में पागलों
जैसे उन्माद में टूट कर प्यार का आनंद लिया था …और
ऐसी ही एक उन्मादी
रात के बाद मारिया वहाँ से गायब/चम्पत हो गयी थी। जाते समय वह अपनी सभी चीज़ें वहीँ छोड़ गयी थी …यहाँ
तक कि पिछले आदमी की दी हुई
अँगूठी भी....
साथ में टेबुल
पर एक चिट्ठी छोड़ गयी थी जिसमें लिख गयी
थी कि प्यार करने के ऐसे जंगली और वहशियाना
ढंग को झेलना
उसके बस का नहीं। सैटर्नों
को लगा कि उसको छोड़ कर मारिया साथ साथ
स्कूल में पढ़े हुए अपने पहले पति के पास
लौट गयी है जिसके साथ उसने कानूनी तौर पर शादी के लिए मान्य उम्र से पहले ही गुप
चुप ढंग से व्याह रचा लिया था। .... बदकिस्मती से प्यार
रहित दो दुखियारे
साल उसके साथ बिता कर वह दूसरे आदमी के पास चली गयी। पर सच्चाई इसके विपरीत थी, मारिया किसी और
मर्द के
पास नहीं अपने घर माँ पिता के पास चली गयी थी। …जैसे
ही सैटर्नों
को इसका पता चला वह फ़ौरन उसको वापस ले
आने के लिये वहाँ पहुँच गया। उसने वापसी के लिए सामने कोई शर्त नहीं रखी… और
गिड़गिड़ाते हुए
तमाम वैसे वायदे कर लिए जिनको पूरा करने की उसकी औकात ही नहीं थी,
पर मारिया किसी भी बात पर पिघली नहीं …टस से
मस नहीं
हुई।
"प्यार कई तरह के होते हैं …छोटी मियाद
के …और
बड़ी मियाद
के भी …मानो
हमारा प्यार इतने ही दिनों का था, छोटी उमर का …" बड़ी
निर्ममता के
साथ मारिया ने कहा था। उसकी
दृढ़ता ने सैटर्नों
को पराजित उलटे
पाँव लौट जाने के लिए
मज़बूर कर
दिया था। पर वही मारिया थी जो कोई साल भर बाद ऑल सेंट्स डे की
भोर जब
वह अपने अनाथ कमरे में पहुँचा तब उसके लिविंग रूम के सोफ़े पर
निश्चिंततापूर्वक खर्राटे लेती हुई उपस्थित थी - हाँ उसने सिर से ले कर पाँव तक दुल्हन
के नए परिधान पहने हुए थे।
आते
ही मारिया ने सब कुछ उसको सच-सच बता दिया …कि उसका नया मंगेतर जो संतानहीन विधुर था और कैथोलिक चर्च में बाकायदा शादी रचा कर आजीवन उसके साथ रहने की कसमें
खाता रहता था.... चर्च की बेदी पर उसको प्रतीक्षारत रोता
बिलखता छोड़
कर कहीं चम्पत
हो गया। यह हादसा हो जाने के बाद भी
उसके माँ पिता ने पहले से
आयोजित रिसेप्शन करने का निश्चय किया और
मारिया ने भी उनका सक्रियता से साथ
दिया -- नाची भी , गायी
भी, शराब भी पी और थोड़ी नहीं छक कर भरपूर पी .... इतनी कि नशे की हालत में उसको पता ही नहीं
चला वह आधी रात कैसे और कब
सैटर्नों के
कमरे में पहुँच गयी।
सैटर्नों घर पर था नहीं पर मारिया को पता था कि फूलदान
के नीचे कहाँ चाभी रखी जाती है, सो उसने वहाँ से
चाभी निकल
कर ताला
खोल लिया – इस
बार मारिया की बिना शर्त समर्पण की बारी थी।
"इस बार कितनी
लम्बी है मियाद ?" उसने घर आने पर मारिया से पूछा था।
"जब तक प्यार
जिन्दा है तब
तक यह शाश्वत है।" मारिया ने किसी बड़े ज्ञानी को
उद्धृत करते
हुए जवाब दिया। दो साल इसी तरह
व्यतीत हुए
.... और उनका प्यार शाश्वत बना रहा।
इस
बार मारिया सयानी
और समझदार लग रही थी - उसने फिल्मों में हीरोइन
बनने का स्वप्न त्याग दिया था और पूरी
निष्ठा के
साथ सैटर्नों के जीवन के इर्द गिर्द केन्द्रित हो
गयी थी .... चाहे काम धंधा हो, या फिर बिस्तर ही क्यों न हो वह सिर्फ़ सैटर्नों की थी। पिछले साल के अंतिम दिनों में वे दोनों जादूगरों के एक सम्मलेन में
पर्पिग्नान गए
थे और वहाँ से बार्सिलोना
रुकते हुए
लौटे …दोनों में से किसी ने भी बार्सिलोना पहले नहीं देखा था। उनको यह
शहर इतना पसंद आया कि वे वहीँ आ कर रहने
लगे .... पिछले आठ महीनों से वे
बार्सिलोना में ही अपना एक फ़्लैट
खरीद कर
रह रहे थे। कैटेलोनिआई
आबादी की बहुतायत वाला यह
इलाका बेशक
शोर शराबे वाला था, उनके घर के काम करने वाला कोई नहीं था …फिर
भी उनका घर इतना बड़ा था कि पाँच बच्चों वाला परिवार भी
हो तो उसमें आराम से
समा जाये। जैसी उन्होंने उम्मीद बाँधी
थी खुशियों का साया उनके घर के आसपास छाया रहा …पर
उस दिन तक ही जिस दिन मारिया ने किराये पर कार ले कर अपने
रिश्तेदारों से मिलने
जरगोज़ा जाने
का फैसला किया - घर से निकलते हुए उसने
सैटर्नों से सोमवार
शाम सात बजे तक आ जाने का वायदा किया था। और अब गुरूवार की भोर
आ गयी थी पर मारिया की ओर से कोई ख़बर
नहीं आयी थी।
अगले
हफ़्ते सोमवार को किराये पर कार देने वाली कम्पनी के दफ़्तर से मारिया के लिए पूछताछ
का फ़ोन आया तो
सैटर्नों ने
बोल दिया कि उसको भी मारिया की कोई ख़बर नहीं है : "उसको ढूँढना हो तो यहाँ क्या मिलेगा, जरगोज़ा
जा कर पता करो।"
कोई
हफ़्ते बाद एक पुलिस वाला
घर पर यह ख़बर ले कर आया कि खस्ता
हाल कार
तो मिल गयी है पर जिस जगह का उसने नाम बताया वह उस असल जगह से कोई किलोमीटर
