हरीश चन्द्र पाण्डे की कविताएँ
हरीश चन्द्र पाण्डे हर शहर में एक बदनाम गली होती है। होती कहना गलत होगा, बल्कि बना दी कहना ज्यादा मुनासिब होगा। हालांकि, उजाले में बदनाम गली कोई जाना नहीं चाहता, लेकिन अधिकांश लोग ऐसे होते हैं जो इसे बदनाम बनाए रखने में कोई कोताही नहीं करते। बदनाम गली में सब बदनाम ही नहीं होता, बल्कि वहां जीवन के खूबसूरत कल्ले भी फूटते हैं। इनके भी अपने कुछ अरमान होते हैं। इनके भी अपने कुछ जरूरी सवाल होते हैं। हालांकि ये जरूरी सवाल अक्सर अलक्षित रह जाते हैं। कवि इस अलक्षित को ही लक्षित करने का प्रयास करता है। और जब यह कवि हरीश चन्द्र पाण्डे हों, तो हमसे कुछ भी अलक्षित नहीं रह पाता। यही तो हमारे इस उम्दा कवि की पहचान है। कवि भरत प्रसाद ने सुदूर शिलांग से 'देशधारा' नामक एक पत्रिका आरम्भ की है जिसके प्रवेशांक में हरीश चन्द्र पाण्डे की कविताएं प्रकाशित हुई हैं। आज पहली बार पर हम इन्हीं कविताओं को प्रस्तुत कर रहे हैं। तो आइए आज पहली बार पर पढ़ते हैं हरीश चन्द्र पाण्डे की कविताएं। हरीश चन्द्र पाण्डेय की कविताएँ बदनाम गली में यह माँओं की गली भी है बच्चे गली में खेलते रहते हैं। कभी उसका बेटा ...