विजेंद्र जी के शिव बाबू मिश्र के नाम लिखे गए दस पत्र


विजेंद्र जी



पत्र अपने समय और समाज के प्रत्यक्ष गवाह होते हैं। आज मोबाईल के जमाने में इन पत्रों को लिखने का प्रचलन खत्म सा हो गया है। विजेंद्र जी ऐसे रचनाकार थे जो आजीवन पत्र लेखन करते रहे। इन पत्रों के जरिए उन्होंने युवा रचनाकारों से संवाद बनाए रखा। शिव बाबू मिश्र के साथ उनका लंबा पत्राचार चला। इन पत्रों से उस समय, समाज और साहित्य के बारे में भी पर्याप्त रूप से पता चलता है। हमने युवा रचनाकार अभिनव राज त्रिपाठी से इसे टाइप कर भेजने का अनुरोध किया जिसे उन्होंने सहज ही स्वीकार कर लिया। पत्रों को उपलब्ध कराने के लिए हम शिव बाबू मिश्र के आभारी हैं। इन पत्रों को टाइप कर भेजने के लिए अभिनव राज त्रिपाठी के भी आभारी हैं। पहली बार पर हम इन पत्रों को सिलसिलेवार प्रस्तुत करेंगे। इस कड़ी में आज हम विजेंद्र जी के शिव बाबू मिश्र के नाम लिखे गए दस पत्रों को प्रस्तुत कर रहे हैं।

 

शिव बाबू मिश्र

 

 

 

पत्र : 1

 








प्रियवर भाई मिश्र जी,

आपने पत्रिका में इतनी रुचि दिखाई उसके लिए मैं आभार व्यक्त करता हूँ। उपलब्ध पुराने चार अंक book pocket से आपके लिए भेज रहा हूँ। साथ में एक पुस्तिका भी है जिससे आप थोड़ा घना मेरे बारे में भी जानेंगे।

आप अपने बारे में विस्तार से लिखें, हमारी पत्रिका को जो इतनी उत्सुकता से पढ़ता है हमें उसके बारे में जानने की बेहद उत्सुकता होती है। आपने हमारे साहित्यिक परिवार को बड़ा किया इससे हमें बल मिला है। वैसे विद्यासागर नौटियाल के पास पत्रिका लम्बे समय से जा रही है उनके पास अतिरिक्त प्रतियां भी भेजते हैं । हम निजी वित्तीय साधनों से इसे निकालते हैं । इसका परिणाम आप जान सकते हैं । खैर आपसे संपर्क सूत्र जुड़ा यह आगे भी बना रहे । इसी कामना के साथ 

 (अपना फोन नम्बर भेजें , यदि संभव हो तो फोन पर बात करे)


सस्नेह 

आपका

विजेन्द्र

सी - 133, वैशाली नगर,                     

जयपुर

 

 

पत्र - 2




 

कृति ओर

सी-133 वैशाली नगर

जयपुर - 302021

दिनांक - 19.12.2002

फोन-0141-2351305


प्रिय भाई,                 

आपका स्नेह पत्र, मुझे प्रसन्नता है आपको पत्रिका के अंक यथावत मिल गए। 'अंक 26' शीघ्र ही मिलेगा आपने इसके बारे में बता कर मुझे उपकृत किया । 

[दरअसल लेखक तो अनेक होते हैं पर अच्छे इंसान विरल हैं - आज की दुनिया में, सोचता हूँ पहले भला इंसान तो बना जाए, बाद में लेखक बन सकें तो अच्छा है। मैं लेखकों के साथ बेहतर इंसानों की तलाश के लिए बेचैन रहता हूँ। उनका पा जाना एक तरह से मरुथल में फलवान वृक्ष के जैसा होना है।]