दूर है जहाँ दर असल मारिया ने खराब हो जाने पर उसको छोड़ा था। वह जानने आया था कि उसको कार की चोरी के बारे में और कोई जानकारी तो नहीं। जिस समय पुलिस वाला
तफ़तीश के
लिए आया सैटर्नों
अपनी बिल्ली को खाना खिला
रहा था - उसने बगैर मुँह उठाये उसको टका
सा जवाब दिया कि मारिया उसको छोड़ कर चली
गयी है। … कहाँ और किसके साथ इसके बारे में उसको कुछ भी इल्म नहीं, सो पुलिस को अपने और ज़रूरी काम करने चाहिए न कि मारिया के बारे
में यहाँ वहाँ पूछताछ करते हुए समय
बरबाद करना
चाहिए। जिस दृढ़ता
और भरोसे के साथ सैटर्नों
ने यह बात कही उस से पुलिस वाला भी सकपका
गया और माफ़ी माँगता हुआ वहाँ से चलता
बना। उस दिन के फ़ौरन बाद पुलिस से केस की फ़ाइल बंद कर दी।
ईस्टर के त्योहार पर
रोसा रेगास ने उन दोनों को नौका भ्रमण के लिए न्योता दिया था तभी
सैटर्नों को
कुछ खटका हुआ था कि कहीं यह मारिया के उसको दुबारा छोड़ कर चले जाने की पूर्व भूमिका न हो। हुआ दरअसल यह कि फ्रैंको शासन
के उत्कर्ष
के उन दिनों में एक बेहद भीड़ भाड़ वाले
बार में छोटी सी लोहे
की मेज़ को घेर कर जहाँ मुश्किल से छह
लोगों के बैठने की जगह निकल सकती थी
वहाँ बीस लोग किसी तरह एक दूसरे ऊपर गिरते
पड़ते बैठे ....मारिया सुबह से
सिगरेट की दूसरी डिब्बी
ख़तम कर रही थी कि
उसकी माचिस की
डिबिया खल्लास हो गयी, तभी जाने कहाँ से एक दूसरे पर झुकते लुढ़कते जिस्मों
के बीच तीर की तरह जगह बनाती एक पतली
दुबली नाज़ुक सी बाँह जाने कहाँ से मारिया के सामने अवतरित हुई जिसके हाथ में उसकी सिगरेट के लिए माचिस की जलती हुई तीली
थी। मारिया ने अपनी तलब पूरी करने में मदद
करने वाले बन्दे
को शुक्रिया कहा, हाँलाकि
पहचान के लिए उधर
सिर उठाकर देखने की
जहमत भी नहीं
उठायी। सैटर्नों
चौकन्ना हो
कर उसको पहचानने की कोशिश कर रहा था - वह बेहद
दुबला पतला सफाचट
दाढ़ी और खूब काले
कंधे तक लटकते बालों की
चुटिया बाँधे
किशोर था जिसकी चमड़ी का रंग इतना बेनूर और पीला था जैसे मौत ने सारा खून अंदर से निचोड़
लिया हो। बसंत के मौसम में चलने वाली तेज
हवा बाहर की खिड़कियों
के शीशों को
थपेड़े मार
रही थी और इस मौसम में भी उसने
मामूली ढंग
का बगैर इस्त्री
किये सूती पजामा और किसानों जैसी सस्ती सी चप्पल पहन रखा था।
बाद के कई महीनों में वह किशोर उनको फिर कहीं नहीं दिखा ....पिछली
सर्दियाँ जब विदा हो रही थीं तब अचानक पिछली बार जैसे कपड़ों में वह
दुबारा एक सी फ़ूड बार में दिखायी पड़ा, अंतर सिर्फ़ इतना आया था कि तब उसकी कंधे तक लटकती चोटियाँ थीं और इस बार कस कर करीने से बाँधी गयी लटें।
सामने आ जाने पर उसने जिस अदा से उनका अभिवादन किया उस से लगता था जैसे
उनमें पुरानी दोस्ती रही हो ....ख़ास तौर पर उसने जिस अंदाज़ में मारिया को चूमा और
जिस ढंग से मारिया ने बदले के चुम्बन के साथ उसका
जवाब दिया उसको देख कर
सैटर्नों का छुप छुप कर उनके मिलते
जुलते रहने वाला संशय पक्के भरोसे में बदल गया।
कुछ दिनों बाद उसको पतों वाली घरेलू डायरी में मारिया
की लिखावट में एक नया नाम और फ़ोन नंबर भी दिखायी पड़ा … उसका
शक पक्का होने लगा। उसके
बारे में मालूमात करने पर पता कि बाइस
वर्षीय वह युवक एक अमीर ख़ानदान
का बिगड़ा
हुआ वारिस था जो दूकानों की खिड़कियों की सजावट करने में माहिर था …पर
उसकी शोहरत बाई सेक्सुअल (औरत और मर्द दोनों के साथ शारीरिक सम्बन्ध बनाने वाला) और विवाहित स्त्रियों के बुलावे पर पैसा ले कर धंधा
करने वाले के तौर पर ज्यादा थी। इतना पता कर लेने के बाद भी
सैटर्नों ने जैसे तैसे तब तक धैर्य बनाये रखा जब तक मारिया के गायब हो जाने की घटना
नहीं घटी। उस रात के बाद से कोई दिन ऐसा नहीं गुज़रा जब
सैटर्नों ने नंबर पर
कॉल नहीं किया हो - सुबह छह बजे से चालू
हो कर भोर तक लगातार, शुरू में दो
तीन घंटे के अन्तराल
पर ...बाद में तो हाल यह हो गया कि जब भी उसके कदम टेलीफ़ोन
के पास पड़ते वह फ़ौरन उसका नंबर मिला देता। उधर से कोई जवाब न मिलना सैटर्नों की बेचैनी और उग्रता को और बढ़ाने के लिए आग में घी का
काम करते - उसका यह भरोसा दिनों दिन गहरा होता गया कि मारिया की आवारा
फ़ितरत एक न एक दिन उसकी शहादत ले कर ही रहेगी।
चौथे
दिन की बात है कि घर में
पोंछा लगा रही बाई ने देर से बज रही घंटी
सुन कर सैटर्नों का फ़ोन उठा लिया
और अनमने ढंग से जवाब
दिया : "मालिक कहीं बाहर निकले हुए हैं अभी।" यह सुन कर वह और भी अशांत हो गया और लगभग पागलपन की अवस्था में यह पूछने से खुद को रोक नहीं पाया कि मारिया मेम साहब कहीं
घर में तो नहीं?
