विश्व के कुछ महत्त्वपूर्ण कवियों की कविताएँ। हिन्दी अनुवाद - पंखुरी सिन्हा
कविता जीवन की प्रतीक होती है। वह जीवन की संवेदनाओं और जीवनानुभवों से गहरे तौर पर जुड़ी होती है। यह नाउम्मीदी में उम्मीद रोपती है। यह निराशा को आशा में तब्दील करती है। बुल्गारियाई कवि ईवान हृसटोव अपनी कविता 'बेलग्रेड में निकोला टेसला म्यूजियम के सम्मुख' उचित ही लिखते हैं : 'और क्योंकि कविता/ एकमात्र वह ताकत/ वह ऊर्जा है/ जो बदलती है विफलता को सफ़लता में/ मैं तुम्हें देता हूँ कविता का/ यह टावर, यह बुर्ज'। विश्व के कुछ महत्त्वपूर्ण कवियों की कविताओं का खूबसूरत अनुवाद किया है हिन्दी की चर्चित कवयित्री पंखुरी सिन्हा ने। आज पहली बार पर प्रस्तुत है विश्व के कुछ महत्त्वपूर्ण कवियों की कविताएँ।
मूल कविता - जूरी तालवेत
चर्चित ऐस्तोनियन कवि, तारतू के एक प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थान में लम्बे समय तक प्राध्यापन।
अनेक पुस्तकें, अनेक भाषाओँ में अनूदित।
अनुवाद - पंखुरी सिन्हा
पुल और सड़क
गाड़ियां दौड़ती हैं
पुल के ऊपर से
एक बिन्दु पर चमकता है
उनका शीशा, सुनहली आभा में
केवल एक और पक्का सबूत
हर कुछ की हस्ती का …….
एक औरत तेज़ कदमों से
चलती चली जा रही है
सड़क किनारे की फुटपाथ पर
मुस्कुराती हुई अकेली
अपने चेहरे पर लिये हुए
वही भाव जो दर्शाता है
गन्तव्य तक पहुँच जाने का
असन्तोष
बनि बनिस्बत यात्रा की ऊर्जा
उसके कौतूहल के ……………
रास्ते और पुल मिलते हैं
होते हैं जुदा
मिल कर बंटती हैं राहें
उतरते चढ़ते हैं पुल……
होंगे वो जाने कौन से खुफिया माइक्रोस्कोप
जो रौशनी डाल सकेंगे
चीटियों के दिमाग पर
उनका खौफनाक उद्देश्यपूर्ण समर्पण
कौवे के कर्कश गीत के नीचे?
ओह, क्या विराट दृश्य अंततः…….
***
दमिला चेबोतारेव
(चर्चित रूसी इजराइली कवयित्री)
दादी और पोता
होलोकौस्ट में मारे गए लोगों के लिए
हमारी दुनिया हर कहीं एक जैसी है
अलेक्सनेर मेज़्हिरोव
हमारी दुनिया हर कहीं एक जैसी है --
दादी रिव्का छोटे याकोव को सिखाती है
शर्मनाक है कि हमें छोड़ना पड़ रहा है
क्राकोव
लेकिन कुछ बहुत बुरे लोग आये हमारे घर!
क्या तुमने पैक की हैं, तुम्हारी नोटबुक और कलमें?
ये रहा तुम्हारा सबसे प्यारा खिलौना
टेडी बियर!
प्लीज मुझसे मत पूछो क्यों
कब और कहां
लेकिन मैं वादा करती हूँ
कि तुम्हें नये दोस्त मिल जाएंगे!
थके पहियों को मिलता नहीं
कहीं भी आराम
पोलिश लोगों को ले जाते हुए
दूर दूर तक
क्यों सिला मेरी माँ ने एक पीला सितारा
हमारी नन्ही सी लड़की के कपड़ो के ऊपर?
क्या तुम्हें पता नहीं
कि डेविड की ढाल है वह? उसका वरदान भी!
दुखद है, नाराज़ होने पर वह दिखाती है
कि दादी रिव्का की कहानी कभी खत्म होगी ही नहीं
और तभी रुक जाती है ट्रेन
बर्फ़ से ढँके एक मैदान में!
यांकेल, देखने दो अपना हाथ और चेहरा मुझे
क्या हुआ तुम्हारे नाखूनों को?
क्या तुम कुतर रहे हो
फिर से इन्हें? दादी की आँखो में
भरे हैं दर्द के आँसू!
ये रहा औशविच!
यहाँ खत्म होती है यात्रा हमारी!