आप धीरे-धीरे पत्रिका पढ़ें, यह पत्रिका अन्य पत्रिकाओं से निश्चित ही कुछ भिन्न लगेगी। हम नयों को तो देते ही हैं पर अपने पूर्वज महान कवियों की उत्कृष्ट कृतियों को भी प्रस्तुत करने का यत्न करते हैं। उद्देश्य है कि जो रचना कर्म के द्वारा हमारे समाज के लिए उत्कृष्टतम देते रहे हैं उन्हें स्नेह और सम्मान से याद किया जाए, उन्हें पढ़ा जाए, उनका पुनः पुनः मूल्यांकन किया जाए। अपनी परंपरा के उत्कृष्टतम तत्वों को आत्मसात किये बिना न तो कोई बड़ी रचना सम्भव है और न आलोचना। यह मैं मानता हूँ और पत्रिका की व्यापक नीति का भी अंग है । परंपरा का समग्र और व्यापक अध्ययन जरूरी है। अब पत्रिका के माध्यम से संपर्क सूत्र बना रहेगा, यही संवाद की सार्थकता होगी।

आपने 10 प्रतियों के भेजने का आग्रह कर हमारे लिए बल प्रदान किया है। आप हमारे कठिन संघर्ष में सहयोगी बनें उसके लिए धन्यवाद। मैं 10 प्रतियां भेजूंगा । पैसा आप तत्काल न भी भेजें तो दो अंको के बाद भी भेज सकते हैं । इससे वहाँ पत्रिका का आधार बनेगा और लोग जुड़ेंगे।प्रसन्न होंगे।

सस्नेह,

विजेंद्र    



पत्र 3

 


 


प्रियवर मिश्र जी,

नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं।

आप द्वारा प्रेषित सामग्री पा कर आपसे आत्मीयता प्रगाढ़ हुई है। एक लेखक और अच्छे इंसान से मिलना दोनों ही मेरे लिए सदा प्रेरक रहे हैं। वैसे मेरा अनुभव है कि मित्र तो मिलते हैं पर बहुत दूर तक साथ नहीं रह पाता। मेरा जीवन संघर्ष में ही बीता है। यह आज भी बरकरार है। अतः ऐसे लोग जो संघर्ष में भी साथ दें आज विरले हैं। बहुत ही टुच्चे और तात्कालिक स्वार्थों को जुड़ते हैं। जब देखते हैं वे पूरे नहीं हो रहे उनकी शर्तों पर तो छोड़ कर भाग जाते हैं। फिर ईर्ष्यावश विरोध करने लगते हैं । खैर, आपका लेखक रूप सामने आया यह मुझे अच्छा लगा। 'कृति ओर' को लगातार जब आप पढ़ेंगे तो मेरे बारे में और जानेंगे।

दरअसल यह पत्रिका मेरी नहीं है बल्कि उन सभी सामान सोच वालों की है जो इसमें व्यक्त विचारों तथा नीतियों को आगे बढ़ाने के लिए संघर्षरत हैं। अतः यह पत्रिका जनपक्षधरता में साफ और पारदर्शी है। आप देखेंगे और अनुभव भी करेंगे। आपकी कृति 'धर्मपाल अवस्थी का रचना संसार' देख कर बहुत प्रसन्नता हुयी। आप आलोचना के क्षेत्र में और अच्छा कार्य करें - प्रेरित रहें, कटिबद्ध रहें, कृति ओर से जुड़ें।

सस्नेह,

विजेंद्र    



पत्र 4





कृति ओर

सी-133, वैशाली नगर

जयपुर - 302021

दिनांक - 01.01.2003

प्रिय भाई,            

आपका लम्बा पत्र, 'कृति ओर' आपने ध्यान से पढ़ा, मुझे प्रसन्नता है। आपने जो लिखा है उससे आपकी तीव्र साहित्यिक जिज्ञासा तथा रचनात्मक अभिरुचि व्यक्त होती है।