"घर में मारिया नाम की कोई मेम साहब तो नहीं रहतीं साहब।
"बाई ने पलट कर जवाब दिया :"हमारे साहब तो कुँवारे हैं।"
"मुझे
पता है" सैटर्नों ने सफ़ाई दी : "वे
इस घर में रहती नहीं हैं मैं जानता हूँ, पर बीच बीच में आती तो रहती हैं .... क्यों, सही कह रहा हूँ न मैं?"
उधर से आती बेहूदा बातें सुन कर बाई चिढ़ गयी : "जाने कैसे
कैसे लोग फ़ोन पकड़ लेते
हैं और अनाप शनाप बकते रहते हैं ....
पता नहीं कौन सनकी है?"
बाई के इनकार भरे तेवर ने सैटर्नों के मन में और आग सुलगा दी - जो अब तक शक शुबहे की धुँआती सुलग भर थी भरोसे की लपट बन कर धधक उठी - उसका आपा खोने लगा। उस घटना के बाद बार्सिलोना में कोई तो ऐसा नहीं बचा जिसके
पास जिसके पास वह अपना दुखड़ा सुनाने नहीं पहुँचा -- किसी के पास उसके
सवालों का कोई जवाब नहीं था, सो ऐसी हर मुलाकात के बाद उसके दुखों का गट्ठर और भारी हो जाता। सारे मोहल्ले में उसके पागलपन और सनक के दौरों की चर्चा
होने लगी और उसको पास आता देख सड़क छाप शोहदे उसको सुलगाने भड़काने वाली कोई
बात कह देने से बिलकुल नहीं चूकते। कुछ दिन ऐसे बिताने के बाद उसको एहसास
हुआ कि इस खूबसूरत, जुनूनी और बाहरियों के लिए अभेद्य शहर में वह दिनों दिन कितना एकाकी होता चला गया है .... और कभी दुबारा वह खुश और सहज हो
पायेगा इसको ले कर उसके मन में गम्भीर संशय इकठ्ठा होने लगा है।
ख़ासतौर पर भोर उसके लिए
बहुत भारी पड़ती जिस समय वह बिल्ली को
खाना खिलाने उठता …अपने दिल को
धड़कना रोक न देने
के लिए वह जतन से सँभालने की और मारिया की स्मृतियाँ मन से धो डालने की कोशिशें
करता।
उधर
दो महीने गुज़र जाने के बाद
भी मारिया सैनेटोरियम की दिनचर्या के
साथ संगति नहीं बिठा पायी थी - उसकी
निगाहें हमेशा भुतहे डाइनिंग रूम पर
हुकूमत कर रहे जनरल फ्रैंसिस्को फ्रैंको
के चित्र (लिथोग्राफ़) पर टिकी रहतीं और अनगढ़ लकड़ी की बनी लम्बी टेबुल से जंजीर लगी थाली में परोसे जाने वाले सुबह शाम के
स्वादहीन खाने से जैसे तैसे वह अपना गुजारा कर के जिन्दा थी। शुरू-शुरू में चर्च
के विधानों के अनुसार दिन भर चलने वाले धार्मिक कर्मकाण्डों के थोपे जा
रहे बखेड़ों का उसने जमकर प्रतिवाद किया ...रिक्रिएशन रूम में अनिवार्य तौर पर
जाकर बॉल खेलना, या वर्कशॉप में बैठ कर नकली फूल बनाना भी उसको बिलकुल नहीं
भाता था जबकि उसी की तरह वहाँ भर्ती दूसरी औरतें पूरी तत्परता के साथ उछल-उछल
कर वर्कशॉप जाने को तैयार रहतीं। पर तीसरा हफ़्ता बीतते-बीतते
मारिया धीरे धीरे अन्य मरीज़ों के जीवन के साथ थोड़ा बहुत तारतम्य बनाने लगी।
डॉक्टरों का कहना था कि वहाँ भर्ती हर औरत शुरू-शुरू में इसी तरह प्रतिवाद
करती रही है
और जैसे जैसे समय बीतता जाता है आपस में
घुलने मिलने का सिलसिला शुरू होने
लगता है।
मारिया
को सिगरेट की जबरदस्त लत थी …वहाँ
तैनात एक मैट्रन ऐसे मरीज़ों को सिगरेट मुहैय्या करा देती थी पर भारी
कीमत वसूल कर - मारिया के साथ भी शुरू शुरू में तो पैसे के लालच में
उसका बर्ताव ठीक रहा
पर जो थोड़े बहुत पैसे उसके पास थे उनके
निबटते ही वह अपना उग्र रूप दिखाने
लगी। उसके बाद और औरतों की देखादेखी
मारिया ने भी कूड़ेदान के पास से या
सड़क से सिगरेट का बचा हुआ टुर्रा (बट) इकठ्ठा
करना शुरू किया जिसके अन्दर
से तम्बाकू निकाल कर अख़बारी कागज़ में
लपेट कर काम चलाऊ सिगरेट बन जाती थी
…पर उसकी सिगरेट की तलब जब चढ़ती थी तो
उतनी ही जबरदस्त और उत्कट होती थी जितनी टेलीफ़ोन तक पहुँचने को
ले के होती थी। जब कुछ और समय बीता और अनमने ढंग
से ही सही मारिया ने नकली फूल बना कर कुछ पैसे इकट्ठे किये तब जा कर उसकी मुश्किलें कुछ आसान हुईं।
मारिया
ने धीरे-धीरे तमाम
मुश्किलों के साथ समझौता कर लिया पर
रातों का अकेलापन अब भी उसपर बहुत भारी पड़
रहा था। हलकी रोशनी जलाये हुए वह भी ज्यादातर औरतों
की तरह रात में भी
अधनींद जागी
रहती … चाहते हुए भी वह शरीर को मुर्दों की मानिंद पूरा जोर लगा कर मारे रहती कि कहीं लोहे के विशालकाय दरवाज़े पर बैठी रात
की ड्यूटी पर तैनात मैट्रन बतौर सज़ा जंजीर
से उसको बाँध न दे। एक रात जब मारिया का दुःख
बर्दाश्त बाहर हो गया तो उसने बगल की बेड पर सोयी औरत सुनाते हुए थोड़ी सी ऊँची आवाज़ लगायी :"हम कहाँ हैं बहन?"