***
रेबेका लो
(चर्चित ब्रिटिश कवयित्री)
शुरुआती हलचलें
अति उत्साहित हाथ पैरों की
कोई नुमाईश नहीं
उन पहली हरकतों में
केवल फड़फड़ाहट जैसे पंखों की
धड़कन हृदय की
आकार लेती कोई चिल्लाहट नहीं
एक फुसफुसाहट, मद्धम आवाज़ में
एक भाषा के लहजे का उच्चारण भर!
स्क्रीन पर वह दिखती है
छोटी सी बिन्दु सी
अनाज के नन्हें दाने सी
स्लेटी!
लगभग पारदर्शी उसकी उंगलियाँ
जुड़ी हैं प्रार्थना में जैसे
तकनीक की तेज़ रौशनी के नीचे से
उसका चेहरा, देखता है
समय की थमी परतों को चीरता!
उसकी त्वचा, मकड़ी के मुड़े तुड़े धागों सी, जिसमें जारी है
अब भी बुनावट, बनाने की नसें
रक्त कोशिकाएं, दिमाग की नाज़ुक शिरायें!
हम देखते हैं एक दूसरे की ओर
महासागर की दूरी है
हमारे बीच! हम दोनों ने की है, अब तक की
सबसे लंबी दूरी तय, इस यात्रा में
और हम दरअसल पास हैं
इतने, जितने फिर कभी नहीं होंगे !
***
जोहाना देवादयावु
(चर्चित स्विस भारतीय कवयित्री)
स्वतंत्रता
बहुत सी आत्माएँ
जिन्दगी की टेढ़ी मेढी
राह में, रहतीं हैं
लगातार खोज में
आज़ादी और प्यार के!
जबकि वो होती हैं गुलाम
खुद परंपराओं की!
अपनी महत्वाकांक्षाओं की
पुजारी सच्ची झूठी
प्रतिष्ठा के! चलती लगातार
हड़बड़ाती, दौड़ती भागती
आखिर कहाँ के लिए?
किसलिए? कुछ लाभ संयोगवश यहाँ, कुछ
फायदे वहाँ, लेकिन सारी तैयारी
गति है बेकार! सन्तोष का एक
छलावा है, लेकिन आडम्बर उफ्फ़
कितने! और बेकार! लडाई
दिखावे, अहम की! ओह, बन्दी आत्माओं, क्या पाओगे तुम
जब इस दौड़ के अन्त में
केवल खालीपन से होगा
तुम्हारा सामना? आखिर
कितने बंधे हो तुम?
क्या सचमुच बंधे हो तुम?
या कि आज़ादी के आगे खड़े
पहुँच नहीं पा रहे उस तक?
आज के दिन करो एक निर्णय
अपना लक्ष्य तय करो
समझ लो! अलग हो जाओ
क्षणभंगुर सुखों से
पाने के लिए अमर खजाना
निकलो, समय के राज्य से निकलो
और लो आनंद असल आज़ादी का!
सच्ची स्वतंत्रता जीवन की सीमा के बीच
कर रही है तुम्हारा इंतज़ार!
**
फिन हौल
(स्कॉटलैंड के चर्चित कवि)
शमीमा बेगम के लिए
वह मात्र 15 वर्ष की थी
जिसकी देख रेख कर रहे थे पुरुष
कुछ खराब पुरुष, जो दरअसल
ध्यान नहीं रखते, महिलाओं के
अधिकारों का! जो कभी
ध्यान नहीं रखते, बच्चों के अधिकारों का!
पुरुष, जिन्होंने उसे पंद्रह की
अवस्था में, गर्भवती बनाया!
गर्भवती किशोर, बच्ची!
एक जवान लड़की जो लौटना
चाहती थी, अपने परिवार के बीच!
परिवार उसका उस देश में
जहाँ वह पैदा हुई
वह देश उसका, जिसकी नागरिक है वह!
भागना चाहती है दूर उन पुरुषों से
जिन्होने बहकाया, बरगलाया उसे!
देख रेख के नाम पर किया शोषण!
भागना चाहती है घर!
घर एक महत्वपूर्ण शब्द!
दूर एक ज़रूरी शब्द!
माँ और बच्चा!
बल्कि एक बच्ची, बच्चे के साथ!
क्या कुछ हो सकता है इस हाल में
गलत और खतरनाक?
मुझसे पूछते हो तुम?
तथ्य देखो, दुबारा!
वह गोरी नस्ल की नहीं
उसे कोई खिताब क्या
कोई टाई टिल तक नहीं मिली!
वह अमीर नहीं
और सबसे बड़ी बात
वह पहली दुनिया की
कोई गोरी नहीं!
कोई अधिकार नहीं उसके पास!