प्रयत्न तो बहुत करते हैं पर कमियां रह जातीं हैं। हाँ, आपने राजस्थान के लेखकों को न देने की बात की बात कही है। ऐसा नहीं है हर अंक में कोई न कोई यहाँ का लेखक किसी न किसी रूप में रहता ही है। मुझे पत्रिका की दृष्टि से भी देखना पड़ता है। वैसे राजस्थान में साहित्यिक उर्वरता कम ही है। बहरहाल, आपने जो भी सुझाव दिए हैं उन्हें मैं ध्यान में रखूंगा। अंक 26 आपको शीघ्र ही मिलेगा। निर्देशानुसार 10 प्रतियां अलग से प्रेषित करूँगा। आप देख कर लिखें।

नव वर्ष की शुभकामनाएं,

प्रसन्न होंगे सपरिवार।

सस्नेह,

विजेंद्र 



पत्र - 5





कृति ओर

सी-133, वैशाली नगर,

जयपुर - 302021

दिनांक - 03.01.2003


प्रिय भाई, आपका अंतर्देशीय, यह नव वर्ष आपको भी बहुत बहुत मंगलमय हो। अब तक के संवाद ने आपके बारे में बहुत कुछ बताया है। आपसे परिचय 2003 की हमारे लिए 'कृति ओर' के द्वारा बड़ी मानवीय उपलब्धि है। ऐसे व्यक्ति बहुत कम हैं जो बिना अपने स्वार्थ के कहीं किसी से जुड़ें, पहले अपने छोटे स्वार्थ बाद में और कुछ। दरअसल हमारे लिए पत्रिका बड़े सामाजिक मूल्यों से जुड़ा एक सांस्कृतिक तथा रचनात्मक आंदोलन है। यह एक व्यक्ति से गति प्राप्त नहीं करता बल्कि एक ही सोच के अनेक जन मिल कर इसे गति प्रदान करते हैं। इस अर्थ में आप 'कृति ओर' को अन्य पत्रिकाओं से थोड़ा अलग पाएंगे। बहरहाल हर अंक आपको इसके बारे में गहराई से बताएंगे। निवेदन है थोड़ा ध्यान से पढ़ें। 

हाँ, आप लेखक भी हैं यह बहुत अच्छी बात है; अतः आपका लेखन स्तर पर भी जुड़ना हमारे लिए बल प्रदान करेगा। आप लिखें मैं बड़ी विनम्रता से आपको कुछ विषय सुझा रहा हूँ। निराला के 'नए पत्ते' पर एक आलेख चार-पांच पत्रिका के पृष्ठों का, हमें तैयार करें। पुस्तक आप कहीं से उपलब्ध करें। यह बहुत अच्छे काम से शुरुआत होगी। आप देखेंगे कि इस संग्रह में जो महाकवि की कविताएं हैं वे कितनी भिन्न और आज की हैं। यह आपका प्रस्थान विंदु होगा। उसके बाद इसी क्रम में त्रिलोचन, नागार्जुन, केदारनाथ अग्रवाल, मुक्तिबोध, गिरिजा कुमार माथुर, शील आदि पर भी छोटे छोटे लेख लिखें। हाँ, पहले हर कवि को इस दृष्टि से पढ़ें कि आपको इन पर लिखना ही है। आप उक्त कवियों की कोई विशेषता भी ले सकते हैं। खैर, तीसरे आप कवि तथा कविता से क्या अपेक्षा रखते हैं? कवि सामाजिक बदलाव में हमारी क्या मदद कर सकता है? आज कविता कैसी होनी चाहिए? छंद में ही कविता क्यों लिखी जाए? मुक्त छंद की जरूरत क्यों पड़ी? कविता को कैसे तो आज बिगाड़ा जा रहा है; इसे कैसे रोका जा सकता है? आपके यहाँ के लोक गीत यदि मिल सकें तो उन्हें भी एक जगह कर, उन पर लिखें। ध्यान रहे श्रम संबधी या किसान के जीवन संबधी लोक गीत हमारे लिए ज्यादा काम के हैं। यदि आप मेरे पत्र को ध्यान से पढ़ेंगे तो इसमें इतने सवाल हैं कि आप लंबे समय तक काम कर सकते हैं। आप जब लिखेंगे 'कृति ओर' में तो बहुत बड़े लेखक पाठक वर्ग से भी जुड़ेंगे। मैं चाहता हूं महानगरों से दूर जनपदों में काम करने वाले लेखक आगे आएं - पर पूरी तैयारी के साथ, उत्कृष्ट रचनाओं का उदाहरण पेश करें, यह काम कठिन श्रम का है। यदि  एक बार आपने मन लगा के किया तो फिर आप करते ही रहेंगे, मैंने कुछ अन्यथा लिखा हो तो क्षमा करें।