पड़ोसन
ने भारी पर स्पष्ट आवाज़ में जवाब दिया :" नरक
के गड्ढे की तलहटी में"
'लोग
कहते हैं कि यह मूरों* का देश है, तभी तो गर्मियों की चाँदनी रातों में अक्सर कुत्ते समुद्र की ओर मुँह कर के भौंकते हुए दिखायी देते
हैं।", एक
दूसरी औरत ने यह बात अत्यंत गम्भीर स्वर
में इतनी जोर से कही कि बात पूरे
हॉल में गूँज गयी।
उस
लम्बे हॉल में भारी तालों को जोड़ने वाली लोहे
की जंजीर के घिसटने से निकलने वाली आवाज़ दरअसल किसी बड़ी नाव के लंगर जैसी आवाज़ का आभास दे रही थी ....कि तभी विशालकाय दरवाज़ा खुला। उनके बाहर पहरे पर तैनात निर्दय चौकीदार उस निर्जन सन्नाटे में हॉल के एक
छोर से दूसरे छोर तक चहलकदमी करने लगे तो लगा जैसे मृत्यु के साम्राज्य में सिर्फ़ वो ही हैं जो जीवन की निशानदेही के
लिए बचे हैं। मारिया का अंजर पंजर डर से
काँप उठा, हाँलाकि इस डर की असल वजह सिर्फ़ वही जानती थी - किसी और को इसका बिलकुल भी इल्म नहीं था।
सैनेटोरियम
में दाख़िले के पहले
हफ़्ते से ही रात को ड्यटी पर तैनात रहने
वाली मैट्रन मारिया से
अपने गार्डरूम में साथ सोने को कह रही
थी। मारिया की आनाकानी को देखते हुए
उसने बिना लाग लपेट सीधा सीधा मुँह खोल
कर कह ही दिया कि सिगरेट के बदले मारिया
उसको देहसुख दे दे तो हिसाब बरोब्बर, सिगरेट के लिए वह कोई पैसा
नहीं माँगेगी ...सिगरेट के साथ साथ वह
उसको चॉकलेट भी लाकर खिलायेगी, और
भी जो कहेगी एक बार बात
मान लेने पर वह मारिया के लिए सब कुछ कर देगी।
"तुम्हें
किसी चीज़ की कमी नहीं होने दूँगी …… बस
एक बार मेरा कहा मान जा फ़िर देखना
कैसे मैं तुझे यहाँ की रानी बना देती
हूँ।" भरपूर निर्लज्जता के साथ पर काँपते
हुए स्वर में उसने कहा।
मारिया
इसपर भी जब बिलकुल अड़ी
रही तो उसने दूसरा रास्ता निकाला - छोटी
छोटी पुर्जियों पर प्यार का खुला
इज़हार करने वाली चिट्ठियाँ लिखती और कभी
मारिया की तकिया के नीचे तो कभी
उसकी ऐप्रन की जेब के अन्दर ठूँस देती … कई
बार तो ये पुर्जियाँ मारिया को
वैसी वैसी जगहों से मिलतीं जिनकी उसने
कभी कल्पना भी नहीं की होती। और तो और उनपर
लिखा मज़मून ऐसा ह्रदय विदारक होता कि इंसान क्या पत्थर
भी पिघल जाये। आधी रात कहाँ होने की गुहार लगाने वाली घटना यह सब शुरू
होने के करीब एक महीने बाद की है जब मारिया पराजय और हताशा के आगे पूरी तरह
ख़ुद को बलिदान कर चुकी थी।
जैसे
ही यह लगा कि हॉल की सभी औरतें नींद के आगोश
में चली जा चुकी हैं, रात की ड्यूटी वाली मैट्रन अपनी कुर्सी से उठी और दबे पाँव मारिया के बेड तक आयी …उसके
कान में फुसफुसाते हुए एक से बढ़ कर
एक गन्दी अश्लील बातें
कहीं, कस के पकड़ कर उसका चेहरा चूमने लगी - उधर मारिया अचानक हुए इस हमले से एकदम घबरा गयी, उसकी गर्दन डर के मारे अकड़ गयी, बाँहें एकदम से तन गयीं और टाँगों की जैसे सारी जान ही चली
गयी। मैट्रन इतने जंगली आवेश में थी कि मारिया की हालत और प्रतिक्रिया
के स्वरुप को क्या समझती, उसने इसको मारिया की रज़ामंदी और आनंद का इज़हार समझ लिया .... उसने न आव देखा न ताव आगे ही आगे कदम बढ़ाती चली गयी। सारा
माज़रा उसको तब सही परिप्रेक्ष्य में समझ आया जब मारिया ने घुमा कर उसको इतने
जोर का झापड़ रसीद किया कि वह अगली बेड पर झन्नाटे के साथ धराशायी हो गयी।
इस धींगा मुश्ती और शोर से आसपास की औरतें हड़बड़ा कर उठ गयीं -- गुस्से
से लाल पीली हो रही मैट्रन निःशब्द उन सबके बीच जैसे तैसे उठ कर खड़ी हुई।
"तू
कुत्ती अपने को समझती क्या है … जब
तक तुझे लार टपकाते हुए अपने आगे पीछे
नहीं घुमाया तब तक हम और तुम दोनों यहीं
सड़ेंगे .... देखते हैं कौन माई का
लाल मेरे जीते जी तुझे
यहाँ इस कुँए से बाहर निकालता है।" जोर जोर से चीखती
हुई वह हाँफते-हाँफते बोले जा रही थी।
जून
का महीना आया और गर्मियाँ अचानक बगैर कोई पूर्वसूचना दिये आ धमकीं - उसको
इसका एहसास तब हुआ जब उसने देखा कि चर्च में मास के दौरान पसीने से लथपथ हो कर एक
एक करके औरतें अपने आड़े तिरछे गाउन उतारने लगीं। जब निर्वस्त्र
औरतों को वहाँ तैनात मैट्रनें नन्हे चूजों की तरह खदेड़ने लगीं तो मारिया को यह