वह एशियाई है
उसका मत परिवर्तन किया गया
लेकिन, अब वह लौट नहीं सकती घर
गोरे, अमीर, खिताबों से लैस
पुरूषों का फरमान है यह!
***
बेंगत ओ बोज्कुर्ंड
(स्वीडन के चर्चित कवि)
गुमनामी की दुनिया में
लगभग गुमनामी की दुनिया में
टहलता पहुँच गया मैं
उनके कहे मुताबिक
बन्द कर बत्तियां
भोर से पहले
नुस्खे कारगर नहीं होते यहां
और ज़रूरत नहीं पड़ेगी
छाते की भी
वो अब भी हुक्म चलाने
वाले हैं, जिनके पास दरअसल
कोई मुद्दे नहीं
बचाने वालों की टीम आई
ग्यारह के आसपास
तब भी धुँआ था
सुलगता, सुलगाता
उस बुरी तरह जल गई
देह को!
अगर तुम सुनो एक मद्धम सी
गुनगुनाहट बजती हुई
तो समझो वह मैं ही हूँ
प्रतिरोध में, दिनों को
वाइन और मुलायम त्वचा में
बदलता हुआ!
***
जॉर्ज वालेस
(चर्चित अमेरिकी कवि)
कुछ पागल निकल भागे हैं जेल के तेरह नम्बर गलियारे के कमरों से
कुछ पागल निकल भागे हैं
जेल के तेरह नम्बर गलियारे के कमरों से
अपने साथ लिए लंबी बन्दूकें
और झंडे, और जीत रहे हैं चुनाव
प्रचार करते हुए अशोभन बातों का
लोगों के बीच! आखिर किसके साथ हैं वे?
मुझे कोई अंदाज़ा नहीं!
लेकिन वे हमें दुबारा बेवकूफ नहीं
बनायेंगे, नहीं इस बार
वे नहीं बना सकेंगे हमें मूर्ख!
इस बार हम जानते हैं बेहतर
फासीवाद की नीली सी फफूंदी
उगती और बढ़ती है
उनकी भी घी मलाई पर
उनकी तश्तरियों में पड़े
पनीर और चीज़ के टुकड़ों पर!
***
मेल पेरी
(चर्चित वेल्स्च कवयित्री)
नम्बर एक की याद में
बत्तीस वर्षीय, वह खड़ी थी
दरवाज़े पर, टावर के नीचे के
घर में अपने! देख रही थी
उत्तर की ओर द्वीप के ऊपर
और देखा उसने रौशनी की
पाँच सफ़ेद
धारदार किरणों को
पार करते खेतों की मुडेड़!
मैदानों के विस्तार!
काई पेन ओगोफ़ देलास
ब्रन्याई, अग्रौस
कैरेक, टीनेसा
ये सब ठोस घर खलिहान
अनेस ऐंचली द्वीप पर के
जिन पर रौशनी करती है
नित्य नृत्य
विचरते हुए इधर-उधर
अंधेरे उजाले की भूलभुलैया में
परछाईं की अर्ध चन्द्राकार
खोहों में से निकलते छिपते
हवा में तैरते फिसलते
ऊपर चारे बांटने, जलाने की मशीन के
त्योहार मनाते घरों, लोगों को छूते
करते रिक्त स्थानों की पूर्ति
पत्थरों के बीच ठहरते!
बादलों के नीचे
अनिश्चितताओं के घूंघटों के बीच
उस कालिमा के पार
जिसे मोमबत्ती की लौ भी
दे नहीं पाती कोई
गर्माहट, उसने उठाया
अपना हाथ
एक खांसी आई उसे
और बढ़ा दिया उसने
कदम बाहर
स्लेट की परिधि से!
अब लेटी है वह
पत्थर की दीवारों से घिरी
उस छोटी सी जगह में
जिसे वह साझा करती है
नांत्स की जेन विल्लियम्स
दनोगोफ़ की मार्गरेट ह्युज़
एलेन विलियम्स
और क्रिस्टीन के साथ!
लिज़ी, एडवर्ड नील की पत्नी
जिसे वह बेतरह प्यार
करता था
पता बार्डसे लाईट हाउस!
वह अठारह सौ इक्यानवे की
अप्रैल में मर गई
उसकी कब्र पर लगा
संगमरमर का हेड स्टोन
प्रसिद्ध है, जो साफ़ रातों में
रौशनी की कलाबाज़ियों के बाद
जब वह उछल चुकी होती है
तमाम कोनों में और जब फिसलती है
हवा, जैसे रौशनी के नृत्य में
धड़कता है दिल सा!
