अरुण आदित्य की कविताएँ

अरुण आदित्य


प्रेम ऐसा खूबसूरत अहसास है जो सब कुछ बदल कर रख देता है। प्रेम में वह रचनात्मकता है जो निर्जन को भी गुलज़ार बना देता है। प्रेम वह अनुभूति है जो मूलतः एक होते हुए भी अहसासों में बिल्कुल अलग या कह लें अलहदा होता है। अरुण आदित्य हमारे समय के महत्त्वपूर्ण कवि हैं जिनकी कविताओं में जीवन अपने समूचे नाद के साथ प्रतिध्वनित होता है। प्रेम उनकी कविताओं के मूल में है। आइए आज पहली बार पर पढ़ते हैं अरुण आदित्य की कुछ नई कविताएँ।


अरुण आदित्य की कविताएँ



आंखें
 
 
इनमें जो सपने हैं
वे पानी से बने हैं
इनमें जो पानी है
उसकी भी अजब कहानी है
यूं तो एक आंख में तैरती दिखती है सिर्फ एक बूंद
पर थाह नहीं मिलती कि इस बूंद में हैं कितने समुद्र
कि एक बूंद टपकती है तो उसकी जगह
झिलमिलाने लगती है दूसरी
दूसरी टपकी नहीं कि तीसरी
और फिर टपाटप चौथी, पांचवीं...
पहली बार जब किसी आंख में
कोई सपना डबडबाया होगा
तब से अब तक
इतना पानी बहा चुकी हैं ये
कि वह सब एक साथ बहता
तो कई-कई बार बह जाती दुनिया
धार-धार बरस रही हैं वे
पर नहीं उठ रही कहीं कोई लहर
कि नीचे लगा है बॉटलिंग प्लांट
जहां भरी जा रही हैं बोतलें लगातार
टूट रही है सपने की सांस
पर टूट नहीं रही है जलधार
जरा और तेज रो धरती मां
कि इतने से नहीं बुझ रही बाजार की प्यास।
 
 
ऑक्सीजन
 
 
यूं तो हवा में उपलब्ध थी वह हर जगह
लेकिन सिस्टम की तरह अदृश्य थी
और उनसे ही नहीं हो पा रहा था उसका मिलाप
जो उसके लिए तड़प रहे थे दिन-रात
वह जहां-जहां से होती थी रुखसत
वहां-वहां उसकी खाली हुई जगह में
भरती जाती थीं हांफने और खांसने की आवाजें
बूढ़े हांफ रहे थे लगातार
रह-रहकर हांफ रहे थे नौजवान
हांफ रहा था महिलाओं का हौसला
हांफ रही थी बच्चों की मुस्कान
हांफ रहा था समूचा तंत्र
हांफते हुए श्मशान में
और तंत्र के तांत्रिक व्यस्त थे
किसी और ही अनुष्ठान में।


 दु:स्वप्न

रात का दूसरा या तीसरा प्रहर था

निगाह अचानक दीवार घड़ी पर पड़ी

उल्टी दिशा में चल रही थीं उसकी सुइयां


कोने में रखे गमले में भी उग आया था विस्मय

वहां पत्तियों से हरा रंग गायब था

और फूलों से लाल


बच्चे के खिलौनों से भी हुआ था खिलवाड़

हैंड ग्रेनेड जैसी दिख रही थी क्रिकेट की गेंद

तमंचे की नाल में तब्दील हो गई थी बांसुरी


हिम्मत करके बुकशेल्फ की तरफ देखा

किताबें सिर झुकाए पंक्तिबद्ध

जा रही थीं कबाड़खाने की ओर

अचानक किसी शरारती किताब ने धक्का दिया

जमीन पर गिर गई बच्चे की ड्राइंग बुक

खुल गया वह पन्ना जिसमें उसने बनाया था

जंगल में भटक गए आदमी का चित्र

मगर ताज्जुब कि उस दृश्य से

अदृश्य हो चुका था आदमी

दृश्यमान था सिर्फ और सिर्फ जंगल


कमरे में बहुत अंधेरा था

पर उस बहुत अंधेरे में भी

बहुत साफ साफ दिख रहा था ये सारा उलटफेर


उजाले के लिए बल्ब का स्विच दबाना चाहा

कि लगा 220 वोल्ट का झटका

और इस झटके ने ला पटका मुझे

नींद और स्वप्न से बाहर


घबराहट में टटोलने लगा अपना दिल

वह धड़क रहा था बदस्तूर

सीने में बायीं तरफ

मैंने राहत की सांस ली

कुछ तो है जो अपनी सही जगह पर है।

 


 

 

अन्वर्थ
 
 
चित्र बना रही है वह
या चित्र बना रहा है उसे
अभी-अभी भरा है उसने
एक पत्ती में हरा रंग
और एक हरा-भरा उपवन
लहलहाने लगा है उसके मन में
एक तितली के पंख में
भरा है उसने चटख पीला रंग
और पीले फूलों वाली स्वप्न-उपत्यका में
उड़ने लगी है वह स्वयं
उसे उड़ते देख खिल उठा है कैनवास
अब वह भर रही है आसमान में नीला रंग
और कुछ नीले धब्बे
उभर आए हैं उसकी स्मृति में
अब जबकि भरने जा रही है वह
बादल में पानी का रंग
आप समझ सकते हैं
कि उसकी आँखों को देख
सहम-सा क्यों गया है कैनवास।