नज़ारा देख कर बड़ा मज़ा आया - इस भाग दौड़ में वह खुद को भागती औरतों से बचाने
के लिए मारिया सँभल कर किनारे खड़ी हो गयी। शोर थमते ही मारिया को एहसास हुआ कि उस क्षण हॉल में और कोई नहीं है और वह
अकेली रह गयी है ....निरंतर बजती जाती टेलीफोन
की घंटी ने उसको एकदम चौकन्ना कर दिया, लगा जैसे बार बार टेलीफ़ोन उसी
को गुहार लगा रहा है …मारिया को समझ आ गया कि इस से बढ़िया मौका फिर कभी नहीं
मिलेगा। उसने न आगा देखा न पीछा फ़ौरन टेलीफ़ोन उठा लिया -- उधर से मुस्कुराती हुई आवाज़ आयी :"अभी समय हुआ है : पैंतालीस
घंटे, बानबे मिनट और
एक सौ सात सेकेण्ड।"
"धत्तेरे की", हताशा में मारिया के मुँह से गालियों के साथ निकल पड़ा।
फिर कुछ सोच कर वह उसी स्थान पर खड़ी रही -- उसको महसूस हुआ कि वहाँ
से इस मौके पर चली गयी तो ऐसा स्वर्णिम अवसर उसके हाथ फिर कभी नहीं आने वाला। बगैर किसी हड़बड़ी और तनाव के उसने छह अंकों का टेलीफोन नंबर लगाया हाँलाकि
वह अपने घर का नंबर एकदम पक्का याद नहीं कर पा रही थी। जोर जोर से धड़कता दिल थाम कर उसने उधर से जवाब का इन्तज़ार किया ....एक, दो, तीन, चार ....चिर
परिचित आवाज़ वाली घंटी
बजती रही …उसके मन में उत्कंठा और हताशा के
भाव डूबते उतराते रहे .... अंततः
उसको सूने
पड़े घर में उस आदमी की आवाज़ सुनाई
पड़ ही गयी
जिस से वह बेपनाह मुहब्बत करती थी।
"हैलो?"
आँखों
से लगातार बह रहे आँसू लगता था जैसे उसके गले में फँस कर उसका कंठ अवरुद्ध कर
देंगे - सायास उसने उनको घुल जाने दिया।
"बेबी.... मेरे प्यारे…
स्वीटहार्ट" वह सिर्फ़ इतना बोल पायी, वह भी बुदबुदाते हुए।
उसके आँसू थे कि थमने का नाम नहीं ले रहे थे। टेलीफ़ोन की दूसरी तरफ़
एक डराने वाली चुप्पी पसरी हुई थी …कि अचानक एक हिकारत और विष भरा शब्द गंदे पीक जैसा
फच्च से बाहर निकला : "रण्डी!"
यह
कह कर उसने रिसीवर ज़मीन पर जोर से पटक दिया।
उस रात मारिया इतनी उत्तेजना और
क्रोध की गिरफ़्त में आ गयी थी कि उसने उन्माद में
आ कर दीवार पर टंगे फ्रैंको का चित्र खींच लिया और बाहर गार्डेन में खुलने वाली खिड़की के शीशे पर इतनी ताकत से मारा कि शीशे की
किरचों से खुद भी लहूलुहान होकर फ़र्श पर गिर पड़ी। वहाँ ड्यूटी दे रही
मैट्रनों ने मारिया
को पकड़ने और काबू में करने की भरपूर
कोशिशें कीं पर सब बेकार – उसने ख़ुद
ही अपने को काबू में कर लिया। जैसे ही उसकी नज़र बड़े
दरवाज़े पर हाथ बाँधे
खड़ी हर्कुलिना पर पड़ी … वह
मारिया को ही घूर भी रही थी। मारिया ने खुद को उनके
हवाले सौंप दिया ,फिर भी वे उसको घसीटती हुई हिंसक और उग्र मरीज़ों वाले खतरनाक वार्ड में ले गयीं …वहाँ
उसपर बर्फ़ीले पानी की मोटी धार मारी
गयी और तारपीन की सुई टाँगों में घुसेड़
दी गयी। तारपीन से टाँगें सूज कर
इतनी भारी हो गयीं कि एक कदम भी आगे
बढ़ाना दूभर हो गया। मारिया को इस हादसे के
बाद यकीन हो गया कि वह दुनिया की चाहे कोई जुगत भिड़ा ले इस यातना भरे नरक से मुक्ति इस जीवन में सम्भव नहीं हो सकती। अगले हफ़्ते जब वह
लौट कर दुबारा अपने पुराने वार्ड में आयी, पाँव दबाती हुई सीधा रात की ड्यूटी वाली मैट्रन
के पास गयी – जा कर उसके दरवाज़े पर थपकी दी। दरवाज़ा खुलते ही उसने एकदम मुँहफट होकर मैट्रन के साथ सोने की कीमत माँग ली - कि उसको
मारिया के दिए पते पर उसके पति को सन्देश भेजना होगा।
मैट्रन इस शर्त को फ़ौरन मान
गयी पर उसको चेता भी दिया कि उनके बीच
हुई सौदेबाजी का किसी को भी पता
चला तो
मारिया की खैर नहीं : "कान खोल कर सुन लो … जैसे
ही किसी को इसका पता
चला, तुम्हारी गर्दन ज़मीन पर होगी मारिया।"
यह
काम होना था कि अगले शनिवार जादूगर सैटर्नों एक सर्कस वैन लिए हुए औरतों के इस
पागलखाने में दाख़िल हुए - मारिया को वापस घर ले जाने की ख़ुशी में उसने
अपने वैन को ख़ास ढंग से सजाया था। डाइरेक्टर ने ख़ुद उसको अपने ऑफिस में बुला कर स्वागत किया - उसका ऑफिस दाख़िल होते ही सैटर्नों एक बार को अचरज में
पड़ गया क्योंकि वह अंदर से इतना साफ़ सुथरा और तरतीबवार था कि पागलखाने का हिस्सा
न लग कर किसी लड़ाकू बेड़े जहाज का केबिन लगता था। बैठने पर