***
जाना ओरलोवा
(चर्चित चेक कवयित्री)
सर्दियों के बाद भी
सर्दियों के बाद भी
बुरी तरह अकड़ी थीं उसकी मांसपेशियाँ
जब उन्होंने उसे लकड़ी में ढ़ालते
लकड़ी के ही हवाले कर दिया
अपने हाथों से
कोई ऐसा जख्म नहीं
जो कहने, बताने लायक हो
हथेलियों की फुसफुसाहट से
मार्फत एक खरोंच के
परदादी अम्मा खड़ी है
खिड़की के सामने
इन्तज़ार करती
एक प्रेमी का
परदादी अपने प्रेमी का इंतजार करती है
और आग के लिए ढो कर ले जाती है पानी
एक प्रेमी का इंतजार करती है परदादी
जिसका पति सो रहा है
सब कुछ व्यवस्थित है
ठीक-ठाक हाल
गाँव के उस खेत के पास---
***
क्लॉडिया पिचिनो
(चर्चित इतालवी कवयित्री)
बर्बाद जगहें
भीड़ भरी जगहों में अक्सर प्रदर्शित
तुच्छ उपहास और
अघोषित, अबोले निर्णयों के बर्बाद इलाकों
सावधान रहो, प्यार के झूठे दिखावे से भी!
सजदा करो मेरे प्रलाप के आगे!
सुनो मेरा हर उच्चारण जैसे देव वाणी हो वह!
और डरो मत मेरे धमकी भरे
गुस्से से भी! क्योंकि वह ज़्यादा ईमानदार है
चापलूसी की आवृति से
और उस अचानक की खामोशी से
जो छा जाती है तुम्हारे कहीं पहुँचते ही!
और प्रकट हो जाने की
तुम्हारी अपनी असुरक्षित इच्छा से!
ऐसी बर्बादियाँ पैदा करती हैं संज्ञाहीनता, एक चेतना शून्यता!
कोई स्रोत होता, जिससे टपकती होतीं, दिव्य, मादक बूँदें
ऐबसिन्थ की! मोर्फीन मिश्रित!
जो कुछ थाम लेतीं, हवाओं के
उन झोकों को जो हिला कर रख देते हैं स्मृतियों को!
थम जाएँ वो तेज़ हवाएं, या फिर कोई तूफान जाग जाये, अपनी नींद से!
बहरहाल, तैयार है सूरज, गर्म करने के लिए
इस बहती, पिघलती, छलकती ज़मीन को!
किसी तूफान के पागलपन से
रेखांकित ये जगहें हैं
तर्कहीनता के अनंत प्रदेश में
जहाँ बुद्धि काम नहीं करती
हारे हुओं की ईर्ष्या के कारण!
एक नए दिन की सुबह के वक़्त
मैं इंतज़ार करूंगी तुम्हारा
लेकिन रास्ता होगा, पहले से ही
ताज़े अंकुरों से भरा!
सुवासित करने के लिए
इन बर्बाद जगहों को
जो खिलेंगी मेरे भीतर के
हरे विस्तारों में!
***
ईवान हृसटोव
(बुल्गारियाई कवि)
बेलग्रेड में निकोला टेसला म्यूजियम के सम्मुख
प्रिय निकोला टेसला
मैं जानता हूँ कि तुम चाहते थे
बनाना एक टावर
जो दुनिया भर को बांटेगा
ऊर्जा मुफ्त, बिना दाम
लेकिन, नाकामयाब रही वह कोशिश!
और क्योंकि कविता
एकमात्र वह ताकत
वह ऊर्जा है
जो बदलती है विफलता को सफ़लता में
मैं तुम्हें देता हूँ कविता का
यह टावर, यह बुर्ज
देता हूँ कविता की मीनार
इमारत, सावधान रहना
सावधानी से करना
इस्तेमाल इसका!
मैग्न्स ग्रेहन
(स्वीडिश कवि)
जोन ऑफ़ आर्क
माल्मो में रहती है जोन ऑफ़ आर्क
पादरी आवास में रहती है
कहता है दाढ़ी वाला एक व्यक्ति
जिसकी हैं जंगली नीली आँखें!
वह करती है यात्रा
समय और स्थान के बीच
थक गई है वह पंद्रहवीं शताब्दी से
करती है खरीददारी आई सी ए मैक्सि से
फूल खरीदती है गुस्ताव
अडोल्फ स्क्वैयर पर!
वह अब और होना ही नहीं चाहती
एक फ्रांसीसी नागरिक
एक पैट्रन सेंट, चाहती है कुछ
बिंदास घंटे बिताना माइक की
शराब दुकान में! खेलना पूल का खेल
और चाह्ती है उतार फेंकना
अपना कौमार्य उस पहले व्यक्ति के साथ
जो बनना चाहे उसका प्रेमी!
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