अरुण आदित्य की कविताएँ
अरुण आदित्य |
प्रेम ऐसा खूबसूरत अहसास है जो सब कुछ बदल कर रख देता है। प्रेम में वह रचनात्मकता है जो निर्जन को भी गुलज़ार बना देता है। प्रेम वह अनुभूति है जो मूलतः एक होते हुए भी अहसासों में बिल्कुल अलग या कह लें अलहदा होता है। अरुण आदित्य हमारे समय के महत्त्वपूर्ण कवि हैं जिनकी कविताओं में जीवन अपने समूचे नाद के साथ प्रतिध्वनित होता है। प्रेम उनकी कविताओं के मूल में है। आइए आज पहली बार पर पढ़ते हैं अरुण आदित्य की कुछ नई कविताएँ।
अरुण आदित्य की कविताएँ
दु:स्वप्न
रात का दूसरा या तीसरा प्रहर था
निगाह अचानक दीवार घड़ी पर पड़ी
उल्टी दिशा में चल रही थीं उसकी सुइयां
कोने में रखे गमले में भी उग आया था विस्मय
वहां पत्तियों से हरा रंग गायब था
और फूलों से लाल
बच्चे के खिलौनों से भी हुआ था खिलवाड़
हैंड ग्रेनेड जैसी दिख रही थी क्रिकेट की गेंद
तमंचे की नाल में तब्दील हो गई थी बांसुरी
हिम्मत करके बुकशेल्फ की तरफ देखा
किताबें सिर झुकाए पंक्तिबद्ध
जा रही थीं कबाड़खाने की ओर
अचानक किसी शरारती किताब ने धक्का दिया
जमीन पर गिर गई बच्चे की ड्राइंग बुक
खुल गया वह पन्ना जिसमें उसने बनाया था
जंगल में भटक गए आदमी का चित्र
मगर ताज्जुब कि उस दृश्य से
अदृश्य हो चुका था आदमी
दृश्यमान था सिर्फ और सिर्फ जंगल
कमरे में बहुत अंधेरा था
पर उस बहुत अंधेरे में भी
बहुत साफ साफ दिख रहा था ये सारा उलटफेर
उजाले के लिए बल्ब का स्विच दबाना चाहा
कि लगा 220 वोल्ट का झटका
और इस झटके ने ला पटका मुझे
नींद और स्वप्न से बाहर
घबराहट में टटोलने लगा अपना दिल
वह धड़क रहा था बदस्तूर
सीने में बायीं तरफ
मैंने राहत की सांस ली
कुछ तो है जो अपनी सही जगह पर है।
आश्रय
एक ठूंठ के नीचे दो पल के लिए रुके वे
फूल-पत्तों से लदकर झूमने लगा ठूंठ
अरसे से सूखी नदी के तट पर बैठे ही थे
कि लहरें उछल-उछलकर मचाने लगीं शोर
सदियों पुराने एक खंडहर में शरण ली
और उस वीराने में गूंजने लगे मंगलगान
भटक जाने के लिए वे रेगिस्तान में भागे
पर अपने पैरों के पीछे छोड़ते गए
हरी-हरी दूब के निशान
थक-हार कर वे एक अंधेरी सुरंग में घुस गए
और हजारों सूर्यों की रोशनी से नहा उठी सुरंग
प्रेम एक चमत्कार है या तपस्या
पर अब उनके लिए एक समस्या है
कि एक गांव बन चुकी इस दुनिया में
कहां और कैसे छुपाएं अपना प्रेम ?
चांदनी रात में लांग ड्राइव
तुम्हारे साथ लांग ड्राइव पर न जाता
तो पता ही न चलता
कि तुम कितने प्यारे दोस्त हो चांद भाऊ
गजब का है तुम्हारा सहकार
कि जिस गति से चलती है मेरी कार
उसी के मुताबिक घटती बढ़ती है तुम्हारी रफ्तार
एक्सीलरेटर पर थके पैर ने जब भी सोचा
कि रुक कर ले लूं थोड़ा दम
तुमने भी तुरंत रोक लिए अपने कदम।
गति अवरोधक पर
या सड़क के किसी गड्ढे में
जब भी लगा मुझे झटका
तुम्हें भी हिचकोले खाते देखा मैंने।
नहीं, ये छोटी मोटी बातें नहीं हैं चांद भाऊ
तुम्हें क्या पता कि हमारी दुनिया में
हमेशा इस फिराक में रहते हैं दोस्त
कि कब आपके पांव थकें
और वे आपको पछाड़ सकें
आपदा-विपदा तक को
अवसर में बदलने को छटपटाते लोग
ताड़ते रहते हैं कि कब आप खाएं झटके
और वे आपकी तमाम संभावनाएं लपकें
इसीलिए मैं अक्सर इस दुनिया को ठेंगा दिखा
तुम्हारे साथ निकल जाता था लांग ड्राइव पर
लेकिन आजकल पेट्रोल बहुत महंगा है चांद भाऊ
और लांग ड्राइव एक सपना
क्या ऐसा नहीं हो सकता
कि किसी दिन मेरी कार को अपनी किरणों से बांध कर
झूले की तरह झुलाते हुए लांग ड्राइव पर पर ले चलो
और झूलते-झूलते, झूलते-झूलते
किसी बच्चे की तरह थोड़ी देर सो जाऊं मैं।
कठिन समय में कलावंत
अभी मैं सुन रहा हूँ
अपना सबसे प्रिय राग
बाद में देखूंगा कहां लगी है आग
अभी मैं निरख रहा हूं
अपना प्रिय रक्तवर्णी प्रसून
बाद में देखूंगा
कहां बह रहा है सड़क पर खून
अभी मैं सीख रहा हूं
भावी प्रेयसी से निष्कलुष प्यार
बाद में देखूंगा
कहां किसके साथ हुआ बलात्कार
अभी मैं निश्चेत हूं
एक अधूरे चुंबन की स्मृति के निर्वात मे
खुली हवा में आऊंगा तो जरूर बताऊंगा
दूरी कितनी बढ़ गई है भूख और भात में
अभी जरा गीले हैं मेरे कैनवास के रंग
सूख जाने दो फिर देखूंग
कहां कहां छिड़ी है जम्हूरियत की जंग
अभी मैं सृजन के सपने में हूं
अभी मैं दुनिया में नहीं, अपने में हूं
अभी मैं कविता रच रहा हूं
इसलिए कुछ कहने से बच रहा हूं।
(इस पोस्ट में प्रयुक्त पेंटिंग्स स्व. विजेंद्र जी की हैं।)
सम्पर्क :
मोबाइल : 08392945707
लाजवाब सृजन
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