डाइरेक्टर ने उसकी बीवी की हालत के बारे में बड़े प्रेम से विस्तारपूर्वक
समझाया। उसने बताया कि यहाँ किसी को नहीं मालूम कि मारिया कहाँ से और कैसे आयी
…उसके आने
की असल तारीख भी किसी को नहीं मालूम …ये
तो जब उसने मारिया से उसकी हालत
के बारे में विस्तार से बात
की तब उसकी भर्ती का फॉर्म बाकायदा भरने का आदेश
यहाँ के स्टाफ को दिया। उसकी भर्ती के दिन से जो जाँच शुरू हुई है अबतक
जारी है, और अभी किसी निष्कर्ष पर पहुँचना मुश्किल है। डाइरेक्टर के बेहद सम्मानजनक बर्ताव के बावज़ूद जो रहस्यमय चीज़ बार-बार उभर
कर आ रही थी और डाइरेक्टर को परेशान कर रही थी वह यह थी कि मारिया यहाँ इस
पागलखाने में भर्ती है बाहर की दुनिया और ख़ास तौर पर सैटर्नों को इसका
पता कैसे चला। सैटर्नों ने इस बारे में अपना मुँह बड़े धैर्य के साथ बिलकुल
बंद रखा और मैट्रन का ज़िक्र एकबार भी नहीं किया।
जब
उसको तरह तरह से घेरने
की कोशिश की गयी तो सैटर्नों ने इतना
बताया : "कार जिस इन्श्योरेन्स कम्पनी
ने दी
थी उसने मुझे मारिया के बारे में बताया।"
"जाने इन
इन्श्योरेन्स कम्पनियों को सब कुछ कहाँ
से पता चल जाता है?"
डाइरेक्टर ने भुनभुनाते हुए कहा …पर अब वह शंकित नहीं लग रहा था। उसने एक नज़र अपनी भव्य मेज़ पर पड़ी मारिया की फ़ाइल पर डाली और बोला : "जैसा
मैंने पहले ही कहा
निष्कर्ष निकालना अभी बाकी है ....पर
बीमारी की गम्भीरता को ले कर कोई
संशय नहीं
है .... मरीज़ की हालत सीरियस है यह तय मानिये।"
मारिया से मिलने की इजाज़त वह सैटर्नों को देने को तैयार था पर मारिया
को देखते हुए शर्त यह रहेगी कि जैसे जैसे सैटर्नों को हिदायत दी जायेगी बगैर हील हुज्जत और सवाल जवाब के उसको उनका अक्षरशः पालन करना पड़ेगा।
इसकी वजह भी उसने बतायी कि यहाँ रहते हुए मारिया का गुस्सा और उन्मादी बर्ताव बद
से बदतर होता गया है, सो इस बात की भरपूर एहतियाद बरतनी पड़ेगी कि सैटर्नों की किसी
बात से मारिया फिर से न भड़क जाये।
"कितने अचरज की बात है
....वैसे मारिया को गुस्सा शुरू से जल्दी आ
जाता था पर अपने आप पर
वह जबरदस्त
नियंत्रण बनाये रखती थी।" सैटर्नों ने अपने पुराने
अनुभव से कहा।
डॉक्टर
ने अपने ज्ञान पर आधारित तज़ुर्बे से कहा : "इंसान के कई बर्ताव बरसों बरस निष्क्रिय या सुप्त अवस्था में बने
रहते हैं …और
अचानक एक दिन अपना सिर उठाने लगते
हैं।" उसने अपना कहना चालू रखा : "सौ बातों की
एक बात यह है कि वह किस्मत की धनी थी जो यहाँ सही जगह आ गयी .... हमें ऐसे मरीज़ों को सख़्ती के साथ रख कर इलाज़ देने में महारत हासिल
है।"
इसके
बाद उसने सैटर्नों को मारिया का टेलीफ़ोन को ले कर जो ऑब्सेशन है उसके बारे में तफ़सील से बताता
रहा।
"उसका मन बहलाओ …
कुछ हँसी मज़ाक करो।" डॉक्टर ने
उसको सलाह दी।
"इसकी इसकी आप कोई फ़िक्र न करें डॉक्टर .... ये तो मेरा काम ही है।" हँसते हुए सैटर्नों ने जवाब दिया।
उस पागलखाने में मुलाकातियों का कमरा दरअसल जेल की किसी
सेल और चर्च में कन्फेशन करने की गुमटी का मिलाजुला रूप था - पहले यहाँ चलाये जाने वाले कॉन्वेंट में मिलने जुलने बाहरी लोगों को यहाँ बैठाया जाता था। सैटर्नों के उस कमरे में घुसते ही खुशियों का कोई विस्फोट होगा
और उसकी चकाचौंध से कमरा जगमगाने लगेगा इसकी
उम्मीद दोनों में से किसी को नहीं थी
....मारिया कमरे के बीचोंबीच रखे एक छोटे से
टेबुल से लग कर खड़ी थी जिसके
साथ दो कुर्सियाँ रखी थीं
और टेबुल पर एक खाली फूलदान मुँह बाये पड़ा था।
जिस ढंग से उसने स्ट्रॉबेरी के रंग का
कोट - हाँलाकि फटा पुराना ही -- और
किसी के दिये हुए बेरंग
जूते पहन रखे थे उस से ज़ाहिर था वह पागलखाने से विदा
होने को तैयार हो कर आयी थी। पास के कोने में हर्कुलिना अपना हाथ बाँधे इस अदा से खड़ी थी कि उस पर सीधी नज़र न पड़े। सैटर्नों को अन्दर दाख़िल होते देख कर भी मारिया अपनी जगह बुत बनी खड़ी रही - काँच की किरचों
के गहरे निशान वाले उसके चेहरा भी भावशून्य बना रहा। दो परिचित मिलते हुए जैसे औपचारिकता वश एक दूसरे को चूमते हैं वैसे ही दोनों ने किया।
"अब कैसा लग रहा है?"
