संजना तिवारी की कविताएं
संजना तिवारी आज बाजार हर जगह कुछ इस तरह अपना प्रभाव जमाए हुए है कि रहीम की तर्ज पर कहें, तो ऐसा लगता है बिन बाजार सब सून। बाजार का तिलिस्म कुछ इस तरह का है गोया इससे दुनिया की हर चीज खरीदी जा सकती है। यानी कि दुनिया की हर चीज बिकाऊ है। लेकिन यही सच नहीं है। बाजार के वर्चस्व के बावजूद कुछ व्यक्ति, विचार और चीजें बिकाऊ नहीं है। इन लोगों ने कभी अपने सामने अपना मूल्य पट्ट नहीं टांका। सच तो यह है कि बाजार हमेशा एक भ्रम रचता है। 'कबीर तो खुलेआम कहते हैं कबीरा खड़ा बाज़ार में लिए लुकाठी हाथ...'। कबीर की इस लुकाठी को हाथ में लिए कुछ लोग हैं जिनसे उम्मीद कायम है। संजना तिवारी ऐसी ही जुझारू महिला हैं जिनसे साहित्य से जुड़ा हर व्यक्ति परिचित है। किताबों को पाठकों तक पहुंचाने की उनकी मुहिम से भला कौन अंजान होगा। संजना कविताएं भी लिखती हैं, यह जान कर सुखद आश्चर्य हुआ। तो आइए आज पहली बार पर पढ़ते हैं संजना तिवारी की कुछ कविताएं। संजना तिवारी की कविताएं बेटियों के लिए सुबह किरणों के रथ पर आती हैं बेटियां इन्हीं उधार ले कर फूल बिखेरते हैं खुशबू बेटियाँ ही कोयल...