पत्र दें।

सस्नेह,

विजेंद्र    

 


पत्र - 6

 


 

 

कृति ओर

सी-133 वैशाली नगर

जयपुर - 302021

प्रियवर भाई, लम्बा पत्र, संलग्न कविता दोनों को ध्यान से पढ़ा। आलोचना पुस्तक के कुछेक अंश भी पढ़े हैं। मुझे लगता है आप यदि आलोचना के क्षेत्र में एकाग्र, व्यवस्थित तथा गंभीरता से काम करें तो मुझे बड़ी संभावनाएं नज़र आती हैं। अभी आप युवा हैं। दूसरे, अंग्रेजी के समृद्ध साहित्य से आप परिचित हैं; मुझे लगा आपको जो साथ जिन लोगों का मिला, उन्होंने सही दिशा में प्रेरित नहीं किया! मैं एक बात कहूँ अन्यथा न लें, अपने उस अतीत को भूलें जो कटु अनुभवों से आपको सालता रह कर हताशा की तरफ़ ले जाता है। ज़्यादा पत्रिकाएं भी न पढ़ें। थोड़े दिन 'कृति ओर' को लगातार पढ़ कर देखें, उसमें लिखें। मैंने अपने पहले पत्र में आपको कुछेक विषय सुझाएँ हैं उन पर विचार करें। दूसरे, अंग्रेजी से यदि कुछ अनुवाद हिंदी में कर सकें तो मुझे तत्काल सूचित करें। कुछ गंभीर सामग्री photo copy कराके भेजूंगा। मुझे पूरा भरोसा है कि 'कृति ओर' में लगातार लिखने से आपकी अखिल भारतीय स्तर पर पहचान उभरेगी । मेरा साथ दें, मेरे साथ संघर्ष में शामिल हों। मैंने अनेक लेखकों को 'कृति ओर' के माध्यम से तैयार किया है, उनकी पहचान बनी है। डॉ. जीवन सिंह मूलतः 'कृति ओर' के लेखन से इतने चर्चित हुए हैं। थोड़ा धीरज रखें। मेरा साथ दें। एक वर्ष में परिणाम सामने आएंगे। 'कृति ओर' की कुछ सुनिश्चित नीतियां हैं। हम एक दिशा में लगातार बढ़ रहें हैं। आप जैसे लोग यदि मन से जुड़ेंगें तो गति तेज होगी। हमारे आंदोलन में तीवृता आएगी। मैं बहुत व्यस्त हूँ, फिर भी आपका पत्र पाने पर आपके लिए उत्तर देना अपना दायित्व समझता हूं। साहित्य की प्राथमिकता बहुत कम लोगों के पास है। फैशन ज्यादा है दिखावा तो है, इन दोनों से पाखंड जन्मता है और व्यक्तित्व क्षरित होता है। आप एक अच्छे समीक्षक साबित होंगे मुझे उम्मीद है। अपने आवास का Phone number लिखें।

सस्नेह,

विजेंद्र 



पत्र - 7





कृति ओर

सी-133, वैशाली नगर

जयपुर - 302021

दिनांक- 19 - 01 - 2003

प्रियवर भाई, आपका इलाहाबाद सन्दर्भ का पत्र, मुझे बड़ी प्रसन्नता है और पत्र संवाद को खासा महत्व देते हैं। परस्पर हम एक दूसरे को समझ कर आत्मीय निकटता का अनुभव कर रहे हैं।