आश्रय


एक ठूंठ के नीचे दो पल के लिए रुके वे

फूल-पत्तों से लदकर झूमने लगा ठूंठ


अरसे से सूखी नदी के तट पर बैठे ही थे

कि लहरें उछल-उछलकर मचाने लगीं शोर


सदियों पुराने एक खंडहर में शरण ली

और उस वीराने में गूंजने लगे मंगलगान


भटक जाने के लिए वे रेगिस्तान में भागे

पर अपने पैरों के पीछे छोड़ते गए

हरी-हरी दूब के निशान


थक-हार कर वे एक अंधेरी सुरंग में घुस गए

और हजारों सूर्यों की रोशनी से नहा उठी सुरंग


प्रेम एक चमत्कार है या तपस्या

पर अब उनके लिए एक समस्या है

कि एक गांव बन चुकी इस दुनिया में

कहां और कैसे छुपाएं अपना प्रेम ?





चांदनी रात में लांग ड्राइव


तुम्हारे साथ लांग ड्राइव पर न जाता

तो पता ही न चलता

कि तुम कितने प्यारे दोस्त हो चांद भाऊ


गजब का है तुम्हारा सहकार

कि जिस गति से चलती है मेरी कार

उसी के मुताबिक घटती बढ़ती है तुम्हारी रफ्तार


एक्सीलरेटर पर थके पैर ने जब भी सोचा

कि रुक कर ले लूं थोड़ा दम

तुमने भी तुरंत रोक लिए अपने कदम।


गति अवरोधक पर

या सड़क के किसी गड्ढे में

जब भी लगा मुझे झटका

तुम्हें भी हिचकोले खाते देखा मैंने।


नहीं, ये छोटी मोटी बातें नहीं हैं चांद भाऊ

तुम्हें क्या पता कि हमारी दुनिया में

हमेशा इस फिराक में रहते हैं दोस्त

कि कब आपके पांव थकें

और वे आपको पछाड़ सकें


आपदा-विपदा तक को

अवसर में बदलने को छटपटाते लोग

ताड़ते रहते हैं कि कब आप खाएं झटके

और वे आपकी तमाम संभावनाएं लपकें


इसीलिए मैं अक्सर इस दुनिया को ठेंगा दिखा

तुम्हारे साथ निकल जाता था लांग ड्राइव पर

लेकिन आजकल पेट्रोल बहुत महंगा है चांद भाऊ

और लांग ड्राइव एक सपना


क्या ऐसा नहीं हो सकता

कि किसी दिन मेरी कार को अपनी किरणों से बांध कर

झूले की तरह झुलाते हुए लांग ड्राइव पर पर ले चलो

और झूलते-झूलते, झूलते-झूलते

किसी बच्चे की तरह थोड़ी देर सो जाऊं मैं।

 

ठोकर
 
 
हम अपनी रौ में जा रहे होते हैं
अचानक किसी पत्थर की ठोकर लगती है
और एक टीस सी उठती है
जो पैर के अंगूठे से शुरू होकर झनझना देती है दिमाग तक को
एक झनझनाहट पत्थर में भी उठती है
और हमारे पैर की चोट खाया हुआ हत-मान वह
शर्म से लुढ़क जाता है एक ओर
एक पल रुककर हम देखते हैं ठोकर खाया हुआ अपना अंगूठा
पत्थर को कोसते हुए सहलाते हैं अपना पांव
और पत्थर के आहत स्वाभिमान को सहलाती है पृथ्वी
झाड़ती है भय संकोच की धूल और ला खड़ा करती है उसे
किसी और के गुरूर की राह में।

 


कठिन समय में कलावंत


अभी मैं सुन रहा हूँ

अपना सबसे प्रिय राग

बाद में देखूंगा कहां लगी है आग


अभी मैं निरख रहा हूं

अपना प्रिय रक्तवर्णी प्रसून

बाद में देखूंगा

कहां बह रहा है सड़क पर खून


अभी मैं सीख रहा हूं

भावी प्रेयसी से निष्कलुष प्यार

बाद में देखूंगा

कहां किसके साथ हुआ बलात्कार


अभी मैं निश्चेत हूं

एक अधूरे चुंबन की स्मृति के निर्वात मे

 खुली हवा में आऊंगा तो जरूर बताऊंगा

दूरी कितनी बढ़ गई है भूख और भात में


अभी जरा गीले हैं मेरे कैनवास के रंग

सूख जाने दो फिर देखूंग

 कहां कहां छिड़ी है जम्हूरियत की जंग


अभी मैं सृजन के सपने में हूं

अभी मैं दुनिया में नहीं, अपने में हूं

अभी मैं कविता रच रहा हूं

इसलिए कुछ कहने से बच रहा हूं। 


(इस पोस्ट में प्रयुक्त पेंटिंग्स स्व. विजेंद्र जी की हैं।) 



सम्पर्क : 

मोबाइल : 08392945707

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