सैटर्नों ने चुप्पी तोड़ी।
"खुश हूँ बेबी ....
तसल्ली हुई कि तुम आ गये …मैं
तो यहाँ मर ही गयी थी।" मारिया बोली।
अनियंत्रित भावनाओं के प्रवाह ने उनको बैठने तक नहीं दिया। रोते-रोते मारिया
अपने नारकीय अनुभव बयान करती जा रही
थी कि निर्दय मैट्रनें उसके साथ मार पिटायी करती
रही हैं .... कि यहाँ खाना ऐसा दिया जाता है जिसको सड़क के कुत्ते भी मुँह न लगायें …अंतहीन दहशत की ऐसी जाने कितनी रातें काटनी पड़ीं जिनमें एक पल को भी पलक झपकाना मुमकिन नहीं था।
मारिया
ने कहा : "मुझे तो यह भी नहीं मालूम
मैं कितने दिनों से यहाँ रह रही हूँ …
या कि
यहाँ रहते मुझे दिन हुए, या महीने .... या साल?
मैं तो बस इतना जानती हूँ कि हर दिन पिछले दिन के मुकाबले ज्यादा
भयावह होता था." यह कहते कहते मारिया
दहाड़ें मार कर बेकाबू रोने लगी।
"मुझे नहीं लगता कि अब कभी मैं दुबारा पुरानी वाली मारिया बन
पाऊँगी। " रोते-रोते उसने अपने मन की व्यथा सुनायी।
"कोई
बात नहीं मारिया, जो बीत गयी अब उसको याद करने से क्या हासिल? भला
हुआ जो वह समय बीत गया।" मारिया को ढाढस बँधाते हुए उसके चेहरे के अब भी हरे जख्मों को सहलाते हुए सैटर्नों
बोला : " मैं अगले शनिवार को आऊँगा.... उसके
बाद भी हर शनिवार, बिला नागा। और यदि यहाँ के डाइरेक्टर ने इजाज़त दी तो हफ़्ते से पहले भी तुम्हारे पास आऊँगा.... तुम मुझ पर भरोसा
रखो मारिया, सब
कुछ देखते देखते ठीक हो जायेगा … बस
कुछ दिनों की ही तो बात है।"
मारिया की भयाक्रांत आँखें सैटर्नों के उपर जमी रहीं - घबरा कर सैटर्नों
अपने जादू से लुभाने वाले जो भी ट्रिक जानता था उन सब से मारिया को
सहज करने की कोशिश करता रहा ....झूठे किस्से गढ़ कर लोगों को बहलाने
फुसलाने में उसको महारत हासिल थी, सो प्यार की ढेर सारी चाशनी लपेट कर उसने मारिया को डॉक्टर के साथ हुई बातचीत का पूरा ब्यौरा बता दिया ,,,,,,बोला
: "इसका मतलब यह
हुआ कि ....पूरी तरह स्वस्थ हो जाने के
लिए तुम्हें कुछ और दिनों तक यहाँ
रहना पड़ेगा।" थूक निगलते हुए
सैटर्नों जैसे तैसे यह छोटा सा वाक्य बोल पाया। मारिया को सारा माजरा पल भर में समझ में आ गया।
"ख़ुदा के
लिए …बेबी, तुम
भी अपने मुँह से ये लफ्ज़ मत निकालना कि मैं बावली हो गयी हूँ … पागल हो गयी हूँ।" सदमे से पत्थर बन गयी मारिया ने कातर हो कर
कहा।
"क्या तुमको ऐसा लगता है?"