मैंने आपके उक्त पते पर अंक 26 की 10 प्रतियों को (पैकेट) भेज दियें हैं। उस पूर्व आपके लिए अंक भी भेज चुका हूं। बताएं सब यथावत मिलें या नहीं। आपके पत्र यत्र तत्र पत्रिकाओं में पढ़ता हूँ । 'सुधारक' में अभी-अभी पढ़ा है। बहुत अच्छा गद्य लिखते हैं। उसमें प्रखर वैचारिकता तथा अग्रगामी दृष्टि होती है। बहुत प्रसन्नता की बात है। अब दो बातों का तत्काल जवाब दीजिये -

● क्या अंग्रेजी कविता और गद्य हिंदी में हमारे लिए अनुदित कर सकते हैं? आप दोनों ही भाषा बेहतर जानते हैं। यह महत्वपूर्ण कार्य है। यदि आप कर सकें तो Photo copy कराके भेजूं। हड़बड़ी नहीं है, आराम से कीजिये। दूसरे, मैंने जो विषय सुझाएँ हैं उन पर लिखने का मन बनाएं। कवि को आज कैसा होना चाहिए और कविता कैसी? इस विषय पर पत्रिका के चार पांच पृष्ठ तक लिख कर भेंजे, सुचिंत्य हों। गहन विचार हों और अपनी मौलिक सूझबूझ हो। भले ही देर लगे पर पहचान बननी चाहिए। आपके परिचय के साथ देंगे। अब आप 'कृति ओर' परिवार के अपरिहार्य सदस्य हैं। हमारे संघर्ष में शामिल हैं। मुझे बल मिला है, मिलेगा।

प्रसन्न होंगे - पत्र दें।

सस्नेह - 

विजेंद्र 



पत्र - 8

 


 

 

प्रियवर भाई मिश्र जी,

आपसे बात हुई फोन पर, कार्ड भी मिला, संवाद प्रगाढ़ता बढ़ाता है। मैं अनुवाद के लिए सामग्री यथाशीघ्र photo copy कराके भेज रहा हूँ। आप इसे धीरज से करें। आपके पास english to hindi कॉमिल बुल्के का कोश हो तो बेहतर है। वह बहुत काम देगा। उक्त भाषाविद 13 - 14 भाषाओं के विद्वान थे और अंग्रेजी के शब्दों का बहुत सही अर्थ इस कोश में उपलब्ध है।

दूसरे, मैं यह भी चाहता हूँ कि क्रमशः मेरी काव्य कृतियों को पढ़ें, यदि आपके यहाँ कोई ऐसी संस्था हो जो मेरी काव्य कृतियाँ मंगवा सकें तो जरूर मंगावें। आप चाहेंगे तो मैं नाम पते भेज दूंगा, कुछ तो मिलती ही नहीं। यदि आपका कोई अच्छा मित्र इलाहाबाद में हो तो उससे कहें कि कवि विजेंद्र की काव्य कृति 'धरती कामधेनु से प्यारी' परिमल प्रकाशन से ले कर आपको भेज दें। परिमल प्रकाशन जाना माना प्रकाशन है। दो पुस्तकें दिल्ली से छपी हैं, 'प्रकाशक किताब घर, 24, अंसारी रोड दरियागंज, दिल्ली - 110002 'घना के पांखी' सार्थक प्रकाशन, 100 - A गौतमनगर, दिल्ली, 'ऋतु का पहला फूल' पंचशील प्रकाशन फ़िल्म कॉलोनी,चौड़ा रास्ता, जयपुर (राज०) हाँ एक किताब और भी इलाहाबाद से छपी है - 'उठे गूमड़े नीले', शारदा प्रकाशन, जीरो रोड इलाहाबाद - शेष अब उपलब्ध नहीं हैं। कुल आठ ही छप पायीं हैं, दो छपने की प्रक्रिया में हैं। प्रसन्न होंगे, बच्चों को स्नेह।


सस्नेह,

विजेंद्र



पत्र - 9

 


 

 

