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जितेन्द्र कुमार यादव की कहानी “एक गहरी और काली आँखों वाली लड़की”

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जितेन्द्र कुमार यादव उत्तर प्रदेश   के   अम्बेडकर नगर   जिले   में   स्थित   नेवादा   कलां   नामक   गाँव   में 17 दिसम्बर 1988   को   जन्म. इलाहाबाद वि० वि० से   स्नातक, परास्नातक   तथा   कुमाउं  विश्वविद्यालय   नैनीताल   में शोधरत. विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं   में   अनेक   कविताओं   व   लेखों   का   प्रकाशन. विजय गौड़ ने अपने एक आलेख में कहानी के संदर्भ में महत्वपूर्ण बात उठायी है कि कविता के शिल्प में परिवर्तन को तो लोग आसानी से स्वीकार कर लेते हैं लेकिन कहानी के क्षेत्र में ऐसा नहीं दिखायी पड़ता. कहानी के बारे में एक रूढ़ धारणा बनी हुई है कि बिना कथ्य के कहानी लिखी ही नहीं जा सकती. यह दिक्कत आज भी ज्यों की त्यों बनी हुई है. इसके बावजूद कहानीकार ख़ुद ही यह तय करता है कि उसे कहानी कैसी लिखनी है. उसके शिल्प के निर्धारण का फैसला भी बहुत हद तक कहानीकार ही करता है. जो कहानीकार रूढ़ियों के बैरियर को तोड़ता है वही अपनी पहचान बना पाता है. युवा कथाकार जितेन्द्...

महेश चंद्र पुनेठा का आलेख 'शिक्षा और मनोविज्ञान की भी गहरी समझ रखते थे मुक्तिबोध'

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मुक्तिबोध अपने एक वक्तव्य के दौरान एक दफे नामवर सिंह ने कहा था - 'जो युग जितना ही आत्म-सजग होता है उसके मूल्यांकन का काम उतना ही कठिन हो जाता है ।' इस वक्तव्य में युग की जगह अगर रचनाकार कर दिया जाए तो मुक्तिबोध के मूल्यांकन के संदर्भ में यह एक सर्वथा उपयुक्त वक्तव्य होगा । ध्यातव्य है कि मुक्तिबोध रचनाकार होने के साथ-साथ एक शिक्षक भी थे । इन नाते वे अपनी भू मिकाओं से अच्छी तरह वाकिफ थे । वस्तुतः शिक्षा और मनोविज्ञान का रचना के साथ चोली दामन का सम्बन्ध है । स्पष्ट तौर पर कहें तो शिक्षा और मनोविज्ञान की गहरी समझ रखने वाला व्यक्ति ही अप नी रचनाओं के साथ ईमानदारी बरत पाता है । मुक्तिबोध की रचनाओं में अगर यह है तो उसके पीछे उनके शिक्षा के इस समझ की बड़ी भूमिका है । उनकी रचना में 'ज्ञानात्मक संवेदना और संवेदनात्मक ज्ञान' की बात इन्हीं सन्दर्भों में आती है । कवि महेश चन्द्र पुनेठा भी एक सजग शिक्षक हैं और इन दिनों 'दीवार' पत्रिका के माध्यम से शैक्षणिक क्षेत्र में विद्यार्थियों की अधिकाधिक भागीदारी के लिए के लिए ईमानदारी से सामूहिक तौर पर प्रयासरत हैं । महेश पुने...