हँसते हुए जवाब दिया।
"फिर
भी मुझे
लगता है कि बेहतर होगा तुम कुछ दिन और यहीं रहो .... इसमें सबकी भलाई है …देखो यहाँ घर के मुकाबले ज्यादा अच्छी सुविधा भी है।"
"पर
बेबी मैंने तो तुम्हें पहले ही बतला
दिया कि मैं यहाँ किस लिए आयी - मुझे
तो सिर्फ़ फोन करना था।" नाउम्मीदी
से भर कर मारिया ने कहा।
सैटर्नों को जब बिलकुल नहीं समझ आया कि मारिया के मन में बैठी डरावनी
आशंकाओं के साथ क्या सुलूक किया जाये तो हड़बड़ी में हर्कुलिना के चेहरे की
ओर देखने लगा। हर्कुलिना ने अपनी घड़ी की ओर इशारा कर के सैटर्नों को यह
समझाने की कोशिश की कि मुलाकात का समय अब खत्म हो चुका। सैटर्नों को जाने
इशारा समझ आया या नहीं वहाँ के तौर तरीकों से अच्छी तरह से वाकिफ़ मारिया
सचेत हो कर झटके से पीछे मुड़ी - वहाँ खड़ी हर्कुलिना उस पर झपट्टा मारने ही वाली
थी। फिर जाने क्या हुआ कि मारिया अपने पति की गर्दन के इर्द गिर्द
बाँहें लपेट कर लटक गयी और दहाड़ें मार कर रोने लगी। ....वैसी मारिया को कोई
भी देखता तो यही कहता कि पागलपन का दौरा पड़ा है। सैटर्नों ने किसी तरह संभल
संभल कर उसको प्यार की भरपूर कोमलता के साथ अपने
से अलग किया …और मरिया को
हर्कुलिना के हवाले सौंप के परे हट गया।
बगैर एक पल भी गँवाए हर्कुलिना ने
लपक कर मज़बूत हाथों से मारिया को
जकड़ लिया। हर्कुलिना की इस फुर्ती ने
मारिया को पलट कर वार करने
का मौका नहीं दिया -- हर्कुलिना ने एक हाथ से मरिया
की बाँयी बाँह पकड़ी और दूसरा हाथ उसकी गर्दन के चारों ओर लपेट लिया …फिर
सैटर्नों से चिल्ला कर बोली : "अब दफ़ा हो जाओ यहाँ से, फ़ौरन।"
सैटर्नों
अपनी जान की खैर मनाता हुआ सिर पर पाँव रख के वहाँ से चलता बना।
हफ़्ते भर में उसने अपने को कुछ सँभाल लिया और अगले शनिवार अपनी
बिल्ली को साथ ले कर वहाँ पहुँचा …
मज़ेदार बात यह थी कि बिल्ली को बिलकुल
अपने कपड़ों जैसे कपड़े पहनाये हुए थे - लाल और पीले
रंग की चुस्त कमीज़, सिर पर हैट और
उड़ाकू पाइलट जैसी बिन बाँह वाली जरसी।
इस बार वह अपनी सर्कस वैन फर्राटे से
चलाता हुआ अन्दर तक ले आया और करीब तीन
घंटे तक तरह तरह के मज़ेदार करतब
वहाँ के बासिंदों को दिखाता
रहा - अपनी बालकनी पर खड़े खड़े उन्होंने तालियाँ
और सीटियाँ बजा कर और चिल्ला-चिल्ला कर इसका भरपूर लुत्फ़ उठाया। पूरा
पागलखाना सब काम छोड़ कर जादू के करतब देखने को इकठ्ठा था, सिवा मारिया
के - वह न तो अपने पति से मिलने गयी न
ही कमरे से बाहर निकल कर बालकनी तक
आयी। सैटर्नों उसके इस
बर्ताव से बहुत आहत हुआ।
"ऐसे मरीज़ों का
यह एकदम सामान्य बर्ताव है, इसमें नया और ख़ास कुछ नहीं .... थोड़े दिनों में
सबकुछ ठीक हो जायेगा।" डाइरेक्टर ने सैटर्नों को दिलासा दिया।
पर सब कुछ सामान्य और पूर्ववत कभी नहीं हुआ .... सैटर्नों उसके
बाद वहाँ कई
मर्तबा आया .... मिलना तो दूर मारिया ने
उसकी लिखी कोई चिट्ठी तक स्वीकार
करने से दृढ़तापूर्वक मना कर दिया।
सैटर्नों ने एक नहीं चार बार उसके लिये चिट्ठी
लिख कर डाइरेक्टर के पास छोड़ी पर मारिया ने चारों बार चिट्ठी को हाथ नहीं लगाया। सैटर्नों ने इस पर भी हार नहीं मानी और कुछ कुछ
दिनों बाद आ कर मारिया के वास्ते बाहर पोर्टर के पास सिगरेटों की डिब्बियाँ
पहुँचाता रहा -- उसमें यह पता करने की हिम्मत भी शेष नहीं थी कि सिगरेट की
डिब्बियाँ मारिया तक पहुँच भी रही हैं या नहीं। एक दिन भावनात्मक लगाव ने ज़मीनी
हकीकत के सामने हथियार डाल दिये।
सैटर्नों
के बारे में और किसी
को कुछ
नहीं पता चला सिवा इसके कि उसने दूसरा ब्याह रचा लिया और बार्सिलोना छोड़ कर अपने देस लौट गया - हाँ बार्सिलोना से
विदा होते हुए उसने अपनी
बिना खाये अधमरी हो गयी बिल्ली को अपनी
परिचित लड़की को सौंप गया जो कभी
उसकी कामचलाऊ गर्लफ्रेंड हुआ करती थी।
बिल्ली रखते हुए उसने सैटर्नों से यह
वायदा किया था कि बीच-बीच में
जाकर मारिया को सिगरेट की डिब्बियाँ भी दे आया
करेगी। पर कुछ दिनों बाद वह भी बार्सिलोना छोड़ कर कहीं
और चली गयी। रोसा रेगास ने बाद में उसको किसी डिपार्टमेंटल स्टोर में देखा था पर उस बात को बीते भी बारह साल हो गये - उस वक्त उसने
अपना माथा मुड़वाया
हुआ था
और लम्बा गेरुआ चोगा धारण किया हुआ था … देखने
से लगता था कि वह
जीवन से परिपूर्ण और संतुष्ट है। मारिया
के बारे में पूछने पर उसने बताया
कि वह उसके लिए सिगरेट की डिब्बियाँ ले कर
कई बार गयी पर धीरे-धीरे जाना कम
होता गया.... इतना ही नहीं मारिया की
वक्त ज़रूरत के वास्ते उसने किसी किसी से
कह के कुछ पैसों का भी जुगाड़ कर दिया था। पर एक बार जब वह मारिया से मिलने वहाँ गयी तो अस्पताल नहीं सिर्फ़ उसके खंडहरनुमा निशान
मिले - मालूम करने पर लोगों ने बताया कि उसको जमींदोज़ कर दिया गया .... वैसे
ही जैसे कमीने समय से दुःस्मृतियाँ पोंछ डाली जाती हैं। उसने यह भी
बताया कि आख़िरी मुलाकात के समय मारिया पारदर्शी रूप में खुश और संतुष्ट नज़र
आ रही थी।
(इस पोस्ट में प्रयुक्त पेंटिंग्स कवि विजेन्द्र जी की हैं।)
यादवेन्द्र |
सम्पर्क-
ई-मेल -yapandey@gmail.com
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