कृति ओर

सी-133 वैशाली नगर

जयपुर - 302021

दिनांक- 30 - 01 -2003 प्रिय भाई धनादेश प्राप्त हुआ। मैं हृदय से आभारी हूँ, आप धनादेश पर व्यय होने वाले पैसे को उक्त धनराशि काट लिया करें। यह कर रहें हैं 'कृति ओर' के लिए बहुत बड़ा संबल है। आपके निर्देशानुसार श्रीयुत आचार्य जी को मानद प्रति भेज दी है। यदि आप कहेंगे तो आगे भी भेजते रहेंगे। अनुवाद की सामग्री शीघ्र भेजूंगा। फ़िलहाल इतना ही - प्रसन्न होंगे।

सपरिवार सस्नेह 

विजेंद्र



पत्र - 10

 

 


 

कृति ओर,

सी-133, वैशाली नगर,

जयपुर - 302021 

दिनांक- 14 - 03 -2003

प्रिय भाई मिश्र जी, 

आपका स्नेह पत्र, अंक 26 ही निकला है। अंक 27 में लगा हूँ। उसी के कारण बड़ी व्यस्तता है। निकलते आपको प्रतियाँ भेजवाऊंगा। दूसरे, अनुवाद सामग्री भी, थोड़ा अवकाश पा लूँ। कार्य का बोझ इतना रहता है कि कई बार चीजें दिमाग से निकल जाती हैं। मैं बहुत आभारी हूँ कि आपने मुझे याद किया। आप जैसे स्नेहिल जन बहुत कम होते हैं। आज की दुनिया में तो बहुत ही कम, बड़े उद्देश्यों के लिए साथ देने वाले लोगों का अभाव होता जा रहा है। क्षुद्र स्वार्थों तथा तुच्छ लालसाओं से लोगों के मन भरे रहते हैं। यदि ये पूरे न हों तो उनकी दिशा बदल जाती है। आप निःस्वार्थ, निर्व्याज इस कार्य में मेरे लिए संबल प्रदान कर रहें हैं, यह आपकी सदाशयता है और बड़े मन की अभिव्यक्ति - ! फ़िलहाल जल्दी में हूँ। अंक पूरा होते ही आपको भेजूंगा।

प्रसन्न होंगे सपरिवार, होली पर्व की हार्दिक मंगलकामनाएं। अंक आचार्य जी को भेज दिया था। आप उनका पता एक बार और भेज दें तो उसे स्थायी सूची में लिख लूंगा।

सस्नेह 

आपका,

विजेंद्र 

 


 




सम्पर्क

मोबाईल -   9415114099






टिप्पणियाँ

  1. उस समय २५ पैसे में जो दिल खोलकर एक दूसरे से बातें हो जाती थी, ऐसे दिलवाले अब कहाँ से मिलेंगे,
    विजेंद्र जी के शिव बाबू मिश्र जी के नाम लिखे गए ये दस पत्र, पत्र नहीं आपसी स्नेह को कैसे निभाया जाता है, इसकी सीख है
    प्रस्तुति हेतु बहुत धन्यवाद आपका

    जवाब देंहटाएं
  2. अद्भुत पोस्ट है ये, श्रमसाध्य कार्य के लिए हृदय से साधुवाद ।
    कुछ पत्रों को पढ़कर ये समझ आया की पहले लोग कितने सहज सरल होते थे बिना किसी लाग पेंच के बातों का आदान प्रदान सरलता से एक दूसरे के प्रति श्रद्धा भाव ।
    बहुत सुंदर प्रस्तुति।
    पत्रों का तो जमाना ही भूत हो गया ऐसे में ये पोस्ट जून दोपहरी में वटवृक्ष की छांव जैसा है।

    जवाब देंहटाएं

एक टिप्पणी भेजें

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

मार्कण्डेय की कहानी 'दूध और दवा'

प्रगतिशील लेखक संघ के पहले अधिवेशन (1936) में प्रेमचंद द्वारा दिया गया अध्यक्षीय भाषण

शैलेश मटियानी पर देवेन्द्र मेवाड़ी का संस्मरण 'पुण्य स्मरण : शैलेश मटियानी'